अब लौट चले -6
अभिषेक का हर शब्द में मेरे प्रति प्रतिशोध था...
ये देखिये मेरे पिताजी और मेरी माँ... कितने खुश है एक नए जीवन की शुरुआत करने के लिए.. लेकिन शायद मेरे पिता के जीवन में वैवाहिक सुख नसीब में नहीं था...
वो थोड़ा चुप सा हो गया था बोलते बोलते मैंने उसे संतभावना देंने के लिए अपना हाथ उठाया ही था कि उसने चिढ़ते हुए कहा था...
मुझें हाथ मत लगाना, आपकी कोई सहानुभूति नहीं चाहिए...
और वो एल्वम के पन्ना पलटते - पलटते बोलता जा रहा... इतने सालों की उसके मन में भरी खीज शायद अब निकल रहीं थी 8-10 पन्ने एल्बम के पलटने के बाद वो थोड़ा रुका था.. जिस पन्ने पर उसके बचपन के फोटो थे जो वो मेरी ही गोद में बैठा था.. हां ये डिलेवरी के 7दिन बाद का ही तो फोटो था जब में हॉस्पिटल से घर आयी थी मनु कितनी मुश्किल से एक फोटो ग्राफर को लेकर आया था...
आप जानती है... इस बच्चे को इसकी माँ की ममता तक नसीब नहीं हुई... मेरी माँ मुझे हमेशा हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी थी... अपने अरमानो को पूरा करने के लिए... वो देखिये...
उसने पीछे दीवाल की तरफ हाथ से इशारा करके बोला था. जब मैने उस और देखा तो मेरी ही तस्वीर लगी थी जिस पर हार चढ़ा हुआ था...
मै जब छोटा था तो मां के प्यार और उसके साथ के लिए बहुत रोया करता था... और पिताजी मुझें ये तस्वीर दिखा कर कहते थे.. संध्या तुम अभी को छोड़ कर क्यों चली गयी...? अच्छा भईया से आप नाराज़ है... ओ... ठीक है ठीक है भईया अब आपको दुखी नहीं करेगा अब नहीं रोयेगा... आ हा हा... ओके प्रमिश आप जल्दी आओगी
और मै इतना सुन कर चुप हो जाया करता था... लेकिन सच्चाई तो कभी छुपती नहीं जिस दिन मुझें पता चला था कि मेरी मां... खैर छोड़ो.. ये देखिये...
और वो फिर मुझे आगे के फोटो दिखाने लगा था... लेकिन इन फोटो में मनु मुझें कही दिखाई नहीं दें रहा था... मेरी उत्सुकता उसके बारे में होने लगी थी मन में कई सबाल थे जिनका जवाब जानना मुझें बेहद ज़रूरी था.. साथ ही अभिषेक के प्रति प्यार भी था मै उसे अपने सीने से लगा कर जी भर कर रोना चाह रहीं थी... लेकिन ये अब संभव नहीं था जब अभिषेक मुझसे लिपटने के लिए बचपन में तड़प रहा था तब मै रवि की ख्वाहिशे पूरी करने में मशगूल थी... तब मै कितनी अंधी हो चुकी थी उस वक़्त मनु और अभिषेक का चेहरा क्यों याद नहीं आया...
आपको भूख लगी होंगी... आप बैठिये मै खाने का इंतज़ाम करता हूं...
और वो अपने साथ एल्बम लेकर चला गया था.. मै चुपचाप बैठी बहुत देर तक रोती रहीं सोचती रहीं थी रोते रोते बेहोशी का खुमार सा होने लगा था जिसके चलते पता ही ना चला कि मेरी नींद लगी थी या मै बेहोश हो गयी थी..
चेहरे पर एकदम से लगे पानी के छींटो ने मेरी बेहोशी तोड़ी थी... आँखे खोल कर देखा तो सामने अभिषेक खड़ा था...
संध्या जी.... रात हो चुकी है भूख नहीं लगी आपको..?
मै चुप रहीं...
ऐसे देखते रहने से कुछ नहीं होगा और तबियत खराब होंगी... आप खाना खा लीजिये...
मै फिर भी चुप रहीं...
कई लोग सोचते है वो जो कर रहें है वो ठीक कर रहें है...
ज़िद्दी होना ठीक है लेकिन कभी कभी वो जिद्द उन्ही पर भारी भी पड जाती है जिसका खामियाज़ा उन्ही को भुगतना पढता है..
इतना कह कर अभिषेक वहा से चला गया था... में फिर अकेली तन्हा वही बैठी रहीं... मन में इस वक़्त सिर्फ दो ही सबाल थे एक मनु का कि वो हैं तो कहां हैं सामने क्यों नहीं आता दूसरा ये कि मैने तो पत्र मनु को लिखा था कि एक बार तुम से मिलना चाहती हूं जिसका मनु ने आज तक जवाब नहीं दिया अगर मनु को मेरा लेटर मिला होता तो वो ज़रूर मुझसे मिलता.... लेकिन बात ये भी तो सोचने की हैं कि अभिषेक को कैसे पता चला कि मै मिलने आ रहीं हूं... कहीं रवि ने तो...
अ हां संध्या जी वैसे खाने में आप क्या लेंगी...?
अभिषेक ने कमरे में आते हुए पूछा था...
क्योंकि खाना बनाने का सामान तो हैं पर कई सालों से बंद पड़ा हैं पिताजी बताते हैं मां खाना अच्छा बनती थी... लेकिन जब से वो गयी तब से सब वैसा ही पड़ा हैं... मैने तो आज तक मां के हांथ का बना खाना नहीं खाया... जी जल्दी बताये क्या खाएंगे आप रेस्टोरेंट में ऑर्डर करना पड़ेगा...
जो तुम चाहो.. !
ओके तो सब्जी रोटी दाल चावल मंगवा लेते हैं...?
उसने मुझसे पूछा था.. हम दोनों कुछ देर शांत रहें फिर अभिषेक ने मोबाईल से खाने का ऑर्डर दिया.... और वो भी वही बैठ गया...