Limited Love in Hindi Love Stories by रामानुज दरिया books and stories PDF | सीमित प्रेम

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सीमित प्रेम

एक लड़का है जिसे लोग आशु के नाम से जानते हैं ,नाम से कम उसके काम से लोग ज्यादा जानते है।एक नाम आशी जिसकी अदाओं से लोग जानते है जो एक खूबसूरत type की लड़की है ।खूबसूरती की दुनिया मे जिसका बड़ा नाम है जिसके लिए लोग अपना हाथ पैर तक काट लेते हैं जिसके लिए खून से खत लिखे जाते हैं ,अब इससे आप अंदाजा लगा सकते है कि ओ कितना खूबसूरत है।मजे की बात ये है कि दोनों एक ही संस्थान में पढ़ते हैं और खुशी की बात तो ये है कि दोनों एक ही धर्म को मानते हैं जिसे हिन्दू कहा जाता है,जाति दोनों की अलग है पर ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है क्योंकि दोनों बालिक और समझदार भी हैं।
संस्थान खुलता है लोगो का आना-जाना शुरू होता है,सब अपने लिखाई पढ़ाई में ब्यस्त हो जाते हैं।मुलाकात आशु और आशी की भी होती है क्लास में क्योंकि क्लास में लोग आमने सामने बैठते हैं।चूंकि क्लास में सब नये नये रहते है इसलिए एक दूसरे के बारे में जानने की उत्सुकता बनी रहती है।अच्छा......जब मामला नया-नया रहता है तो हम इतने आतुर रहते लोगों को जानने समझने में कुछ पूंछो ही मत,खैर क्लास में मिलने-जुलने का सिल-सिला सुरु हो जाता है
Actually आशु थोड़ा नटखट है यानी कि शरारती टाइप का स्टूडेंट है इसलिए ओ आशी को परेशान बहुत करता था ,आशी innocent थी लेकिन इतना भी नहीं जितना में बताने की कोशिश कर रहा हूँ पर आशी समझदार थी केवल समझदार ही नही चालाक भी थी।
आशु मजाक -मजाक में बहुत कुछ बोल जाता था पर आशी कभी माइंड नहीं करती थी ,करती भी तो कैसे।आशु के पास बोलने का जो जबरदस्त ढंग था कि हर किसी को हंसा दे।मुर्दे को भी हंसने के लिए मजबूर कर दे ऐसा मस्तमौला इंसान है ओ।आशी भी इस बात से खुश हो जाती थी चलो कोई तो है जो पल भर में खुश कर देता है।
वैसे तो आशु के बात का बुरा कोई नहीं मानता था पर कुछ लोग अंदर ही अंदर जलन रखते थे।कुछ लोग तो आशु का सम्मान करते थे इसलिए खुलकर सामने नही आते थे और कुछ लोग डरते थे कि इसका कोई पता नहीं कब क्या बोल जाए।आशु की लोग इज़्ज़त करते थे क्योंकि ओ जितना दिखने में स्मार्ट था उससे कही ज्यादा ओ पढ़ने में भी स्मार्ट था ।दोनों में तकरार होते रहते थे पर नजदीकियां भी धीरे धीरे बढ़ रही थी,आशी अपना काम बहुत आसानी से निकलवा लेती थी पर जहां खुद करने की बारी आती थी तो तुरंत back fut पर आ जाती थी।
चार महीने में लोग इतना घुल मिल गए कि पता ही नही चल रहा था कि ये सब इतनी जल्दी के दोस्त हैं ऐसा लग रहा था जैसे सदियों की इनकी दोस्ती हो।गर आशु एक दिन नहीं बोलता था तो आशी और उसकी एक दोस्त मिश्रा ,आके पूछ ही लेती थी ,क्या बात है क्यूं मुझे नजर अंदाज करते हो।और आशु भी मुस्कुरा के कह देता था नही ऐसी कोई बात नहीं है।
समय गुजरता गया और धीरे-धीरे महीना जनवरी क आ गया पता चला कि संस्थान में राष्ट्रीय त्योहार बड़ी धूम - धाम से मनाया जाता है।यह ओ समय था जब केवल आशु के क्लास वाले ही जानते थे पर जब उसने संस्थान पर रची कबिता सुनाई तो पूरे संस्थान में उसका कद बढ़ गया ,उसकी नई पहचान मिली।चारों तरफ से बधाई आने लगी और कबिता की भी लागों ने खूब जम कर सराहना की। थोड़ा थोड़ा मुझे याद है कि प्रिंसिपल साहब ने नोटिस बोर्ड पर सबसे ऊपर नाम लिखवाया था। आशु के बारे में ज्यादा विस्तार से बताना उचित नहीं है पर ये है कि जिससे एक बार मिल ले उसे अपना मुरीद बना लेता था ,बिना नाम लिए व्यक्ति के व्यक्तित्व का चित्रण करना आसान नही होता पर ओ ऐसा ही करता था ऐसा लगता था मानो उसे महारथ हांसिल है इस क्षेत्र में।जब ओ स्टेज पर अपनी कबिता पढ़ रहा था तो आशी यह सोंच रही थी कि किसी और को इसके बारे में पता नही है it means सिर्फ ओ जानती है पर सचाई ये थी कि हर कोई जानता था कि कबिता में उसका ही नाम है।शायद आशु की दोस्ती परवान चढ़ने लगी थी।
आशु और आशी के बीच की कुछ बातें शब्दसः
आशी; क्या बात है तुम्हारा तो भाव ही बढ़ गया।
आशु: हाँ, सो तो है।
आशी : कितना बढ़ा ?
आशु : 3 कुंतल ।
ये कुछ व्यंग थे जो कसे गये थे। आशी का नाम ओ भी आशु की कविता में,ये बात पूरे संस्थान में आग की तरह फैल गयी और दोनों बदनाम होने की परकष्ठा तक पंहुच गये।बदनामी तो सिर्फ इतनी हुई कि लोग आशी को भी आशु के नाम से जानने और बुलाने लगे अच्छा उसे भी मजा आ रहा था ,क्योंकि उसने इसका कभी बिरोध नहीं किया। खुश थी कि चलो किसी के साथ उसका नाम तो जुड़ा था।दोस्ती धीरे - धीरे परवान चढ़ने लगी और वक्त का पहिया ऐसे घूमा की एक सेमेस्टर बीत गया कि किसी को पता नही चला ।
देखते -देखते होली आ गयी ,होली की शर्त है कि होली के दिन खेली जाती है पर स्टूडेंट के साथ just इसका उल्टा होता है या तो आप पहले खेलो या फिर बाद में,अच्छा ज्यादातर तो लोग पहले ही खेल लेते है पर यहां आशी होली के बाद शायद खेलने का प्रोग्राम बना रखी थी।संस्थान खुलने के बाद ,सुबह सुबह जैसे ही लोग क्लास में आये तुरंत शुरू हो गया गुलाल का दौर,लोग एक दूसरे पर अबीर डालने लगे ,हां ये बात अलग है कि इसकी सुरुआत भी आशी ने आशु के ऊपर गुलाल डाल कर की....।
आशु इंतजार में था कि पहल कोई करे तो आशी भी इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए अबीर आशु के ऊपर जम कर डाला ओ भी ये कहते हुए या फिर समझो कि ललकारते हुए की ,मेरे गाल पर कोई नहीं लगा सका आजतक पता नही कोई पुराना रिकॉर्ड था या वाकई में उत्तेजित कर रही थी ,निशचय कर पाना तो मुश्किल है पर आशु ने दौड़ा कर पकड़ लिया उसे ओ भी बीच फील्ड में फिर पूछो मत की कहाँ -कहाँ लगाया।अब आशी को देखकर अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया था गुलाल रखा है या कोई लड़की है उसका पूरा बदन गुलाल से सराबोर था और ओ दोनों आनंद की चरम पर पहुच का जस्न मनाने लगे।इतना खूबसूरत दृस्य तो मैंने इससे पहले कभी नही देखा जहां तक मुझे याद है ,उसके गुलाबी ओंठ और गाल उसके ऊपर गुलाल व्यख्या कर पाना मुश्किल है पर ओ चेहरा उतर गया था दिल के कहीं किसी कोने में जो कि आज भी याद आता रहता है। शिल- शिला बढ़ता गया और क्लास की दोस्ती फ़ेसबुक पर आ गयी। हुआ यूं कि…....…........।
आशी ने कई बार आशु से पूंछा की तुम whatsap चलाते हो , तो आशु ने बताया -नहीं यार मैं नहीं चलाता हूँ, हर बार ओ यही कहता लेकिन सच ये था कि मोबाइल में उसके whatsap चलता नहीं था।आशु सोंचता था कि दूसरा फोन ले लें पर मैनेज करना मुश्किल था और शायद उसके लिए कोई काम भी नहीं रुक रहा था इसलिये जरूरी भी नहीं समझा।
आशी भी कम दिमाग की नहीं थी उसने एक नई ID बनाई facebook पर और फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज दिया आशु को। यहां एक संदेह की बात है कि उसने अपनी पुरानी id से रिक्वेस्ट क्यों नहीं भेजा कुछ तो बात है आखिर उसे नई id बनाने की जरूरत क्यों पड़ी,आशु की नजर में खुद को उठाना या फिर कोई और बात:खैर छोड़ो इस पर हम चर्चा आगे करेंगे।
दोस्ती अब फेसबुक पर कुछ इस तरह आयी, सुरुआत के दिनों के कुछ प्रेम भरे शब्द-हेलो,हाय, टाइम से goodmorning ,goodnight बोलना qute, nice pic, dinner लिया कि नहीं,ब्रेकफास्ट टाइम से किया करो,टाइम से सोया करो,अपना ख्याल रखो,फालतू चीजों पर ध्यान मत दो,पढ़ाई में मन लगाओ,मुझे याद कम किया करो,मुझे भुलाया मत करो,लाइफ एन्जॉय करो, बार - बार लाइफ नहीं मिलती,जिंदगी को जी भर के जियो,आप बहुत अच्छे हैं,आप को क्या पसंद है क्या नहीं पसंद है,आप अपने दिल की बातें कभी मुझसे तो शेयर करते नहीं,आप मुझे अपना नहीं समझते हैं ,मैं कुछ भी कहूँ आपके ऊपर कुछ भी फर्क नहीं पड़ता।
ये सब आशी के शब्द हैं जो आशु के लिए होते थे।आशु भी कुछ ऐसे ही reply करता था ,हाँ dear, तुम सच कहती हो ,तुम अच्छी बहुत हो,तुम बातें बहुत प्यारी करती हो,तुम बहुत खूबसूरत हो,तुम्हारी जुल्फें तो पागल कर देती हैं,तुम एक दम चांद सी दिखती हो।
कुछ ही शब्दों का जिक्र मैं यहां कर पा रहा हूँ लेकिन ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थी कि दोनों के बीच प्यार की आग सुलगने लगी थी जिसका धुंआ आशु की तरफ कभी कभी स्पस्ट रूप से दिखता भी था। चूंकि मेसेजिंग में समय बहुत लगता था और बाते भी proper नही हो पाती थी इसलिए आशु ने एक दिन फोन नं. मांग ही लिया आशी से, तो उसने यह कहते हुए टाल दिया कि -इतनी भी जल्दी क्या है।आशु भी मन मार के रह गया और कहा- चलो कोई बात नहीं जैसी आपकी इच्छा।
चार- पांच दिन बाद आशु शाम के समय अपने रूम में बैठा था तभी फोन की घंटी बजी ,फोन उठाया तो लड़की की आवाज़
आशु - हेलो,
लड़की -हाँ, क्या हो रहा है।
आशु- कौन ?
लड़की - अरे यार अब नाम भी बताना पड़ेगा।
आशु - अरे! आशी तुम, फोन किया है तुमने या मैं सपना देख रहा हूँ।
आशी - नहीं यार मैं ही बोल रही हूँ, पहले दिन 10-20 मिनट बातें हुई उसके बाद मोबाइल से बातो का दौर सुरु हो जाता है।
पहले 10 से 20 मिनट बातें होती थी फिर बाद में समय और बढ़ा एक एक घंटे और जब- तब बातें होने लगीं।रात के 11 बजे भी होती थी और सुबह के पांच बजे भी हो जाया करती थी ।इसमे एक बात का जिक्र नहीं हुआ- आशी का पहले से एक बॉयफ्रैंड था इसलिए आशी को उसका भी ख्याल रखना पड़ता था।आशु को बुरा तब लगता था जब आशी का फोन घंटों busy जाया करता था पर इसमें कोई संदेह नहीं था कि आशी ,आशु से बात करने के लिए आतुर रहती थी शायद आशी प्रेम की सीढ़ियां चढ़ने लगी थी एक - एक करके। पर उसका बॉयफ़्रेंड उसको बहुत प्यार करता था ऐसा ओ कहती थी । हाँ ओ ये भी कहती थी कि जबसे ओ संस्थान आने लगी है तबसे उसका बॉयफ्रेंड से झगड़ा हो जाया करता है और बातें नहीं होती है ।हाँ ओ ये भी कहा करती थी कि उसका बॉयफ्रैंड कहता है कि ओ बहुत बदल गयी है।तो शायद सच कहता था क्योंकि आशी अब आशु पर ज्यादा समय और ध्यान देती थी।
फ़ेसबुक पर दोस्ती की सुरुआत हुयी थी तो आशु ने सबसे पहले ये पूंछा था कि तुम्हारा bf कैसा है तो उसने झल्ला के जबाब दिया था कि मैं उससे केवल बात करती थी कभी - कभार बस इससे ज्यादा कुछ नहीं।
इस बात से स्पस्ट होता है कि आशी पूर्ण से आशु से जुड़ना चाहती थी क्योंकि ओ उससे प्यार करने लगी थी।
अब यह रिश्ता संस्थान से निकल कर बाहर घूमने लगा था जैसे कि सुबह morning walk पर जाना और मुलाकात करना, क्या जुनून था ,morning walk तो सिर्फ एक बहाना था बाकी तो आप समझते ही हैं।यह बहुत ही खूबसूरत पल होता है जब लड़की किसी को चाहे और मुलाकात भी हो जाये ओ भी सुबह - सुबह। शायद कोई , ऐसा पल खोना चाहता हो 90% लोग तो अपना सौभाग्य समझेंगे ही 10% कि बात मैं नहीं कर सकता । यह बीता हुआ समय वाकई में दोनों के लिए गोल्डन टाइम था जिसे दोनों ने एन्जॉय किया था।
सुबह - सुबह का समय था morning walk से लौट कर आये थे और छत पर लेटे हुए आशु बात कर रहे थे फोन पर।बातों - बातों में आशी ने पूंछ लिया बताओ तुम्हे किस प्रकार की लड़की पसंद है और तुम किस तरह की लड़की से शादी करना चाहोगे ।आशु भी दिल का साफ , उसने बताया कि मेरी शादी हो चुकी है और मेरे दो बच्चे हैं इसलिए मुझे इन सब बातों में कोई इंटरेस्ट नहीं है।यह सुनकर आशी shocked हो गयी ,ऐसा लगा मानो उसे 11000 वोल्टेज का झटका लग गया हो।वह पूर्ण रूप से डिस्टर्ब हो गयी ।वह निःशब्द हो गयी ,कुछ भी बोल नहीं पा रही थी ।उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो किसी ने उसे ठग लिया हो और उसका सबकुछ तबाह हो गया हो ।उसके तो पांव तले जमीन ही खिसक गई।आशु की ऐसी स्थिति उससे देखी नहीं गयी ,वह काफी डर गया कुछ अनहोनी सोंचकर ,फिर तुरंत उसने matter को पलट दिया और जोर - जोर से हंसने लगा।उसकी हंसी सुनकर आशी समझ गयी कि ये मज़ाक कर रहा है।
बाद में आशु मजाकिया लहजे में आशी से पूंछा की बताओ यदि यह बात सच होती तो, आशी की बात सुनकर उसका हृदय परिवर्तन हो गया ।जबाब था - "मैं तुझे गोली मार देती" ।इतनी मोहब्बत शायद आशु ने पहले कभी नही महसूस की थी ।इस घटना ने आशु को बदल कर रख दिया और वह उससे बेपनाह मोहब्बत करने लगा। पर एक बात साफ है कि इस एक साल के उतार चढ़ाव में कभी कहीं गंदगी नहीं आयी,शायद आशी एक सयंम रखने वाली लड़की थी या आशु बहुत ही समझदार था वजह कुछ भी हो पर प्रेम में पवित्रता बहुत ही कम देखने को मिलती है।वैसे तो मोहब्बत हमने देखी है लोगों की दूर से - जो दिन के उजाले में सुरु होती है और शाम को विस्तर में सिमट जाती है ।ऐसा भी देखा है हमने की नजर बाद में ओठ पहले मिल जाते हैं ,शायद वक्त की यही मांग हो।
आशु की जिंदगी की सबसे कटु सच्चाई है जिस चीज़ ,जिस व्यक्ति को जिस दिन से अपना मान लेता है उसी दिन से ओ चीज़ , वह व्यक्ति उससे दूर होने लगता है। आशु प्यार तो करने लगा पर उसकी इच्छायें कभी इतनी मुखर नहीं हुयीं की वह रस भरे ओठों का पान करे या ख़ूबसूरत जवानी के साथ हम विस्तर हो ,उसकी ये इच्छा कदापि नही थी ।हो सकता है कि समय के साथ साथ उसकी जरूरत पड़ती लेकिन अब तक पवित्रता बरकार थी उसके end से।हाँ उसकी इच्छा ये जरूर थी कि कभी लांग टाइम पास बैठे बातें करें , कुछ दिल की बातें शेयर करें। हाँ ओ प्यार तो करता था पर प्यार में गंदगी नहीं चाहता था
वक्त का पहिया फिर घूमा।होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।गर्मी का मौसम था और धूप भी कहर बन के बरस रही थी ।आशु बहुत खुश था उस दिन ,नई - नई मोबाइल लाया था जिसमें व्हाट्सएप भी चल सकता था।खुश भी क्यों न हों मुराद जो पूरी हो गयी थी व्हाट्सएप चलाने की , ओ भी ऐसा जिसमे फ़ोटो भी भेजी और देखी जा सकती है।खुशी अपना रूप ले ही रही थी , विस्तार ही कर रही थी अभी , कि आशी का फोन आ गया- धोखेबाज, तूने मुझे बेवकूफ बनाया,मैं तुम्हारे ऊपर कितना भरोसा करती थी और तुमने मुझसे छुपाया की तुम्हारी शादी हो चुकी है और तुम्हारे दो बच्चे भी हैं।यह बहुत ही दुःखद और भयावह स्थिति थी जिसका सामना कर पाना बहुत ही मुश्किल का काम था।क्योंकि यह बहुत ही कड़वा सच था।अब आशु करे भी तो क्या करे सारी खुशियां दम तोड़ने लगी थीं।सारे सपने सिमटते जा रहे थे रात के आगोश में।बहुत मुश्किल में पड़ गया आशु क्योकि एक तरफ पत्नी का प्रेम है जिसमें समझौता नही हो सकता और दूसरी तरफ आशी जिसे वह खोना नहीं चाहता था। आशी ने बातें भी करनी बंद कर दी अब और आशु की हालत बिगड़ने लगी ।शायद आशु के बुरे दिन की सुरुआत हो गयी थी ,कोई कितना भी कठोर क्यों न हो पर जब उसको प्रेम कही से मिलने लगता है तो वह उस तरफ मुड़ जाता है फिर चाहे इंसान हो या जानवर सब पर लागू होता है।
अब यहां आप तेरे नाम मूवी का सेकंड पार्ट का दृश्य देख सकते हैं , जिसमे सलमान खान पागल हो जाता है ।हालांकि आशु पागल तो नहीं हुआ लेकिन हरकत जो थी ओ पागलों वाली ही थी जैसे संस्थान जाता तो बहुत उदास - उदास रहता।कहीं मन नहीं लगता ।तीन चार दिन बीत गए आशु खाना नहीं खाया,पर कितने दिन तक नहीं खायेगा । जीना है तो खाना पड़ेगा।आशु को जितनी मोहब्बत आशी से थी उससे कहीं ज्यादा नफ़रत उसे अपने आप से हो गयी । उसे लगता था कि खुदखुशी उसके लिए अच्छा ऑप्शन है।
ऐसा नहीं था कि हालात बुरे आशु के ही थे परेशान तो सबसे ज्यादा आशी थी।संस्थान ही नहीं आती थी ,कभी कभार आये भी तो खुद को बहुत अकेला महसूस करती थी।आशी करे भी तो क्या करे..........
धीरे - धीरे वक्त बीतने लगा , आशी भी मान गयी ,थोड़ी बहुत बातें फिर होने लगी।
पर धीरे - धीरे आशी ने जो अपना रूप पेश किया ओ एक दम जुदा था । पहले और अब में बहुत बदलाव था।आशु के पास तो अब भी सिर्फ आशी ही थी लेकिन आशी के पास अब दोस्तों और चाहने वालों की भींड़ थी।वही आशी जो फोन का इंतजार किया करती थी अब पचासों फोन करने पर भी एक फोन उठाना पसंद नही करती थी।न कभी कोई msg न ही कोई फोन।इन सब बातों से पता चलता है कि आशी बदल गयी है और सबसे बड़ा बदलाव तो उस दिन देखने को मिला जब आशी के birthday पर आशु पूरी रात wish करता रहा यहां तक कि सुबह भी।जिसके लिए आशु ने पूरी रात कुर्बान कर दी। उसने एक बार भी celebration में नहीं बुलाया यहां तक कि एक msg भी नहीं किया।जबकि आशु ये आश लगाए बैठा था कि जब सेलिब्रेट करेगी तब तो बुलायेगी ही,और तो और उसे इस बात का न तो कोई अफसोस और न ही पछतावा।अब और कितना बदल जाती तो आशु समझता कि ये बदल गयी थी।यूं तो आशु ने बहुत रात बितायी थी उसकी याद में पर क्या फर्क पड़ता है एक तरफा चाहत में।अन्ततः ओ दोनों अलग - अलग हो गये।