संकेत की आँखें बंद ही थीं अभी, रात का सारा वाकया उसकी बंद आँखों में एक फिल्म की तरह चल रहा था और साथ ही एक ख्याल भी कि क्या ये सब एक सपना था ! "पर इतनी हकीकत सी क्यों थी इस सपने में ?" यही सब सोचते हुए संकेत ने आँखें खोल दीं ।
एक पल के लिए तो कुछ समझ नहीं आया पर फिर आस पास लगी मशीनों, हरे पर्दों, हलके नीले रंग की पोशाकों में ऊपर एक सफ़ेद कोट पहने घूमते फिरते लोगों को देख कर समझते देर न लगी कि वो अस्पताल में है और अगर ये वाकई एक अस्पताल है तो रात वाली घटना भी कोई ख्वाब नहीं बल्कि हकीकत है ।
"क्या वो लड़की वाकई एक चुड़ैल थी?" संकेत ने खुद से सवाल सा किया । इतना सोचने के दौरान वो ये तक भूल बैठा कि उसकी माँ वहीं बैठी थीं, बिलकुल सिरहाने के बगल में और पिता सामने पड़ी एक बेंच पर । पैर के पास सुशान्त खड़ा था । उसके और सुशान्त के हज़ारों किस्से थे ।
9वीं क्लास में खेलते हुए सुशान्त ने एक अजीब सी चीज़ उठा ली थी और सीधे आकर संकेत को दिखाया," अबे देख ये क्या है ?"
"कहाँ से लाया इसे? पता है क्या है ये !" संकेत ने सुशान्त से सवाल किया ।
"ये वो पीछे वाले ग्राउंड से, पर है क्या ये?" सुशान्त ने अपना सवाल फिर से दोहराया ।
"अबे हड्डी है ये । इंसान की या जानवर की वो नहीं पता ।" संकेत बोला ।
स्कूल का पीछे वाला ग्राउंड टूटे खंडहर और उसके आगे पड़ी ज़मीन से मिलकर बना था । कहने को तमाम कहानियां थीं उन खंडहरों के बारे में पर सच कितना था और फसाना कितना कोई नहीं जानता था ।
स्कूल से बाहर निकलते ही मिला वो औघड़ दोनों को देखते ही झूम पड़ा ,"वो आएगी , तुमने उसकी साधना में खलल डाला है, वो नाराज़ है, बेचैन है, वो ज़रूर आएगी । साल बदलेंगे तुम भूल जाओगे पर वो अपनी कसम भूलेगी नहीं ।"
दोनों ही इस घटना को भूल चुके थे पर आज हॉस्पिटल में सुशान्त की शक्ल देखकर संकेत को वो औघड़ और उसकी बोली हर बात ध्यान में आने लगी थी ।
माँ ने प्यार से संकेत के सर पर हाथ फेर के बोला," डॉक्टर का बोलना है कि दूसरा जन्म हुआ है तेरा, एक्सीडेंट इतना भयावह था कि चमत्कार ही है ये भोले बाबा का । जल्दी से ठीक हो जा फिर बाबा के दर्शन को चलेंगे अमरनाथ ।"
संकेत ने हामी में सर हिला दिया l बोलने में अभी तक़्लीफ भी काफी थी और गर्दन पर बँधा वो नीले रंग का पट्टा और उसमें खुसी हुईं सूईयां उसे चुप रहने के लिए मज़बूर किये थीं l
"पूरे 12 दिन बाद उठा है तू । एक दम मस्त नींद सोया है ।" सुशान्त हलकी सी मुस्कान के साथ बोला ।
"12 दिन गुज़र गए ! मैं कोमा में था क्या? वो लड़की कहाँ है? 12 .....दिन , उस हड्डी में 12 कट से थे और जब फारुखी चाचा ने हाथ पढ़ा था तो बोला भी था कि मुझे 12 का श्राप लगा है ।
क्या ये श्राप पूरा हो गया या फिर शुरू हुआ है ?" इन्ही सब उहपोहों से बेचैन संकेत बेहोश होने लगा था । कानों में बस बीप की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी जिसकी गति धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी l
अचानक सीने पर एक झटका सा महसूस किया संकेत ने, और फिर दूसरा , एक आवाज़ भी आई ,"1...2....3" एक ज़ोर का झटका और लगा और संकेत की चीख निकल गई ।
आँख खुली तो डॉक्टर और नर्स सीने पर एक मल्हम सा मलते नज़र आये । कमरे में हॉस्पिटल स्टाफ के अलावा कोई मौजूद नहीं था l आखें घड़ी पर टिकीं तो एक ज़ोर की सिहरन उसकी रीढ़ में दौड़ गई । वक़्त हुआ था 12 बज कर 12 मिनट ।
PTO