पहली बार ईशा को कॉलेज के फ्रेशर्स पर गाते हुए देखकर उसके चेहरे को तो कम ही देखा पर उसके गाने को सुनकर लगा कि इस आवाज़ को हमेशा ज़िन्दगी भर सुनना चाहता है। फर्स्ट ईयर की अंग्रेजी स्नातक की छात्रा ईशा से बातचीत करना उतना आसान नहीं था। जितना कि सुमित समझ रहा था। वह उसे देखती भी नहीं थी। वह सिर्फ अपनी क्लॉस के लड़कों से ही बात करती थी। कॉलेज के बाद सीधे घर चली जाती। कॉलेज कैंटीन में भी कम नज़र आती थी। एक दिन ईशा की स्कूटी ख़राब हो गई और सुमित अपनी बाइक लेकर पहुँच गया। बहुत कहने के बाद ईशा ने लिफ्ट ली और उसके बाद दोनों में बातचीत शुरू हो गई । वह हमेशा ईशा के आसपास रहने का बहाना ही ढूँढ़ता रहता। सीनियर होने की वज़ह से नोट्स ने भी इस इश्क़ का बहुत साथ दिया। यह राब्ता दोस्ती तक पहुँच ही गया। फ़िर सुमित के कॉलेज का आख़िरी साल था । और उसने सोचा कि अब अगर अपने दिल की बात ईशा को न बोली तो शायद कभी न बोल पाए। एक दिन तेज़ बारिश हो रही थी। ईशा से सुमित बोला, "कुछ बात करनी है"। "क्या बात करनी है? चलो बस स्टैंड पर ही बात करते है, वैसे भी आज मुझे वहीं से जाना है।" ईशा ने कहा । दोनों वहाँ पहुँचे और सुमित ने थोड़ा झिझकते हुए कहा "आई लव यू, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ, गुलाब ईशा को थमाते हुए बोला। तभी अचानक एक गाड़ी आकर रुकी और ईशा बिना कुछ कहे उसमे बैठकर चली गई। और सुमित जाता हुआ उसे देखता रह गया। और बड़ी देर तक तन्हा बारिश में उदास खड़ा रहा। दो दिन तक ईशा का कुछ पता नहीं था। फ़ोन वो उठा नहीं रहीं थीं और कॉलेज भी नहीं आ रही थीं। दो दिन बाद ईशा कॉलेज में नज़र आई और उसका मुरझाया हुआ गुलाब लौटाते हुए बोली "मेरा पहला प्यार तुम नहीं बल्कि स्कूल से साथ पढ़ने वाला ऋषभ हैं, उस दिन वही मुझे लेने आया था" । यह कहकर ईशा सुमित को बिना देखे वहाँ से चली गई और वह मुरझाये हुए गुलाब में एक मुरझाई हुई उम्मीद देख रहा था। आज तीन साल बाद ईशा को वही बस स्टॉप पर देखा। वैसी तेज़ बारिश और गाड़ी में बैठा सुमित। तभी उसने देखा ऋषभ आया दोनों में लड़ाई हुई और ईशा ने हाथ से अगूंठी निकाल उसके मुँह पर मारी। और रोते हुए पागलों की तरह सड़क पर भागने लगी तभी सुमित गाड़ी से बाहर निकल उसके पीछे भागा और तेज़ आती हुई गाड़ी से उसे बचाता हुआ सड़क के किनारे ले गया । "अरे! सुमित तुम ? तुम यहाँ ? तुम यहाँ कैसे ? मुझे क्यों बचाया ?" ईशा रोते हुए बोली । "भले ही ऋषभ को अपना पहला प्यार बचाना न आता हूँ पर मुझे जरूर आता है" सुमित बोला। तभी कोई और गाड़ी तेज़ी से आई और ईशा डरकर सुमित के गले लग गई और सुमित सोचने लगा कि काश! ये बादल यूँ ही बरसते रहे और ईशा कभी भी किसी के पास न जाए।