film review THE SKY IS PINK in Hindi Film Reviews by Mayur Patel books and stories PDF | फिल्म रिव्यू ‘द स्काइ इज पिंक’- दिल को छू पाएगी..?

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फिल्म रिव्यू ‘द स्काइ इज पिंक’- दिल को छू पाएगी..?

सत्य घटना पर आधारित 'द स्काइ इज पिंक' कहानी है आयशा चौधरी की, एक ऐसी लडकी जो जन्म से ही एससीआईडी नामक बीमारी से ग्रस्त थीं. ये एक एसी जेनेटिक बीमारी है जिसमें मामूली इन्फेक्शन भी प्राणघातक साबित हो सकता है. फिल्म शुरु होती है आयशा (जायरा वसीम) के वोइसओवर से और वो बताती है की उसकी बीमारी के चलते उसके परिवार को कितना संघर्ष करना पडा था. चौधरी परिवार में आयशा के पापा है निरेन चौधरी (फरहान अख्तर), मां अदिति चौधरी (प्रियंका चोपड़ा) और भाई ईशान (रोहित सराफ). आयशा इन तीनो को प्यार से पांडा, मूस और जिराफ कहेती है.

बीमार बेटी और उसके दुःखी माता-पिता के इर्द-गिर्द घूमती गंभीर कहानी को निर्देशक शोनाली बोस ने प्रशंसनीय ढंग से प्रस्तुत किया है. इस से पहेले ‘मार्गारिटा विथ अ स्ट्रॉ’ जैसी संवेदनशील फिल्म बनानेवाली शोनालीने आयशा चौधरी की सच्ची घटना की गंभीरता को बरकरार रखकर फिल्म को एक फ्रेश ट्रिटमेन्ट दिया है, जो की काबिलेतारीफ है. सिरियस सिच्युएशन के बावजूद फिल्म में कई एसे हल्केफूल्के दृश्य है जो दर्शकों को हसांने में कामियाब रहेते है. डायलॉग्स भी इतने बढिया है की दर्शक मुस्कुराने पर मजबूर हो जाते हैं. जायरा का वोइसओवर उनके किरदार की भाषा की वजह से काफी फनी बन पाया है. फिल्म का इमोशनल क्वॉशन्ट काफी हाइ है. लंबे समय के बाद एक एसी फिल्म आई है जो बार बार रुला देती है. फिल्म के एन्ड क्रेडिट में ओरिजिनल आयशा और उनके परिवार की तसवीरें दिखाई गईं हैं, जो की दिल को छू लेता है.

अभिनय की बात करें तो साढे तीन साल बाद किसी हिन्दी फिल्म में दिखीं प्रियंका चोपडाने बहेतर से बहेतरिन एक्टिंग की है. एक बार फिर से उन्होंने साबित कर दिया है की वो कितनी उत्तम अदाकारां हैं. वहीं फरहान अख्तर भी कहीं पीछे नहीं. उन्होंने बहोत ही कन्ट्रोल्ड पर्फोर्मन्स दिया है. दोनों के बीच की केमेस्ट्री जबरदस्त है. लाइलाज बीमारी से लड रही बेटी को ठीक करने के लिए और उसकी खुशियों के लिए अपना सबकुछ दाव पर लगा देनेवाले माता-पिता के किरदार में दोनों ने दिल को अव्वल दर्जे का अभिनय किया है. आयशा की भूमिका में जायरा वसीम बहोत ही स्वाभाविक लगीं. वो अपने केरेक्टर को पूरी तरह से जी गईं है. सूत्रधार के रुप में उनकी आवाज और डायलोग्स बडे ही मजेदार है. ईशान बने रोहित सराफ को ज्यादा फूटेज नहीं मिली लेकिन उन्होंने जितना भी मौका मिला उसमें अच्छा काम कर दिखाया है.

स्क्रिप्ट में कहेने के लिए ज्यादा कुछ न होने के बावजूद फिल्म को लंबा खींचा गया है. ढाई घंटे की फिल्म को आराम से दो घंटे में निपटाया जा सकता था. पांडा और मूस की लवस्टोरी को कांटछांट कर छोटा किया जा सकता था. इसके अलावा फिल्म की नोन-लिनियर प्रस्तुति भी खटकती है. तीन दशकों के अंतराल में कहानी यहां से वहां, वहां से यहां जम्प मारती रहेती है, जिससे दर्शक कई बार कन्फ्युज हो जाते है.

प्रितम का म्यूजिक साधारण है. गुलजार सा’ब की लिखावट कहीं कहीं पसंद आती है. एक गाना ‘दिल ही तो है…’ ठीकठाक बन पडा है. बेकग्राउन्ड म्युजिक और सिनेमेटोग्राफी जैसे फिल्म के टेकनिकल पासें सटिक है. फरहान अख्तर का मेकअप इतना अच्छा है की वो अपनी उम्र के हिसाब से पर्फेक्ट लगते है, लेकिन प्रियंका चोपरा पचास की उम्र में भी केवल पैंतीस की दिखे ऐसा मेकअप उनको किया गया है. ये बात कुछ हजम नहीं होती.

कुल मिलाकर देखें तो ‘द स्काइ इज पिंक’ दिल को छू लेनेवाली फिल्म है, लेकिन अगर आप फिल्में केवल एन्टरटेनमेन्ट के लिए देखने जाते है तो ये फिल्म आपके लिए हरगिज नहीं है. अगर आपको संवेदनशील फिल्में पसंद है तो ये फिल्म आपको जरूर अच्छी लगेगी. इस ‘खूबसूरत’ फिल्म को मेरी ओर से 5 में से 3.5 स्टार्स. ढेर सारे टिश्यू पेपर साथ लेकर जाइएगा.