udhde zakhm - 5 in Hindi Love Stories by Junaid Chaudhary books and stories PDF | उधड़े ज़ख़्म - 5

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उधड़े ज़ख़्म - 5

पापा ने हॉल को बहुत शानदार तरीके से सजवाया था

,क्योंकि मंगनी मेरी थी तो मेरा लेट पहुँचना लाज़मी था,जब में पहुँचा तो पहुँचते ही मेरी सबको सलाम करने की ड्यूटी लग गयी।

इतने में हमारी सुसराल से मेहमान भी आने शुरू हो गए,सबसे आगे ससुर साहब थे, उनको बड़े अदब से सलाम करने के बाद में उनसे इधर उधर की बातें करने लगा,मंगनी में सुम्मी नही आयी थी,क्योंकि उनके घर का ये रिवाज था कि मंगनी में लड़की लड़का आमने सामने नही आते,सिर्फ अंगूठियों का अदल बदल हो गया था।


इस मंगनी में पापा की पूरी टीम भी आई हुई थी,पापा अपनी टीम को लेकर मेरे पास ही आ गए,सबको सलाम करने के बाद पापा ने ससुर जी का तार्रुफ़ सबसे कराया,पापा के दोस्त कहने लगे जुनैद मियां बड़े नसीब वाले हो तुम,एक तो बड़े भाई से पहले मौका मार लिया तुमने,दूसरे तुम्हारे वालिद साहब ने इतनी शानदार मंगनी अरेंज की है,इसपर पापा कहने लगे मेरे दो ही तो बेटे हैं,इनकी खुशियों में खर्च नही करूँगा तो कहा बचा के रखूंगा।

खेर कुछ वक्त गुज़रा फिर रस्में शुरू हुई, समान और गिफ्ट्स का आदान प्रदान शुरू हुआ,उसके बाद खाना हुआ,और फिर फंक्शन खत्म हो गया,मेंने सुम्मी को वीडियो कॉल लगाई,दुआ सलाम के बाद बात आगे शुरू हुई।

मैं- जिसके लफ़्ज़ों में अपना अक़्स मिलता है

बड़े नसीब से ऐसा शख्स मिलता है।

केसी लगी शायरी शायरा मोहतरमा ?

सुम्मी - शायरी अपनी जगह जनाब

कुछ चेहरे भी तो ग़ज़ल होते हैं।

मैं - मेरे चारह गर तेरा ये हुनर

मेरे हर हुनर की शिकस्त है

फिर मेने कहा हुनर से याद आया मेने एक ग़ज़ल लिखी है आज,

सुम्मी- तो सुनाइये न।

मैं-
एहराम की हालत में ओर तुम

एहसास ए नदामत में ओर तुम

मक्का मदीना में ओर तुम

काबा के तवाफ़ में ओर तुम

हाथों में हाथ में और तुम

उमराह ज़्यारत में और तुम

आक़ा का रोज़ा में ओर तुम

आंखों में आंसू में और तुम

क़ुरआं की तिलावत में और तुम

ढेरो इबादत में ओर तुम

एक पाक मोहब्बत में और तुम

बेबाक़ मोहब्बत में ओर तुम।


सुम्मी-बहुत प्यारी है,बहुत बहुत प्यारी,आई लव यू सो मच जाना।

मैं- आई लव यू टू जानी,इंशा अल्लाह बहुत जल्द ये ग़ज़ल हक़ीक़त में बदलने वाली है,शादी के बाद हनीमून पर दोनों सऊदी अरब चलेंगे।

सुम्मी- इन्शा अल्लाह, चलो फिर अम्मी पापा आते होंगे,अल्लाह हाफिज़ जाना।

मैं- अल्लाह हाफिज़


एक साल बाद



घर से अम्मी की कॉल आयी,कहा बेटा कहाँ है तू? मेंने कहा में पाकबड़ा में हूं,

अम्मी रोनेहाल आवाज़ में बोली जल्दी से सिविल लाइन हॉस्पिटल पहुँच।

मेंने पूछा क्या हुआ अम्मी? अम्मी ने कहा तू बस जल्दी पहुँच,

में घबराया हुआ न जाने कितनी गाड़ियों से बचता बचाता जल्दी से हॉस्पिटल पहुंचा, वहा जाकर मेंने कहा हुआ क्या है अम्मी ? खेर तो है ?

अम्मी ने कहा सुम्मी जल गई है थोड़ा।

मेंने हैरत से कहा कैसे कब कहाँ है वो ओर आप लोग उसे इस हॉस्पिटल में क्यों लाये ? शहर में इतने बड़े बड़े अस्पताल है,ये सरकारी ही मिला आप लोगो को,में एक सांस में बोलता ही गया,

अम्मी की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे,मेंने कहा सुम्मी कहाँ है अम्मी? पहले आप रोना बन्द करें, ये बताये सुम्मी कहा है,अम्मी मुझे जनरल वार्ड में ले गयी, वहाँ बेड न० 12 को चारों तरफ से परदों से कवर कर रखा था,में अंदर गया तो सुम्मी के ऊपर सफेद चादर पड़ी हुई थी,उसके कुछ बाल जले हुए थे,मुँह पर हल्की हलकी कालिक लगी हुई थी,उसे देख कर मेरे पैरों तले जमीन निकल गयी,सुम्मी की माँ उसके पास में बैठे हुई ज़ारो कतार रोये जा रही थी, सुम्मी ने आंखे खोली ओर मेरी तरफ देखा,मेरी आँखों मे आंसू देख कर उसने मुँह फेर लिया, में सवाली आंखों से उसे देखता रहा और आंसू आंख से निकल कर गालो पर आ गए।

ये किस मुक़ाम पर सूझी तुझे बिछड़ने की

के अब जाकर तो कही दिन संवरने वाले थे


में खुद के माथे को पकड़ के रोता हुआ बाहर आ गया,मेने अम्मी से पूछा ये हादसा कैसे हुआ ? अम्मी ने कहा इसने सुसाइड की कोशिश की थी, खुद के ऊपर मिट्टी का तेल डाल के आग लगा ली थी,

मेंने कहा क्या?
सुम्मी ने आग खुद लगाई या वो किसी हादसे का शिकार हुई, जानने के लिए जुड़े रहें, आगे की कहानी अगले पार्ट में,