दोस्त की संघर्ष भरी जिंदगी।
(1)
रघुनाथ नहा धोकर अपनी स्त्री को आवाज लगता हुआ बोला - अरे सुनो देवी मैं जरा बाहर उध्यान तक टहलकर आता हूँ ।
इन्दिरा अपना बेग लेकर कमरे से बाहर आई ओर रघुनाथ की तरफ देखकर बोली कुछ खा लेते। फिर निकलो, ना जाने कितना समय लग जाए वापिस लोटने मे।
रघुनाथ अपनी पत्नी की तरफ देखता हुआ बोला - देवी मैं उध्यान तक जाकर लौट रहा हूँ । कही दूर नही जा रहा हूँ ।
इन्दिरा नाक सकुडती हुई बोली - हाँ भगवान जानती हूँ। पिछले बिस सालों से आपको उध्यान तक जाकर आता हूँ। ये कहते हुए सुनती हूँ। यह आपका उध्यान हैं कितना दूर हैए घर के सामने उध्यान ओर आने मे घंटो लगा देते हो। ऐसा क्या करते हो उध्यान मे?
रघुनाथ जी हसते हुए आगे बढ़कर बोले - देवी एक साथ कितने सवाल पूछती हो आप?
सामने वाला जवाब देना ही भूल जाता हैं। बेचारे बच्चे कैसे झेलते होंगे आपको?
इन्दिरा - जिस प्रकार आप बिस सालों से झेलते आ रहे हो वेसे ही आपके बेचारे बच्चे भी झेलते हैं।
रघुनाथ जी - कोई हमारे दिल से आकार पूछे की हम आपको कैसे झेलते आ रहे हैं। हमारी ज़िंदगी एक राजकुमार की तरह थी । इन्दिरा नाम के तूफान ने फकीर बना दिया हमे।
इन्दिरा - ओह रहने दो राजकुमार जी जिंदगी तो हमारी थी। एक राजकुमारी बनकर राज किया करती थी पता नही पूरी दुनिया मे आपसे ही पलूँ पड़ना था हमारा।
रघुनाथ जी बीच मे बात कटते हुए - देवी जी आज आपको देर नही हो रही हैं। कॉलेज मे बच्चे आपकी राह देख रहे होंगे।
आप बात को बीच मत काटो। इन्दिरा ने आंखे दिखते हुए कहा।
रघुनाथ जी - मैं कहा बात को कट रहा हूँ। देवी! मैं तो आपको याद दिला रहा हूँ की आपको देर हो रही हैं। आज आपकी पहली कलाश ही हैं।
इन्दिरा खाने की बेंच पर बेठती हुई बोली - देर तो आपको हो रही हैं आपके सारे यार - दोस्त उध्यान मे इंतजार कर रहे होंगे। (उम्र हो गई मगर अभी भी झगड़ा करना नही भूले। तिरछी नजरों से देखती हुई इन्दिरा ने कहा)
रघुनाथ जी कुर्सी पर बैठते हुए - झगड़ा कोन करता हे देवी जी वो तो हम आपको छेदने के मजे ले रहे थे। मगर आपका घुस्सा आज भी वही हे। छोटी छोटी बातों पर झगड़ा करना ओर रूठना।
राघुनाथ जी की तरफ देखती हुई इन्दिरा बोली - आरे आप कहा बैठ गए। उध्यान तक जाना नही हैं क्या ? आपको तो देर हो रही थी। अचानक मूड कैसे बदल गया?
रगुनाथ जी - हाँ हाँ जा रहे हैं अगर देवी जी की आज्ञा हो तो। बस निकाल ही रहे है।
इन्दिरा ने मुसकुराते हुए कहा - हाँ तो निकलिए आपको किसने रोका हैं
बस टहलकर जल्दी लोटना। आज आपकी दोनों पारियाँ घर पर अकेली ही हैं।
रघुनाथ जी - हाँ देवी जी अब हम निकल रहे हैं। आप भी जल्दी निकाल जाना कही कोलेज के लिए देर नही हो जाए।
इन्दिरा - ठीक हे बाबा तो अब हम निकल रहे हे इन्दिरा बेंच से उठकर दरवाजे की तरफ निकल पड़ी।
रघुनाथ जी बेंच से उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोले - देवी जी अपना ख्याल रखना।
ओर आप भी....
ओर इस कदर दोनों एक साथ घर की चोकट से बार निकल अपनी अपनी राहों मे निकल पड़े।
रघुनाथ जी की पत्नी जो पेशे से शिक्षक हे। जो संस्कृत भाषा की कोलेज प्रोफसर हे ओर हमेशा अपनी संस्कृति से जुड़े रहने वाली महिला हैं।
गोरा रंग, माथे पे हल्की हल्की झुरीयां, आंखो पर चश्मा ओर चहरे पर मुस्कान की चमक रहन सहन मे सादगी बरतने वाली महिला हे।
रघुनाथ जी साहित्य ओर संगीत के प्रेमी थे, ड्रामा के शोकीन, अच्छे वक्ता थे, अच्छे निशाने बाज ओर ज़िंदगी को हसकर जीने वाले एक समाज सेवी भी थे।उनकी सकरात्मक सोच के लोग दीवाने थे।
हाल ही मे "एक रिश्ता ऐसा भी" एक संस्मरण की रचना मे व्यस्थ थे।
रघुनाथ जी अपने विचारों मे खोये हुए उध्यान की सड़क पर कर रहे थे। की मोटर की अवाज सुनाई दी। ओर किसी ने उनको खिचकर सड़क किनारे किया। कुछ समय के लिए तो रघुनाथ जी सहम से गए थे और सामने देखा तो एक हठ्ठा कट्ठा नोजवान खड़ा था। लंबा कद, सांवला रंग, हाथ मे फ़ाइल बूट सूट पहने काली पेंट मे कमीज अंदर किया हुआ छाती फुलाये मजबूत भुजाएँ गोल चेहरा ओर आंखो पर चश्मा लगाया हुआ।
नोयुवक रघुनाथ जी के सामने देखता हुआ बोला - अंकल जी कहाँ खों गए? आपको पता भी हे आप सड़के के बीच चल रहे थे। कहा जाना हे आपकों ?
रघुनाथ जी नजरे झुकाते हुए - नही... कहीं नही जाना...
लगता हे की आप कही गहन विचारों मे खोये हुए हो चलो चाय पीने चलते हे।
रघुनाथ जी भी एक दम माना नही कर सके ओर उस नोयुवक के साथ चल पड़े। दोनों उध्यान के पास चाय की तपड़ी पर पहुंचे ओर बेंच पर बैठकर चाय का ऑर्डर दिया।
चाय का ऑर्डर दिया तब तक रघुनाथ जी बोल पड़े - आपका परिचय।
नोयुवक - लोग मुझे प्यार से लखन बुलाते हे नाम लक्ष्मण दस है।
ओह...
नोयुवक - आपका परिचय नही मिला।
रगुनाथ.... मेरा नाम रघुनाथ हैं। रघुनाथ जी ने प्रीतिउत्तर दिया।
लखन मुसकुराता हुआ बोला - वैसे ऐसी कोनसी चिंता मे चल रहे थे।
नही कोई चिंता नही बस ऐसे ही....
(बीच मे चाय वाला आ गया )
लखन चाय लेते हुए बोला - बस ऐसे ही सड़क बीच पहुँच गए। अंकल जी ज़िंदगी बहुत कीमती हैं।
रघुनाथ जी कीमती नही ये तो अनमोल है।
ये सब जानते हुए भी आप सड़क बीच लापरवाई से चल रहे थे। अगर कुछ अनहोनी हो जाती तो परिवार वालों के क्या हाल होते आपको अंदाजा भी हैं।
रघुनाथ जी कुछ पल लखन की तरफ देखते हुए बोले - आप सही कह रहे हो लेकिन मे तो सड़क पार करके उध्यान मे जा रहा था
आपका धन्यवाद!
लखन हसता हुआ - अरे नही नही रघुनाथ जी ये तो मेरा फर्ज था ऐसे कहकर हमे शर्मिंदा मत करों।
ओर हाँ हमे माफ करना आपसे ऐसे बात करने के लिए।
रघुनाथ जी एक टिक नजर से लखन को देखते हुए विचार कर रहे थे कितने विनम्र ओर सरल सहभाव के व्यक्ति हैं दिल चाहता हैं इनसे बार बार मुलाक़ात हों।
लखन चाय पीकर खड़ा हुआ ओर रघुनाथ जी तरफ देखता हुआ बोला - अच्छा तो चलता हूँ मुझे आज्ञा दे।
अपना दायाँ हाथ आगे बढ़ता हुआ- आपसे मिलकर खुशी हुई।
रघुनाथ जी - मुझे भी!
अच्छा तो चलता हूँ अपना ख्याल रखना। फिर कभी मुलाक़ात होगी। अभी कोर्ट के लिए देर हो रही हैं ।
रघुनाथ जी - कोर्ट...? लखन की तरफ देखते हुए माथे की झुरीयां को सिकुडते हुए बोले।
लखन - जी हाँ, मैं पेशे से एक वकील हूँ। ऐसा कहते हुए लखन वहाँ से निकाल पड़ा।
ओर इस प्रकार रघुनाथ जी भी बगैर उध्यान मे गए अपने घर की ओर रुख मोड़ा ओर घर की तरफ चल पड़े।
***
रघुनाथ जी घर पर आए ओर अपनी दोनों बेटियों को आवाज लगते हुए सोफा पर बैठ गए - खुशी ओर वादी क्या कर रही हो।
रघुनाथ जी के तीन संतान हैं, दो लड़कियां ओर एक लड़का।
बड़ी बेटी का नाम खुशी हैं जिसने संस्कृत साहित्य मे एम ए की है ओर अब संस्कृत मे B.ED कर रही हैं।
गोल चेहरा, लंबी नाक, घोरा रंग, लंबा कद ओर यौवन रस झलकता हुआ 23 वर्षीय जवान लड़की हैं।
संस्कार, गुण ओर रूप की रानी, पूरे परिवार का सबसे ज्यादा ख्याल रखने वाली ओर अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझने वाली सुंदर लड़की हैं।
लड़का योगेश! जिसने वाणिज्य वर्ग से बी. कॉम की डिग्री प्राप्त की हैं ओर अब एम कॉम कर रहा हैं। योगेश शांत सहभाव, चहरे पर सादगी, लंबा कद, मजबूत भुजाएँ, गोरा रंग, बोलिबोल का प्रेमी ओर गायकी का शोकीन एक नोजवान लड़का हैं जिसे प्यार से लोग युग बुलाते हैं।
ओर छोटी बेटी वादीका यह घर के साथ पूरे मौहले की सबसे लाड़ली ओर शरारती बच्ची हैं। कद मे अभी छोटी हैं, चहरे से भोली भाली नजर आती हे आंखो पर चश्मा, गोरा रंग छोटी नाक ओर यौवन मे दस्तक देती हुई 14 वर्षीय लड़की हैं। वादीका को विध्यालय, मौहले ओर घर वाले सभी प्यार से वादी कहकर पुकारते हे। सिवा योगेश के ये हुमेशा उसको छुटकी कहकर ही पुकारता हैं।
कुछ देर तक उतर नही मिलने पर रघुनाथ जी खुशी ओर वादी के कमरे की ओर जाते वक्त - आज सुबह सुबह ही वापस सो गई।
रघुनाथ जी कमरे के दरवाजे तक जाकर रुक गए। रघुनाथ जी अपनी बच्चियों से बहुत ज्यादा प्यार करते हैं। उनके बिना एक पल भी नही रह सकते घर मे उनको बस उनकी बच्चियों की उपस्थिती ही उनकी ज़िंदगी हर पल को स्वर्णिम बना देता हैं।
रघुनाथ जी ने देखा तो खुशी अपनी पढ़ाई मे ध्यान मगन होकर पढ़ रही थी, ओर वादीका कानो मे हेडफोन लगाकर गाने सुने रही थी।
रघुनाथ जी दोनों को अपने काम मे मगन देखकर मन मुस्काते हुए बच्चो को डिस्टर्ब नही करना चाहिए ऐसा सोचकर वहाँ से निकलने लगे।
रघुनाथ जी को वापस जाते देख वादीका बोली - पापा....! कहाँ जा रहे हों आप?
यहाँ आओ मैं आपको मेरे स्कूल प्रोजेक्ट के बारे में बताती हूँ।
रघुनाथ जी अपना समय अधिकतर किताबों ओर बच्चो के साथ ही बिताते थे।
रघुनाथ जी - कहीं नही जा रहा था वादी। बस आप दोनों को अपने -अपने कार्यों मे व्यस्त देखकर अपकों परेशान नही करना चाहता था।
यह क्या बात हुए पापा आप हमे कहाँ परेशान करते बल्कि हम आपको परेशान करते रहते हैं। खुशी ने अपनी पढ़ाई टेबल से उठते हुए रघुनाथ जी के सामने देखकर कहा।
वादीका - हाँ पापा आइये ना आप तो दुनिया के सबसे बेस्ट पापा हो आप से भला क्या डिस्टर्बेनश। ऐसा कहती हुए वादी ने रघुनाथ जी को अपने बेड पर बैठाया।
खुशी हँसते हुए - पापा आप दोनों बैठकर कुछ गपशप लड़ाओ ओर मैं आपके लिए कुछ लेकर आती हूँ यह कहते हुए खुशी रसोई घर मे चली गई।
वादीका - पापा आप तो उध्यान गए थे। फिर आज इतने जल्दी कैसे लौट आये।
उध्यान तो गया था बेटी परंतु...
रघुनाथ जी इतना कहकर चुप रह गए।
परंतु .... क्या पापा....?
आप रुक क्यों गए? आगे कुछ बोलते क्यों नही। इस प्रकार से वादी खड़ी होकर सवाल जवाब करने लगी।
रगुनाथ जी - आरे शांति रख बेटा बताता हूँ। ऐसा कुछ नही हुआ तू यहा बैठ, मैं बताता हूँ क्या हुआ?
वादीका बैठकर बोली - हाँ यह लो बैठ गई अब बताओ क्या हुआ।
अरे कुछ नही वादी बिटियाँ - मैं उध्यान गया मगर आज सुबह आपकी माँ ने हमे बताया की आज आप घर पर ही हो तो जल्दी लॉट आया।
वादीका - आप सच बोल रहे हो न पापा। वादी ने रघुनाथ जी के सामने तिरछी नजरों से देखते हुए अंगुली करके कहा।
रघुनाथ जी ने जवाब दिया - हाँ बिटियाँ रानी हाँ हम भला आपसे क्यों झुठ बोलेंगे?
मुह बनाती हुई वादी बोली - हमे नही लगता हैं की आप सच बोल रहे हों आप हमसे कुछ छुपा रहे हो।
बीच मे खुशी नाश्ता लेकर आई ओर बोली – वादी तुम नही मानोगी। क्यों पापा को परेशान कर रही हो। इधर आओ प्लेट उठाओ ओर कुर्सी पर बैठ जाओ, ये लो पापा आपकी प्लेट।
रघुनाथ जी प्लेट लेते हुए एक टिक नजर से खुशी को देखते हुए भावुक हो गए।
खुशी रघुनाथ जी को इस कदर देखते हुए बोली – क्या हुआ? पापा। कहा खो गए। नाश्ता करिए।
रघुनाथ जी मुसकुराते हुए बोलो – कुछ नही बेटा देख रहा हूँ। आप कितने जल्दी बड़े हो गए पता भी नही चला। अब शादी की उम्र हो गई है।
खुशी नाक सिकुड़ती हुए नाराज नजरों के साथ बोली – कोई शादी – वादी नही करनी हमे आप अपने दिमाग से यह ख्याल बाहर निकल दो पापा।
रघुनाथ समझने के उद्देश्य से खुशी से बोले - मगर बेटा शादी तो ज़िंदगी का एक पड़ाव है ओर अब आपकी उम्र भी हो गई है।
वादी खिलखिलाते चहरे के साथ हसती हुई – हाँ पापा दीदी की शादी जल्द करवा दो फिर यह कमरा मेरे अकेली का होगा।
चुप बड़ी आई कमरे की महारानी इतनी खुश है शादी से तो तू करले। वादी को डाटती हुई खुशी बोली।
रघुनाथ जी हसते हुए बोले – उस बेचारी को क्यों डट रही हो। सही तो कह रही है। बेटा आपकी सहेली शर्मा जी की लड़की वर्षा ने भी शादी कर ली। बेटी की शादी का तो हर माँ – बाप का सपना होता है। बेटी!
खुशी रघुनाथ जी की इस करुण भाव से निकले शब्दो को सुन पापा को नाराज नही कर सकती थी इसलिए अपना बचाव के साथ पापा की बात को रखती हुई बोली – पापा मैं कहाँ मना कर रही हूँ। मैं तो बस यह कह रही हूँ की अभी शादी नही करनी हैं। अभी तक तो मेरी पढ़ाई भी पूरी नही हुई हैं। दो – तीन साल बाद सोचते है ना।
बाप रे दो तीन साल बाद। नही पापा दीदी की शादी तो इसी साल ही करवा दो। वादीका, खुशी को चिड़ाते हुए मूड मे पापा के पास बैठती हुई बोली।
खुशी आंखे दिखती हुए बोली – चुप बड़ो के बीच टांग आड़ाती है भली आई शादी करवाने वाली।
बेचारी छुटकी को क्यों डट रही हो दीदी। सही तो बोल रही है। युग ने इन शब्दो के साथ कमरे दस्तक दी।
खुशी, युग के सामने तरफ देखकर बोली – तुम भी आ गए टांग अड़ाने। एक कमी थी उसे पूरी करलो।
युग खुशी को छेड़ता हुआ पापा के दायी तरफ बैठकर बोला – हाँ दीदी ओर नही तो क्या आपकी शादी के बाद हमे डाटने वाला कोई नही होगा। फिर आपकी जगह मेरी हो जाएगी।
रहन दे खुली आंखो से ख्वाब न देखा कर। भला आया मेरी जगह लेने वाला। खुशी मुह मरोड़ती हुई बोली।
रघुनाथ जी युग के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा – आरे बेटा युग आज आप जल्दी वापस आ गए।
खुशी बिचमे बोल पड़ी - गया होगा दोस्तो के साथ काही उध्यान मे घूमने फिरने को या फिर किसी रेस्तरा पिज्जा पार्टी करने के लिए। पढ़ना तो है नही।
इसलिए तो हम आपकी शादी करवाने को जल्दी है दीदी। हर बात पर हमरी टांग खिचाई करती रहती हो।
हम्म... खुशी अंगूठा दिखते हुई युग को चिड़ाती हुई बोली।
युग रघुनाथ जी के सामने दिखता हुआ बोला – नही पापा आज समेस्टर जल्दी खत्म हो गया। शनिवार के हिसाब से कल रविवार को कॉलेज मे कोई प्रोग्राम है।
जानती हूँ यह सब बहाने बाजी है। हमने भी एम ए की है। पापा मैं कह देती हूँ इसमे कोई न कोई लोचा जरूर हैं। खुशी रघुनाथ जी के हाथो से खली प्लेट लेती हुए बोली।
युग खुशी को हाथ दिखते हुए बोला – ओ हेलो दीदी। अभी हमारा आपसे झगड़ा करने का कोई मूड नही है। इसलिए रहने दो आप।
खुशी – देखो ना पापा ये कैसे बात कर रहा है। संस्कार की होली कर रहा है।
रघुनाथ जी – युग...
युग अपनी बात रखता हुआ- नही पापा आप भी देखो न। छोटा भाई कॉलेज से आया है नाश्ता लाना तो दूर की बात है। झगड़ा करने का मूड बना रही है।
खुशी – नही लाऊँगी जा...
रघुनाथ जी दोनों की जिद्द के आगे परास्त होकर वादी से बोले – जा बेटा अपने भैया के लिये कुछ खाने को लेकर आ।
ठीक है पापा आप इतना आग्रह कर रहे हो तो आपके राजकुमार के लिए नाश्ता ले आती हूँ। ऐसा कहती हुई वादीका रसोई की ओर प्रस्थान कर गई।
ये ओर राजकुमार, मुह देखो इसका। खुशी युग को चिड़ाती हुई बोल पड़ी।
युग भी कहा पीछे रहने वाला था प्रतिउत्तर में बोला – पापा लगता है दीदी की शादी इसी महीने मे कारवानी पड़ेगी। मेरे एक दोस्त का भाई है जो डोक्टराई कर रहा है। आप कहे तो बात करते है।
खुशी युग का कान पकड़ती हुई बोली – मैं बात करवाती हूँ। तुझे ईथर आ। तू ऐसे नही मानेगा। मैं चलती हूँ तुमारी शादी की बात।
दोस्त!
मेरा भी एक बचपन का खास दोस्त है। बचपन से जवानी तक की घनिष्ठ मित्रता। रघुनाथ जी भावुक होकर अपने समय की उस अद्वितीय दोस्ती की पुरानी यादों की ओर मूड पड़े।
युग – चल छोड़ मेरा कान। देख पापा क्या बोल रहे।
खुशी कान छोडती हुई बोली- बचपन का दोस्त! ये कौनसा दोस्त है। पापा।
बेटा आप नही जानते मगर आपका बचपन उनकी गौद मे बिता है। उनका बड़ा बेटा ओर आपकी गहरी दोस्ती थी। रघुनाथ जी खुशी के माथे पर हाथ रखते हुए बोले – बिटियाँ आप ओर वो पाँचवी कालांश तक एक ही पाठशाला मे साथ पढे थे। उसका नाम समीर था। जब भी तुम दोनों को साथ देखते थे। मेरा दोस्त कहा करता था। देख रघु दोस्ती को रिश्तेदारी मे बदलने वाली जोड़ी को देख।
खुशी रघुनाथ जी का हाथ अपने हाथ मे लेकर पास बैठती हुई बोली - पापा आप किस दोस्त की बात कर रहे हो। मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा है।
बीच मे वादीका बोल पड़ी - ये लो युग भैया आपका नाश्ता तैयार है।
हाँ। इस बेंच पर रख दे।
खुशी फिर बोली - आप चुप क्यों हो पापा। बताओ ना। यह कौन है आपके बचपन का दोस्त। खुशी की उतेजना अपने बचपन की कहानी सुनने के लिए बढ़ गई थी। उसके दिल की धड़कने समीर के बारे मे जानने को बेताब हो उठी थी। एक ऐसा नाम जो सुना सुना सा लग रहा था। जिसका हाथ बचपन मे पकड़कर पूरे गाँव मे फिरती रहती थी उसके बारे मे जानकारी हासिल करना चाहती है।
हाँ पापा कौन है ये आपके बचपन का दोस्त, आपने तो पहले कभी जिक्र भी नही किया। कितने साल हो गए। आप लोग एक दूसरे से वापस कभी मिले भी नही, ऐसा क्या हो गया। युग ने भी आगे बढ़कर सवाल किया।
आगे निरंतर....