Life @ Twist and Turn .com - 12 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 12

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 12

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 12

"समझ ही नहीं आता तुम हमारी ही बहन हो क्या ?" दामिनी जब भी कामिनी से मिलती, उससे यह प्रश्न ज़रूर पूछती |

"पता नहीं, माँ-पापा से पूछ लेना ---" जब भी मिलती हो इसी तरह ताने देती हो --"

कामिनी बहन से नाराज़ ही तो हो जाती |

"अरे भई ! नाराज़ क्यों होती हो ? तुम्हें अपने और बच्चों के लिए कुछ तो कॉन्फिडेंस रखना होगा कि नहीं ---?"

"क्यों ? क्या कमी है मुझमें, बस इतना ही न कि मैं अपने पति को तुम लोगों से ज़्यादा आदर देती हूँ?"

"ऐसा नहीं है कम्मो, हम सब भी तो रिश्तों का सम्मान करते हैं, ज़रूरी भी है --पर ये क्या कि लट्टू सी घूमती रहो, अपना कुछ तो सम्मान रखो यार ! "

असहज दोनों बहनें होतीं पर कारण अलग-अलग होते | दामिनी कामिनी की बच्ची के लिए भी थोड़ी सहमी रहती थी |

"आज के बच्चे इस वातावरण को कैसे सहेज पाएंगे ?यह लड़की समझती ही नहीं ---"दामिनी यामिनी से भी इस बात की चर्चा करती | वैसे तो विवाह के बाद कम ही इकठ्ठे हो पाते थे सब पर जब कभी भी होते तो उनके बीच यह चर्चा अवश्य होती |

"दीदी ! अब देखिए न, हम तीनों एक माँ-पिता की संतानें हैं और तीनों का टेम्परामेंट अलग है, तीनों के पति का स्वभाव भी अलग | उनके अनुसार भी तो जीना पड़ता है |"यामिनी कहती |

"तुम इसलिए कह रही हो कि कर्नल तुम्हारे आगे-पीछेघूमते हैं पर इसका क्या करें जो पति खुश तो भगवान खुश ---का नारा बुलंद किए है --ऊपर से इसके व्रत-उपवास, पूजा-अर्चना---"

"सीमा में कोई चीज़ ख़राब नहीं पर ----"

"बहुत हो गया, तुम कहोगी तो मैं यहाँ आया ही नहीं करूँगी, तुम दोनों ही मिल लिया करना --" उसके पति को जब ये सब बातें पसंद थीं तो ----

कामिनी बहनों से नाराज़ हो जाती पर बहनों के मन में छिपी उनकी ममता, स्नेह, प्रेम न समझ पाती | दामिनी दीदी के यहाँ सब मिल रहे हैं। उनके घर जाने आज ट्रेन में बैठी उसे अपनी बहनों की याद आ रही है |

उसे लगता था उसकी बहनें दिखावा करती हैं, उसकी बेटी निशि को भी मौसियों की बात अच्छी लगती पर जहाँ वह अपनी माँ के सानिध्य में अकेले में आती , वहीं मौसियों की बात दिमाग़ से निकल जाती और माँ दिखाई देने लगती |

बड़ा कमज़ोर व्यक्तित्व बन गया था निशि का भी ---विवाह के बाद जब निशी बंबई गई तब भी दामिनी ने उसे अपने मित्रों के बच्चों के कितने सारे पते दिए थे किन्तु वह अपने संकोची स्वभाव अथवा किसी और कारण उनसे भी मित्रता नहीं कर सकी |

ट्रेन में बैठकर दामिनी दीदी के घर बहनों से मिलने जाते हुए कामिनी की आँखों में बेटी और धेवते की मासूम सूरत पूरे रास्ते भर झिलमिलाती रही थी |

जब निशी की खबर आई थी तब कामिनी के पति टूर पर गए हुए थे | किसी भी माँ के लिए यह कष्टदायक ह्रदयविदारक सूचना थी | उसके हाथ से फ़ोन छूटकर ज़मीन पर गिर गया था, घिसटती हुई वह भगवान के मंदिर तक पहुंचकर फफक पड़ी थी | घर में सफ़ाई करती हुई मेड की दृष्टि फ़ोन पर पड़ी ;

"हैलो --जी, कौन बोलता ?"

"कामिनी मेम साब को फ़ोन दो ---"उधर से कोई बोला |

"साब ---वो अब्बी बात नई कर सकतीं ---क्या हुआ साब--"बसंती का दिल भी धड़कने लगा था |

उधर से जो कुछ कहा गया, बसंती उसे सुनकर धम्म से ज़मीन पर बैठ गई, उसके हाथ-पैर भी थर थर काँप रहे थे |

बसंती भागकर रसोईघर से पानी लेकर आई और कामिनी के मुँह से ग्लास लगा दिया किन्तु हिचकियों ने पानी को मुँह में जाने ही नहीं दिया | ग्लास में गिरते आँसू पानी को खारा करने लगे | बसंती भी सुबक-सुबककर रो पड़ी फिर आँसू पोंछते हुए तुरंत बराबर वाले प्रेरणा मेमसाब के घर में भागी गई.``प्रेरणा मेमसाब ! कामिनी मेमसाब की निशी बेबी ने मुम्बई में आत्महत्या कर ली है.``

वो भी लड़खड़ाती हुई कामिनी के पास दौड़ी आईं | प्रेरणा ने कामिनी को अपनी बाहों में भर लिया तो कामिनी और भी अधिक असहज होकर फफक पड़ी | प्रेरणा उसे मंदिर के सामने से उठाकर सिटिंग-रूम में ले गई और ज़बरदस्ती पानी के दो घूँट उसे पिलाए | कामिनी लगातार रोए जा रही थी |

"भाई साहब को ख़बर कर दी ?"

"फ़ोन नहीं लगा मुझसे ---"सुबकती हुई कामिनी ने बामुश्किल उत्तर दिया |

प्रेरणा कामिनी के घर की स्थिति व उसके परिवार से खूब परिचित थी आख़िर वे दोनों सालों से एक-दूसरे के पड़ौसी थे | प्रेरणा ने फ़ोन लेकर कामिनी के पति देवेश का नम्बर मिलाने की बार-बार कोशिश की पर उनका फ़ोन नहीं मिला |

"अब क्या करें ? आपको जाना तो होगा ही, बल्कि आपको जल्दी पहुँचना चाहिए ----" वह कामिनी के पति देवेश को बार-बार फ़ोन मिलाने की कोशिश करती रही |

कामिनी कुछ नहीं बोली --बस सुबकती रही | उसने अकेले कभी कोई भी निर्णय नहीं लिया था, हर बात में पति पर डिपेंड वह जैसे एकदम बेचारी सी होकर रह गई थी |

"अकेली जा पाओगी ?"प्रेरणा के आगे यह सवाल भी मुँह उठाये खड़ा था | कामिनी अपनी साड़ी में आँसू पोंछती रही, कुछ न बोली |

"बीबी जी, मैं चली जाऊँगी इनके साथ ---" बसंती ने दृढ़ स्वर में अपना निर्णय सुना दिया |

हद हो गई थी, एक बिना पढ़ी-लिखी, घर काम करने वाली औरत ने तुरंत अपना निर्णय सुना दिया था पर प्रोफ़ेसर कामिनी का दिमाग़ बिलकुल कुंद हो गया था, वैसे यह स्थिति थी भी अजीब लाचारी की सी जिसमें अच्छे-भले आदमी का दिमाग़ सुन्न पड़ जाना स्वाभाविक है किन्तु कुछ निर्णय तो लेना ही था जो कामिनी बिलकुल नहीं ले पा रही थी |

धीरे-धीरे कामिनी की सुबकियाँ भी बंद हो गईं पर आँसू गालों पर तेज़ी से फिसल रहे थे | जब कामिनी कुछ न बोली, प्रेरणा को ही कहना पड़ा ;

"बसंती, तुम तैयार हो न इनके साथ जाने के लिए ?"

"हाँ जी, बस मैं घर जाकर बताकर आऊँ, बच्चों की कुछ तैयारी कर आऊँ ---"

"ठीक है, तुम जाओ जल्दी, ज़रा इनको यहाँ भेजती जाना ---" प्रेरणा ने बसंती से अपने पति को कामिनी के घर भेजने के लिए कहा |

"लेकिन तुम ज़रा जल्दी आ जाना, मैं इनसे तुम दोनों की ऑन लाइन बुकिंग करवाने की कोशिश करती हूँ, इन्हें भेज दो बस तुम ----" प्रेरणा कामिनी के लिए सारे निर्णय स्वयं ही लेने के लिए बाध्य थी |

पाँच मिनिट में प्रेरणा के पति आ पहुँचे | कामिनी अधमरी हो गई थी | प्रेरणा से सारी बात जान-समझकर वो सकते में आ गए थे, ``आखिर निशी ने बच्चे के साथ आत्महत्या करने जैसा निर्णय कैसे और किस परिस्थिति में लिया होगा ?``

निशी वहीं पली-बड़ी हुई थी और अपने बच्चों के समान इन पति-पत्नी को भी प्रिय थी | कामिनी कुछ बोलती नहीं थी और देवेश जी का फ़ोन नहीं मिल रहा था |प्रेरणा के साथ मिलकर उन्होंने फ़्लाइट में कामिनी और बसंती की बुकिंग करवा दी.फ़्लाइट जाने में लगभग पाँच घंटे थे, उनको इन दोनों महिलाओं को एयरपोर्ट पर छोड़ने भी जाना था | वो बार-बार देवेश को फ़ोन मिलाकर उनसे बात करने की कोशिश करते रहे |

बसंती अपने कपड़े एक बैग में भरकर जल्दी ही वापिस आ गई थी, उसका घरवाला उसे मोटरसाइलिल पर बैठाकर छोड़ गया था | बसंती ने प्रेरणा से कहा, ``मेमसाब तो बोल नहीं रहीं, पत्थर हो गईं हैं । चलिए बैडरूम की आलमारी से कपड़े निकाल कर इनका बैग तैयार कर दें।`` बसंती ने प्रेरणा की सहायता से उसकी अटैची लगाई और बड़ी मुश्किल से कामिनी के कपड़े बदलवाए |

खाने के नाम पर कामिनी ने एक बिस्किट के साथ दो चाय के घूँट पी लिए थे |

प्रेरणा और उसके पति दोनों महिलाओं को एयरपोर्ट छोड़ने चले, रास्ते में प्रेरणा देवेश से बात करने का प्रयास करती रही | बसंती कामिनी को संभाले अपने कंधे पर उसका सिर टिकाए बैठी रही | प्रेरणा ने कामिनी को यह भी आश्वासन दिया, `` कामिनी !घबराओ नहीं, हम लोग जल्दी से जल्दी वह देवेश जी को ख़बर करके उन्हें वहाँ भेज देंगे |``

देवेश एक दिन बाद टूटे हुए से बंबई पहुंचे थे, पिता थे आख़िर वो भी ! कामिनी उस मानसिक कष्ट से अभी निकल नहीं पा रही थी, न ही उस समय बंबई में सबके लिए कोई व्यवस्था संभव हो रही थी | दामिनी का जब मुम्बई फ़ोन पहुंचा तो उसने टूटी हुई आवाज़ में यही कहा, ``दीदी !आप लोग यहां आकर क्या करेंगी ? दामाद जी तीजे की शांति के बाद अपने पेरेंट्स के साथ घर बंद करके जा रहे हैं। ``

अब इतने दिनों बाद बड़ी बहन के इस कार्यक्रम पर सबने अमल किया कि सब लोग दामिनी दीदी के घर पर मिल लेते हैं और सब बहनें दामिनी के घर मिलने के लिए तैयार हुईं|

एक भी क्षण उसका मन ट्रेन में किसी से बात करने का नहीं हुआ | सामने की बर्थ पर बैठे सज्जन ने पूछा भी, ``बेन !आप कहाँ जा रहीं हैं ?``

उसने अनसुनी करके अपना बैड रोल खोलकर बर्थ पर बिछाया और तकिये पर सर रखकर सोचने लगी आखिर उसने ऐसा क्या अपराध किया था जो भगवान ने उसे इतनी बड़ी सज़ा दे डाली थी ? ट्रेन में अर्द्ध निंद्रा में करवटें बदलते रात कटी। सुबह अहमदाबाद स्टेशन पर गाड़ी रुकी और यात्रियों ने उतरने की जल्दबाज़ी की तब वह सोच सेबाहर आई, अपना बैग संभाला और ए.सी कोच बाहर निकली | उसका मन अब भी घबरा रहा था, पैर लड़खड़ा रहे थे, उसे लग रहा था वह अपनी बहनों से मिलकर अपने को फूट पड़ने से रोक नहीं पाएगी |

अहमदाबाद के प्लैटफ़ार्म पर उतरकर, उसके पैर ठिठक गए | एक चाय वाला उसका उतरा देखकर तेज़ी से उसके पास आया, ``चाय ---गरम गरम चाय। ``

उसने` न `में सिर हिला दिया. उसके सामने उसकी दोनों बहिनें खड़ी थीं जिन्हें वह बरसों बाद एक साथ देख रही थी |

उनके चेहरे पर सिर्फ़ एक प्रश्न बिछा था कि निशि ने क्यों आत्महत्या की ?

उधर कामिनी सोच रही थी कि दो महीने तक तो वह भी अँधेरे में थी, कोई कारण समझ में नहीं आ रहा था। दो दिन पहले तो निशि के साथ काम करने वाली सहेली तृप्ति माथुर का फ़ोन मिला है। वह कैसे इन सबको निशि की आत्महत्या का घिनौना कारण बता पायेगी ?

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डॉ. सुधा श्रीवास्तव

C/o ई मेल ---pranvabharti@gmail.com

परिचय -अध्यक्ष -अस्मिता, अहमदबाद

जन्मस्थान --फ़तेहपुर (उ. प्र.), शिक्षा --एम.ए, पीएच डी, एल.एल.बी, साहित्य रत्न

पूर्व अध्यक्षा --हिंदी विभाग, एच के आर्ट्स कॉलेज, अहमदाबाद. चार उपन्यास, तीन कहानी संग्रह, एक काव्य संग्रह प्रकाशित.साहित्यिक पत्रिका 'प्रक्रिया' का सम्पादन

--एन.एस. डी, देहली के छात्रों के द्वारा उपन्यास 'बियाबान में उगते किंशुक ' का नाट्य मंचन, अभिनय, नाट्य निर्देशन एवं सीरियलों में लधु भूमिका का निर्वाह, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से संबद्ध. सदस्य --ऑथर्स गिल्ड ऑफ़ इण्डिया, भारतीय लेखिका संघ, हिंदी साहित्य परिषद, लायन्स क्लब ऑफ़ गुजरात. -गुजरात हिंदी साहित्य अकादमी का प्रथम पुरूस्कार उपन्यास 'चाँद छूता मन ' के लिए.द्वितीय पुरूस्कार 'प्रियवाद 'हिंदी साहित्य परिषद की ओर से 'कहानी संग्रह 'श्यामली ' को प्रथम पुरूस्कार. लायन्स क्लब डिस्ट्रिक्ट 323 की ओर से दो बार साहित्यिक सम्मान.

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