Life @ Twist and Turn .com - 13 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 13

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 13

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[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 13

रेलवे स्टेशन पर दोनों बहिनों ने कामिनी को अपनी बाँहों में घेर लिया। तीनों बहिनें भरे दिल से सिसक उठीं। यामिनी ने कामिनी के आँसु पोंछ दिये और उसका बैग उठाते हुये बोली, ``चलो घर चलते हैं। ``।

दामिनी ने ने प्लेटफ़ॉर्म पर चलते हुए पूछा, ``देवेश जी नहीं आये ?``

``हाँ, अचानक उन्हें कोचीन जाना पड़ गया। ``दोनों बहिनें सबको दिखाने के लिए ये कह रहीं थीं लेकिन मन ही मन समझतीं थीं कि क्यों वे अचानक कोचीन चले गए। कामिनी माफ़ी मांगने लगी, ``सॉरी !मेरा दिमाग़ ठिकाने नहीं रहता, मैं फ़ोन करके पहले बता भी सकती थी। ``

``कोई बात नहीं। ``

यामिनी ने कार की ड्राइविंग सीट पर बैठकर बेल्ट बाँधी । रास्ते में कोई किसी से कुछ बोल ही नहीं पा रही थी। दामिनी ने कावेरी को घर फ़ोन कर दिया था कि वे घर पहुँचने ही वालीं हैं। सब लोग पोर्च में इनका इंतज़ार कर रहे थे। कामिनी कावेरी, सावेरी, हैरी जीजा जी, बिन्दो व बच्चों से एक एक करके गले मिल कर रोतीं रही।

कामिनी के आते ही सारा बँगला युवा मौत के ग़म में जैसे भीग गया । सब बहुत धीमी आवाज़ में बात करने लगे । कोई भी निशि का नाम नहीं ले रहा लेकिन सबकी आँखों में उससे जुड़ी कोई न कोई तस्वीर तैर रही है । अयन मीशा से कह रहा था, `` बचपन में निशी मौसी को इसी बंगले में कितना तंग करते थे --कभी हमारे साथ` बिज़नेस `खेलिए या किताब पढ़कर सुनाइये या हमारे लिए बिन्दो मौसी से छिपाकर मैगी बनाइये। ``

यामिनी याद करने लगी, ``निशि हमारे परिवार की सबसे छोटी बेटी थी इसलिए ख़ूब लाड़ली थी। एक साल की इतनी मोटी गदबदी सब उसे दो साल का समझते थे। अनुभा या सावेरी तो उसे ज़बरदस्ती गोदी में उठाते तो कसकर उसे पकड़ना पड़ता था। तो वह चीख मारकर रोने लगती। ``

बिन्दो ने अब तक सबके हाथ में चाय के मग दे दिए थे। वह भी मुढ़िया पर बैठी आँचल से आँखें पोंछने लगी, ``कामिनी दीदी की जचगी में मैं भी तो एक महीने इनके पास रह आई थी। मैंने तो उस नन्ही जान को इन हाथों से खिलाया था। ``

हैरी भी बोल उठे, ``शी इज़ अ वेरी सबमिसिव गर्ल। लास्ट ईयर जब हम सिंगापुर गये थे तो उससे मुम्बई में मिलते हुये गये थे। तब तो वह बहुत ख़ुश नज़र आ रही थी। ``

``इन्फ़ेक्ट उसने हम दोनों को बहुत न करने पर भी कपड़े गिफ़्ट किये थे। ``

सावेरी ने अपने आँसु रूमाल से पोंछे, `` शायद वो चार पांच साल की थी । मैंने एक बार सफ़ेद मोटे कागज़ के पंख बनाकर उसे लगा दिए थे। सारे घर में ख़ुश ख़ुश घूमती रही थी --मैं परी बन गई, मैं परी बन गई। एक दिन आसमान में उड़ जाउंगी, कोई नहीं ढूंढ़ पायेगा। ``

दामिनी सिसक उठी , ``गॉड नोज़ क्या हुआ था इतना बड़ा कदम उठा बैठी। कहाँ गई हमारी परी ? विहान ने तुमसे फ़ोन पर बात की या नहीं ?``

``जबसे मुम्बई से पेरेंट्स के साथ गया है तबसे उसका मोबाइल स्विच ऑफ़ आ रहा है। ``

``जब मैं तुम्हारे पास भोपाल आई थी तो हम समझ रहे थे कि वह दुःख के कारण मोबाइल से बात नहीं कर पा रहा था। `` ``

कामिनी सबके बीच बैठी हुई बुरी तरह रोने लगी, ``उसने पहले कभी नहीं बताया कि उसका क्या दर्द है। बताकर तो देखती क्या हम उसे ऐसे जाने देते ? उसने हमेशा मुझे इनके आगे पीछे घूमते देखा। मुझे इनकी हर ग़लत सही बात सही बात को मानते देखा। मैंने भी उसे सिखाया, जो सब कहते हैं कि पति पत्नी दो शरीर एक जान हैं। वह यही समझती रही ऐसा ही दोनों का रिश्ता होता है। ``

दामिनी झुंझलाई ``उँह !अगर ये सच होता तो एक की जान जाते ही दूसरा मर जाता। ऐसी बातों को सिर्फ स्त्रियों के दिमाग़ में ठूंसा जाता है। वे कभी अपनी ज़िंदगी जी नहीं पातीं, न अपने बारे में ठीक से सोच पातीं। ``

``आप हमेशा ही सच कहतीं थीं। बहुत कोशिश की आपकी तरह जीना सीखूं लेकिन पता नहीं मैं क्यों देवेश जी से डरकर ज़िंदगी जीती रही ? मुझे ये खुशी है कि सावेरी व यामिनी की बेटी अनुभा सिंगापुर में सब तरह से सुखी है। ``

पता नहीं क्यों यामिनी के मुंह से उसाँस निकल गई

सावेरी ने पूछा, ``कुछ पता लगा कि निशि ने ऐसा कदम क्यों उठाया ?नन्हे बंटी पर भी तरस नहीं खाया ?``

``ऐसा है बेटी सच कभी पर्दे में नहीं रहता। यहां आने के दो दिन पहले मुझे उसकी एक बहुत नज़दीकी कलीग तृप्ति माथुर का फ़ोन मिला था। ``

सबकी साँसें थम गईं व नज़रें कामिनी पर जम गईं -----लग रहा था कि कहीं कोई कहानी घटित हो रही है और एक एक पर्दा खिसकता जा रहा है।

------सारे देश में कैसा ग्लेमर गढ़ कर रक्खा है फ़िल्मों ने मुम्बई के बारे में -चमचमाते होटल, मदहोश समुद्री किनारे, भड़कती ड्रेसेज़, थिरकते लड़के लड़कियाँ, सर्र ---से फिसलती विशाल कारें। जब निशि सगाई हुई थी तो उसकी सहेलियां रश्क कर उठी थीं कि निशि ने क्या किस्मत पाई है ?शादी के बाद भोपाल से मुम्बई जा रही है। --निशि की चाल में भी इतराहट आ गई थी।

सरकारी अफ़सर पिता का छोटा सा बँगला छोड़कर मुम्बई आकर उसे ऐसा लगता रहता था कि उसे किसी कबूतरखाने में कैद कर दिया है। एक बार तो माँ के घर जाकर उनके सामने उसकी ऑंखें भर आईं थीं, ``मम्मी !वह फ़्लैट इतना छोटा है कि चलो तो कोहनी तक दीवार से टकरा जाती है। ``

कावेरी ने उसके सिर पर हाथ फेरा था , ``हमने तो विहान की आई टी इंजीनियिरंग डिग्री देखकर उससे तेरी शादी की थी। सब भाग्य के खेल हैं जिसका दाना पानी जहां लिखा हो वो नहीं पहुँच जाता है। सिर झुकाकर भाग्य के फ़ैसले को मंज़ूर कर लेना चाहिए। मुम्बई जैसी जगह पर वह बहुत राइज़ करेगा ``

विहान की ज़िंदगी स्वयं ही इतनी व्यस्त थी कि प्यार रोमांस क्या होता है, उसे सोचने की फ़ुर्सत नहीं थी। घर से एक किलोमीटर दूर चलकर वह स्टेशन के लिए ऑटो रिक्शा पकड़ता। स्टेशन से लोकल ट्रेन में बैठकर दादर से सिटी बस में बैठकर ऑफ़िस पहुंचता। बंटी तो शादी के एक वर्ष बाद ही पैदा हो गया था। निशि का सारा ध्यान उसकी परवरिश पर था।

मम्मी अक्सर कहती भी थी, ``औरत की ज़िंदगी के सबसे ख़ूबसूरत लमहे तब होते हैं जब एक छोटा बच्चा उसकी गोदी में होता है। दुनियाँ की ऊंच नीच, धोखाधड़ी से दूर । उसके खाने पीने का ध्यान रखने , नित बदलती उसकी नटखट अदाओं में, टिमटिमाती आँखों में झाँकने में, बाज़ार से नन्ही नन्ही चीज़ें ख़रीद कर ख़ुश होने में समय कहाँ निकल जाता है, उसे पता भी नहीं चलता। ``

सारे दिन बंटी के साथ अपने को व्यस्त रखने वाली निशी को तब ये पता नहीं था कि व्यस्त नगरों में पति कब हाथ से निकल जाता है, ये भी नहीं पता लगता। बंटी तीन वर्ष का हो गया था, उसे बिल्डिंग के ही एक प्ले ग्रुप में डाल दिया। अब निशी को अपने बारे में सोचने का मौका मिल रहा था। वैसे भी विहान गुस्सा होता तो ताना मार देता, ``घर पर पड़े पड़े क्या करती रहती हो ?डिग्रियों का क्या अचार डालोगी ?अगर तुमने नौकरी नहीं की तो हमारी ज़िंदगी इसी छोटे से फ़्लैट में सड़कर निकल जाएगी। ``

निशी का मन था कि बंटी पांच साल का हो जाए, उसकी परवरिश ठीक से हो जाये तब वह नौकरी की सोचेगी। हर तीसरे दिन के तानों से उसकी जान जलने लगी थी। उसे लगता अपने दिल में बिंधे ये ज़हरीले तीर अपनी माँ को थमा आये लेकिन उनका स्वर उसके कानों में गूंजने लगता, ``जो भाग्य दे उसे सिर झुकाकर स्वीकार कर लेना चाहिए। ``

वे तो स्वयं नौकरी कर रहीं हैं तो वह भी विहान का ही साथ देंगी। निशी ने अंग्रेज़ी अखबार के विज्ञापन से ऑफ़िस असिस्टेंट की नौकरी ढूँढ़ ली थी। बंटी डे केयर में रह ही जाता था। अचानक एक दिन विहान ऑफ़िस से जल्दी आकर टीवी देखने में लग गया। निशी किचिन में खाना बना रही थी। उसने कुछ फुसफुसाहट सुनी।

उसने कमरे के पर्दे के पीछे से झाँका तो देखा विहान किसी से मोबाइल से बात कर रहा है, ``आज थका हुआ था इसलिए घर चला आया। तुम्हारे किसी काम का नहीं था फिर निशी भी नौकरी करने लगी है, चैक करना था कि कहीं हमारी तरह ----। ``कहकर वह अश्लील हंसी हंस दिया।

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``कह तो दिया कल मैं हाफ़ डे वर्क फ़्रॉम होम का बहाना करके घर रुक जाऊंगा। तुम जब तक चाहो हम यहीं रहेंगे। ``

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``नो इश्यु, वो एकदम माताओं बहिनों के टीवी सीरियल टाइप देसी लड़की है। वह आज तक यही समझती है कि मैं ऑफ़िस में बहुत लेट हो जाता हूँ --हा---हा---हा---। ``

निशी जैसे काठ है गई थी --क्या करे पर्दा खोलकर उसे जता दे कि वह सब सुन चुकी है या चुप लगा जाये । उसके सामने मम्मी का गऊ छाप चेहरा घूम गया। वह सहमकर पर्दे के पीछे से हट गई।

उस दिन वह रसोई में खाना क्या बना रही थी, बुरी तरह रो रही थी। बंटी ने अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे से आँसू पोंछे व हैरान होकर पूछने लगा, ``मम्मी क्यों रो रही हो ?``

``कहाँ रो रहीं हूँ ?आँखों में मिर्च के हाथ लग गए हैं । ``कहकर वह नकली मुस्कान से मुस्करा दी।

खाना खाते समय विहान ने पूछा भी, `` तुम्हारा चेहरा कैसा हो रहा है ?``

``कुछ नहीं हल्का सा सिर में दर्द है। ज़ुखाम है। ``

खाना खाने के बाद विहान ने एक टैबलेट निकालकर दी, ``ये ले लो ठीक हो जाओगी । ``

अपनी तरफ़ टैबलेट व पानी गिलास बढ़ाते हुये विहान की भोली सूरत को देखकर वह सोचती रह गई कि वह औरत कौन है जिससे विहान बात कर रहा था ?

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नीलम कुलश्रेष्ठ

ई-मेल ---- kneeli@gmail.com

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