Gumshuda ki talash - 18 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 18

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गुमशुदा की तलाश - 18


गुमशुदा की तलाश
(18)



उस जगह पर घुप अंधेरा था। सरवर खान ने आँखें खोलीं तो कुछ सेकेंड्स लगे आँखों को अंधेरे का अभ्यस्त होने में। उसके बाद अंधेरे में कुछ काली आकृतियां दिखाई पड़ीं। सरवर खान ने अंदाज़ लगाया कि यह कोई गोदाम होगा।
सरवर खान बीती हुई घटनाओं को याद करने लगे। रॉकी के निर्देश पर अनीस ने उनके मुंह पर रुमाल रख दिया। धीरे धीरे उनकी पलकें बंद होने लगीं। वो बेहोश हो गए। जब आँख खुली तो खुद को इस अंधेरे गोदाम में पाया।
सरवर खान को सब इंस्पेक्टर राशिद की याद आई। रॉकी ने उनके साथ उसे भी ले जाने का आदेश दिया था। तो क्या वह भी इसी गोदाम में है। सरवर खान ने उठ कर देखने का प्रयास किया। किंतु उनके हाथ पीछे किसी चीज़ से बंधे हुए थे। उनका प्रास्थैटिक पैर भी निकाल दिया गया था। उन्होंने आवाज़ लगाई।
"राशिद....राशिद...."
सब इंस्पेक्टर राशिद को ऐसा महसूस हुआ कि कोई बहुत दूर से उसे पुकार रहा है। उसने अपनी आँखे खोल दीं। खुद को अंधेरी जगह पर पाया। वह अपने आसपास के वातावरण को समझने की कोशिश कर रहा था। तभी फिर से वही आवाज़ आई।
"राशिद.... तुम यहाँ हो ?"
सब इंस्पेक्टर राशिद पहचान गया कि यह सरवर खान हैं।
"हाँ सर मैं यहीं हूँ। अंधेरे में कुछ सामान दिखाई पड़ रहा है। पर आप नहीं दिख रहे हैं।"
"लगता है हमें एक दूसरे के विपरीत दिशा में मुंह करके बांधा गया है।"
"हाँ सर मुझे भी यही लगता है। वैसे सर आप ठीक तो हैं ना।"
"हाँ मैं ठीक हूँ। तुम ठीक हो ?"
"मैं भी ठीक हूँ सर।"
उसके बाद दोनों शांत हो गए। सरवर खान अपने विचारों में खो गए। जब उनका सामना रॉकी से हुआ था उसी समय से उन्हें लग रहा था कि इस शख्स में ऐसा कुछ है जो उन्हें किसी की याद दिला रहा है। पर उस समय वह कुछ भी याद कर सकने की स्थिति में नहीं थे। अब एक बार फिर रॉकी का चेहरा उनके दिमाग में घूम रहा था।
वह याद करने की कोशिश कर रहे थे कि रॉकी में ऐसा क्या था जो उन्हें कुछ याद दिला रहा था। वह उसके चेहरे की एक एक चीज़ के बारे में ध्यान से सोंचने लगे।
उसके माथे पर लटका गोल्डन बालों का गुच्छा या कान की बाली के बारे में उन्हें पहले ही पता था। तो फिर कौन सी चीज़ रह रह कर उनके ध्यान को खींच रही थी।
सरवर खान ने अपनी आँखे बंद कर लीं। अपना ध्यान रॉकी के चेहरे पर लगा दिया जो दिमाग में घूम रहा था। वह चेहरा उनके सामने आकर अटक गया। अब वह उसे ठीक से देख पा रहे थे। माथे पर लटकता गोल्डन बालों का गुच्छा। लंबी नुकीली नाक। कान जिनमें से एक में बाली पहनी थी। चेहरे पर छोटी दाढ़ी। करीने से संवारी पतली मूंछें जिनके किनारों पर नोक थी। लेकिन यह सब उन्हें कुछ खास नहीं लगा।
सरवर खान और भी ध्यान से सोंचने लगे। बार बार वही सारी चीज़ें उन्हें दिखाई दे रही थीं। पर सरवर खान का दिमाग कुछ और तलाश रहा था। तभी अचानक उनका ध्यान रॉकी की आँखों पर गया। उन आँखों में एक सम्मोहन था। ऐसा लग रहा था कि वो उसे अतीत के किसी हिस्से में ले जा रही हों।
अचानक जैसे अंधेरे में बिजली कौंधी हो। एक दूसरा चेहरा उनके दिमाग में घूमने लगा। घूमते हुए वह भी उनके सामने आकर अटक गया। चेहरा अलग था। पर आँखें वही थीं।
गहरी काली सम्मोहित करने वाली।
एक नाम अनायास उनके मुंह से निकला।
'मदन कालरा'

तभी दरवाज़ा खोले जाने की आवाज़ आई। सरवर खान के विचारों की श्रृंखला टूट गई। गोदाम में हल्की सी रौशनी फैल गई। आसपास फैला पुराना बेकार सामान दिखाई पड़ा। फिर उनकी तरफ बढ़ते कदमों की आहट सुनाई पड़ी। दो आदमी उनके सामने आकर खड़े हो गए।
"होश में आ गया।"
आवाज़ अनीस की थी।
"ज़फर देख ज़रा इसके रंगरूट का क्या हाल है।"
ज़फर सरवर खान के पीछे की दिशा में बढ़ा। कुछ कदम चल कर बोला।
"भाई....ये भी होश में है।"
"ठीक है.... उसके हाथ पैर खोल कर यहीं ले आओ।"
अनीस पंजे के बल सरवर खान के सामने बैठ गया।
"खान साहब आपको बाथरूम वगैरह जाना होगा। इसलिए आए हैं। निपट कर कुछ खा लीजिए।"
उसने सरवर खान के हाथ खोल दिए। सरवर खान ने अपने पांव की तरफ देखा।
"परेशान ना हों खान साहब....लाते हैं।"
अनीस उनका पैर ले आया। सरवर खान ने उसे पहन लिया। अनीस ने सहारा देकर उनकी खड़े होने में मदद की। वह उन्हें गोदाम के दूसरे हिस्से में ले गया। सरवर खान ने गौर किया कि यह शायद कोई बेसमेंट होगा। कोने में एक तरफ छोटा सा टॉयलट था।
"मैं बाहर खड़ा हूँ। आप फारिग हो लें।"
सरवर खान टॉयलट में चले गए। कुछ देर बाद जब वह निकले तो सब इंस्पेक्टर राशिद को अंदर भेज दिया गया। उसके बाहर निकलने पर दोनों को खाने के लिए दिया गया। जब सब निपट गया तो दोनों को फिर पहले की तरह बांध दिया गया। सरवर खान का पैर निकाल कर गोदाम में ही रख दिया।
"अब चलते हैं.....कुछ घंटों के बाद खाना लेकर आएंगे।"
कह कर अनीस और ज़फर चले गए। गोदाम का दरवाज़ा बंद हो गया। कुछ देर तक सब इंस्पेक्टर राशिद और सरवर खान बातें करते रहे। उसके बाद फिर शांति छा गई।
सरवर खान के मन में फिर मदन कालरा का नाम उभरा। चार साल पहले जो कुछ हुआ वह चलचित्र की तरह उनके ज़ेहन में चलने लगा।
स्पेशल टास्क फोर्स को ड्रग माफिया मदन कालरा के बारे में कई जानकारियां मिली थीं। उन्हें उस जगह के बारे में पता चला था जहाँ ड्रग्स की एक बड़ी खेप आने वाली थी। सरवर खान अपनी टीम के साथ उस खेप को पकड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार थे।
उन्हें सूचना मिली थी कि सड़क के रास्ते ड्रग्स राजधानी लाई जा रही है। जहाँ से उसे आसपास के इलाकों में भेजा जाएगा।
सरवर खान और उनकी टीम बहुत दिनों इस रैकेट के बारे में सूचनाएं एकत्र कर रहे थे। यह ड्रग्स सरहद पार से छोटे छोटे हिस्सों में सरहद पर स्थिति गांवों में पहुँचाई जाती थी। इसके बाद इन्हें इकठ्ठा कर देश के अलग अलग हिस्सों में भेज दिया जाता था।
सरवर खान को पक्की खबर थी कि ड्रग्स राजस्थान के रास्ते एक सामान से भरे ट्रक में छिपा कर दिल्ली भेजी जा रही है। सरवर खान अपनी टीम के साथ जयपुर दिल्ली एक्सप्रेस वे पर मौजूद एक ढाबे के पास छिप कर प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें मिली सूचना के मुताबिक वो ट्रक उस ढाबे पर रुकने वाला था।
करीब एक किलोमीटर दूर उनका एक साथी उस मोड़ पर खड़ा था जहाँ से ट्रक को ढाबे की तरफ मुड़ना था। वह फोन से सरवर खान के संपर्क में था।
प्लान के मुताबिक मोड़ पर खड़े साथी को जैसे ही ट्रक ढाबे की तरफ बढ़े अपनी टीम को सूचित करना था। ट्रक जब ढाबे पर पहुँचता तब सरवर खान अपने अन्य साथियों के साथ ट्रक ड्राइवर को हिरासत में लेकर सारा माल जब्त कर लेते।
मोड़ पर खड़े साथी को दूर से वह ट्रक आता दिखाई दिया। वह तैयार हो गया कि जैसे ही ट्रक ढाबे की तरफ मुड़े मैं अपनी टीम को सूचित कर दूँ। लेकिन ट्रक बजाए ढाबे की तरफ मुड़ने के सीधे निकल गया। उसने फौरन सरवर खान को इस बात की सूचना दी। वह खुद अपनी बाइक पर बैठ उस ट्रक का पीछा करने लगा।
सूचना पाते ही सरवर खान अपनी टीम के साथ जीप में बैठ कर उस तरफ भागे। कुछ ही समय में वह उस रास्ते पर थे जिस पर वह ट्रक जा रहा था। उन्होंने ड्राइवर से तेज़ चलने को कहा।
काफी आगे जाने के बाद भी उन्हें ना तो अपना साथी दिखाई पड़ रहा था और ना ही ट्रक। वह परेशान हो रहे थे। तभी उनके साथी का फोन आया। उसने बताया कि ट्रक हाईवे पर कोई तीन किलोमीटर आगे जाने के बाद कच्ची सड़क पर उतर कर कुछ दूर अंदर तक गया। वहाँ एक पुराना टूटा फूटा सा घर था। सारा माल उसी घर में उतार दिया गया। ट्रक ड्राइवर और कुछ लोग अभी भी वहीं हैं। उस साथी ने बताया कि वह पास ही छिप कर खड़ा है।
सरवर खान उस जगह से आगे निकल चुके थे। उन्होंने जीप वापस मोड़ने को कहा। अपने साथी को निर्देश दिया कि वह उस जगह पर आकर खड़ा हो जहाँ से ट्रक कच्ची सड़क पर उतरा था।
कोई दो किलोमीटर पीछे लौटने के बाद उन्हें कच्ची सड़क दिखी। उनका साथी वहाँ इंतज़ार कर रहा था।