Aakhar Chaurasi - 6 in Hindi Moral Stories by Kamal books and stories PDF | आखर चौरासी - 6

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आखर चौरासी - 6

आखर चौरासी

छ:

बड़े भाई सतनाम की शादी के सिलसिले में गुरनाम अपने कॉलेज और हॉस्टल से छुट्टी लेकर पिछले पखवारे भर से घर आया हुआ था। पंजाबी शादी वाले घर का तो माहौल ही निराला होता है। हर सदस्य और घर आये मेहमान अपने-अपने ढंग से खुश और मस्त नज़र आते हैं। पूरे घर पर ही एक उत्साह-सा छाया रहता है। लड़की वाला घर हो तो ‘सुहाग’ और लड़के वाला घर हो तो ‘घोड़ियाँ’ गाती महिलाओं और लड़कियों के उत्साहित स्वरों से सारा वातावरण संगीतमय बना रहता है। सप्ताह भर पहले ही उत्साह और संगीत भरे माहौल मे सारा कुछ बड़ी अच्छी तरह संपन्न हुआ। नई दुल्हन घर आ गयी, दूर–पास के मेहमान भी समयानुसार अपने – अपने घरों को लौट गए थे।

शादी के उत्साह भरे उन दिनों में उसे कविता की भी बड़ी याद आती रही। शादी के बाद कुछ अपनी नई भाभी का चाव और कुछ बदले हुए घरेलू माहौल का आकर्षण, गुरनाम ऐसा फँसा कि पूरा पखवारा कैसे बीत गया उसे पता ही नहीं चला। लेकिन फिर उसे भी तो लौटना था, सो वह भी हॉस्टल लौट आया।

हॉस्टल लौट कर गुरनाम जब तक अपने कमरे में पहुँचा, दोपहर ढल चुकी थी। दोस्तों से हलो-हाय कर वह जल्दी-जल्दी तैयार होने लगा। उसे कविता से मिलने जाना था। रिक्शा जब कॉलेज मोड़ से आगे बढ़ कर कोर्रा चौक से दूसरी तरफ मुड़ा तो चौड़ी सड़क के दोनों तरफ खड़े यूकिलिप्टस और शीशम के पेड़ों से हो कर गुजरती खुशनुमा हवा उसके चेहरे को सहलाने लगी। उसके माथे पर लटकते बाल भी उस हवा के साथ लहरा रहे थे। उन बालों पर अक्सर कविता उसे छेड़ा करती, ‘तुमने लड़कियों जैसी लट क्यों बना रखी है ?’ उसे पता था कि गुरनाम ने एक बार ‘ब्लू लैगून’ फिल्म की हीरोइन का हेयर स्टाइल अपनाया था, बाद में उसकी वह लट हमेशा वैसी ही मुड़ी रहने लगी थी। गुरनाम कविता की बात याद कर मुस्करा दिया, उसके होठों से घर पर विवाह के दौरान सुनी घोड़ियों के टप्पे स्वतः ही निकलने लगे, ‘‘मत्थे ते चमकन वाल मेरे.......’’

***

ड्राइंगरुम में बैठे गुरनाम को थोड़ी ही देर हुई थी, जब भीतर वाला दरवाजा खोलकर कविता बाहर निकली। उसके साथ ही चालीस वाट वाली पी.एम.पी.ओ. की डिस्क पर चीखता हुआ माइकल जैक्सन गुरनाम की ओर झपटा, ‘यू कैन हिट मी....’। पसीने से भीगी, पीली टी-शर्ट और काली पतलून, माथे पर बिखर आये बालों की लाट ने कविता का चेहरा गुरनाम के लिए और भी आकर्षक बना दिया था।

‘‘माइकल जैक्सन के साथ रेस कर रही थी क्या ?’’ गुरनाम मुस्कराया।

‘‘हाँ, डांस और एरोबिक्स (व्यायाम) दोनों एक साथ हो जाते हैं।’’ कविता ने भी मुस्करा कर जवाब दिया। गुरनाम को देखकर उसका चेहरा भी खिल गया था, ‘‘तुम बैठो, मैं अभी चेंज कर आती हूँ।’’

कह कर कविता भीतर चली गई। भीतर स्विच ऑफ होते ही सी.डी. पर चीखता और आस-पास के सारे माहौल को अपने खास अंदाज में सराबोर करता, माइकल जैक्सन एकाएक चुप हो गया था। थोड़ी ही देर में कपड़े बदल कर एक हाथ में थर्मस और दूसरे में कार की चाबियाँ थामे कविता ने ड्राइंगरुम में दुबारा प्रवेश किया।

‘‘चलो उठो, जल्दी निकलते हैं। चाय केनरी लेक पर पीएँगे। माँ शापिंग से लौटनेवाली हैं। वे आ गईं तो फिर यहीं बैठना पड़ेगा।’’ उसने गुरनाम को बाहर की ओर खींचते हुए कहा।

गुरनाम और कविता बाहर खड़ी कार की ओर बढ़ गये। कार में बैठते हुए कविता ने पूछा, ‘‘घर से कब लौटे ?’’

‘‘अभी थोड़ी देर पहले। हॉस्टल से सीधा तुम्हारे घर आया हूँ।’’ गुरनाम ने जवाब दिया।

केनेरी लेक के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बैठने के लिए पत्थर की बेंचे बनीं हैं। वे दोनों भी एक बेंच पर जम कर बैठ गये। थर्मस के कप में चाय ढाल कर उसकी ओर बढ़ाती कविता शिकायती स्वर में बोली, ‘‘लगता है तुम्हारा मन भैया की शादी में कुछ ज्यादा ही रम गया था, तभी तो दस दिनों का बोल कर गये थे और पन्द्रह दिन लगा दिए। तुम्हारा समय तो वहाँ बड़े आराम से कट जाता होगा, मगर तुम्हारे बिना मैं यहाँ बिल्कुल बोर हो जाती थी।’’

चाय का घूँट भर कर गुरनाम बोला, ‘‘ऐसा नहीं है कविता कि मैंने वहाँ तुम्हें याद नहीं किया। सच कहूँ तो वहाँ ऐसा कोई क्षण नहीं बीता, जब मेरे जेहन से तुम्हारी स्मृति ओझल हुई हो। हां तुम्हारी बात सही है, वहाँ कुछ ज्यादा दिन रुकना पड़ गया। वैसे तो घर पर अभी कुछ दिन और रुकने को कहा जा रहा था। धनबाद वाले मामा जी और उनका परिवार तो अभी भी रुका हुआ था। ममेरी भाभी चलते समय बोली भी थी कि मेहमान अभी घर में हैं और मेजबान चल दिए....’’

‘‘ओ...हो, तब तो आपको कई-कई बाधाओं का सामना करके मेरे पास आना पड़ा।’’ कविता ने उसकी बात काटते हुए कहा।

‘‘हां भई, बाधाएं तो थीं, लेकिन मैंने सभी पार कर लीं और तुमसे मिलने आ गया, देख लो।’’ गुरनाम ने भी कविता की ही टोन में जवाब दिया।

चाय खत्म कर दोनों ने कप एक किनारे रख दिए।

कविता ने पास सरक कर अपना सर उसके कंधे पर रख दिया, ‘‘वैसे तुम्हारे घर वालों को सतनाम भैया की शादी परीक्षा के इतना पास नहीं करनी चाहिए थी। तुमने घर पर हमारी परीक्षा के बारे में नहीं बताया था क्या ?’’

‘‘मेरे ही कहने पर तो शादी की तारीख अक्तूबर में रखी गई थी। तुम्हें याद है न हमारे इम्हान सितंबर में ही खत्म होने वाले थे। वो तो ऐन मौके पर डेट बढ़ कर दिसंबर हो गई, वर्ना अब तक तो हमारे इम्तहान खत्म भी हो चुके होते।’’ गुरनाम बोला।

‘‘चलो अच्छा ही हुआ जो हमारी परीक्षा की डेट बढ़ गई।’’ कविता बोली उसके चेहरे पर एक भली-सी मुस्कान थी।

गुरनाम ने चैंकते हुए पूछा, ‘‘भला वह क्यों ?’’

‘‘सीधी-सी बात है।’’ कविता ने अपनी आँखें मूँदते हुए कहा, ‘‘अगर इम्तहान खत्म हो गये होते तो इस वक्त तुम यहां नहीं होते, अपने घर पर बैठे होते।’’

गुरनाम ने एक नज़र कविता के चेहरे पर डाली, वहां एक पवित्र शांति छाई हुई थी। उसके गालों पर झूल आयी लट को उसने हौले से हटाया और उसके चेहरे में खो गया।

सुदूर क्षितिज पर पश्चिम की ओर दौड़ता सूर्य काफी नीचे आ चुका था। आकाश का वह कोना सुनहरी होते हुए सुर्ख लाल रंग में तब्दील होता जा रहा था। थोड़ी देर बाद जब सूर्यास्त हो जाएगा, वह सुर्ख रंग धीरे-धीरे मटमैला हो कर रात की स्याही से मिल जाएगा। अभी तो सूर्य की वह रोशनी झील के पानी में भी सोना घोले थी। अपने घोंसलों को लौटते पक्षियों का कलरव सारे वातावरण को संगीतमय किए दे रहा था। वे दोनों उसी तरह शांत बैठे थे। दूर से देखने पर ऐसा लग रहा था मानों किसी कलाकार ने पत्थर की बेंच पर प्रेम में डूबी प्रतिमाओं की रचना कर, उन्हें सारे संसार के दर्शनार्थ वहीं छोड़ दिया हो कि आओ लोगों, प्रेम की शाश्वत सच्चाई देख लो.....।

थोड़ी देर बाद कविता ने आँखें खोलीं। कुछ देर तक एकटक उसके चेहरे को देखती रही। फिर झुक कर एक कंकड़ उठाया और झील के शांत जल में उछाल दिया। ‘डुबुक’ की आवाज़ के साथ कंकड़ के डूबने की जगह को केन्द्र बना, लहरों के ढेर सारे वृत्त किनारे की ओर दौड़ पड़े। कविता भी शांत झील की तरह अचानक ही खामोश हो गई थी। गुरनाम ने गौर से देखा, कंकड़ फेंके जाने के बाद झील में उभरे वृत्तों की तरह ही, उसे कविता के चेहरे पर भी कई वृत्त उभरते से लगे।

‘‘क्या बात है कविता, यूँ अचानक चुप क्यों हो गई ?’’ गुरनाम ने उसके शांत चेहरे पर सवाल का कंकड़ उछाला।

वृत्त अचानक कांप कर रुक गये। एक पल को उसकी आँखों में देखते रहने के बाद कविता ने अपनी चुप्पी तोड़ी, ‘‘कभी-कभी बड़ा डर लगता है, गुरनाम !’’

‘‘किस बात का ?’’

‘‘हमारे रिश्ते को अगर घरवालों की मंजूरी न मिली तो ?’’ कविता की आवाज़ अनजाने डर से काँप गई थी।

उसकी बात सुन कर गुरनाम के अधरों पर एक मुस्कान फैल गई। उसने तपाक से जवाब दिया, ‘‘तब तुम हीर बन जाना और मैं राँझा बन जाऊँगा।’’

उसकी बात सुन कर कविता चौंकी, कहां तो वह सीरियस है और गुरनाम मज़ाक कर रहा है। वह चिढ़ कर बोली, ‘‘तुम्हें तो बस हर वक्त मज़ाक सूझता रहता है। मैं इतनी संजीदा हूँ और तुम मेरी बात को इस तरह उड़ा रहे हो।’’

‘‘अरे...रे... तुम तो सचमुच नाराज हो गई। मैंने तो मज़ाक किया था।’’ गुरनाम ने उसे मनाते हुए कहा, ‘‘वैसे यह बात तो हम दोनों ही अच्छी तरह जानते हैं कि इस रिश्ते को मंजूरी दिलाने के लिए हम दोनों को ही कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। फिर डरना कैसा ?’’

कविता ने अपनी आँखें उसके चेहरे पर गड़ा रखी थीं। गुरनाम ने उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर हल्के से दबाया और मुस्कराते हुए बोला, ‘‘वैसे श्रम-विभाजन के सिद्धान्त को आधार बनाएं तो तुम अपने घर वालों को मना लेना, मैं अपने घर वालों को मना लूंगा।’’

‘‘ओ हो, हो ....मैं अपने घर वालों को मना लूंगा।’’ कविता ने उसकी नकल करते हुए कहा,‘‘तुमने तो बड़ी आसानी से कह दिया, अपने-अपने घर वालों को मना लेंगे। परन्तु क्या तुम जानते भी हो, लड़की का अपने घर वालों को मनाना कितना कठिन होता है ? अगर मैं असफल रही तो......’’ उसके स्वर में अभी भी कई वृत्त काँप रहे थे।

‘‘तब तो एक ही हल निकलता है, मैडम जी ! अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा, अपने आपको संभालो। आज से मुझसे मिलने-जुलने पर पाबंदी लगा लो।’’ लगता था गुरनाम आज उसे छेड़ते रहने के मूड में है।

‘‘तुम्हें तो कोई भी बात सीधे ढंग से करनी ही नहीं आती। अच्छा बताओ तुम कर सकोगे मुझसे मिलना-जुलना बंद ?’’ कविता ने उस पर प्रश्न ठोंका।

गुरनाम कुछ पल उसके प्रश्न को अंदर ही अंदर सहलाता रहा। अब वह भी संजीदा हो गया था।

‘‘सच तो तुम भी जानती हो कविता, हम दोनों ही एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते।’’ उसने ठंडे स्वर में उत्तर दिया।

‘‘अब आये न रास्ते पर।’’ कविता खिखिलाते हुए बोली,‘‘ठीक है, तब की तब देखेंगे। अभी से क्यों फिक्र करें ?’’

उसने झुक कर एक और कंकड़ उठाया और झील में उछाल दिया। आसमान का पश्चिमी छोर मटमैला होने लगा था। शाम की ठंढक भी बढ़ने लगी। कविता ने फिर उसके कंधे पर सर रख कर आँखें मूँद लीं। वे दोनों एक दूसरे के दिलों की धड़कने सुनने लगे।

दबे कदमों उतरती शाम के साथ आस-पास खड़ी इमारतों की जलती रोशनियाँ झील के शांत जल में उतर कर अठखेलियाँ करने लगीं। झील के अंदर रोशन इमारतों का शहर उगना शुरु हो गया था।

‘‘अब चलना चाहिए, वर्ना तुम्हें देर हो जाएगी।’’ गुरनाम ने कविता के गाल पर हौले से थपकी देते हुए कहा।

कविता ने आँखें खोल कर चारों ओर देखते हुए कहा, ‘‘हूं... हाँ चलते हैं।’’

वे दोनों उठ कर कार की ओर बढ़ गये। कविता कार स्टार्ट करते हुए बोली, ‘‘तुम्हें हॉस्टल छोड़ते हुए, मैं घर चली जाऊँगी।’’

हॉस्टल से कुछ पहले ही उन्हें प्रकाश और संगीत नज़र आए, वे भी हॉस्टल को लौट रहे थे। गुरनाम ने कह कर उनके पास ही कार रुकवा ली।

‘‘हलो प्रकाश, हलो संगीत !’’ कविता ने कार रोकते हुए कहा।

‘‘हलो कविता !’’ उसके अभिवादन का जवाब देते हुए वे दोनों रुक गए।

अपनी तरफ का दरवाजा खोल कर गुरनाम नीचे उतर आया, ‘‘ओ.के कविता गुडनाईट !’’

‘‘गुड नाईट।’’ कह कर कविता ने कार मोड़ ली।

वे तीनों बातें करते हॉस्टल की ओर बढ़ने लगे। गुरनाम और संगीत हॉस्टल में घुस कर अपने कमरों की तरफ ‘किंग्स लोवर’ तथा प्रकाश ‘किंग्स अपर’ ब्लॉक की ओर बढ़ गए। इम्तहान के कारण उन्हें अलग-अलग एक बिस्तर वाले कमरे मिल गए थे। वे तीनों अपने-अपने कमरों में चले गए।

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कमल

Kamal8tata@gmail.com