Gumshuda ki talash - 14 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 14

Featured Books
Categories
Share

गुमशुदा की तलाश - 14


गुमशुदा की तलाश
(14)


सरवर खान ठेले के पास जाकर बोले।
"जीवन भाई.... मोमोज़ बेचते हो ?"
"हाँ साहब पर अब तो ठेला लेकर घर जा रहा था। लेकिन आपको मेरा नाम कैसे मालूम ?"
फिर अपने सवाल का जवाब खुद ही देते हुए बोला।
"अच्छा ठेले पर पढ़ा।"
"नहीं किसी ने बताया था तुम्हारे बारे में। मुझे कुछ खाना नहीं है। कुछ बात करनी है।"
"बात करनी है....मुझसे ??'
सरवर खान ने मोबाइल पर बिपिन की फोटो दिखाते हुए कहा।
"इनके बारे में पूँछना है।"
जीवन फोटो देखते ही पहचान गया।
"बिपिन भाइया के बारे में क्या पूँछना है ?"
"पहले ठेला कहीं किनारे लगाओ ताकि इत्मिनान से बात हो सके।"
जीवन ने ठेला एक बंद दुकान के सामने खड़ा कर दिया। ठेले के निचले हिस्से से प्लास्टिक का एक छोटा सा स्टूल निकाल कर सरवर खान के पास रख दिया। सरवर खान उस पर बैठ गए।
"मैं डिटेक्टिव सरवर खान हूँ। बिपिन पिछले दस माह से गायब है। उसके केस के सिलसिले में ही तुमसे बात करनी थी।"
यह सुन कर कि बिपिन लापता है जीवन को दुख हुआ।
"साहब बिपिन भइया देवता आदमी हैं। उनके बारे में सुन कर बुरा लगा।"
"तुम उन्हें देवता क्यों मानते हो ?"
"क्या बताएं साहब गलत संगत में पड़ गए थे। पढ़ाई छोड़ दी थी। बिपिन भइया ना होते तो नशे के शिकार हो जाते। यही हमको समझा कर सही राह पर लाए।"
"इन्होंने ही ड्रैगेन हब रेस्टोरेंट में तुम्हारी नौकरी लगवाई थी।"
"सही कह रहे हैं साहब।"
"ये अक्सर उस रेस्टोरेंट में आते थे। इनके साथ एक लड़की भी आती थी।"
"हाँ साहब भइया अक्सर वहाँ आते थे। कभी मैडम के साथ। कभी बिना मैडम के भी। पर अक्सर मैडम भी साथ होती थीं।"
"मैडम का नाम रिनी था।"
"साहब वो तो नहीं बता सकता। उनसे कभी मेरी बात नहीं हुई। मैं तो जब उनकी टेबल पर जाता था तो भइया हमसे हालचाल पूँछ लिया करते थे।"
"अच्छा ये मैडम लंबे कद की थीं।"
"नहीं साहब मझोले कद की थीं। थोड़ी सांवली सी।"
सरवर खान कुछ देर रुके। उसके बाद पूँछा।
"जब वो बात करते थे तो कभी कुछ सुना था तुमने ?"
"नहीं साहब वैसी आदत नहीं है मेरी।"
"अच्छा अंतिम बार वो कब आए थे रेस्टोरेंट में ?"
"मैंने करीब एक साल पहले नौकरी छोड़ दी थी। जब तक मैं था तब तक तो अक्सर आते थे। उसके बाद पता नहीं।"
सरवर खान ने जीवन से पूँछ लिया कि वह अपना ठेला कहाँ लगता है। ताकि ज़रूरत पड़ने पर उससे मुलाकात कर सकें। जीवन ने उन्हें अपना नंबर दे दिया।
जीवन से मिलने के बाद सरवर खान अपनी लॉज में लौट रहे थे। तभी उनका फोन बजा। रंजन का फोन था। बारह बजने वाले थे। अवश्य ज़रूरी बात होगी। यह सोंच कर उन्होंने गाड़ी किनारे रोक कर फोन उठा लिया। उधर से रंजन के रोने की आवाज़ आई।
"क्या हुआ रंजन ? रो क्यों रहे हो ?"
"सर....पापा इज़ नो मोर..."
सरवर खान ने मन ही मन मृतक के लिए प्रार्थना की। उसके बाद रंजन को तसल्ली देते हुए बोले।
"बहुत अफसोस हुआ रंजन....खुदा तुमको इस गम को बर्दाश्त करने की तौफीक दे। अपनी मम्मी को संभालो। अपने मज़हब के हिसाब से अपने पापा की आखिरी रस्में करो।"
"जी सर....मैं पापा के लास्ट रिचुअल्स करके आपके पास आता हूँ।"
"तुम यहाँ की फिक्र मत करो। अपना वक्त लो।"
"जी सर...."
रंजन ने फोन रख दिया। सरवर खान कुछ देर तक चुपचाप बैठे रहे। फिर अपनी लॉज में लौट गए।

सब इंस्पेक्टर नीता सैनी ने नंदू से सही तरह से पूँछताछ की तो एक बात सामने निकल कर आई। बिपिन के केस में जो सिम कार्ड प्रयोग हो रहा था वह उसने किसी ग्राहक को ना देकर अपने गांव के एक आदमी उमाकांत को बेचा था। उमाकांत गांव से नया नया आया था। उसके पास सिम कार्ड लेने के लिए डाक्यूमेंट्स नहीं थे। उसे पता था कि नंदू बिना सही कागज़ात के सिम दिला सकता है। नंदू ने उसे वो सिम कार्ड दिया था। उमाकांत बिजली का काम जानता था। वह किसी इलेक्ट्रीशियन की दुकान पर काम कर रहा था। नंदू को दुकान का नाम नहीं पता था। वह बस इतना जानता था कि दुकान सदरगंज इलाके में कहीं थी।
सब इंस्पेक्टर नीता ने नंदू के बताए हुलिए के आधार पर उमाकांत का स्कैच बनवाया था। अब वह अपने दो कांस्टेबल के साथ सदरगंज इलाके की बिजली की दुकानों में पूँछताछ कर रही थी।
अभी वह रौशनी इलेक्ट्रिकल नाम की दुकान में घुसी थी। पुलिस को देख कर दुकान का मालिक परेशान हो गया।
"जी मैडम....क्या सहायता कर सकते हैं आपकी।"
सब इंस्पेक्टर नीता ने स्कैच दिखाते हुए पूँछा।
"यह उमाकांत है। आपकी दुकान पर काम करता है।"
दुकानदार ने स्कैच को ध्यान से देख कर कहा।
"जी मैडम....उमाकांत हमारे यहाँ काम करता था। एक नंबर का चोर था। दुकान से सामान चुरा कर बाहर बेच देता था। हमने निकाल दिया।"
"कब निकाला था आपने ?"
"मैडम काम करते हुए एक महीना हुआ था कि उसने अपना रंग दिखा दिया। काफी समय हो गया।"
"अब उमाकांत कहाँ मिलेगा कुछ पता है।"
"नहीं मैडम हम कुछ नहीं जानते। क्या उसने कोई बड़ा हाथ मारा है इस बार ?"
सब इंस्पेक्टर नीता ने कोई जवाब नहीं दिया। जब वह दुकान के मालिक से बात कर रही थी तब उसने ध्यान दिया कि एक इलेक्ट्रीशियन जो शायद दुकान में ही काम करता था बड़े ध्यान से उन लोगों की बात सुन रहा था। उसे किसी कॉल पर जाना था। दुकान का सहायक उसे आवश्यक सामान दे रहा था। दुकान से निकलते समय उसने सब इंस्पेक्टर नीता को इशारा किया कि वह कुछ मदद कर सकता है।
"आपके सहयोग के लिए धन्यवाद।"
कह कर सब इंस्पेक्टर नीता ने दुकान के मालिक से स्कैच वापस लिया और दुकान से निकल गई। कुछ ही दूर जाने पर उसे वह इलेक्ट्रीशियन इंतज़ार करता दिखा।
"बोलो क्या बताना चाहते हो ?"
"मैडम उमा ने क्या सचमुच कोई बड़ा हाथ मारा है।"
जिस तरह से उसने उमा कहा उससे लगा कि दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते हों।
"तुम दोनों एक दूसरे के दोस्त मालूम पड़ते हो।"
"मैडम मेरा नाम रसिक है। उमा मेरे साथ कमरा शेयर करता था। वो चोर नहीं है मैडम हालात का मारा है।"
"क्या मतलब....पूरी बात बताओ।"
रसिक ने सब इंस्पेक्टर नीता को उमाकांत के बारे में बताया।

उमाकांत का गांव एक कस्बे माधोखेड़ा से सटा हुआ था। वह बिजली का काम जानता था इसलिए उसने माधोखेड़ा में बिजली के सामान की एक दुकान खोल ली थी। उसकी मदद के लिए उसका बीस साल का बेटा भी दुकान पर काम करता था। जब कभी बिजली से संबंधित रिपेयरिंग का कोई काम आता तो उमाकांत ही जाता था। उसका बेटा दुकान संभालता था। इस तरह से उनकी गाड़ी अच्छी चल रही थी।
लेकिन एक दिन उसका बेटा अपने घर की छत से गिर गया। जिसके कारण वह गंभीर रूप से घायल हो गया। उसके इलाज पर उमाकांत ने खूब पैसा खर्च किया। उसकी दुकान भी बिक गई। लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। कुछ महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहने के बाद उसके बेटे की मृत्यु हो गई।
उमाकांत बुरी तरह टूट गया। दुकान बिक गई। जो जमा पूंजी थी खत्म हो गई। बेटा भी चला गया। उसका मन किसी काम में नहीं लगता था। घर में पत्नी और दो बेटियां भी थीं। खर्चा चलाना मुश्किल हो रहा था। उसने कर्ज़ लेना शुरू कर दिया। पर कर्ज़ से कब तक काम चलता। कर्ज़ देने वालों ने भी तकाज़ा करना शुरू कर दिया था।
उमाकांत के पास शहर जाकर काम करने के अलावा कोई चारा नहीं था। वह यहाँ आ गया। उसने रौशनी इलेक्ट्रिकल में काम करना शुरू कर दिया। अपने घर से संपर्क बनाए रखने के लिए उसे एक सिम कार्ड चाहिए था। लेकिन उसके पास डाक्यूमेंट्स नहीं थे। इसलिए उसने नंदू से ऊँची कीमत पर सिम ले लिया।
वह जो पैसे लेकर आया था उनमें से बहुत से तो कमरे का किराया देने में लग गए। कुछ सिम खरीदने में। जो पैसे बचे थे उनसे उसे अपना खर्चा चलाना था। सैलरी तो महीने के अंत में मिलनी थी। जब भी वह घर पर बात करता था तो पत्नी बताती थी कि कर्ज़ का तकाज़ा करने वाले रोज़ परेशान करते हैं। वह अपनी बेटियों को लेकर चिंतित है।
उमाकांत बहुत परेशान था कि क्या करे। इसी परेशानी में उसने दुकान में चोरी का प्रयास किया। किंतु पहली बार में ही पकड़ा गया। उसे नौकरी से हाथ धोना पड़ा।