आखर चौरासी
बीस
हरनाम सिंह का पूरा घर अँधेरे में डूबा हुआ था। घर के सभी खिड़की दरवाजे बंद थे। जाड़ों की शामें यूँ भी जल्द खामोश हो जाती हैं। बाहर ठण्ढी हवा साँय-साँय चल रही थी। भीतर हरनाम सिंह, उनकी पत्नी, बेटा-बहू, बेटी तथा पाँच वर्षीय नातिन डिम्पल चुपचाप बैठे थे। केवल उसी कमरे की बत्ती जल रही थी। डिम्पल के लिए तो उन सब चीजों का कोई मतलब समझ में नहीं आ रहा था। वह शाम से ही बाहर जा कर खेलने को मचल रही थी। पिछले दिनों जब से वह अपने मामा की शादी में नाना-नानी के घर आयी थी, उसकी हर शाम लॉन में आस-पड़ोस के बच्चों के साथ खेलती रही थी। हरनाम सिंह के घर का लॉन काफी खुला था। इसलिए सभी बच्चे वहीं आ कर खेलते। उन बच्चों के साथ खेलती गोल-मटोल, गोरी-गोरी डिम्पल बिल्कुल गुड़िया-सी लगती। मगर उस शाम न तो पड़ोस का कोई बच्चा खेलने आया था, न ही डिम्पल को बाहर जाने दिया गया था। परिवार के सारे लोग घर में बन्द पड़े थे। यही कारण था कि बाहर खुले में खेलने के लिए वह बार-बार ज़िद करने लग जाती। तब कभी नाना तो कभी नानी फुसफुसाती आवाज़ में उसे समझाने लगते।
तभी बाहर लॉन वाला गेट खड़का। आवाज़ धीमी थी मगर उनके आशंकित कानों में वह गोली की तरह घूसती चली गई। उनके दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगे। वे सब दम साधे आहट लेने लगे। मगर उसके बाद कोई आवाज़ न हुई। थोड़ी देर रुक कर हरनाम सिंह ने अपने बेटे की ओर देखा और धीमी आवाज में बोले, ‘‘सतनाम ड्राइंगरुम से झाँक कर पता करो, कहीं कोई आ तो नहीं गया ? ऐसा न हो कि बाहर से कोई घर में आग ही लगा दे।’’
सतनाम अपनी जगह से उठ कर ड्राइंगरुम की ओर बढ़ गया।
‘‘बत्ती मत जलाना !’’ पीछे से सुरजीत कौर ने हिदायत दी।
सतनाम ने ड्राइंगरुम में आकर दरवाजे की झिर्री से बाहर देखने का प्रयास किया। सामने वाले अम्बिका पांडे के घर के बाहर जल रहे बल्ब की रोशनी उसके घर के लॉन तक आ रही थी। सतनाम थोड़ी देर तक इधर-उधर ध्यान से देखता रहा, उसे बाहर कुछ भी संदेहस्पद नज़र नहीं आया। वहाँ से हट कर फिर वह खिड़की के पास आया। आहिस्ते से उसने पर्दा थोड़ा खिसका कर बाहर देखा। चारों तरफ सन्नाटा था। उसकी आँखें सोच में सिकुड़ गईं। उसके मन में विचार कौंधा कहीं ऐसा तो नहीं कि आने वाले छत पर पहुँच गये हों? उसने मन ही मन छत पर जाने का निर्णय किया। अभी वह खिड़की से हटने की सोच ही रहा था कि गेट फिर खड़का। उसने देखा एक कुत्ता गेट को ठेल कर थोड़ा-सा फैलाते हुए भीतर आया था। उसके घुसने से ही वह आवाज़ हुई थी। तभी लॉन के कोने पर कुत्तों के गुर्राने की आवाज उभरी। भीतर आया कुत्ता भी वहीं पहुँचा। फिर वहाँ कुछ कुत्तों के गुत्थम-गुत्था होने की आवाजें भी उभरीं। कुछ ही देर में सारे कुत्ते आगे-पीछे जैसे आये थे वैसे ही बाहर निकल गये। उनके जाते समय भी गेट खड़का था। ...तो ये बात थी। सतनाम ने गहरी साँस ली और अंदर वाले कमरे की ओर चला गया।
उसने बैठते हुए बताया, ‘‘कुछ कुत्ते लॉन में घुस आये थे।’’
उसकी बात पर सबों के तनावग्रस्त चेहरे ज़रा ढीले हुए।
‘‘मैं तो घबरा गयी थी।’’ सुरजीत कौर बोली।
‘‘घबराने से काम नहीं चलेगा। हौसला रखो।’’ हरनाम सिंह ने उसे ढाढ़स बँधाया। फिर थोड़ा रुक कर बोले, ‘‘अगर कोई आ ही गया तो क्या घबराने से काम चलेगा ? जो भी आयेगा बुरी नीयत से ही आयेगा न। तो फिर बुरी नीयत वालों का सामना कैसे किया जाएगा, यह सोचना चाहिए। हमारे दसवें गुरु श्री गोबिन्द सिंह जी ने क्या कहा था, याद है न-
चिड़ियों से मैं बाज तुड़ाऊँ,
सवा लाख से एक लड़ाऊँ,
तभी गोबिन्द सिंह नाम कहाऊँ।
जैसे गुरु जी की नन्ही चिड़िया बाज पर भारी पड़ती है। वैसे ही गुरु जी का एक सिक्ख सवा लाख अत्याचारियों पर भारी पड़ता है। फिर यहाँ तो हम दो सिक्ख हैं, घबराना कैसा ?’’ उन्होंने सतनाम की तरफ देख कर अपनी बात पूरी की थी।
पिता की बात सुन कर सतनाम का चेहरा कठोर हो गया। वह दृढ़ता से बोला, ‘‘बी’जी आप लोग ज़रा भी मत घबराएँ। मेरे जीते जी आप लोगों को कोई छू भी नहीं सकता।’’
उसकी बात पर कोई कुछ बोलता उससे पहले ही बाहर वाला गेट फिर खड़का था। इस बार गेट खुलने की आवाज़ साफ सुनाई दी थी। वे सब चौंके। उनकी आशंकित नज़रें एक दूसरे के चेहरों पर फिसलने लगीं। तब तक बाहर कुछ लोगों के चलने और बातचीत की आवाज़ें भी उभरने लगीं थीं। इस बार शक़ की कोई गुँजाइश नहीं थी। बाहर कुछ लोग आ चुके थे।
सतनाम ने तेजी से उठ कर कोने में रखी कृपाण उठा ली। हरनाम सिंह का हाथ भी अपनी कृपाण की मूठ पर कस गया। सतनाम की बहन मनजीत कौर ने गोद में सोयी डिम्पल को आहिस्ते से पलंग पर लिटाया और दृढ़ता से खड़ी हो गई। उसने भी एक कृपाण उठाई और पिता के पास आ गई।
हरनाम सिंह ने प्यार से उसका सर थपथपाया, ‘‘तुम यहीं अपनी माँ, भाभी और डिम्पल के पास कमरे में रहो। कमरा अन्दर से बन्द कर लेना और हमारी आवाज़ पर ही खोलना।’’
उसे समझा कर पिता और पुत्र दोनों ने अपनी-अपनी कृपाणों के साथ ड्राइंगरुम की तरफ कदम बढ़ाए। तभी बाहर से आवाज़ आयी, ‘‘हरनाम सिंह जी, दरवाजा खोलिए ! नेताजी आपसे मिलने आये हैं।’’
‘‘ये तो हरीष बाबू की आवाज़ है।’’ हरनाम सिंह ने अपने बेटे से कहा, ‘‘ऐसा करो, कृपाणें दीवान के नीचे रख दो। अगर जरुरत पड़ी तो वहां से तुरंत निकाल लेंगे।’’
सतनाम ने वैसा ही किया। हरनाम सिंह ने बाहर की बत्ती जला दी और दरवाजे की झिर्री से बाहर झाँका। नेताजी, हरीष बाबू और गोपाल चौधरी के साथ उन्हें रमण शाडिल्य भी नज़र आये। रमण बाबू को देख कर हरनाम सिंह ज़रा निश्चिंत हुए। उन्होंने ड्राइंगरुम की बत्ती जलाई और बाहर वाला दरवाजा खोल दिया।
भीतर आने का रास्ता देते हुए वे बोले, ‘‘आइए, आइए नेताजी नमस्कार !’’
वे सब लोग अंदर आ कर सोफे पर बैठ गये। सतनाम ने आँखों ही आँखों में रमण शाडिल्य का अभिवादन किया और दीवान से सट कर खड़ा हो गया।
‘‘हरनाम सिंह जी,’’ कुछ पल के मौन के बाद नेताजी ने गला खँखार कर बोलना शुरू किया, ‘‘जो कुछ भी आज आपके साथ हुआ, उसका हम सब को बेहद अफसोस है। मगर आप बिल्कुल न घबराएँ। हमारे होते कोई भी अब आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।’’
हरनाम सिंह के जी में आया कह दें, जो कुछ आप बिगाड़ सकते थे वह तो बिगड़ ही गया। मगर उन्होंने स्वयं पर काबू रखा और बोले, ‘‘जो होना था सो हो गया। जैसी ऊपर वाले की मर्जी। आप लोग मेरे घर आये, बड़ी मेहरबानी।’’
नेताजी का हौसला बढ़ा। वहाँ आने से पहले तक वे मन ही मन आशंकित थे कि पता नहीं हरनाम सिंह कैसा व्यवहार करें ? मगर वहाँ तो हरनाम सिंह अपेक्षाकृत कहीं शांत दिखे।
नेताजी बोले, ‘‘यदि आपको आधी रात में भी मेरी जरुरत पड़ जाए तो बेहिचक सन्देश भिजवा दीजिएगा। मैं तुरन्त चला आऊँगा। मेरे होते आप बिल्कुल न घबराएं। निश्चिंत हो कर रहें।’’
‘‘हाँ जी कोई मुश्किल आएगी तो आप से ही कहेंगे। आप यहाँ के नेता हैं, आप नहीं देखेंगे तो हमें और कौन देखेगा ?’’ हरनाम सिंह पूर्ववत् भावहीन स्वर में बोले। फिर सतनाम को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘‘बेटा इन सब के लिए ज़रा चाय तो बनवाना।’’
‘‘नहीं, नहीं।’’ नेताजी ने सतनाम को रोकते हुए कहा, ‘‘आज नहीं, चाय हम फिर कभी पीएँगे। अब हमें इजाजत दीजिए।’’ नेताजी के उठते ही उनके साथ आये बाकी लोग भी उठ खड़े हुए। उस पूरे वार्तालाप के दौरान साथ आये बाकी लोग चुप ही रहे थे। उन लोगों को बाहर तक छोड़ने, हरनाम सिंह भी उनके साथ निकले। उन लोगों के जाते ही सामने से अपने घर का दरवाजा खोल कर अम्बिका पाण्डे बाहर निकले। हरनाम सिंह ने अपनी जगह पर खड़े-खड़े उनका अभिवादन किया। अभिवादन का जवाब देते हुए अम्बिका पाण्डे उनके पास आ खड़े हुए।
‘‘ये लोग किधर आये थे ?’’ उन्होंने जानना चाहा।
हरनाम सिंह ने दूर जाते हुए लोगों पर एक नज़र डाली और बोले, ‘‘नेताजी हमारी दुकान आदि के लूटे जाने का अफसोस प्रकट करने आये थे। वे कह रहे थे कि हम न घबराएँ, अब कुछ नहीं होगा।’’
अम्बिका पाण्डे ने भी एक नजर दूर जाते नेताजी पर डाली और घृणा से बोले, ‘‘कौन नहीं जानता कि सारी लूट-पाट इन्हीं की पार्टी करवा रही है। उसके पास सत्ता है, शक्ति है ! तभी तो वे सब कुछ इतने आराम से करवा रहे हैं....।’’ बात पूरी करते हुए उन्होंने नेताजी को एक भद्दी-सी गाली दी।
अम्बिका पाण्डे अच्छे स्वभाव वाले एक भले व्यक्ति थे। वे कम्युनिष्ट पार्टी में थे और अक्सर ही नेताजी की पोल-पट्टी खोलते रहते थे। नेताजी भी उनसे बचते रहते, क्योंकि उनके सच नेताजी के लिए बहुत कड़वे हुआ करते थे।
‘‘छोड़िए पाण्डे जी, अब किसी को क्या कहें ? मैं जब यहाँ इस कोलियरी में आया था तब क्या लेकर आया था ? यहीं मेहनत से तिनका-तिकना जोड़ सब कुछ बनाया और यहीं लुटा भी दिया। वाहेगुरु की मेहर रही तो सब कुछ फिर से बन जाएगा। हाँ अब मैं जरुर बूढ़ा हो गया हूँ। मगर तब मैं अकेला था, अब तो मेरे साथ जवान बेटा है।’’ बोलते हुए हरनाम सिंह कुछ सोचने लग गए। शायद उन्हें उनकी स्मृतियाँ उन पुराने दिनों में लिये जा रही थीं, जब वे पहले-पहल उस कोलियरी में नौकरी के लिए आये होंगे।
अम्बिका पाण्डे अवाक् उन्हें देखते रह गये। कितना धैर्य है उस आदमी में ! अभी-अभी अपना सब कुछ लुटाया है और अभी से ही दुबारा सब कुछ बना लेने के सपने देखने लग गया...। वे बोले, ‘‘आप सिक्खों का यही तो गुण है। कठिनाइयों से लड़ना तो कोई आप लोगों से सीखे। ...शायद इसीलिए कभी कोई सिक्ख भीख नहीं माँगता!’’
तभी भीतर से सतनाम ने निकल कर अपने पिता को पुकारा, ‘‘पापा जी, आपको बी’जी बुला रही हैं।’’
‘‘अच्छा पाण्डे जी, नमस्कार !’’ कह कर हरनाम सिंह ने गेट बन्द किया और अन्दर की ओर मुड़ गये।
अम्बिका पाण्डे वहीं खड़े उन्हें घर के भीतर जाते देखते रहे। उनके मन में हरनाम सिंह के लिए आदर था, जो कि उस विध्वंस के बाद भी प्रतिशोध की नहीं, निर्माण की बात कर रहा था। कितना साहस है इस व्यक्ति में। कितना बड़ा हादसा उसके साथ हुआ है। हरनाम सिंह भीतर से कितना अशांत होगा, परन्तु चेहरे पर कितने शांत भाव हैं। कितना संतुलित है वह और उसका व्यवहार !
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कमल
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