थैंक्यू पापा
बस किसी छोटे से कस्बे के पास से गुजर रही थी| कोई बाज़ार था शायद जहाँ कुछ लोग सड़क के किनारे पटरी पर लगी दूकानों से खरीद्दारी कर रहे थे| बस तेज रफ़्तार से भागी जा रही थी कि अचानक ड्राईवर रामदीन ने पूरी ताकत से अपने पैर ब्रेक पैडल पर जमा दिए| बस चिचियाते हुए वहीँ खड़ी हो गयी| सभी सवारियों कि चीख निकल गयी किसी का घुटना तो किसी का सिर आगे वाली सीट से जा लड़ा| रामदीन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी वह पसीना-पसीना सड़क पर निगाह जमाये हुए था|
रामदीन आज बोझिल कदमो और उदास मन से घर से काम पर निकला था... पूरे दस दिनों बाद| अभी भी पूरे घर में दुःख और मातम पसरा था ...पर, आखिर वह कितने दिन काम से दूर रह सकता था, वापस तो आना ही था| ‘अच्छा चलता हूँ... आखिर कब तक ऐसे घर में बैठा रहूँगा’, अपनी पत्नी कि ओर दुखी मन से देखते हुए रामदीन ने निःश्वास छोड़ा और उठ खड़ा हुआ| घुटने में मुँह दिए बैठी पत्नी ने धीरे से सिर उठाया और रामदीन से निगाह मिलते ही एक बार फिर फफक पड़ी| देखा-देखी बेटी भी| बीते दस दिनों से उसके घर का यही हाल है| हो भी क्यों न... घर का लाडला और सबका दुलारा छोटा बेटा किशन अचानक ही सबको छोडकर भगवान को प्यारा हो गया| रामदीन के परिवार में उसकी पत्नी और दो बच्चे थे छोटा बेटा किशन और बड़ी बेटी गुडिया| सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था कि जैसे किसी कि नज़र लग गयी| कितनी दौडभाग की... सारी जमा पूँजी लगा दी पर, सब व्यर्थ... वे उसे कल के क्रूर पंजो से बचा न सके| डॉक्टर से बस इतना पता चला कि उसे डेंगू हुआ था| अचानक हुए इस हादसे से पूरा परिवार हिल गया| इस सदमे से निकलना आसान न था| तभी से घर में कोहराम मचा है| उसकी बीवी का रो रो के बुरा हाल है| गुडिया भी भाई कि गम में एकदम गुमसुम सी है| रामदीन भी काम धाम छोड़कर तब से घर पर ही है| किन्तु ऐसा कब तक चलेगा... काम पर तो जाना ही होगा| ‘जो जिन्दा हैं उन्हें जिलाना भी तो है’, बोलते हुए रामदीन कि आँख से आँसू बह निकला|
उसे जाता देख पत्नी ने हिम्मत बटोर कर कहा, ‘गाड़ी संभल कर चलाना और हो सके तो शाम को घर जल्दी आ जाना... जाने क्यों इस घर में अब डर सा लगता है’| आखिरी के कुछ शब्द उसकी सिसकियों में ही खो गए कहीं| रामदीन बिना कुछ बोले ही बहार निकल गया... भूख और जरूरत के मोर्चे पर लड़ाई लड़ने| सच ही है भाग्य सबको शोक मानाने का अवसर भी कहाँ देता है|
आज जब वह बस लेकर निकला तो सवारियों के शोरगुल के बीच भी वह अकेला ही था... एक अलग ही दुनिया में... जहाँ सिर्फ वह था और उसका दुलारा किशन| उसी कि यादों में खोया वह बस को यंत्रवत भगाए लिए जा रहा था| अभी छः बरस का ही तो था किशन... पर यादें हैं कि ख़त्म ही नहीं हो रही| उसकी सारी शरारतें उसकी आँखों के सामने चलचित्र कि तरह चल रहीं थी| कितनी मन्नत के बाद आया था वह| उसकी पत्नी ने कितने ही व्रत रखे कितने ही मंदिरों में माथा टेका| कितने खुश थे वे दोनों उसके जन्म के समय| पूरी रात जागता रहा था रामदीन अस्पताल और दवा कि दूकान के बीच भाग दौड़ में... अपनी पांच साल कि गुडिया को गोद में चिपकाए|| पर हाय रे नियति! इस छोटे से बच्चे ने किसी का क्या बिगाड़ा था जो वह इतनी क्रूर हो गयी| काश कि वह उसे बचा पता| उसकी आंख धुंधला गयी| पर अचानक उसकी तन्द्रा टूटी| ‘ ये क्या... हे भगवान... रक्षा करना’ और उसने पूरी ताकत से ब्रेक लगा दिया|
पूरी बस में चीख-पुकार मच गयी| पीछे से कोई चीखा,’मदर... मारने का इरादा है क्या बे?’ आगे बैठा एक मनबढ़ किस्म का लड़का तेजी से ड्राइविंग सीट कि ओर लपका और एक तेज तमाचा जड़ दिया रामदीन के सिर पर| पर रामदीन जड़वत सामने सड़क पर निगाह जमाये हुए है जहाँ कोई चार-पाँच साल का लड़का अपनी माँ का हाथ छुड़ा कर भागते हुए सड़क पर आ गिरा था बीचोबीच| उसकी माँ ने दौड़कर उसे अपने सीने से चिपका लिया| बीच में उसे देख रही कि कहीं चोट तो नहीं लगी... साथ ही ड्राईवर के लिए गालियाँ भी निकाल रही है, ‘ साले दीन में ही नशा करते हैं... अगर कुछ हो जाला मेरे बच्चे को तो?’ कुछ और लोग भी इकठ्ठा हो गए है अबतक...वो भी बुरा-भला कह रहे है| कोई उसे बस से उतार कर पीटने को कह रहा है| तभी उसे सिर पर एक और प्रहार हुआ और अगला वार उसकी पीठ पर| परन्तु उसकी नज़र अभी भी उसी बच्चे पर जमी हुई है जिसे उसकी माँ बेतहाशा चूम रही है| सहसा उस बच्चे ने अनायास ही उसकी ओर देखा और मुस्कुरा दिया| रामदीन की आँख से आँसू बह निकला उसे लगा कि सामने उसका अपना किशन है जो कह रहा है, ‘थैंक्यू पापा’| रामदीन को उसपर होने होने वाले प्रहार कि कोई सुध नहीं है उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव है| जो काम डॉक्टर न कर सके वो उसने कर दिखाया... उसने अपने किशन को बचा लिया|
समाप्त|