Aakhar Chaurasi - 30 in Hindi Moral Stories by Kamal books and stories PDF | आखर चौरासी - 30

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आखर चौरासी - 30

आखर चौरासी

तीस

अगली सुबह लगभग आठ बजे का समय रहा होगा, जब महादेव गुरनाम के कमरे पर पहुँचा। उसे हॉस्टल में गुरनाम का कमरा ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई थी। सतनाम ने उसे घर से चलते वक्त गुरनाम का नया कमरा नम्बर बताने के साथ-साथ कॉलेज के ठीक पीछे स्थित हॉस्टल के ‘किंग्स ब्लॉक’ का भूगोल भी अच्छी तरह से समझा दिया था।

कई बार खटखटाने और आवाज़ें देने के बाद भी जब गुरनाम के कमरे का दरवाजा नहीं खुला तो वह चिन्तित हो गया। तभी बगल वाले कमरे का दरवाजा खोल कर एक लड़का बाहर आया। उसकी आँखों पर चढ़ी एनक और चेहरे के गम्भीर भाव बतला रहे थे कि वह पढ़ते-पढ़ते उठा है।

उसने महादेव से पूछा, ‘‘आप कौन हैं और किससे मिलना है ?’’

‘‘ये गुरनाम का ही कमरा है न !’’ महादेव ने पक्का करने के उद्देश्य से पूछा।

‘‘जी, हाँ !’’ लड़के ने जवाब दिया।

‘‘मैं उसके भाई का दोस्त हूँ। उसके घर से आया हूँ।’’ महादेव ने उस लड़के की जिज्ञासा शान्त की।

वह लड़का जिसका नाम संजय था और गुरनाम का ही बैच–मेट था, आश्वस्त होने के बाद गुरनाम के दरवाजे की ओर मुड़ते हुए बोला, ‘‘आप जैसे दरवाजा खटखटा रहे हैं, उससे तो वह दोपहर तक नहीं उठने वाला।’’

अपना वाक्य पूरा करते-करते संजय ने कुंडी पकड़ कर दरवाजे को ज़ोर से दो-तीन बार हिला दिया। वैसा करने से भड़भड़ की जोरदार आवाज़ पूरे कॉरीडोर में फैलती चली गई। उतनी जोर की आवाज़ से महादेव के चेहरे पर उलझन भरे भाव आ गये। उसकी परेशानी को भाँप कर संजय बोला, ‘‘दरअसल हम लोग दो तरह से पढ़ते हैं।’’

उसकी बात सुन कर महादेव और भी चक्कर में पड़ गया। पढ़ने और ऐसे दरवाजा तोड़ने का भला क्या सम्बन्ध है ? मगर इससे पहले कि वह कुछ पूछ पाता, संजय ने एक बार फिर से वैसे ही दरवाजा भड़भड़ा दिया। संजय शायद महादेव के उलझन भरे चेहरे का आनन्द ले रहा था। उसने मुस्कराते हुए पढ़ने और दरवाजा भड़भड़ाने का राज महादेव को समझाया।

‘‘दरअसल एक तरह के लड़के यहाँ देर रात या यूँ कहिए कि भोर होने तक पढ़ते रहते हैं। उसके बाद सोने जाते हैं। इसलिए ज़ाहिर-सी बात है कि वे आधा दिन चढ़े तक सोये रहते हैं। दूसरी तरह के लड़के शाम होते ही सो जाते हैं और भोर में बहुत जल्द उठ कर पढ़ना शुरु कर देते हैं। मैं भोर में उठ कर पढ़ता हूँ और अपना गुरु, मेरा मतलब है गुरनाम सारी रात पढ़ने के बाद सुबह सोने जाता है। अभी तो उसे सोये डेढ़-दो घंटा ही हुआ होगा। ऐसी स्थिति में गुरु को उठाने के लिए दरवाजा यूँ ही भड़भड़ाना होगा न !’’

तभी कहीं दूसरे ब्लॉक से भी ठीक वैसी ही दरवाजा भड़भड़ाने की आवाज़ आई। महादेव के उस आवाज़ की ओर आकर्षित होते देख संजय हंसते हुए बोला, ‘‘देख लीजिए, वहाँ भी किसी को उठाया जा रहा है।’’

महादेव कुछ कहता उससे पहले ही संजय ने दरवाजे की कुंडी पकड़ दरवाजा पुनः पूर्ववत् भड़भड़ा दिया।

‘‘आं हां, कौन है ?’’ गुरनाम की नींद में डूबी आवाज़ हवा में तैरती हुई बाहर आई। दरवाजे की वह जोरदार आवाज भी उसे नींद के कारण कहीं दूर से आती महसूस हुई थी।

गुरनाम की आवाज़ सुन कर महादेव ने चैन की साँस ली।

‘‘गुरु, मैं हूँ संजय... दरवाजा खोलो ! तुम्हारे भैया आये हैं।’’ कहते हुए उसने फिर से दरवाजा भड़भड़ा दिया।

‘‘एक बात तो माननी पड़ेगी।’’ महादेव बोला।

‘‘वो क्या ?’’

‘‘तुम लोगों के कमरों के दरवाजे बहुत मजबूत हैं।’’ महादेव ने हँसते हुए बताया।

‘‘वो इसलिए कि हमारा हॉस्टल अंग्रेजों के जमाने का बना हुआ है। तब चीजें बनाई जाती थीं, निचोड़ी नहीं जाती थीं ।’’

***

दरवाजा खुला। बदन पर नीला स्लीपिंग सूट और आँखों में नींद की गाढ़ी लालिमा लिए गुरनाम सामने खड़ा था। महादेव भैया पर नजर पड़ते ही वह बुरी तरह चौंका। वह तो सतनाम भैया के बारे में सोच रहा था। महादेव भैया घर से आ रहे हैं, घर पर सब कुशल तो है ? कहीं कुछ अप्रिय तो नहीं घट गया ? एक साथ ढेरों प्रश्न उसके दिमाग में कौंध गए।उस पर छाया नींद का खुमार पलक झपकते ही गायब हो गया।

संजय बोला, ‘‘ये जैसे खटखटा रहे थे, तुम्हारी नींद तो दोपहर को ही खुलती।’’

‘‘थैंक्स संजय ! थैंक्यू वेरी मच !’’ संजय को धन्यवाद देते हुए उसने दरवाजे से हटते हुए महादेव के लिए रास्ता बनाया, ‘‘आइए भैया, बैठिए।’’

महादेव भीतर आ गया। गुरनाम ने मग में पानी लिया और बाहर आकर आँखों पर छींटे मारने लगा। संजय अपने कमरे में जा चुका था। अपना चेहरा जल्दी-जल्दी धो कर वह भीतर आया। महादेव को देख कर जो ढेरों प्रश्न एक साथ नागफनी की तरह उसके भीतर उग आये थे, अपने नुकीले काँटों से उसका अंतर्मन लहूलुहान किए जा रहे थे। वह जल्द से जल्द सबका उत्तर जान लेना चाहता था।

‘‘भैया घर पर सब ठीक तो हैं ? माँ-पापा, भैया-भाभी, डिम्पल सब ठीक तो हैं ?’’ गुरनाम ने महादेव के पास बैठते हुए पूछा।

‘‘हाँ, हाँ सब ठीक हैं।’’

‘‘...और सतनाम भैया की दुकान ?’’ गुरनाम ने और ज्यादा आश्वस्त होने के लिए पुनः प्रश्न किया।

‘‘वहाँ सब ठीक है, गुरनाम !’’ महादेव ने दुकान की बात छुपाते हुए कहा, ‘‘वहाँ वैसा कुछ नहीं हुआ है जिसकी तुम आशंका कर रहे हो ।’’

महादेव भैया का उत्तर सुन कर गुरनाम को अच्छा लगा। पिछले दिनों जो भयानक मानसिक यंत्रणा उसने झेली थी। फिर अपने कमरे की क़ैद से बाहर आने के बाद अखबारों, टी.वी. और रेडियो आदि से जो कुछ उसने जाना था, उसके बाद से वह घर वालों को लेकर बहुत चिन्तित था। महादेव ने आकर निश्चय ही उसकी चिन्ताएँ दूर कर दीं थीं।

‘‘वो तो मैं अपने गाँव आ रहा था तो अंकल ने कहा कि तुमसे मिल लूँ। इसलिए मैं सुबह-सुबह यहाँ आ गया।’’ महादेव ने बातों का सिलसिला जारी रखते हुए बताया।

‘‘मैं ने स्वयं ही चाहा था कि घर जा कर सबको देख आऊँ, परन्तु जगदीश के कहने से रुक गया। उसका कहना था कि अभी मेरा बाहर निकलना या सफर करना ठीक नहीं है। फिर इम्तहान भी तो सर पर हैं अतः मैं अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाना चाहता था। अच्छा हुआ जो पापा ने आपको यहाँ आने को कहा।’’ गुरनाम बोला।

‘‘गुरनाम, अंकल ने एक बात और कही है !’’ कहकर महादेव रुका। न जाने क्यों वह केश कटवाने की बात सहजता से नहीं कह पा रहा था।

उनको यूँ अटकता देख आशंकाओं ने गुरनाम के मन में पुनः सर उठाना प्रारम्भ कर दिया। उसने व्यग्रता से पूछा, ‘‘क्या बात है भैया आप चुप क्यों हो गये ?’’

अब तक महादेव हिम्मत जुटा चुका था। आखिर उसे ही तो सब कुछ बताना है, उसने सोचा और बोला, ‘‘वो ...घर पर सबकी यही राय है कि अभी माहौल ठीक नहीं है। फिर तुम यहाँ पर अकेले हो। अंकल ने कहा है, तुम अपने केश कटवा लो। ....’’

वह बात सुनते ही गुरनाम का मस्तिष्क बिल्कुल सुन्न हो गया था। महादेव ने आगे भी अपनी बात जारी रखी थी। वह उनके हिलते होंठ देख पा रहा था, परन्तु, उसे कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था।

पापा ने उसे केश कटवाने को कहा है, यह सुन कर उसे एक बीती घटना का स्मरण हो आया। उसके केश बहुत घने थे, उसका जूड़ा भी बहुत बड़ा बंधता था। बहुत पहले एक बार उसने पापा से कहा था कि वह अपने केश कटवाना चाहता है। कि हॉस्टल में केशों को धोना-सुखाना बड़ा कठिन लगता है.... उससे अब केश संभाले नहीं जाते। ...और कि उसके सर में अक्सर दर्द रहता है। ‘सर दर्द’ वाला झूठ उसने स्वयं जोड़ा था ताकि पढ़ाई के नाम पर पापा से उसे केश कटवाने की अनुमति मिलने में आसानी हो।

उसकी बात सुनते ही पापा गुस्से से फट पड़े थे। वे एक झटके से उठ कर भीतर गये और कृपाण ला कर उसके हाथों में देते हुए बोले थे, ‘ले पकड़ कृपाण ! पहले मेरी गर्दन काट डाल फिर अपने केश कतल करवा लेना। जिनकी रक्षा के लिए हमारे गुरुओं ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, तुम उन्हीं केशों को कटवाना चाहते हो ?’ पापा की आवाज़ गुस्से से काँप रही थी।

उसकी केश कटवाने की बात से वे इतना ज्यादा आहत होंगे, उसने सपने में भी नहीं सोचा था, वर्ना वह पापा से वैसी बात कभी न कहता। उसे स्वयं पर बड़ी ग्लानी हुई। वह चुपचाप वहाँ से हट गया था। उसी समय उसने यह निर्णय भी लिया था कि भविष्य में कभी भी वह अपने केश कटवाने की बात नहीं सोचेगा।

आज महादेव की बात सुन कर वह अन्दर तक सिहर उठा। उन्हीं पापा ने उसे केश कटवाने के लिए कैसे कहा होगा....? उसके लिए पापा जी का वैसा कहना अविश्वसनीय था। लेकिन वह चाह कर भी महादेव भैया पर अविश्वास नहीं कर पा रहा था। इसके साथ ही एक दूसरी बात जो उसके मन में आई कि महादेव भैया जरुर कुछ छुपा रहे हैं ?

वह बोला, ‘‘भैया, सच-सच बताइए, घर पर सब ठीक तो हैं ? आप जरुर मुझसे कुछ छुपा रहे हैं !’’

‘‘तूम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है ?’’ महादेव ने प्रतिप्रश्न किया।

गुरनाम जल्दी से बोला, ‘‘नहीं, नहीं भैया, ऐसी बात नहीं है। मुझे आप पर पूरा भरोसा है।’’

‘‘तो मेरा विश्वास करो, घर पर सब लोग कुशल है !’’

‘‘तो फिर पापा ने केश कटवाने वाली बात कैसे कह दी ?’’ कहते-कहते गुरनाम का गला रुंध गया। उसका स्वर रुंआसा हो गया था।

***

कमल

Kamal8tata@gmail.com