Jadu ki chhadi in Hindi Moral Stories by Sapna Singh books and stories PDF | जादू की छड़ी

Featured Books
Categories
Share

जादू की छड़ी

जादू की छड़ी

मैं उन दिनों अपनी दीदी के यहां गई थी। जीजाजी अॅाफिसर थे। गाड़ी बंगला मिला हुआ था। लिहाजा छुट्टियां बिताने की इससे बेहतर और कौन सी जगह हो सकती थी।

दीदी शादी के बाद अफसरी मिजाज वाली बीवियों की तरह बन चुकी थी। दो ही दिनों में मैंने उनके मुंह से ’मिस सुनन्दा’ का बड़ा नाम सुना था। सुनन्दा का जिक्र होने पर, उनका फोन आने पर दीदी का बनाबनाया मूड़ एकदम चैपट हो जाता था। आखिर मैंने पूछ ही लिया, ’’दीदी, आखिर यह मोहतरमा हेेंै कौन?’’

’’अरे तू नहीं जानती,’’ दीदी बताने लगीं, ’’होस्टल में मेरी रूममेट थी यह। पिता जमींदार थे। अकेली ह,ै न कोई भाई न बहन। अभी तक शादी नहीं की है...’’

’’तुम्हे तो खुष होना चाहिए कि पुरानी सहेली मिल गई...’’ दीदी की कुढ़ने की आदत मैं जानती थी। उन्हे बिना बजह परेषान रहने की बीमारी थी।

’’सहेली नहीं, तुम्हारा सिर,’’ दीदी ने मुह बनाया, ’’होस्टल में तो कभी सीधे मुह बात नही करती थी। अब बड़ा प्यार उमड़ रहा है... एक नंबर की फूहड़ है। जब देखो तब अपनी कार ड्राइव करते आ पहुंचेगी और साथ में कोई न कोई देहाती डिष भी उठा लाएगी। ’’

जल्द ही मेरी मुलाकात सुनन्दाजी से हो गई । वाकई वह किसी हद तक फूहड़ और गंवार किस्म की महिला लगती थीं। दीदी से 1-2 साल छोटी ही थीं। लेकिन देखने मेें काफी बड़ी लगती थीं। अपने केषों को कस कर चोंटी में बांधे रहती थी। बदरंग सी साड़ी को, हलांकि वह काफी मंहगी होती थी, अपने शरीर पर अजीब ढंग से लपेटे हुए वह पहली नजर में काफी रूखी सी लगती थीं । लेकिन बातचीत वह खूब मस्त होकर करती थंीं। आत्मविष्वास से भरी... सीधी आंखो में देखती हुई बोलती थीं वह। मुझे आष्चर्य होता था कि इतनी अमीर और सुन्दर होने के बावजूद उनका अब तक कुंवारी रहने का क्या रहस्य था?

’’अरी कुछ रहस्य नहीं...बस इसकी तुनकमिजाजी ...और क्या...’’ दीदी ने शैतानी से मुझे चिढ़ाया,’’ यहां नहीं मिलने की तुम्हे कोई ’ट्रैजिक लव स्टोरी। ’ ’’

मुझे दीदी पर हंसी आती कि वह बिना वजह सुनन्दाजी से चिढ़ती थीं। मैं इस बीच उनके घर भी हो आई थी। वह खुद मुझे ले गई थीं। उनका महलनुमा मकान बहुत शानदार तरीके से सजा था। ड्राइंगरूम, बगीचे से लेकर स्टडीरूम तक सभी कुछ राजसी ठसका लिए हुए था। नौकर चाकर, गायभैंस, कुत्ते, तोतामैना इतना सब कुछ वह कैसे संभालती थीं, समझ नहीं आता था।

आसपास के इलाकों में उनकी खास इज्जत थी। मैने जीजाजी सहित और कई बड़े अफसरों को उनके आते ही कुरसी छोड़ कर खड़े होते देखा था। सुनंदा जी को पार्टियां देने और उनमें जाने का बहुत शौक था.....।

उन्हे बहुत आदरपूर्वक पार्टियों,समारोहों में बुलाया जाता था। लेकिन मन से कोई नहीं चाहता था कि वह अपनी 19वीं सदी वाली पोषाकों और हेयर स्टाइल के साथ उनकी आधुनिक पार्टी में षिरकत करें।

एक दिन जीजाजी आफिस से आए तो दीदी को पुकारते हुए ही अदंर घुस, ’’अरे सुनती हो, तुम्हारे लिए खुषखबरी है...। ’’

’’खुषखबरी?’’ दीदी ने आदतन मुंह लटका लिया। शायद उन्हे जीजाजी के मुंह से अपने लिए खुषखबरी सुनने की उम्मीद नही थी।

’’हां भाई,’’ जीजाजी चहक रहे थे, ’’वह तुम्हारी सुनंदा है न, वह शादी कर रही है......। ’’

’’क्या?’’दीदी का मुंह आष्चर्य से खुला का खुला रह गया।

पत्रिका पढ़ना छोड़ मैं भी जीजाजी की और लपकी, ’’दीदी, क्या आज अप्रैल फूल है?’’

’’सालीजी, यह मजाक नहीं है... शहर भर में आज इसी बात के चर्चें हैं,’’ जीजाजी ने सोफे पर पसरते हुए बताया।

’’अच्छा किस से हो रही है शादी,’’ दीदी ने पूछा।

’’उसी से मिलाने के लिए तो उन्होने आज शाम एक पार्टी का आयोजन किया है... हम भी आमंत्रित हैं,’’ जीजाजी ने हमें सूचित किया और फिर बाथरूम में घुस गए।

हम सब उत्सुकता से शाम की प्रतीक्षा करने लगे। मुझे बड़ा अजीब सा लग रहा था। मैने आज तक अपने परिचितों में इतनी उम्र में किसी की शादी होते नही देखी थी।

जब हम पार्टी में पहुंचे तो काफी लोग आ चुके थे मैने सोचा था कि आज तो सुनन्दा जी काफी सजी धजी होंगी । पर वह तो आज भी अपने उसी पुराने रंगढंग में थी।

कुछ देर बाद सुनन्दा जी ने पुकारा, ’’मनीष...’’ और सभी लोग आष्चर्य से उस लम्बे, सांवले व हीरो जैसे लड़के को देखने लगे। वह आ कर सुनन्दाजी के बगल में खड़ा हो गया था। उसे देख औरतें आपस में बतियाने लगी। लड़कियों के दिल से स्पष्टतः ’हाय’ निकल रही थी। सचमुच वह कुआंरियों के सपनों का राजकुमार था।

’’हाय, इस बुढ़िया में इसे ऐसा क्या दिखा ?’’ किसी ने अफसोस जाहिर किया।

’’बैेंक बैलेंस....’’ किसी की जलीभुनी टिप्पणी थी। यानी जितने मुंह उतनी बातें।

दीदी से रहा नहीं गया तो वह सुनन्दाजी को एक ओर खींच ले गई,’’तू पागल है क्या.... जो यह नहीं समझ पा रही है कि वह तुझसे शादी क्यों कर रहा है?’’

’’मुझसे प्यार करता है इसलिए...’’

’’प्यार नहीं, तेरा सिर....अरे, तेरा सारा पैसा हड़प कर बाद में तुझे जहरवहर दे देगा...समझी?’’

’’तुझे तो शक करने की पुरानी आदत है,’’ सुनंदाजी ने लापरवाही से कहा और फिर अपने प्रेमी की ओर बढ़ गई।

मैं सुनन्दाजी की शादी से पहले ही अपने शहर लौट आई थी। दीदी के खत से ही पता चला था कि उनके शहर में महीनों उनकी शादी के चर्चें रहे थे। दीदी ने तो जीजाजी से शर्त भी लगा रखी थी कि अव्वल तो शादी होगी नहीं और अगर हो गई तो फौरन तलाक होगा। तलाक तो हुआ था उनका पर कई बरस बाद... और वह भी सुनन्दा जी ने लिया था, मनीष ने नही। खैर यह तो बहुत बाद का किस्सा है। असल बात तो सुनन्दा जी में आए चमत्कारिक परिवर्तनों की ।

संयोग से मैं अगले वर्ष भी छुट्टियां बिताने दीदी के यंहा ही गई । सुनन्दाजी जो कि अब श्रीमती मनीष बन चुकी थीं, के बारे में जानने को मेरे मन में बड़ी उत्सुकता थी। जब दूसरे दिन तक उनकी कोई चर्चा नहीं हुई तो मैंने दीदी से पूछा कि कैसी कट रही है उनकी अपने पति के सांथ?

’’काफी सफल लगती है...’ दीदी ने इस बार उनके जिक्र पर मुंह नही बनाया था, ’’कल शाम इनकी तरक्की की पार्टी दे रही हूं। वह भी आ रही हैं...देख लेना...’’

फिर जैसे उन्हें कुछ याद आया। फौरन जीजाजी के पास जाकर बोलीं,’’ आफिस से लौटते वक्त सुनंदा और मनीष से बोल देना...’’

’’ठीक है, कह दूंगा...’’

उसके बाद दीदी ने सुनन्दाजी को फोन भी किया। मैं हैरान होती रही कि पहले कभी जब उन्हें पार्टी वगैरह में बुलाना होता था तो सिर्फ औपचारिक निमंत्रण ही दिया जाता था। पर अब यह बारबार का आग्रह मेरी कुछ समझ में नही आया।

दीदी ने ही बताया, ’’अब यहां पार्टियां श्रीमती मनीष के बगैर बेमजा मानी जाती हंैै । लोग उन पार्टियों में ही दिल से षिरकत करते हैं जिन में उनकी उपस्थिति अपेक्षित होती है। ’’

’’मगर ऐसी क्या कायापलट हो गई उनकी?’’

’’स्वयं देख लेना..’’ दीदी ने मानो चुनौती सी दी।

वाकई मैं हैरान थी। इतनी हैरानी तो मनीष से उनकी शादी की बात पर भी नहीं हुई थी जितनी कि अब उन्हे देखकर हो रही थी। कई मिनट लगे मुझे उन्हें पहचानने में। उनके आते ही पार्टी में मानो रौनक आ गई। बातबात में वह फुलझड़िया छोड़ रही थीं। लोग उनकी बातें सुनकर लोटपोट हो रहे थे। मै भी उनकी और बढ़ी। क्या लेटेस्ट फैषन था। केषों की कितनी संभ्रात स्टाइल थी और शरीर इतना लचीला कि विष्वास ही नहीं होता था कि कभी इस कमर की जगह कमरा हुआ करती थी। और मनीष तो इस मुग्ध दृष्टि से उन्हे निहार रहे थे कि अधिकांष पत्नियां उन्हे ईष्र्या से देख रही थीं। मैं बारीकी से उनका निरीक्षण कर रही थी।

तभी दीदी ने मुझसे कहा, ’’न जाने शादी ने इस पर कौन सी जादू की छड़ी फेरी है जो इस पर दिनों दिन जवानी चढ़ रही है....’’

’’बड़ी साधारण सी बात है दीदी,’’ मैने दीदी को आष्वस्त करने के लिए कहा, ’’आकर्षक बातें करना तो वह पहले से ही जानती थी, अब आकर्षक दिखना भी जान गई हैें, ’’मैं सुनन्दाजी की ओर बढ़ गई। उनका अभिवादन कर उनके पास ही बैठ गई।

मुझे सुनन्दाजी तब भी आकर्षित करती थीं, जब वह एक फूहड़ और गंवार औरत समझी जाती थीं और अब तो वह कई सुनन्दरियों को भी मात दे रही थीं। मैंने उनसे पूछ ही लिया। जवाब में उन्होने पहले जोरदार ठहाका लगाया फिर बोलीं, ’’प्यार, यंग गर्ल...प्यार...प्यार ने ही यह चमत्कार कर दिखाया है..’’

’’प्यार?’’ मैं आष्चर्य में पड़ गई थी।

’’हां प्यार,’’ सुनन्दा जी ने एक गहरी संास जी, ’’पहले मुझे भी यह लगता था कि ये सब सतही बातें हैं पर मनीष से मिलना और फिर उसका निष्छल प्यार...आपसे आप मुझमें अच्छा दिखने की ललक पैदा हो गई... कभी अपने लिए ’टेल्कम पाउडर’ तक न खरीदने वाली मैं अब ’ब्यूटी पार्लर’ भी जाने लगी... और माई डियर, यह सब मैने मनीष के लिए नहीं किया बल्कि इस सबसे मुझे खुद भी खुषी मिलने लगी। मनीष तो मैं जैसी थी उसी रूप में मुझे प्यार करता था। रही बात लोगों के आकषर्क का केन्द्र बनने की, तो जब आपका आइना आप को आष्वस्त करें, लोगो की नजरें आपकी तारीफ करें और सबसे बड़ी बात यह कि जिसे आप प्यार करते हो वह आपको दुनिया की सबसे शानदार औरत माने तो समझो दुनिया तुम्हारी मुट्ठी में...’’ उन्होने बड़े अंदाज से अपने दांए हाथ की मुट्ठी मुझे दिखाई।

और बाद के कई दिनों तक वह बंद मुट्ठी मेरी आंखो के आगे लहराती रही। मुझे लगा था कि सुनंदाजी की कहानी यहीं पर खत्म हो गई। पर 2 वर्ष बाद ही दीदी की चिट्ठी से पता चला कि उनका तलाक हो गया। हालांकि उनकी शादी कि तरह यह उतनी महत्वपूर्ण घटना नहीं थी। मन ही मन सभी यह जानते थे कि यह शादी ज्यादा दिन तक चलने वाली नहीं है।

कई वर्ष बाद अचानक एक दिन सुनन्दाजी से दिल्ली में मुलाकात हो गई। मेेरे साथ मेरे पति भी थे। बड़ी गर्मजोषी से मिली वह हम दोनों से । और फिर तुरंत हमें अपने मेजबान के यहां आमंत्रित कर लिया । उनका मेजबान कोई विधुर आर्मी अफसर था और सुनन्दाजी की तरह ही जिन्दादिल था।

उनके यहां से लौटते समय मैं मनीष के बारे में सोच रही थी । सुनन्दाजी ने बताया था कि आजकल वह मुबंई में कपड़ों का व्यापार कर रहा है। एक दिन सुनन्दा जी ने उसे अपनी खूबसूरत और जवान नौकरानी के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया था और फिर तुरंत उसे तलाक देने का फैसला कर डाला। मनीष को अच्छी खासी रकम देकर बिदा किया था उन्होनेकृअैार खुद टूटा हुआ दिल लेकर विदेष भ्रमण पर निकल गई थीं... वहीं कहीं इस आर्मी अफसर से मुलाकात हो गई जो अब उनका सबसे अच्छा दोस्त था।

सुनन्दाजी अब न जाने कहां हैं ....शायद उस आर्मी अफसर से ब्याह कर लिया हो उन्होने...शायद उनकी शानदार पार्टियां अब भी चर्चा का विषय बनती हो। कहीं भी हो, वह अपने साथ अपने कहकहे और अपनी बंद मुट्ठी को जरूर जिंदा रखे हुए होंगी।

***

सपना सिंह

द्वारा संजय सिंह परिहार

10/1456, आलाप के बगल में

अरूण नगर, रीवा (म.प्र.)

पिन 486001

मों. 9425833407

----------