आज हम स्वप्न के विषय पर अपने विचार रखेंगे । मेरा निवेदन है कि इसे पढ़ने के पहले आप सभी "नींद" वाला लेख जरूर पढ़ें। इससे आप मेरी बात ज्यादा अच्छे से अनुभव कर सकेगें।
सपने हर इंसान देखता है । यह सभी का आधिकारिक हक हैं । या कहें कि इस हक को कोई नहीं छीन सकता है। अत: सपने तो सभी देखते हैं।अब भले ही वो पूरे हों या ना हों।क्योंकि सबके सपने अलग - अलग होते हैं ।जिस पर आज मैं अपने विचार रखुंगा।
सपने दो तरह के होते हैं। एक तो जो कोई और हमें दिखता है वो सपने। और एक जो हम खुद देखते हैं वो सपने।जो सपने कोई और हमें दिखता है वह तो शायद ही है कि पूरा हो।क्योंकि जब कोई और हमें सपने दिखता है तो वह हमारी औकात से बाहर तक के अथवा कहें कि हमारी क्षमता से अधिक वाले सपने दिखता है जो कि काल्पनिक से ही होते हैं।अत: वह पूरे नहीं हो पाते।
और जो दूसरे प्रकार का सपना है जो हम खुद देखते हैं वो भी हम दो प्रकार से देखते हैं।एक तो बंद आंखों से देखे हुए और एक खुली आंखों से देखे हुए सपने।
जिनमें से बंद आंखों वाले सपने मात्र काल्पनिक ही होते हैं । वे कभी पूरे नहीं होते । और तो और उनमें से 70% सपने तो हमें याद भी नहीं रहते जो हम हर रात को देखते हैं। बस कुछ ही याद रहते हैं जो पूरे नहीं होते ।
कहा जाता है कि सुबह 4 से 5 बजे के बीच जो सपना आता है वह सच होता है। लेकिन ये सिर्फ कहा ही जाता है इस होता नहीं है। क्योंकि यदि ऐसा हो तो कार्टून देखने वाले बच्चे तो रोज ही स्पाइडर मैन , बैटमैन आदि बनने के सपने देखते हैं।यदि वो सच हो गए तो दुनिया में स्पाइडर मैनों की कमी ही न हो।
अत: ये सिर्फ काल्पनिक ही होते हैं। क्योंकि हम जो रात को सपने देखते हैं वह हमारे दिमाग पर निर्भर करते हैं कि हम क्या सोचकर सो रहे हैं। वही हमारे सपने में आता है।जैसे हम कोई हॉरर फिल्म देखकर सोते हैं तो हमें डरावने सपने आते हैं।
इस प्रकार ये रात वाले सपने हमारे ख्यालों पर , हमारी सोच पर ही निर्भर होते हैं। ये सच नहीं होते।
अब दूसरे प्रकार के जो खुली आंखों से देखे जाने वाले सपने हैं वो भी दो प्रकार से होते हैं । अथवा कहें कि उन्हें देखने वाले दो प्रकार के होते हैं।एक तो वो जो सपने तो बड़े - बड़े देखते हैं लेकिन उसे पूरा करने का प्रयास नहीं करते । थोड़े में ही हार मान लेते हैं और अपने सपने को बदल देते हैं। ऐसे लोग मात्र सपने में ही आनंद की अनुभूति के लेते हैं। उन्हें साक्षात् आनंद नहीं मिल पाता। जैसे कोई आलसी पड़े - पड़े यह सोचे की मै ऐसा करूंगा वैसा करूंगा और बड़ा आदमी बन जाऊंगा । लेकिन करे कुछ न तो वह बड़ा तो नहीं होता लेकिन अपने सपने में ही आनंद लेता रहता है।
और जो दूसरे प्रकार के लोग होते हैं जो सपने देखते भी और उन्हें पूरा करने का प्रयत्न भी करते हैं।उनका सपना अथवा लक्ष्य निश्चित होता है। चाहे कोई भी कठिनाई क्यों न हो वो उसी सपने को पूरा करने के लिए दृढ़ रहते हैं। उस अनुसार पुरुषार्थ करते हैं । तो उन्हें अपने सपने की प्राप्ति होती है। वे परिस्थिति को देखकर अपने सपने नहीं बदलते है। अत: उन्हें उस सपने , लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
अत: हम भी ऐसे ही सपने देखें जो हम पूर्ण कर सकें और उस पर दृढ़ रह सकें ।
" क्योंकि सपने समय अनुसार देखने से पूरे नहीं होते । उसके लिए मेहनत करनी पड़ती हैं । दृढ़ होना होता है।"
इस प्रकार मेरे कुछ अनुभव थे इसमें भी जो कमी आपको लगे तो सुझाव अवश्य दें।
धन्यवाद