गुमशुदा की तलाश
(16)
तमाचा बहुत ज़ोर से लगा था। एक पल के लिए सब इंस्पेक्टर राशिद की आँखों के आगे अंधेरा छा गया। रॉकी ने उसका कॉलर पकड़ कर कहा।
"पुलिस वाले हो। पुलिस को मेरी खबर हो ना हो। मुझे पुलिस की पूरी खबर रहती है।"
रॉकी ने सामने लगे मॉनिटर को ऑन किया। स्क्रीन पैसेज का दृश्य उभरा। सरवर खान को एक आदमी गन प्वाइंट पर ऊपर ला रहा था।
"तुम्हारा साथी भी आ रहा है।"
दरवाज़ा खुला और सरवर खान भी रॉकी के सामने खड़े थे।
"आइए खान साहब। आपका ही इंतज़ार था। स्पेशल टास्क फोर्स का जांबाज़ सिपाही। एक हमले में टांग गंवा बैठा। पर दिलेर है भाई....नकली टांग से जासूसी करता है।"
सरवर खान रॉकी के चेहरे को गौर से देख रहे थे। रॉकी को उनकी गतिविधियों का पता था। पर कैसे ? उनके दिमाग में यही सवाल घूम रहा था।
रॉकी ने उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा।
"जासूसी के चक्कर में हमसे क्यों उलझ रहे हैं खान साहब। दूसरी टांग से भी हाथ धोना चाहते हैं।"
सरवर खान कुछ नहीं बोले। उनके दिमाग में उस समय बहुत कुछ चल रहा था। तभी रॉकी के फोन पर एक मैसेज आया। उसे पढ़ कर वह मुस्कुराया। इसके बाद अपने साथियों को निर्देश देने लगा।
"अनीस...तुम ज़फर के साथ मिल कर खान साहब और उनके रंगरूट को अड्डे पर पहुँचा दो।"
"रघु और विनय तुम दोनों नीचे जाकर सारा माल हटवा कर कमरे को स्टोर रूम बना दो।"
"बसंत तुम नीचे का नाच गाना बंद करवा कर सबको भेज दो। बीस मिनट में सारा माहौल बदल जाना चाहिए।"
इंस्पेक्टर सुखबीर पुलिस स्टेशन में बैठे सरवर खान और सब इंस्पेक्टर राशिद की प्रतीक्षा कर रहे थे। ना जाने क्यों उनका मन अशंकाओं से भरा हुआ था। जब बहुत देर हो गई तो उन्होंने खुद ही ईगल क्लब जाने का निश्चय किया।
जब वह क्लब पहुँचे तो वहाँ का माहौल पूरी तरह से शांत था। रॉकी उन्हें नीचे ही मिल गया।
"आइए इंस्पेक्टर साहब....कहिए क्या सहायता कर सकता हूँ आपकी।"
इंस्पेक्टर सुखबीर ने इधर उधर नज़रें घुमाते हुए कहा।
"यहाँ कोई नहीं है। सब कहाँ गए ?"
"इंस्पेक्टर साहब रात के एक बज रहे हैं। क्लब कब का बंद हो चुका। अब कौन मिलेगा यहाँ ?"
"तो रोज़ ये क्लब सही समय पर बंद हो जाता है।"
"बिल्कुल इंस्पेक्टर साहब....हम तो कानून के दायरे में रहने वाले लोग हैं।"
इंस्पेक्टर सुखबीर चीज़ों को समझने की कोशिश कर रहे थे।
"पर इंस्पेक्टर साहब आप किसे ढूंढ़ते हुए यहाँ आए हैं। कानून से भागे मुजरिम हैं क्या ?"
"नहीं मेरे दो साथी यहाँ आए थे।"
"आए थे तो चले गए होंगे। क्लब तो बंद हो गया है।"
इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह बिना कुछ बोले अंदर की तरफ बढ़ने लगे। एक आदमी ने उन्हें रोकना चाहा तो रॉकी बोला।
"इंस्पेक्टर साहब को अपनी तसल्ली कर लेने दो।"
इंस्पेक्टर सुखबीर भीतर चले गए। रॉकी भी उनके साथ था। वह पैसेज वाले हिस्से में सीढ़ियां उतर कर नीचे गए तो उन्हें वह कमरा दिखा।
"यहाँ क्या है ?"
"देख कर तसल्ली कर लीजिए साहब।"
रॉकी ने दरवाज़ा खोला। लाइट जलाई। इंस्पेक्टर सुखबीर ने देखा वहाँ कुछ पुराना सामान व शराब के खाली कार्टन थे।
"हमारे पास लिकर सर्व करने का लाईसेंस है।"
इंस्पेक्टर सुखबीर बाहर आए तो सीढ़ियों पर नज़र पड़ी।
"ऊपर क्या है ?"
"एक कमरा है। मैं वहाँ आराम करता हूँ। आइए दिखाता हूँ।"
इंस्पेक्टर सुखबीर उसके साथ ऊपर कमरे में गए। वहाँ उन्हें ऐसा कुछ नहीं लगा जो संदेह पैदा करे।
"इंस्पेक्टर साहब आप अपने हिसाब से तसल्ली कर लीजिए।"
वहाँ सरवर खान और सब इंस्पेक्टर राशिद के होने के कोई सबूत नहीं मिले। इंस्पेक्टर सुखबीर के लिए अब वहाँ रुकने का कोई मतलब नहीं था। वह वापस लौट गए।
इंस्पेक्टर सुखबीर के जाते ही रॉकी ने अनीस को फोन किया।
"उन दोनों को सही जगह पहुँचा दिया। अब ध्यान से सुनो। इंस्पेक्टर सुखबीर कुछ दिन मुझ पर निगाह रखेगा। मुझसे संपर्क मत करना। मैं अपने हिसाब से जब ठीक लगेगा वहाँ आ जाऊँगा।"
इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह को रात भर नींद नहीं आई। वह बस सरवर खान और सब इंस्पेक्टर राशिद के बारे में सोंचते रहे। वह यह जानते थे कि उन दोनों के वहाँ ना होने के पीछे रॉकी का ही हाथ है। पर उनके पास कोई सबूत नहीं था। ना ही उन्हें वहाँ कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिससे सीधे रॉकी पर हाथ डाला जा सके।
अगली सुबह इंस्पेक्टर सुखबीर अपनी ड्यूटी पर जाने के लिए तैयार हो रहे थे। वह आईने के सामने खड़े थे। अपनी पगड़ी को ठीक करते हुए उन्होंने वादा किया कि सरवर खान और सब इंस्पेक्टर राशिद को ढूंढ़ कर ही दम लेंगे।
सब इंस्पेक्टर नीता अपने दो हवलदारों के साथ उमाकांत के घर में बैठी थी। उस समय उमाकांत किसी काम से बाहर गया हुआ था। उसकी पत्नी ने बताया कि वह कुछ ही देर में लौट आएगा।
पुलिस को देख कर उमाकांत की पत्नी सुशीला परेशान थी। उसने सब इंस्पेक्टर नीता से पूँछा।
"मैडम जी हमारे पति तो कई महीनों से गांव में ही हैं। बिजली का काम कर जो मिल जाता है उससे घर चला रहे हैं। फिर आप लोग क्यों आए हैं ?"
"हम बस उनसे कुछ पूँछताछ करना चाहते हैं।"
सब इंस्पेक्टर नीता ने देखा कि दो बच्चियां कमरे के दरवाज़े से बाहर बरामदे में झांक रही हैं। दोनों हमउम्र और लगभग एक जैसी थीं। उसने सुशीला से पूँछा।
"मैडम जी दोनों जुड़वां हैं। बारह बरस की हैं। कविता कुछ मिनट सविता से बड़ी है।"
"स्कूल जाती हैं ?"
"हाँ....गांव के सरकारी स्कूल में जाती हैं। पढ़ने में अच्छी हैं। पर सविता ज़्यादा होशियार है।"
तभी उमाकांत वापस आ गया। दोनों बच्चियों ने दौड़ कर उसके हाथ से थैला ले लिया। पुलिस को देख कर उमाकांत भी घबरा गया। सुशीला ने बताया कि मैडम कुछ पूँछने के लिए आई हैं।
पास पड़े मोढ़े पर बैठते हुए उमाकांत बोला।
"क्या बात है मैडम ? आप क्या जानना चाहती हैं ?"
"तुम जब शहर में थे। तब अपने दोस्त नंदू से एक सिम कार्ड गलत तरह से खरीदा था।"
उमाकांत बगलें झांकते हुए धीरे से बोला।
"जी मेरे पास कागज नहीं थे इसलिए...."
सब इंस्पेक्टर नीता ने बात बीच में ही काटते हुए कहा।
"वो सिम कार्ड कहाँ है ?"
उमाकांत फिर परेशान हो गया।
"जी...वो तो...मैंने..."
"तुमने वो सिम कार्ड किसी लड़की को बेच दिया था। वो सिम कार्ड एक केस में इस्तेमाल हो रहा था।"
उमाकांत के माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं। वह बहुत नर्वस था। नज़रें झुकाए बैठा था।
"अब सच सच बताओ कि वह सिम तुमने किसको बेचा था।"
उमाकांत ने अपने माथे का पसीना पोंछा। फिर खुद को शांत कर सारी बात बताई।
उमाकांत कोई काम ना मिलने के कारण निराश हो गया था। वह अपने गांव लौटने की तैयारी कर रहा था। एक दिन उसके पास एक फोन आया। फोन एक लड़की का था। उसने बताया कि कुछ समय पहले वह उसके फ्लैट में रिपेयरिंग का काम करके गया था। तब उसने यह नंबर दिया था। उसकी एक दोस्त जो उसी बिल्डिंग में रहती है को कुछ काम कराना है। क्या वह आ सकता है।
पहले तो उमाकांत ने सोंचा कि मना कर दे। कह दे कि वह गांव वापस जा रहा है। किंतु फिर उसे लगा कि हर्ज़ क्या है। जाते जाते कुछ कमाई हो जाएगी। उसने पता ले लिया।
वह उस फ्लैट में पहुँचा तो एक लंबे कद की लड़की ने उसे सारा काम समझाया। काम से अच्छे पैसे मिल सकते थे। उमाकांत ने उसे ज़रूरी सामान लिखा दिया। सामान भी उमाकांत को लाना पड़ा।
उमाकांत ने मन लगा कर सारा काम कहे अनुसार कर दिया। वह लड़की उसके काम से बहुत खुश हुई। उसने उसे तय पैसों के अलावा ऊपर से कुछ पैसे दिए।
जब उमाकांत काम कर रहा था तब उस लड़की से मिलने एक आदमी आया था। काम करते हुए उनकी कुछ बातें उमाकांत के कानों में पड़ीं। वह आदमी उस लड़की से कह रहा था कि कहीं से एक सिम कार्ड का जुगाड़ करना है। चाहें जितने पैसे लग जाएं। बहुत ज़रूरी है।
उमाकांत के मन में लालच आ गया। उसे लगा कि उसने जो सिम कार्ड ऊँचे दाम पर खरीदा है उसे बेच कर लाभ कमा सकता है। जब सारा हिसाब हो गया तो उमाकांत ने धीरे से उस लड़की को बताया कि वह उसे एक सिम कार्ड दिला सकता है।
उस लड़की ने उस समय कोई जवाब नहीं दिया। उमाकांत लौट गया। लेकिन अगले दिन उसे उसी लड़की ने फोन किया जिसने पहले फोन कर उसे काम दिलाया था। उसने बताया कि जहाँ कल तुमने काम किया था उन मैडम को तुमसे कोई काम है। जाकर मिल लो।
उमाकांत को लगा कि शायद काम में कोई गलती हुई होगी। इसलिए वह उस फ्लैट में चला गया।