संकेत सिहर सा गया था, ऐसा एहसास था कि जैसे ये कोई इशारा सा हो । एक उपस्थिति भी मौजूद थी उस कमरे में । फारुखी चाचा की श्राप वाली बात को मज़ाक में टाल गया था संकेत और औघड़ भी उसकी नज़र में किसी पागल से ज्यादा कुछ था नहीं ।
पर सोचने वाली कुछ बातें ज़रूर थीं, चुड़ैल वाले मोड़ का उस 12 साल पुरानी घटना से सम्बन्ध क्या है? "12, यहाँ भी 12 का नंबर पीछा छोड़ नहीं रहा और उस एक्सीडेंट वाले दिन तारीख क्या थी.........? अरे हाँ 12 ही तो थी l" संकेत खुद से ही बातें कर रहा था ।
बहुत दिमागी कसरत के बावजूद भी इन दो बातों का खुद में कोई रिश्ता पकड़ नहीं आ रहा था l सबसे बड़ी परेशानी थी उसका बोलने में असमर्थ होना । इंतज़ार था तो सिर्फ जल्दी ठीक होने का ।
माँ हमेशा सर के पास बैठी अपने बेटे को निहारा करती हैं । खाती भी कम ही हैं , पापा वैसे तो ज़ब्त दिखते हैं पर संकेत जानता था कि उम्र के तीसरे पड़ाव पर खड़ा पिता थोड़ा कमज़ोर तो हो ही जाता है ।
इतने दिनों में सुशान्त भी ऑफिस से वक्त निकाल कर हॉस्पिटल आता रहा । स्कूल की थर्ड क्लास से लेकर 12 तक हर कदम साथ ही पड़ा करता था संकेत और सुशान्त का । उसके बाद सुशान्त इंजीनियरिंग करने देहरादून चला गया और संकेत बी. एससी. करने के लिए यहीं रुक गया ।
दिन गुज़रे जा रहे थे , 2 महीने का वक़्त दिया था डॉक्टर्स ने और आज पूरा एक महीना हो चुका था उस अस्पताल के 2.5X6 के बेड पर । "बस तीस दिन और... फिर घर जाकर माँ के हाथ की बनी कचौड़ियां खाऊंगा । कार की क्या हालत हुई होगी ! और उस लड़की का हुआ क्या होगा !"
सुशान्त पिछले तीन दिन से आया नहीं था । चुड़ैल वाली बात माँ या पापा से करना नहीं चाहता था संकेत । आवाज़ भी अब निकालना आसान हो रहा था l इंतज़ार था तो सुशान्त के आने का l
दिन काटना अब आसान हो गया था संकेत के लिए । दिन भर माँ से बातें करता रहता । कभी दोस्तों के बारे में , कभी रिश्तेदारों के विषय में ।
"बेटा तुमको सिन्हा अंकल याद हैं , अरे वही तो लेमरेटा पर आते थे नीले से रंग की ।" माँ ने कहा ।
"हाँ माँ, याद आ गए । समोसे लेकर आते थे हमेशा । तो क्या हुआ अचानक सिन्हा अंकल क्यों याद आ गए आपको?" संकेत का सवाल साफ़ था ।
"बेटा कल वो गुज़र गए ।" माँ बोली
"क्या! कैसे?" संकेत भौचक्का रह गया ।
"पता नहीं । सब अचानक ही हो गया । बोलते हैं कि तन्त्र मन्त्र, भूत चुड़ैल का चक्कर था कोई । अब सच्चाई तो ऊपर वाला ही जाने ।
संकेत को फिर से उस रात की घटना याद आने लगी थी । "माँ उस लड़की का क्या हुआ था? " संकेत ने सवाल किया ।
"कौन सी लड़की?" माँ का ज़वाब की जगह सवाल आया ।
"अरे वो अंजना आंटी की बेटी । बहुत प्यारी लगती है । उसके एग्जाम थे ना । क्या हुआ पास हुई या नहीं ।" संकेत ने बात बदल दी ।
"तू भी बावला हो गया है अभी से कौन से एग्जाम आ गए ।" माँ बोली ।
"कुछ नहीं माँ, ऐसे ही ।" संकेत माँ को परेशान नहीं देख सकता था । एक तो एक्सीडेंट ही उनके लिए बहुत डरावना था और अगर चुड़ैल की बात सुनती तो और ज्यादा परेशान होतीं । "माँ सुशान्त नहीं आया बहुत दिन से !" संकेत ने फिर एक सवाल दागा ।
"बेटा वो तो ..........." माँ चुप हो गई ।
"क्या हुआ माँ ? सुशान्त ठीक तो है न ।
" नहीं बेटा । पता नहीं क्यों नस काट ली अपनी । कुछ बताता भी नहीं है । नौकरी पर भी नहीं जा रहा आजकल । इधर तेरा एक्सीडेंट उधर उसका सुसाइड अटेम्प्ट, कुछ समझ ही नहीं आ रहा । छुपाने का इरादा नहीं था । सोचा था जिस दिन तू पूछेगा बता दूंगी । " कहकर माँ रोने लगी ।
"वो है कहाँ? " संकेत ने पूछा ।
"बगल के वार्ड में, बहुत खून बहा था बेचारे का । सबने पूछने की बहुत कोशिश की पर किसी को कुछ बताता ही नहीं है । तुम दोनों पर भोले बाबा जानें क्या मुसीबत आ पड़ी है ।" माँ बोले जा रही थी ।
"इसका साफ़ मतलब है कि श्राप खत्म नहीं अब शुरू हुआ है और इसका सामना मुझे और सुशान्त को साथ मिलकर करना होगा ।" संकेत ने खुद से बुदबुदाया और माँ की गोद में सर रख कर लेट गया ।
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