Chudel ka Intkaat - 1 in Hindi Horror Stories by Devendra Prasad books and stories PDF | चुड़ैल का इंतकाम - भाग - 1

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चुड़ैल का इंतकाम - भाग - 1

आज की दुनियां में किसी समझदार व्यक्ति से किसी भूत-प्रेत, चुड़ैल, डायन के विषय मे बात करो तो वह सामने वाले शख्स को सनकी या अंधविश्वासी करार दे देता है।


वहीं दूसरी तरफ किसी ऐसे शख्स से पूछिए जो ऐसे वाक्ये से गुजर चुका हो तो वो आपको अपने और उस खौफ़नाक घटना के अनुभव को बड़ी ही बेबाकी से आपको सुनाते है बशर्ते सामने वाले को उसकी बातों पर विश्वास करना ही पड़ेगा।
लेकिन यकीन मानिए आज भी इन आत्माओं का वर्चस्व कायम है, बस अंतर इतना रह गया है कि यह अब शहर से दूरस्थ इलाके,जहां आवाजाही कम हो, बाग-बगीचे, बँसवाड़ी, नहर के पुलिया के पास, पीपल के पेड़ के पास आज भी अपना आधिपत्य जमा कर बैठे हुए है।


जयन्त कुमार बलूच 21 वर्ष का नवयुवक है औऱ शारीरिक रूप से पतला है लेकिन कमजोर नहीं है। इसकी हाइट 5 फुट 3 इंच की औसत ऊंचाई थी। इसके परिवार के इसे स्नेह से जय पुकारते थे तो इसके जिगरी दोस्त इसे यंत्र के नाम से चिढ़ाते थे।


इसके गाँव का नाम अरंद है जो उत्तर प्रदेश राज्य के मिर्जापुर जिले में पड़ता है। इसके गाँव की सबसे अहम बात यह है कि यह शहर के आपाधापी से कोसो दूर था। यह मिर्जापुर से 45 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां के लोगो को किसी भी तरह का तनाव नहीं था। सभी अपनी जीवन को खुशहाली से जीवन यापन कर रहे थे।

यह बात लगभग 4 वर्ष पुरानी ही है। अनिल कुमार की आज शादी थी जो कि आज शाम 7 बजे अरंद गांव से 32 किलोमीटर दूर मुंदीपुर में बारात जानी थी।

अनिल कुमार, राजीव रंजन और जयन्त बलूच तीनो ने पिछले वर्ष ही स्नातक तक कि पढ़ाई एक साथ पूरी की थी। तीनों एक ही गांव के थे इस वजह से घनिष्ठता थी।

जयन्त बारात में जाने के लिए कपड़े इस्त्री कर ही रह था कि तभी उसका मित्र राजीव रंजन जयन्त के घर आया और बोला-"क्यो हीरो हो गई तैयारी?"
यह सुनते जयन्त इस्त्री को दीवार के सहारे रखते हुए कहा- "कैसी तैयारी?"
"अरे शाम को बारात में चलना है या नहीं?"
जयन्त बोला-"अभी शाम होने में बहुत वक़्त है!"राजीव रंजन- "मेरी समझ मे नहीं आ रहा कैसे चले?

जयंत बोला- " मैं भी तो यही सोच रहा हूँ क्योंकि कल सुबह जल्दी भी आना है।"राजीव रंजन- "इसमे इतनी सोचने वाली क्या बात है? शाम को बारात तेरी बाइक से चल लेंगे?"
जयन्त- "चल तो लेंगे लेकिन मेरी बाइक में बस पैट्रोल पंप तक जाने तक ही पैट्रोल होगा।"
राजीव रंजन- "देख फिर क्यों न ऐसा करें कि बाइक से ही दोनों चलते हैं और पेट्रोल की कीमत दोनों आधी आधी कर लेंगे।"
जयन्त बोला- "हम्म यह उपाय सही रहेगा क्योंकि कल मेरा जल्दी आना ज़्यादा ज़रूरी भी हैं।"

यह सुनने के बाद उसने 50 ₹ का नोट उसे थमाया और उसने वह अपने अपने पास सुरक्षित रख लिए। फिर थोड़ी देर में वह भी कुछ आवश्यक काम का हवाला देते हुए वहां से चलता बना।
उसके बताए हुए योजना के अनुसार जयन्त ठीक शाम सात बजे उसके घर पहुंच जाता हूँ। जयन्त उसको वहां न पाकर हस्तप्रबढ रह जाता है। उसके घर वालों से पूछने पर पता लगता है कि अभी थोड़ी देर पहले गांव का ही कोई व्यक्ति आया था शायद वह उसी से साथ लगभग आधे घंटे पहले बारात के लिए निकल गया है।
जयन्त जेब से मोबाइल निकालकर उसको कॉल लगाता है तो उसका नम्बर आउट ऑफ नेटवर्क बताता है। जयन्त 2-3 बार और कोशिश करता है और खीझकर मोबाइल जेब डाल लेता है और उसे कोसता है-

"ये राजीव रंजन है या कोई दन्त मंजन। जब इसे कहा था कि ठीक 7 बजे चलना है तो यह किसके साथ चल गया? उसे यदि जाना ही था तो कम से कम बता तो देना चाहिए था। उपर से उसका नम्बर भी नहीं लग रहा।"

यह कहते हुए उसने बाइक की चाभी घुमाई और कलाई घुमा के वक़्त देखा तो घड़ी 8 बजने का इशारा कर रही थी। उसने बाइक स्टार्ट कर के अकेले ही आरंद से मुंदीपुर अपनी दुपहिया से ही निकल पड़ा।

अगले चालीस मिनट के अंदर ही वह मुंदीपुर गांव आ चुका था। उसने देखा कि सड़क के किनारे रंग बिरंगे रौशनी के साथ एक कतार में कुछ लोग बिजली के लैंप को ढो रहे थे जो कि आर्केस्ट्रा वाले को उस अंधेरे में रास्ता दिखाने का बखूबी काम निभा रहे थे।आर्केस्टा के आगे आगे गांव के कुछ लोग रंग बिरंगे परिधानों में अपने नृत्य का कौशल दिखाने में मशगूल थे। इनमें कुछ लोग वो भी थे जिन्हें आजतक अपनी नृत्य की अद्वितीय प्रतिभा दिखाने का कभी अवसर नहीं मिला था और इस मौके को वो अच्छी तरह से भुना रहे थे।

इसमे से कुछ अधेड़ उम्र के व्यक्ति हाथों से इशारा कर कर के आने जाने वाली गाड़ियों पर हुक्म चलाते और उन्हें अपने हिसाब से रास्ता भी दिखाने का काम करने में लगे हुए थे। सभी अपने धुन में मस्त थे थे वहीं दूसरी तरफ जयन्त का मित्र अनिल कुमार जो सुनहरे रंग के शेरवानी और कत्थई रंग के पगड़ी के साथ में सफेद घोड़ी पर बैठे मुंह को लटकाए धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था। मानो जैसे कह रहा हो कि इसकी बर्बादी पर इसे छोड़कर सभी जश्न मना रहे हो और उसकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं है शायद अब बहुत देर हो गयी हो।

इन सभी व्यक्तियों से जब जयंत की नजर हटी और उसने बड़े ध्यान से सूक्ष्म निरीक्षण करते हुए देखा तो उसे राजीव रंजन कहीं भी नजर नहीं आया। उसे अब बहुत गुस्सा आया। उसने अब अपनी बाइक को निर्धारित गंतव्य पर लगाया और उसे एक बार फिर कॉल कर के उसका जायजा लेना चाहा।

वह जेब से मोबाइल निकाला तो देखकर दंग रह जाता है कि उसका मोबाइल स्विच ऑफ था। उसने जल्दी से उसे ऑन करते ही राजीव को कॉल लगाया तो पहली ही रिंग में उसने उठा लिया मानो जैसे वह काफी देर से उसी के ही कॉल की प्रतीक्षा में हो। कॉल को उठाते ही जयन्त के कुछ बोलने से पहले ही वह दूसरी तरफ से बड़बड़या-

"हरामखोर कहाँ है? मैं पिछले आधे घंटे से तेरा नम्बर लगा लगा कर थक गया हूं और जनाब है कि मोबाइल ऑफ किये बैठे हैं? मैं कब से तैयार बैठा तेरी राह देख रहा हूँ। बोल कहाँ है चलना है या नहीं?"

जयन्त ने सोचा था कि वह इसकी अच्छे से खबर लेगा औऱ इसे इतना लताडेगा लेकिन यहां दांव उल्टा पड़ चुका था। उसने सवालों का अंबार लगा दिया था। जयन्त अपने प्रश्न करने की जगह उसे वहीं सामने सब सच बताने और और उसकी ब्यथा सुनने का मन मे निर्णय लिया और उसे बीस मिनट का वक़्त मांगा और उसे लेने के लिए अब फिर से मैं अपने गांव आरंद रवाना हो चला।

रात के लगभग 9:30 का वक़्त हो चला था। बाइक चलाते हुए पूरा इलाका सुनसान से प्रतीत हो रहा था। ईस वक़्त गांव में अक्सर सभी नींद के आगोश में समाए होते हैं।
जनवरी का महीना था। ठंड का मौसम होने की वजह से सड़कों पर और चारों ओर शांति फेली हुई थी शांति ऐसी की किसी पक्षी के बोलने की भी आवाज नहीं आ रही थी। मानो की जैसे पक्षी भी ठंड की वजह से रजाई ओढ़कर सो गये हो।

जयन्त अपनी बाईक को लगभग काफी तेज गति से चला रहा था क्योकि वो जल्द से जल्द अपने गांव अरण्द पहुंचकर राजीव के साथ वापिस बारात में सम्मलित होना चाहता था। सड़क बिल्कुल सून - सान थी रास्ते में बहुत ही कम घर थे न की मात्रा में ही एवं रास्ते में सिर्फ हल्की ठंडी-ठंडी हवा का अनुभव हो रहा था।
अचानक जयन्त को रास्ते पर एक आकृति सी दिखी जो तेज दौड़कर रास्ते को पार कर लेना चाह रही थी। उस आकृति को देखकर यह लग रहा था कि मानो जैसे वह कोई औरत हो। जयन्त ने झटके से अपनी बाइक के हैंडल को घुमाकर बाइक की हेडलाइट को उस आकृति की तरफ घुमाया तो देख कर दंग रह जाता है कि वह आकृति पलक झपकते ही सड़क के पार कर जाती है।

जयन्त को यह देखकर विश्वास ही नहीं हुआ कि कोई पलक झपकते ही इतनी जल्दी सड़क कैसे पार कर सकता था। जयन्त इन्हीं विचारों में उलझा पड़ा था कि तभी उसकी बाईक की हेड लाइट बंद पड़ जाती हैं।

जयन्त हेड लाइट को ठीक करने के लिए रुक जाता है। काफी देर तक मशक्कत करनी पर भी वो लाइट ठीक नहीं होती है। वह वहां पर कुछ वक्त खड़ा रहता है फिर अचानक उसे एक साया अपनी तरफ बढ़ती हुई नजर आती है। यह वही साया थी जिसे उसने थोड़ी देर पहले सड़क को पलक झपकते ही पार करते देखा था।
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क्रमश..........

इस कहानी का अगला भाग बहुत ही जल्द।
यह कहानी आप सभी को किसी लग रही है? मुझे मेरे व्हाट्सएप्प पर 9759710666 पर ज़रूर msg कर के बताएं।