Facebook aur Teen Premi yugal - 3 - Last part in Hindi Love Stories by Arpan Kumar books and stories PDF | फेसबुक और तीन प्रेमी युगल - 3 - अंतिम पार्ट

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फेसबुक और तीन प्रेमी युगल - 3 - अंतिम पार्ट

फेसबुक और तीन प्रेमी युगल

अर्पण कुमार

(3)

कोई नौ वर्षों बाद ....

मनीष और मेघना की दोस्ती टूट चुकी थी। मेघना ने कई बार मनीष से शादी की बात की मगर हर बार कभी करिअर तो कभी परिवार के नाम पर वह शादी की बात टालता रहा। मेघना को शक हुआ कि मनीष उसकी कोमल भावनाओं का दुरुपयोग कर रहा है। धीरे-धीरे उसने मनीष से दूरी बनानी शुरू कर दी। इस बीच मनीष ने उसे वापस अपने झाँसे में लाने की कई कोशिश की मगर वह नाकामयाब रहा। कुछ चिढ़कर तो कुछ उसे दुबारा अपने गिरफ़्त में लाने की कोशिश में उसने मेघना के साथ खींचे अपने अंतरंग चित्र और वीडियो फेसबुक की वॉल पर शेयर कर दिए। बस फिर क्या था! पूरे शहर में हड़कंप मच गया। इस बार मेघना को कोई सख़्त उठाना ज़रूरी लगा। मनीष के प्रति उसके मन में रही-सही भावना भी अब मर चुकी थी। अबतक वह उसकी इज़्ज़त के साथ खेल रहा था, अब वह सरे-आम उसकी इज़्ज़त को समाज में उछालने का काम करने लगा था। मेघना ने थाने जाकर मनीष के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज़ कराई। पूरा मुहल्ला इस बार मेघना के साथ था। एस.एच.ओ. आर.के. राठी चाहकर भी इसे टाल न सके। रात साढ़े नौ बजे की यह घटना थी। इस बीच मनीष के गिरफ्तारी की खबर उसकी गिरफ़्तारी से पूर्व ही पूरे शहर में आग की तरह फैल गई थी। मनीष कोई चार किलोमीटर दूर शास्त्री पार्क में एक कमरा किराए पर लेकर रह रहा था। सूचना के कोई पैर तो होते नहीं मगर वह उस तक भी पहुँच गई। उसने अबतक मेघना का भावविह्वल और गिड़गिड़ाता हुआ चेहरा ही देखा था। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके ख़िलाफ़ वह ऐसे सख़्त क़दम भी उठा सकती है। वह अपने किए पर झुंझला रहा था। पुलिस और अदालत की संभावित कार्रवाई से वह भीतर तक डर गया। जब उसके मात-पिता को पता चलेगा, तब क्या होगा! जेल की सलाख़ों के पीछे का अपना अपराधी सा चेहरा उसके ज़ेहन में घूम गया। वह बुरी तरह घबरा गया। अचानक दरवाज़े पर खड़-खड़ की आवाज़ हुई। उसे लगा, पुलिस आ गई। मगर देर तक कोई दस्तक नहीं हुई। बाथरूम की खिड़की के पल्ले ज़ोर से हिलने लगे। बाहर तेज़ आँधी आई चल रही थी। उसे समझ में आया कि दरवाज़े भी उसी कारण हिल रहे थे। मगर पुलिस कभी भी उस तक पहुँच सकती और उसे दबोच सकती थी। बाहर चल रही आँधी से बड़े-बड़े झोंके स्वयं उसकी चेतना में चल रहे थे। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे! उसकी गर्दन तक पहुँच गए डर के हाथ से उसका रोम-रोम काँप उठा था। डर से उसका चेहरा फ़क्क पड़ गया। वह इस संबंध में जितना अपने दोस्तों से बातें कर रहा था, ख़ुद को उतना ही असहाय महसूस कर रहा था। इधर पुलिस और लोगों का हुजूम उसके घर की ओर तेजी से बढ़ता चला जा रहा था। अचानक उसके मन में क्य ख़याल आया, वह जिस कपड़े में था, उसी कपड़े में बाहर निकल गया। जाने-अनजाने उसके कदम रेलवे-स्टेशन की ओर बढ़ने लगे। कोई पंद्रह मिनट बाद रेलवे का चिर-परिचित फाटक आ गया। कई बार इसी फाटक पर एक किनारे बाइक को लगा वह घंटों मेघना के साथ हँसी-ठट्ठा किया करता था। मगर आज यही जगह उसे कितनी डरावनी और सुनसान दिख रही थी। तभी पश्चिम की तरफ़ से सुपरफास्ट ट्रेन के आने की आवाज़ आई। वह आवाज़ मानो यमराज के गले से निकल रही थी। ट्रेन पूरी स्पीड में थी। कुछ ही सेकंड्स में वह आवाज़ एकदम से उसके पास आ गई। उसके विचलित मन ने कुछ नहीं सोचा और तेज दौड़ती ट्रेन के आगे सहसा वह कूद पड़ा। और ट्रेन के गुजर जाने के बाद ख़ून से सनी मनीष की क्षत-विक्षत लाश के टुकड़े पटरी के अगल-बगल फैल चुके थे। कुछ ही देर में पुलिस को ख़बर लग गई और वह घटनास्थल पर पहुँचकर ज़रूरी कार्रवाई में लग गई। आस-पास की भीड़ ने अपने-अपने हिसाब से घटना का विश्लेषण किया। किसी को मृतक युवक, असफल प्रेम कहानी का सताया लगा तो किसी के लिए वह पुलिस की गिरफ़्त से बचता आया कोई भगोड़ा दिखा। पास ही स्थित स्टेशनरी की दुकान के मालिक पैंसठ वर्षीय मल्लिक साहब ने इस जगह पर विगत दो वर्षों में चार लोगों को ट्रेन से कटता देखा था। उन्हें इस जगह पर किसी प्रेतात्मा का प्रभाव दिख रहा था। वे आसपास जमा हुई भीड़ में से पाँच-छह लोगों को एक तरफ़ ले जाकर रहस्यमय अंदाज़ में बताने लगे, मेरी बात आप सभी ध्यान से सुनिए। दो वर्ष पूर्व एक ख़ूब सुंदर सी लड़की यहाँ ट्रेन से कट गई थी। उसका शरीर एकदम सोने के माफ़िक दमक रहा था। जो उसे देखे, बस देखता रह जाए। वह बड़ी सख़्त जान थी। हो-न-हो, वही सबको यहाँ तक खींच कर ला रही है।

भीड़ को कुछ देर में तितर-बितर कर दिया किया। पुलिस अपना काम अपने ढर्रे से मगर मुस्तैदीपूर्वक करने लगी। पास के थाने से आए थानेदार को यह जगह किसी सुसाइडल प्वाइंट से कम नहीं लग रही थी। वह इस इलाक़े में आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं से आज़िज़ आकर इस थाने से अपने ट्रांसफ़र की अर्ज़ी आगे भेज चुका था।

अगले दिन मृतक की पहचान कर ली गई। इंस्पेक्टर राठी तक भी सूचना पहुँच गई। उन्हें सारा माज़रा समझ में आ गया।

इधर, ममता मॉडलिंग की दुनिया से आगे बढ़ती हुई कुछ टीवी सीरियलों में नज़र आने लगी थी। मुंबई में पैर जमाने में उसे ठीक-ठाक मशक्कत करनी पड़ी, मगर एकबार जो वह निगेटिव रोल की सरताज बन गई थी तो मजबूती से उसने वहाँ अपना झंडा गाड़ दिया। हाँ एक चीज़ उसके मनमाफ़िक नहीं हुई। वह कभी किसी सीरिअल की नायिका नहीं बन पाई और उसे इसका मलाल भी रहा। एक शाम वह अपने मेक-अप रूम में अकेले बैठी यही सब सोच रही थी। तभी सीरिअल का निर्माता-निर्देशक सुशील वाडिया दबे पाँव वहाँ उपस्थित हो गया। ममता उसके परफ्यूम की खुशबू से बिना देखे उसको पहचान गई। वह यूँ ही अलसायी हुई बैठी रही। उसके चेहरे पर कामोन्माद साफ उतरता दिख रहा था। इधर एकदम पास बैठते हुए सुशील उसके बालों को धीरे-धीरे सहलाने लगा। दोनों चुपचाप इस खाली समय का भरपूर लुत्फ़ उठा लेना चाह रहे थे। ममता कई दिनों से सुशील से एक सवाल पूछना चाह रही थी, मगर तुनकमिज़ाज सुशील वाडिया से कुछ कहने की उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी। कास्टिंग काउच की हक़ीक़त ममता मुंबई के शुरूआती दिनों में ही समझ गई थी। उसे इससे बहुत एतराज़ हो, ऐसा नहीं था। सच तो यह था कि करिअर ओरिएंटेड ममता के लिए यह कोई मुद्दा ही नहीं था। आख़िरकार शादी-शुदा और दो बच्चों के पिता सुशील वाडिया के साथ पिछले तीन सालों से उसका जिस्मानी रिश्ता जारी था। उसे काम और नाम दोनों चाहिए थे। ममता जानती थी कि इसके बगैर इस टेलीविज़न इंडस्ट्री में टिकना आसान नहीं था। आज वह पूछ ही बैठी, सर, आपने मुझे एक से बढ़कर एक रोल दिए। आपके सीरिअलों में मुझे वैंप के इतने रोल मिलने लगे कि लोग मुझे असल दुनिया में भी वैंप ही समझने लगे हैं। प्लीज़ टेल मी ऑनेस्टली, क्या आपको कभी ऐसा नहीं लगा कि मुझे कोई लीड रोल भी दिया जाए। ममता की आँखों में शैतानी और आक्रामकता के बीच महत्वाकांक्षा के डोरे साफ साफ दिख रहे थे।

कंधे पर चढ़ी सैटिन की स्लीवलेस उसकी कुर्ती को अपनी दाईं हथेली में कसकर पकड़ते हुए उसकी आँखों में आक्रमक हँसी डालते हुए वाडिया ने कहा, ममता डार्लिंग, तुम्हारा नाम सिर्फ ममता है। अदरबाइज़, यू आर अ नौटी एंड सेक्सी गर्ल। बट यू नो, हिरोइन वाली इनोसेंस तुम्हारी आँखों में नहीं है।

गर्ल..., सफलता और प्रसिद्धि के शिखर पर खड़ी ममता बस मुस्कुराकर रह गई। उसे सनातन रूप से भूखे सुशील के मुँह से अपने लिए यह संबोधन सुनकर बड़ा अजीब लगा। सोचने लगी, ऐसे लोग किसी लड़की को लड़की कहाँ रहने देते हैं। मेकअप रूप के आईने के सामने जाकर वह खड़ी हो गई और अपनी आँखों में निर्दोषता ढ़ूँढ़ने लगी और उसे स्वयं उनमें चालाकी और व्यावहारिकता ही दिखी। उसे अपनी आँखों में लोमड़ी की आँखों सी तीव्रता और भूख ही नज़र आई। वे सुंदर और मारक थीं मगर कहीं किसी कोण से निर्दोष नहीं थीं। उसे वाडिया की बात सही लगी। उसने मन ही मन सोचा, कमीना कैसे इतनी सटिक बात कह जाता है। ऐसे ही इसको सीरिअल-किंग नहीं कहा जाता है! जब वह आईने के सामने से हटने लगी, उधर से हँसने की आवाज़ आई। वह वापस पलटी। उसका ही प्रतिबिंब उस पर हँस रह था, तुम कौन सी सुशील वाडिया से कम हो! कॉलेज के जमाने से चली आ रही तुम्हारी भूख अबतक शांत कहाँ हुई है!

अचानक आज उसके ज़ेहन में गौरव की छवि कौंध गई। वे भी क्या दिन थे! उसने गौरव के साथ रहते हुए कितनी मस्तियाँ की थीं। सुंदर और गठीला लड़का होकर भी गौरव के अंदर एक कस्बाई और मध्यवर्गीय संकोच था जिसे तोड़ने में ममता को तब कितना सुख मिला करता था। उसे उन दिनों इसका शायद अहसास भी नहीं था कि इससे उसके अंदर अनजाने ही एक किलिंग इंस्टिंक्ट विकसित हो रहा था। ममता के पिता सुरेंद्र चोपड़ा सेना में कर्नल थे और उसे अपने घर में भरपूर खुलापन मिला हुआ था। भारत के छोटे-बड़े विभिन्न शहरों में रहने से और हर क्षेत्र में भरपूर एक्सपोज़र से उसके भीतर आत्मविश्वास की एक भरी-पूरी नदी बहा करती थी। उन दिनों गौरव के साथ छेड़छाड़ करने की पूरी ज़िम्मेदारी मानो उसकी हो जाया करती थी। उसके भीतर के बोल्डनेस को निश्चय ही इससे काफ़ी राहत मिला करती थी। अचानक उसके अंदर अपराध-बोध का एक झोंका उठा। गौरव के सच्चे प्यार को उसने किस तरह मौज़-मस्ती तक सीमित कर दिया था। नया शॉट रेडी था और वह मेकअप रूम से बाहर निकल आई। सालों बाद जो झोंका अभी उठा था, वह मेकअप रूम के दरवाज़े के भीतर ही दब गया। वैंप-क्विन, बड़े बड़े कैमरों और ढेर सी लाइट के बीच अपना जलवा दिखाने में व्यस्त हो गई।

ममता के बिंदास बयान ख़बरिया चैनलों के मनोरंजन उद्योग से जुड़े ख़बरों की लीड बनने लगा थे। मगर एक सच्चा दीवाना उसका आज भी था, जिसे वह कब का पीछे छोड़ आगे बढ़ चुकी थी। हरदम लंबे बालों में दिखनेवाला गौरव अब अपनी अभिनय-क्षमता भूल चुका था। वह अपने घर के आगे एक छोटी से दुकान चलाने लगा था। अपनी पूर्व-प्रेमिका ममता की याद में और उसे हमेशा के लिए पाने की एक असंभव चाह में उसने अबतक शादी नहीं की थी। वह उसके शरीर को बहुत पहले पा चुका था और उसकी सुगंध से उसका अवचेतन हमेशा सुगंधित रहा करता था। उन सुनहरे दिनों में कई बार दोनों हमबिस्तर हो चुके थे। गौरव उसकी अदाओं पर अपनी जान छिड़कता था। वह ममता को उसके समक्ष बिना शर्त समर्पण के लिए मन ही मन उसका ख़ूब आदर किया करता था। वह एक भँवरे की तरह उसके शरीर रूपी कमल में क़ैद रहना चाहता था। मगर, वह सबकुछ जानकर भी कहीं-न-कहीं अनजान बना रहना चाहता था। उसके दिल-ओ-दिमाग से अतीत के वे प्रीतिकर पल जाए नहीं जाते थे। वह समझना नहीं चाहता था कि वह जिस कमल की प्रतीक्षा में है, वह एक बड़े से आकर में आ चुका है। उसमें समानेवालों और समाने की इच्छा रखनेवालों की एक बड़ी संख्या हो गई थी। अब वह ममता के लिए एक पुराना और जर्जर पृष्ठ हो चुका है। वह उसकी दुनिया से बहुत आगे जा चुकी है। मगर गौरव को तो मानो किसी अनहोनी के घटने की उम्मीद थी मगर हक़ीकत में कोई अनहोनी तभी होती है, जब उसे सचमुच होनी हो। फेसबुक पर अभी भी दोनों थे, मगर दोस्त नहीं। शुरू से ही बिंदास सोच की मालकिन और आज हजारों दिलों की हुस्न-मल्लिका बन चुकी ममता के फॉलोअर्स में अब गौरव भी शामिल हो गया था।

मगर हर तरफ़ निराशा और टूटन ही नहीं थी। कहीं आशा और जुड़ाव की लौ भी जगमगा रही थी। एक जोड़ा ऐसा था, जिनके बीच का प्रेम बेशक अभी विवाह को प्राप्त नहीं हुआ था, मगर वे दोनों एक ही छत के नीचे आराम से रह रहे थे। दोनों फेसबुक पर भी सक्रिय थे मगर उनके पोस्ट पर हमेशा उनके अकादमिक कार्यों के विवरण ही मिला करते थे। महेश जैन ने 'कम्युनिटी साइट्स और बदलती हिंदी' विषय पर अपना रिसर्च पूरा कर लिया था और उसका अनुसंधान-कार्य एक पुस्तक के रूप में आकर ख़ूब चर्चित हो रहा था। उसके लोकार्पण के चित्रों और उसकी समीक्षाओं की ख़बरों की जानकारी उसके पोस्ट पर उपलब्ध थी। वह कई सालों से ' हीरा लाल जैन कॉलेज' में 'एड - हॉक पर हिंदी पढ़ा रहा है। स्मिता कुमावत ने 'वर्चुअल दुनिया और घटती सामाजिकता' पर अपना रिसर्च किया और उसी कॉलेज़ में एड हॉक पर समाजशास्त्र पढ़ा रही है। समाजशास्त्र के क्षेत्र में किए जा रहे उसके कार्यों को ख़ूब सराहना मिल रही थी। स्मिता बहुत कम समय के लिए फेसबुक का इस्तेमाल करती थी, मगर उसकी गतिविधियों की जानकारी उसके पोस्ट से मिल जाया करती थी। वह अपने जीवन में इंटरनेट के लिए एक सीमित और नियंत्रित समय ही देना चाहती थी। फ़िलवक्त दोनों लिव-इन रिलेशनशीप में रह रहे हैं। दोनों को फेसबुक पर आयोजित हुए उसी कार्यक्रम से इस विषय पर अनुसंधान करने का ख़याल आया था।

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