आखर चौरासी
तेरह
हॉस्टल में लड़कों के पढ़ने का समय अलग-अलग था। कुछ लड़के देर रात तक जगते, तो कुछ भोर में उठ कर पढ़ते।
गुरनाम देर रात तक जग कर पढ़ाई करने वालों में था, इसलिए अगली सुबह वह देर तक सोता रहता। परीक्षाएं पास होने के कारण, जब से उन्हें अलग-अलग एक बिस्तर वाले कमरे मिले थे, सवेरे उनके एक साथ नाश्ता करने जाने का क्रम कुछ टूट-सा गया था। हॉस्टल की मेस में केवल दो समय का ही खाना दिया जाता था। इसलिए नाश्ता करने उन्हें बाहर हुरहुरु चौक तक जाना पड़ता।
उस दिन भी देर से उठने के कारण, मुँह-हाथ धो कर आम दिनों की तरह, गुरनाम अकेला ही नाश्ता करने हुरहुरु चौक पर रामप्रसाद के होटल पहुँचा।
‘‘आइए... आइए सर ! गरम-गरम जलेबियाँ निकल रही हैं।’’ उस छोटे से होटल के मालिक रामप्रसाद ने उसका स्वागत किया।
हॉस्टल के लगभग सभी लड़के वहाँ नियमित रुप से नाश्ता किया करते थे। इसलिए वह काफी लड़कों को पहचानता था, फिर गुरनाम तो उस हॉस्टल में अकेला सिक्ख था। रामप्रसाद यह भी जानता था कि जलेबियाँ गर्म ना होने पर गुरनाम केवल कचौंड़ियों का ही नाश्ता कर चला जाता है। गुरनाम के बेंच पर बैठते ही होटल का नौकर उसके सामने नाश्ता रख गया। गुरनाम मजे से गर्मा-गर्म जलेबियों और कचौंड़ियों का नाश्ता करने लगा। उस दौरान वह मन ही मन उन विषयों के बारे में भी सोचने लगा, जिन्हें उसे आज पढ़ना था।
अभी उसने अपना आधा नाश्ता ही किया था कि बगल वाली बेंच पर चार-पाँच लड़के आ बैठे। उन लड़कों को गुरनाम पहले भी कई बार हुरहुरु चौक पर आवारागर्दी करते देख चुका था। चाय पीते हुए वे लड़के आपस में बातें करने लगे। तभी उनमें से एक ने गुरनाम की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘देख बे, सरदार नाश्ता कर रहा है।’’
‘‘सब सरदार स्साला, गद्दार है।’’ दूसरे ने फिकरा कसा।
गुरनाम ने उनकी तरफ से ध्यान हटाना चाहा। परन्तु उन लड़कों की बढ़ती उग्रता का अनुमान लग जाने के कारण तब तक नाश्ते से उसका मन उचट चुका था।
‘‘वहाँ स्सालों ने इंदिरा को मार दिया और ये गद्दार यहाँ बैठ कर जलेबियाँ खा रहा है।’’ तीसरे ने ज़हर उगला।
तब तक गुरनाम को ख़तरे का अहसास हो गया था। उन लड़कों के इरादे ठीक नहीं लग रहे थे। वह भयभीत हो गया, ‘‘देखिए, वहाँ कुछ सरदारों ने अगर इन्दिरा गांधी की हत्या कर दी तो इसमें मेरा क्या कसूर है ? मेरा तो उन हत्यारों से कोई संबंध नहीं....’’
उसके मुँह से स्वतः ही सफाई के वाक्य निकलने लगे थे। उसे बड़ा अजीब लगा। जिन लड़कों को वह जानता नहीं। जिस घटना से उसका दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं। उस घटना के लिए उसे क्यों सफाई देनी पड़ रही है ? उसे महसूस हुआ चारों तरफ से उसे निगलने के लिए एक अंधेरा धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ता चला आ रहा है।
‘‘चोप्प स्साले गद्दार !’’ उसका वाक्य काटते हुए उनमें से एक ज़ोर से चीखा। गुरनाम को लगा उसके सर पर बम फटा हो।
स्थिति बिगड़ती देख रामप्रसाद भी घबरा गया, ‘‘देखिए मेरे होटल में कोई बात मत कीजिए। मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ, यहाँ मार-पीट मत कीजिए।’’ वह उन लफंगे लड़कों से प्रार्थना कर रहा था।
पता नहीं क्यों, मगर रामप्रसाद को हस्तक्षेप करता देख, वे लड़के चुप हो गये। नाश्ता करते गुरनाम का हाथ भी थम चुका था। वह अपना नाश्ता बीच में ही छोड़ कर उठ खड़ा हुआ। उसे लगा, अगर वह तत्काल वहाँ से नहीं निकला तो कुछ भी अप्रिय घट सकता है। उसमें इतना भी साहस न रहा कि वह पाकेट से पैसे निकाल कर रामप्रसाद को दे पाता।
‘‘रामप्रसाद जी, पैसे शाम को ले लीजिएगा।’’ बड़ी कठिनाई से वह इतना ही बोल पाया। उसका गला सूख रहा था।
‘‘आप जाइए सर, पैसों की फिक्र मत कीजिए।’’ रामप्रसाद जल्दी से बोला। उसकी आँखों में भी वही भाव थे कि गुरनाम जल्द से जल्द वहां से हट जाए। उसने गुरनाम के पास आकर धीमे स्वर में कहा, ‘‘आप सीधे हॉस्टल चले जाइए।’’
गुरनाम तेजी से बाहर निकल कर हॉस्टल की ओर बढ़ गया। अभी वह थोड़ी दूर ही गया होगा कि अपने पीछे से उसे उन्हीं लड़कों के हंसने की तेज-तेज आवाज़ें आती सुनाईं दीं। उसने पलट कर देखा तो वे ही लड़के उसे अपने पीछे आते दिखे। ‘हे ईश्वर’ उसने मन ही मन भगवान का नाम लिया और अपनी चाल तेज कर दी। गुरनाम और लड़कों के बीच का फासला बढ़ने लगा। उन लड़कों द्वारा इस प्रकार पीछा किए जाने से गुरनाम का डर और भी बढ़ गया था।
कुछ और चलने पर सामने हॉस्टल का मेन गेट नज़र आने लगा तो उसने चैन की सांस ली। पीछे से आवाज़ें भी नहीं आ रही थीं। उसने सोचा पीछा करने वाले लड़कों से दूरी बढ़ जाने के कारण ही आवाज़ें आनी बन्द हो गई हैं। मगर जब उसने अपनी गर्दन जरा सी तिरछी कर पीछे देखा तो उसके होश उड़ गए। उसकी चालाकी भाँप कर उन लड़कों ने आपस में बातें करनी बन्द कर दी थीं और अपनी चाल तेज कर उसका पीछा करने लग गये थे। लड़कों और गुरनाम के बीच का फासला तब तक काफी घट चुका था। गुरनाम को लगा, वह अब पकड़ में आया तब पकड़ में आया। उसका भय अपने चरम पर पहुँच चुका था। हॉस्टल में घुसने से पहले ही क्या वे लड़के उसे पकड़ लेंगे ? इसके आगे वह कुछ भी नहीं सोच सका। उसने जबड़े भींच लिए, उसकी मुट्ठियाँ कस गईं। वह एक झटके से सामने दिख रहे मेन गेट की ओर तेजी से दौड़ पड़ा। पीछा करते लड़कों को शायद उसके यूँ दौड़ पड़ने की उम्मीद न थी। पहले तो वे ठगे से खड़े रह गये। फिर मानों उनकी चेतना लौटी हो, वे भी गुरनाम के पीछे दौड़ पड़े।
परन्तु तब तक बहुत देर हो चुकी थी। इससे पहले कि वे गुरनाम को छू पाते वह गेट के भीतर जा चुका था। वह भीतर घुसने के बाद भी नहीं रुका, वैसे ही दौड़ता हुआ अपने कमरे की ओर चला गया। अपने कमरे का ताला तेजी से खोल कर वह अन्दर घुसा और दरवाजा भीतर से बन्द कर बिस्तर पर ढह गया। उसने अपना चेहरा तकिए में छुपा लिया और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा। उसका मन आहत और असहाय था। उसे अभी भी उन लड़कों का भय महसूस हो रहा था। कुछ देर रोते रहने के बाद धीरे-धीरे वह अपने भय पर नियन्त्रण करने लगा।
बचपन में वह अक्सर भूत-प्रेत के सपने देख कर डर जाया करता था। इसलिए हर रात सोने से पहले माँ उससे प्रार्थना करवाती थी और कहती थी कि इस प्रार्थना से हर डर दूर भाग जाता है। आज गुरनाम अपने भय पर नियन्त्रण करने के लिए धीमे-धीमे वही प्रार्थना दुहराने लगा। उसे लगा कि बचपन की वह प्रार्थना उसे ठीक से याद नहीं है। मगर उसने गलत-सही जैसी भी हो प्रार्थना करना जारी रखा-
‘‘तेर घर बैसो हरजन प्यारे
सतगुरु तुमरे काज सँवारे
दूत दुष्ट परमेश्वर मारे
जन की पैज रखी करतारे
शा-पत-शा सब वश कर लीन्हें
अमृत नाम महारस पीन्हें
निरभै होए भजो भगवाना
साद-संगत मिलकीन्यों दाना....’’
बार–बार दुहरते रहने से उसको लगा कि प्रार्थना ने उसके भय को एक सीमा तक घटा दिया है।
***
हॉस्टल में घूसते समय गुरनाम को आसपास का ज़रा भी ध्यान नहीं रहा था। मगर दूर अपने कमरे में बैठे जगदीश ने उसे बदहवास भाग कर आते देख लिया था। पहले तो वह चौंका, फिर अपनी उत्सुकता न दबा पाने के कारण उसने उठकर अपने कमरे का दरवाजा बन्द किया और गुरनाम के कमरे की ओर बढ़ गया।
वहाँ पहुँच कर दरवाजा खटखटाने को उठा उसका हाथ रुक गया। आज तक उसके संबंध गुरनाम से कभी भी दोस्ताना नहीं रहे थे, बल्कि जब-तब राजकिशोर के कारण, वह उससे उलझता ही रहता था। इसलिए दरवाजा खटखटाने में उसे झिझक हो रही थी। एक पल को ठहर कर उसने दरवाजे पर अपना कान सटा दिया। भीतर से उसे गुरनाम की रुलाई सुनाई दी। रुलाई की आवाज सुन कर जगदीश से रहा न गया, उसने तुरन्त दरवाजा खटखटाया।
अन्दर से कोई आहट न हुई तो उसने दरवाजा फिर खटखटाया साथ ही गुरनाम को आवाज दी, ‘‘गुरनाम, दरवाजा खोलो।’’
थोड़ी देर अन्दर खामोशी रही, फिर गुरनाम की धीमी आवाज सुनाई दी, ‘‘कौन है ?’’
‘‘मैं हूँ जगदीश। दरवाजा खोलो!’’ जगदीश ने आवाज दी।
जगदीश का नाम सुन कर गुरनाम को काटो तो खून नहीं। उसने सोचा, जरुर वे लड़के उसका पीछा करते हुए हॉस्टल के भीतर आ गये होंगे। उन लड़कों ने राजकिशोर, जगदीश वगैरह को भड़काया होगा और अब उन सब को साथ ला कर जगदीश दरवाजा खुलवा रहा है। नहीं वह दरवाजा नहीं खोलेगा! गुरनाम ने निर्णय लिया और फिर अपने स्वर को नियंत्रित कर बोला, ‘‘अभी मैं पढ़ रहा हूँ। तुम लोग बाद में आना।’’
उसकी बात सुन कर जगदीश सोच में पड़ गया। अभी तो गुरनाम रो रहा था, फिर पढ़ने का झूठ क्यों बोल रहा है ? जगदीश को मामला उससे भी ज्यादा गंभीर लगा जितना कि उसने सोचा था, ‘तुम लोग’ संबोधन से भी वह काफी चौंका था।
‘‘गुरनाम मैं अकेला हूँ। प्लीज, दरवाजा खोलो। मुझे बताओ बात क्या है ?’’ वह उतावले स्वर में बोला।
गुरनाम ने दरवाजे की झिर्री से बाहर झाँका, जगदीश बाहर अकेला खड़ा था। उसने अपना चेहरा तौलिए से पोंछते हुए, दरवाजा खोला। जगदीश भीतर आ गया। लगातार रोते रहने से गुरनाम की आँखें सूज गई थीं।
‘‘क्या बात है तुम बाहर से बदहवास दौड़ते हुए हॉस्टल में क्यों घुसे थे ?’’ जगदीश ने उससे पूछा।
गुरनाम पहले तो चुप रहा। फिर उसने धीरे-धीरे सारी घटना जगदीश को बता दी। हालाँकि उसके संबंध जगदीश से कभी भी अच्छे नहीं रहे थे। मगर उसका कमरे में आना और गुरनाम से सारी बातें पूछना उसे अच्छा लगा था। उसके दिल में यह ख्याल आया कि वह अभी तक बेकार में जगदीश को बुरा लड़का समझता रहा था।
गुरनाम की बातें सुन कर जगदीश कुछ पल विचारामग्न रहा फिर बोला, ‘‘टाऊन के लड़कों की इतनी हिम्मत कि वे हॉस्टल वाले लड़कों को मारने दौड़ें ? गुरनाम तुम हाथ-मुँह धो कर जरा फ्रेश हो लो, मैं अभी आया।’’
जगदीश चला गया। पता नही जगदीश क्या करना चाहता है, गुरनाम ने सोचा। फिर भी जगदीश से बातें कर उसे बड़ा बल मिला था। वह उठ कर हाथ-मुँह धोने लगा। थोड़ी ही देर में जगदीश दुबारा आ पहुँचा। उसने काले रंग का शॉल लपेट रखा था।
‘‘चलो गुरनाम, हम लोग हुरहुरु चौक से चाय पी कर आते हैं।’’ वह बोला।
उसकी बात सुन कर गुरनाम चौंका। अभी थोड़ी देर पहले का सारा वाकया उसके ज़ेहन में कौंध गया। वह हिचकिचाया।
जगदीश उसकी हिचकिचाहट भाँप चुका था, ‘‘तुमने चाय नहीं पी थी न, तुम केवल नाश्ता कर चले आये थे। मुझे भी चाय पीने की इच्छा हो रही है। चलो दोनों साथ-साथ चाय पीयेंगे।’’
‘‘म...मगर वे लड़के....’’ गुरनाम अभी तक आशंकित था।
‘‘तुम चिन्ता मत करो। वही तो मैं भी देखना चाहता हूँ, वे कौन लड़के हैं जो हॉस्टल की तरफ नजर उठाने की हिम्मत कर रहे हैं ?’’ जगदीश का स्वर अजीब ढंग से सर्द था।
गुरनाम फिर भी कुछ सोचता हुआ, खामोश खड़ा रहा। उसे चुप देख जगदीश ने टोका, ‘‘तुम्हें डर लग रहा है क्या ?’’
हालाँकि उसके मन पर अभी भी रामप्रसाद के होटल वाली घटना का असर था। लेकिन उसने तत्परता से जवाब दिया, ‘‘नहीं, नहीं। तुम साथ हो तो डर कैसा ?’’
‘‘तब ठीक है। मैं भी कहूँ सिक्ख तो हमारे देश की सबसे मजबूत कौम है, वह कैसे डर सकती है ?’’ कहते हुए जगदीश कमरे से बाहर निकल आया।
दरवाजे पर ताला लगा कर गुरनाम और जगदीश हुरहुरु चौक की तरफ बढ़ गये।
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कमल
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