Life @ Twist and Turn .com - 14 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 14

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 14

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 14

`` निशी की शादी को बरस ही कितने हुये थे जो विहान --------। `` दामिनी ने उसाँस लेते हुये निशी के साथ जो गुज़री थी, उस चलती हुई कहानी में व्यवधान डाला ।

कावेरी भी आश्चर्य कर उठी, ``विहान जी कितनी सज्जनता से बात करने वाले एकदम डाऊन टु अर्थ लगते थे । ``

सावेरी बोली, ``एकदम थॉरो जेंटलमेन। ``

दामिनी बोल उठी, ``मैं एन जी ओज़ में देखतीं हूँ कि ऐसे ही थॉरो जेंटलमैन से हमारा समाज भरा पड़ा है जो सबके सामने डाउन टु अर्थ होता है और बीवियों को और भी डाऊन टु अर्थ कर देता है बल्कि कहना चाहिए ज़मीन में धंसा ही देता है। ``

कामिनी बोली, ``सही कह हैं दीदी !मैं निशी को गृहणी बनाने की ट्रेनिंग तो तो देती रही लेकिन उसे ये नहीं बताया कि उसके साथ कोई हादसा हो जाए हो जाये तो मुझे तुरंत ही बताये । ``

``बाद में पता लगा कि वह औरत कौन थी ?``।

``उससे क्या फ़र्क पड़ता है ?उसके सम्बन्ध और भी औरतों से थे जिसमें उसकी एक उम्र में बड़ी पड़ौसिन भी शामिल थी इसलिए दीदी ये भी सच है कि थॉरो जेंटल वूमन की भी भरमार है। ताली एक हाथ से बज नहीं सकती। बल्कि आजकल के बहुत से लड़के अपनी पत्नी व बच्चों के साथ बहुत सबमिसिव हैं व घर के काम में हाथ बंटाने वाले होते हैं । अपनी किस्मत है दुनिया में क्या आपको मिले ?``

`` तुम सही कह रही हो कामिनी। विहान पर क्या प्रतिक्रया हुई ?``

``ऐसे पति गिरगिट की तरह रंग बदलते रहतें हैं। दूसरे दिन -----`। ` ``

------------- विहान दूसरे दिन सुबह किचिन में घुस आया, ``आज मैं वर्क फ़्रॉम होम करूंगा, आज ब्रेक फ़ास्ट व सब्ज़ी बनाऊंगा। ``

``ओ के। ``कहते हुए निशी मुस्करा दी।

जब नौ बज गए तो विहान को आश्चर्य हुआ, ``तुम अभी तक ऑफ़िस के लिए तैयार नहीं हुईं ?``

``आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है इसलिए छुट्टी ले ली है। ``

विहान का झुंझलाया एकदम उतर गया चेहरा देखकर निशी का कुछ तो दुःख कम हुआ। विहान थोड़ी देर में दूसरे कमरे में फ़ोन पर कुछ फुसफुसा रहा था। बाहर आकर बोला, `` मेरा वर्क फ़्रॉम होम केंसिल हो गया है । बॉस ने मुझे ऑफ़िस बुलाया है। ``

उसके ऑफ़िस व बंटी के स्कूल जाते ही वह फूट फूट कर रोने लगी क्यों नहीं आज तक कभी उसने विहान के किसी रोमेंटिक स्पर्श को जाना ?क्यों नहीं कभी उसे लगा कि उनकी नई नई शादी हुई है ? गेटवे ऑफ़ इंडिया के पास कबूतरों के झुंड को बाजरे के दानों को डालते हुये, उनके बीच में दौड़ते हुए, उन्हें डरकर झुण्ड में उड़ जाते हुये देखकर वह खुशी में लहक उठी थी।

उसने समुद्र की लहरों में भीगकर चिल्लाकर कहा था, ``विहान !मेरी फ़ोटो लो। ``वह ख़ुशी ख़ुशी पीछे घूमी ये सोचकर उसे लगा था समुद्र के रेतीले किनारे में लहरों से भीगती हुई उसे देखकर विहान मंत्रमुग्ध होकर उसे घूर रहा होगा । उसका नशा तो तब उतरा जब उसने देखा कि वह उससे दूसरी तरफ़ मुंह फेरे टूटी हुई डोंगी पर बैठा किसी से मोबाइल पर बात कर रहा था । धीरे धीरे वह समझने लगी थी कि वह साथ होकर भी साथ नहीं होता था ।

तो शादी के बाद से ही वह उसे नौकरी के लिए ताने मारता था कि उसे घर खाली मिल सके? एक दिन विहान ग़लती से अनलॉक मोबाइल मेज़ पर भूलकर नहाने चला गया तो निशी ने फ़ुर्ती से उसे उठा लिया।

बंटी चिढ़कर बोला, ``मम्मी !आप हर समय मोबाइल में लगी रहती हैं। मेरी बात नहीं सुनतीं। ``

`` क्या बात है बेटा ? ``

`` टीचर जी ने ये होम वर्क दिया है। ``

वह झुंझला उठी, ``तुम अब बता रहे हो ?``

``सॉरी !कल मैं जल्दी सो गया था न। ``निशी एक हाथ में विहान का मोबाइल चैक करते हुए विहान का होमवर्क करवाने लग गई। वह ये देखकर हैरान रह गई कि उसमें चार पांच लड़कियों के बहुत से कॉल्स थे। उसकी हैरानी और बढ़ गई जब देखा चौथे फ़्लोर पर रहने वाली ` कमर` की जगह `कमरा `वाली मिसिज़ वीरा के भी बहुत से कॉल्स हैं। उसे लग रहा था कि ये मोबाइल नहीं सर्प का फन थामे बैठी है। उसने घबराकर मोबाइल मेज़ पर पटक दिया और सिर थामकर बैठ गई थी।

वह ऑफ़िस में ही कहाँ ख़ुश थी? मोटे थुलथुले बॉस धुले उसे बेवजह अपने केबिन में बिठा लेते. थे। दिन में एक बार तो उसे कमेंट सुनने को मिलता ही, ``यू आर क्वाइट प्रिटी। `` या `मैं कभी विश्वास नहीं कर सकता कि आपके कोई बेटा भी है। यू आर लुकिंग सो इनोसेंट्ली चार्मिंग। ``

कभी रईसी का रौब मारते पत्नी की बीमारी का रोना रोते। जब वह कोई फ़ाइल उन्हें बहुत से कड़ा रही होती तो जानबूझकर उसकी हथेली को अपने हाथ से सहलाते ज़रूर थे। उसका मन तो होता कि फ़ाइल उठाकर उनके सिर पर मार दे लेकिन उसे विहान की लाल आँखें याद आ जातीं , ``डिग्रियों का क्या अचार डालोगी ?घर पर पड़े पड़े क्या कर रही हो ?``

एक दिन तो पाटिल ने सीधे ही उसकी आँखों में अपनी छोटी लालआँखेँ गढ़ाकर देखते हुये कह दिया, ``मेरी पी ए एक महीने के लिए छुट्टी पर परसों से जा रही है। आपको उसका काम देखना पड़ेगा।``

``ओ नो सर !वह तो आपके साथ दस ग्यारह बजे तकऑफ़िस में रहती है। मेरे तो एक बेटा है। हाऊ केन आई मैनेज ?``

``उसके लिए आया रख लीजिये, उसका ख़र्चा मैं दूंगा। आपको डबल सेलेरी मिलेगी। ``

``आप मिसिज़ बलूचा को भी तो काम देखने के लिए कह सकतें हैं। ``।

``वॉट नॉनसेंस !मिडिल एजेड लेडीज़ क्या पी ए बनने लायक रहतीं हैं ?``

``वॉट डु यु मीन ?``उसका मन हो रहा था कि चिल्ला कर कहे लेकिन उसने बहाना बनाया, ``कल सोचकर बतातीं हूँ। ``

``योर आंसर मस्ट बी पॉज़िटिव। उसे अचनाक जाना पड़ रहा है। हॉऊ केन आई मैनेज अ यंग पी ए टु माई सेल्फ़ ?``

उन्होंने जिस तरह से उसके शरीर को ऊपर से नीचे तक गंदी रेंगती हुई दृष्टि से घूरा, वह काँप गई। वह कदम घसीटती उसी समय ऑफ़िस से बाहर निकल आई। वाह री मुम्बई !लोकल ट्रेन की भीड़ में घुसते हुये वह सोच रही थी कि यहां से वहां तक भीड़ ही भीड़ लेकिन कोई नहीं है जिसे वह अपना कह सके। लोकल ट्रेन में भी तो अपने शरीर को सहलाते हाथों व गंदे दवाबों से बचाना होता है।

शाम को जैसे ही विहान घर आया वह हिचकी ले लेकर ज़ोर से रोने लगी। विहान ने उसका आंसुओं से चेहरा हाथों से उठाया, `` क्या बात हो गई मेरी जान !``

``मैं तुम्हें बता ही नहीं पाई कि हमेशा मुझे बॉस कितना तंग करता था, कितने वल्गर कमेंट पास करता था। ``

वह बेशर्म की तरह हंस पड़ा, ``तुम जवान हो, ख़ूबसूरत हो किसी का दिल भी मचल उठेगा। ``

``तुम आज कैसी भाषा बोल रहे हो ?``

``अरे नौकरी करनी है तो सुनना ही पड़ेगा। ``

``क्यों सुनना पड़ेगा ?क्या हर औरत बाहर अपने को बेचने निकलती है?``

``उसे बेचना ही चाहिए जब तक यंग हैऔर मुम्बई जैसी नगरी तो उसकी कितनी बड़ी कीमत अदा करती है। ``उसने आँख मारते हुये कहा था।

``क्या कह रहे हो ?तुम्हारे विचार इतने गंदे हैं ? मैं ये नौकरी करतीं रहूँ और तुम खुले आम तुम उस औरत के साथ मज़े मार सको जिससे तुम अब तक मिलते रहे हो। ``

``कौन सी औरत ?``

`` अधिक बनने की ज़रुरत नहीं है। तुम क्यों वर्क फ़्रॉम होम करना पसंद करते हो, ये मुझे पता है। ``

``मेरा मतलब ये है कि कौन सी औरत की बात कर रही हो ?मेरी बहुत सी फ़्रेंड्स हैं। मेरी जान !ये जगह ही इतनी रंगीन है। एक ढूंढ़ो दस मिलेंगी। ``

``तो तुमने शादी क्यों की ?``

``शादी ?``वह वीभत्स हंसी हंस उठा, ``घर लौटकर खाना चाहिये, नींद चाहिए। समाज में रिश्तेदारों में साथ रखने के लिए बीवी चाहिए। ``

``अब मैं तुम्हारे साथ नहीं रह पाउंगी। ``

``तुम कहाँ जाओगी ?तुम्हारे पेरेंट्स तो इस विचार के हैं कि जहां बेटी की डोली गई हो वहीं से अर्थी उठे `।

`` मैं उस नौकरी को छोड़ दूंगी। ``

``नौकरी छोड़ दोगी तो इस घर में नहीं रह पाओगी। ``

वह लगभग गिड़गिड़ा उठी, ``मैं दूसरी नौकरी कर लूंगी। ``

``तुम्हें वो बॉस डबल सेलेरी देने को तैयार है। और कौन इतना रुपया देगा ? मौके का फ़ायदा उठा लो। ``

``यू ----- -। ``घृणा से उसका रोम रोम थरथरा रहा था। यहाँ से वहां तक फ़ैली मुम्बई --उसे लगा उसके अंदर का रोता हुआ समुद्र कठोर व निर्मम किनारे पर सिर पटक रहा है, बार बार। जिसके भरोसे वह अपना जीवन बिताने आई थी वह उसका दलाल बनने को तैयार है। दूसरे दिन विहान आँखें निकालता ऑफ़िस गया, `` थोड़ा सा कम्प्रोमाइज़ करने में क्या जाता है ? तुम नौकरी नहीं छोड़ोगी.73 फिर से कह रहा हूँ यदि नौकरी छोड़ी तो इस घर में नहीं रह पाओगी ?``

उसी दिन निशी ने अपने बेटे को कोई इंसेक्टिसाइड पिलाकर खुद पीकर आत्महत्या कर ली। ``

दामिनी के बंगले के हॉल में दुख का रेला जैसे बह उठा। कुछ सिसकियाँ सिसक उठीं। कुछ देर सन्नाटे के बाद दामिनी ने भारी आवाज़ में पूछा, ``निशी की कलीग तृप्ति माथुर को तुम्हारा नंबर कैसे मिला ?नहीं तो हम कभी मौत का कारण जान ही नहीं पाते। ``

`` मेरी ननद की फ़ैमिली मुम्बई घूमने गई थी। इत्तेफ़ाक ये हुआ कि लोकल ट्रेन में तृप्ति माथुर उनके पास बैठी हुई थी । उसी तृप्ति से मुम्बई की जानकारी लेते रहे। मेरी ननद ने उसे बताया कि उसकी उम्र की भतीजी निशी यहाँ मुंबई में नौकरी करती थी जिसने स्युसाइड कर लिया था। तृप्ति ने चौंककर कम्पनी का नाम पूछा। फिर वह बताने लगी कि मैं भी उसी कंपनी में काम करती थी लेकिन निशी के जाने के बाद मैंने दूसरी कम्पनी ज्वॉइन कर ली है। तब उसने इन लोगों से नंबर लेकर मुझसे बात की। मरने से एक दिन पहले निशि ने इस से बात की थी कि मैं क्या करूँ ?उसने तो सलाह दी थी की पेरेंट्स के पास चली जा लेकिन निशी देवेश की मानसिकता के कारण हमारे पास आने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। ``

कामिनी फिर रोने लगी, अपने आप ही चुप रहकर बोली, ``निशी के बॉस की नज़र फिर तृप्ति पर गढ़ गई थी। इसलिए उसने ये नौकरी छोड़ कर दूसरी कंपनी ज्वाइन कर ली थी। अपनी अपनी किस्मत है। ``

दामिनी ने धीमे से उसे झिड़का, ``अब भी किस्मत की बात कर रही हो ?ये क्यों नहीं कह रहीं अपनी अपनी समझदारी है। ``

कामिनी रोते हुये सोच रही थी कि मैं क्यों नहीं दामिनी दीदी जैसी बन पाई ?

मीशा के दिल में एक विचार कुलबुलाने लगा कि समझदारी से अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाया जा सकता है लेकिन उसे तो कुछ करना ही नहीं है ज़िंदगी में, ये पक्का है। तो समझदारी का क्या करना है ?

यामिनी भरे गले से वहां से उठ ली, ``मैं सोने जातीं हूँ। कल सुबह की फ़्लाइट है। थोड़ी पैकिंग भी बाकी है। ``

हैरी बोले, ``गुड नाइट एवरीबडी। ``

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई-मेल ---- kneeli@gmail.com

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