karahati saanjh in Hindi Moral Stories by Rajesh Bhatnagar books and stories PDF | कराहती सांझ

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कराहती सांझ

13 - कराहती सांझ

आज राजन की बीमारी को पूरे आठ माह हो चुके थे । जबसे डाक्टरों ने राजन को एड्स होने की संभावना बताई थी तब से ही उसके निकट के रिष्तेदार, अड़ौसी-पड़ौसी कार्यालय के साथी ही नहीं स्वयं उसकी पत्नी माला भी उससे दूर-दूर रहने लगी थी । पूरा परिवार शोक-ग्रस्त और दुःखी था । जैसे सभी ने उसे उसकी मृत्यु के पूर्व ही एक ज़िन्दा लाष समझ लिया था और एक-एक दिन गिन लोग उसकी मृत्यु का इन्तज़ार करने लगे थे ।

एड्स जैसी जान लेवा बीमारी की संभावना सुनते ही राजन तो जैसे जीते जी वैसे ही मर गया था उस पर लोगों की अवहेलना, उसके चरित्र के प्रति अविष्वास और उससे लगने वाली बीमारी से आषंकित लोगों की दूरी को उसके लिये बर्दाष्त कर पाना असहनीय हो गया था । सबसे बड़ा दुःख तो उसे उसकी पत्नी की आंखो से टपकती वेदना के साथ उसके चरित्र के प्रति अविष्वास करने का था । क्या वह भी यही समझती है कि उसे ये घातक बीमारी किसी एड्स रोगी से शारीरिक संबंध...। राजन का मन दुःखी होने के साथ ही अपनों से मिली दूरियों और अविष्वास की पीड़ा से रो उठता ।

राजन की बीमारी ना केवल मानसिक अषांति, पीड़ा और वेदना लेकर आई थी वरन् आर्थिक कठिनाईयों का पहाड़ भी जैसे उसके परिवार पर टूट पड़ा था । आये दिन दवाई, जांच, डाक्टर की फीस, दूध, राषन, बच्चों की स्कूल फीस-किताबें और ऑफिस से छुट्टी....। वह आंखों में आंसू लिये मन की पीड़ा को दबाये अपने पलंग पर पड़ा-पड़ा छत को सूनी आंखों से घूरता रहता और शायद छत पर लिखी मौत को ग़ौर से पढ़ने का प्रयास करता....। उसकी मृत्यु के पष्चात् उसके परिवार के अंधकारमय भविष्य की कल्पना कर उसकी आत्मा रो उठती । हर पल ईष्वर से मन ही मन सवाल करता, “हे भगवान...। ये किन पापों की सज़ा दे डाली...? गैर तो गैर...अपनों ने भी मुंह मोड़ लिया है....।”

शुरू-षुरू में तो उसके अपनों और गैरों ने उससे अपार सहानुभूति दिखाई थी, मगर एड्स होने की खबर फैेलते ही सभी ने उससे किनारा कर लिया था । उसके दफ्तर के घनिष्ठ साथी भी अब कभी-कभार ही उससे मिलने आते । उसके पलंग से दूर खड़े होकर, मुंह पर रूमाल रखकर उसके हाल-चाल पूछते और चले जाते । वह आंखों में आंसू लिये उन्हें दूर जाते ताकता रह जाता । उसने अस्पताल में ही पड़े-पड़े ना जाने कितने लेख और किताबें पढ़ीं थीं एड्स पर । वह आने वाले साथियों को समझाना चाहता, “दोस्तों मुझसे दूर मत जाओ तुम्हें कुछ नहीं होगा । ये कोई छूत की बीमारी नहीं ।” मगर. उसके ष्षब्द जैसे कंठ में ही घुटकर रह जाते । सीने में दर्द की एक चुभन के साथ वह सब कुछ पी जाता अन्दर ही अन्दर और अस्पताल की छत को घूरता रह जाता । उसका जी करता कि वह फूट-फूटकर ज़ोरों से दहाड़ें मारकर रोये मगर वह रो भी नहीं पाता और उससे मिलकर जाते हुये लोगों को सूनी आंखों से निहारता आंखों में आंसुओं का सैलाब लिये प्रस्तरखण्ड-सा जड़वत बैठा रह जाता पलंग पर ।

आज भी वह अस्पताल के पलंग पर पड़ा-पड़ा ना जाने क्या-क्या सोचता रहा था । बाहर शाम का ध्ंाुधलका रात की काली चादर ओढ़कर उसके वार्ड में खिड़की-दरवाज़ों से घुसने लगा था । मरीज़ों के नाते-रिष्तेदार अपने-अपने मरीज़ों का हाल-चाल पूछने आये और चले गये । मगर उसके पास....। उसके पास कोई नहीं आया सिवाय उसकी पत्नी और बच्चों के । पत्नी का उसके प्रति उखड़ा-उखड़ा व्यवहार उसे काटता रहा था । वह भी चाय-खाना देकर चली गई थी । बस उसने उससे इतना ही कहा था, “कल आपकी रिपोर्ट आ जायेगी उससे पता चल जायेगा कि आपको एड्स है या नहीं, और है तो किस कारण...।” “तो किस कारण.....।” ना जाने इन शब्दों में कैसी चुभन थी । क्या माला भी और लोगों की तरह ही मेरे बारे में सोचती है ....। रात के अंधेरे से कहीं घोर अंधेरा छाने लगा था उसके मन में...। हर स्त्री के मन में पराई स्त्री के प्रति ईर्ष्या होती है । वह माला के व्यवहार से स्पष्ट रूप से जान चुका था । यूं तो माला पत्नी होने के नाते उसकी सेवा जी-जान से कर रही थी, मगर फिर भी राजन को उसके व्यवहार में एक औपचारिकता महसूस होने लगी थी । मगर उसने तो ऐसा कोई पापा आज तक किया ही नहीं.......। उफ्.......। राजन ऐसी अभिषप्त जिन्दगी नहीं जीना चाहता....। काष....! उसे आज रात ही ईष्वर मौत दे दे ।रात की बेचैनी से अधिक बेचैन होकर राजन रात-भर करवटें बदलता रहा था । आखिर कल उसकी रिपोर्ट जो आनी थी ।

सुबह ही माला ने राजन के सिरहाने की टेबल पर चाय रखी तो राजन की नींद टूट गई । सामने ही माला खड़ी थी । उसने अपनी अधखुली सूनी आंखों से माला को निहारा । कितनी बदल गई थी माला इन आठ माह में ....। उसकी जानलेवा बीमारी, आर्थिक कठिनाईयों, भाग-दौड़ और मन की टूटन ने उसे किस कदर तोड़ दिया था । चेहरा किसी होने वाली असामयिक दुर्घटना से आक्रान्त....। सूखा...बुझा-बुझा-सा....। आंखें सूनी.....उनमें ना प्यार, ना आषा और ना ही वो चमक थी । आंखों के नीचे गहरी काली स्याही उसके दुःखों और अन्तर की पीड़ा को स्पष्ट उजागर कर रही थी । राजन ने आंखें खोलकर बस इतना ही कहा, “आ गई तुम ?”

चाय रखकर वह बोली, “मैं डाक्टर से आपकी रिपोर्ट लेने जा रही हूं आप चाय पी लो ।” कहकर वह चली गई और राजन उसे जाते हुये देखता रहा ।

कुछ ही देर बाद माला डाक्टर के सामने खड़ी थी । डाक्टर ने उसके हाथ में रिपोर्ट थमाते हुये कहा, “जिसका हमें डर था वही हुआ । आपके पति को एड्स ही है । और जो रिपोर्ट सामने आई है उससे मालूम पड़ा है कि आपके पति को किसी एड्स रोगी का संक्रमित खून चढ़ाया गया है । आपको तो पता होगा ? क्या कभी उन्हें किसी का खून दिया....?”

माला डाक्टर की बात सुनकर सन्न रह गई । कांपते हाथों से उसने रिपोर्ट हाथ मंे लेते हुये “हां” के जवाब में सिर हिला दिया । डाक्टर ने उसे सलाह दी, “आप रोगी को खुष रखें । यह ऐसी कोई छूत की बीमारी नहीं जो साथ खाने या उठने-बैठने, साथ रहने से हो जाये । यह तो असुरक्षित शारीरिक संबंध और असुरक्षित खून लेने से ही होती है......।”

डाक्टर कहता जा रहा था और माला आंखों मंे आंसुओं का सैलाब लिये सुनती जा रही थी । जब डाक्टर पूरी बात कह चुका तो वह टूटे कदमों, बोझिल मन और प्रायष्चित के आंसू आंखों में लिये राजन के कमरे की ओर बढ़ गई । उसकी आत्मा कराह उठी थी । उसने राजन के चरित्र पर जो शक किया था ।

माला की आंखों में एक वर्ष पहले हुआ एक्सीडेंट घूम गया जब उसके पीहर से लौटते समय उनकी बस का एक्सीडेंट एक ट्रक से हो गया था । अन्य यात्रियों के साथ राजन की हालत भी खराब हो गई थी । सिर फटने से बहुत अधिक मात्रा में खून बह गया था । उसे याद आया तभी तो राजन को एक छोटी-सी डिस्पेंसरी में बस के ही किसी यात्री ने अपना खून दिया था । वह सबके आगे खून के लिये रोई-गिड़गिड़ाई थी । बच्चे अलग चीख-पुकार कर बेहोष हो गये थे । तब लम्बे से दाढ़ी वाले व्यक्ति ने अपना खून राजन को दिया था । तो क्या उसी संक्रमित व्यक्ति का बिना जांचा खून उसके पति को जल्दी में चढ़ा दिया गया था...? क्या वही खून उसके पति की बीमारी का कारण बन गया....? और वह क्या-क्या सोच बैठी ।

आंखों में आंसू भरे उसने राजन के सिर पर प्यार से हाथ फिराया और अनायास ही बोल पड़ी, “राजन मुझे माफ़ कर दो । मैंने आप पर शक किया...। आपके चरित्र पर शक कर-करके खुद भी जली और आपको भी जलाया । आप मेरे थे, मेरे ही हो और रहोेगे । ईष्वर ने चाहा तो आप अवष्य ठीक हो जायेंगे...।”

राजन माला के मुंह से ये शब्द सुनकर,, माला का अपने प्रति प्रेम और विष्वास पाकर उसके हाथ अपने हाथों में लेकर फूट पड़ा, “माला ! मैं मौत से नहीं डरता वो तो एक ना एक दिन आनी ही है । मगर.... मैं तुम्हारी अवहेलना और अपने प्रति अविष्वास मर कर भी बर्दाष्त नहीं कर सकता । मुझे कुछ नहीं चाहिये .....सिवाय तुम्हारे प्यार और विष्वास के । मैं तुम्हारे सिवा इस जन्म में तो क्या अगले कई जन्मों में भी किसी और का नहीं हो सकता....।”

“राजन....।” कहकर माला उसके सीने पर सिर रखकर फूट पड़ी । उसके रूदन से लगा जैसे अस्पताल की उदास खिड़कियां-दरवाज़े भी रो पड़े । आसमान से उतरती सांझ भी कराहती हुई राजन के पलंग से लिपट कर उसके और माला के दुःख में शामिल हो सिसक पड़ी ।

***