Life @ Twist and Turn .com - 9 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 9

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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 9

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 9

` दुर्लभ पति --दुर्लभ पति ---दुर्लभ पति `---------- दामिनी के बंगले के अपने कमरे में आकर भी यामिनी के कानों में ताली बजाकर चीयर अप करती बहिनों व भांजी कावेरी, सावेरी के ठहाके गूंज रहे हैं । वह सच में ही भाग्यवान है जो उसे ऐसे जीवन साथी मिले। पलंग पर बाजू में अपने सीने पर हाथ रखकर बेफ़िक्री सो रहे हैं कि उन्हें देखते हुए लाड़ उमड़ा पड़ रहा है। यूँ तो यामिनी के पति का नाम हरिंदर था परन्तु फ़ौज़ में उन्हें हैरी कहते थे । अपनी एकलौती लाड़ली बिटिया अनुभा के लिए` पापा` हैं और यामिनी ने उन्हें उस दिन से एक नया नामकरण कर दिया था -` दुर्लभ पति `और कह कर ज़ोरदार ठहाका लगा कर हंस पड़ती थी । हैरी उर्फ़ हरिंदर उस के माथे पर धौल मार कर कहते “ पेज ढीला हो गया है । ’`

उसने ये नाम तब दिया था जब वो एक बार बहुत पहले ट्रेन से जा रही थी तब हवाई यात्रा का इतना प्रचलन नहीं हुया था और उसकी सहयात्री महिला से ट्रेन में हुई बात चीत के दौरान उसे यह विचित्र अनुभव हुया था |

रेल यात्रा उसे बचपन से ही सुहानी लगती है। बिजली के तारों का संग-संग चलना, हर स्टेशन पर नए-नए चेहरे, नई कहानी का शुरू होना, यात्रा में गहन मित्रों का बन जाना और फिर कभी ना मिलने के लिए बिछड़ जाना। ट्रेन छूटने ही वाली थी कि एक अति आधुनिक महिला अपना सामान और चेहरा सँभालती हबड़ड़ाती डिब्बे में दाखिल हुई, जैसे तैसे वो सामने की बर्थ पर आकर बैठ गई, “हेलो !

उसी ने पहल की । “आप कहाँ जा रही है ?”

यामिनी ने बताया कि उसके पति फ़ौज में हैं और वो उनसे मिलने नागालैंड जा रही है अभी कलकता तक ट्रेन में फिर हवाई जहाज से दीमापुर प्लेन से जायेगी ।

“ हाय !आपके पति फ़ौज में है, मैं तो अपनी शादी फ़ौजी से करना चाहती थी परन्तु मम्मी डैडी नहीं माने । मेरे पति एक बड़ी इंटरनेशनल कंपनी में काम करते है । ” वह कुछ और बताने की जल्दी में बोली, “हम भी खूब क्लब जाते हैं, मेरे पति केवल स्कॉच ही पीते हैं। वैसे मुझे भी बियर पीने की आदत पड़ गई है। क्या करें, यों तो सोसाइटी में सब कुछ करना पड़ता है। ” विवशता और गर्व का मिला जुला अहसास।

यामिनी ने भी` हाँ` में` हाँ `मिलाई थी और साथ ही याद आया था अपने सर्वैन्ट-क्वार्टर में रहने वाली आया ऐलिस और उसके पति थॉमस का `रम ` मांगने का दृश्य, थॉमस कह रहा था, “साहब ! बेटे का जन्मदिन है, बिरादरी वाले और दोस्तों को न पिलाई तो नाक कट जायेगी। हमारी बिरादरी में शराब न पिलाने से बड़ी बदनामी होती है । ”

उसकी मजबूरी और इनकी भी विवशता, सोचा जब पढ़े लिखे समाज का दायरा इतना संकुचित है तो बेचारे अशिक्षित वर्ग का क्या कसूर जिनके बड़प्पन का मापदंड ही सीमित है।

“शौक फरमाइए । ” उनकी आवाज़ सुनकर, कल्पना लोक के बाहर आई, देखा, ‘पान पराग’ बढ़ा रही थी।

“नहीं, धन्यवाद, मैं नहीं लेती। ”

“हाय! आप यह भी नहीं खातीं ? हमारे यहाँ तो एक दूसरे के पर्स से चुरा -चुरा कर खाते हैं । ” और वह बेशर्मी से हंस रही थी।

‘`चुराना क्या अच्छी बात है?’` गले तक झिड़की आकर ठिठक गई

“अरे, आप तो कुछ बोलती ही नहीं। क्या नाम है आपका। ”

“कौन सा बताऊँ ? अपना या कि पति से जुड़ा वाला ?”

“दोनों ही बताइए। ”

“मुझे यामिनी कहते हैं, वैसे मैं श्रीमती गुप्ता हूँ। ”

“मेरा नाम इला है, श्रीमती महंती। ”

“हेलो ! ” दोनों इकट्ठे ही मुस्कुराए थे ।

“ताश खेलेंगी?” उत्तर पाने से पहले ही पर्स खोल कर ताश की गड्डी निकाल ली। दोनों के बीच की दूरी कम करने के लिए एक छोटा तौलिया बिछा लिया, इला पत्ते मिलाते हुए बोली, “दीपक को मेरा ताश खेलना बिलकुल पसंद नहीं। ”

“तो तुम मत खेला करो?” उम्र और अनुभव में छोटी थी। अतः तुम कहने और सलाह देने का अधिकार स्वतः ही ले लिया।

“वाह! क्यों न खेलूँ ?” घायल सिंहनी सी गरजी। “क्या दीपक वह सब करते हैं जो मुझे पसंद है, उन का शराब पीना और श्रीमती कामथ के साथ चिपक कर डांस करना क्या मुझे पसंद है ?” और उसने बंटे बटाए पत्ते फेंक दिए।

“क्या हुआ?” पूछा|

“ ग़लत बंट गए, री -डील होगी.”

और उस के कुशल हाथ, ताश की गड्डी फेंटने लगे। गोरे -गोरे हाथों पर सजती नेलपोलिश, हाथों की तीन तीन उँगलियों पर हीरे और पत्थरों की तराशी अंगूठियाँ, बड़ा ही संपन्न हाथ था। ताश के पत्ते उठाने को बढ़ाया अपना काला हाथ, कटे हुए नाखून और मात्र एक घिसा हुआ सा सोने के छल्ले वाला हाथ ।

“आप को पता है श्रीमती कामथ बड़े ख़राब चरित्र की महिला है, इतना लो कट ब्लाउज़ पहनती है, जब देखो तब पुरुषों से घिरी रहती है। हर हफ़्ते नया केश विन्यास, नयी डिजाईन की ड्रेस, मुझे तो ज़रा भी नहीं भाती। ” मुंह बिचका कर इला ने पत्ते फिर बांट दिए। , पत्ते बटोर कर पंखे से फहरा दिए, इस बार उस का चेहरा फूल सा खिल उठा, `` अहा-- पपलू आ गया। ”

“क्या आप के पति वह सब करते हैं जो आप को पसंद है?”

इला का पूछना कुछ इस प्रकार का था मानो उसे ललकार रही हो, उस का इतना आक्रोश पति की तरफ़ देख कर सोचा कुछ उलाहना तो उसे भी करना चाहिए। अतः उनकी बुराईयां ढूंढी और कहा, “अजी कहाँ। अब देखो न, मुझे सिनेमा देखने का इतना शौक है, वह भी नहीं दिखाते कभी। ”

“तो क्या। आप अपनी पसंद का कैसेट ला कर देख लिया करिए। । । ”

“हमारे पास वी सीआर नहीं है। ” झिझकते हुए बोली, “मेरे पति कहते हैं कि बिटिया की पढ़ाई में हर्ज़ा होता है। इसी लिए नहीं ख़रीदा। । । ” ट्रेन की सहयात्री को आर्थिक स्थिति क्यों बताऊँ !

“पर बच्चों के लिए हम अपना मनोरंजन भी न करें। इट इज टू मच। ” कुछ बंधन सा महसूस करती हुई इला बोली।

“अपना- अपना विचार है, अप टू यू। ” उसे समझाने की चेष्ठा नहीं की।

उसे क्या बताती कि घर, पति व बच्चों का सुख ही उसका वांछित स्वप्न है। नहीं, नहीं यह सब बता कर बम्बइया हीरोइन निरूपा राय जैसी की भावुक भूमिका नहीं करनी है।

“अब देखो न, मेरे पति न शराब पीते हैं, न पार्टी में जाना पसंद करते हैं और ना ही क्लब और डांस का शौक । ”

इला की अविश्वास भरी आँखें विस्फ़ारित हो उठीं। , “क्या कह रही हैं आप, फौज़ी अफसर और ---- औ र---- ”

‘---- इतनी दुर्गति। ” हंस कर उस का वाक्य पूरा किया। ” इन्हें तो लोग सूफ़ी कहते हैं। रही सही कसर पूरी हो जाती है हमारे शाकाहारी होने पर। ”

“ओह नो, फिर तो वास्तव में आप सभी सुखों से वंचित हैं। ” बड़ी सहानुभूतिपूर्वक इला ने पत्ता फेंका, पर वह सीक्वेंस में फ़िट नहीं पड़ रहा था, गड्डी से दूसरा पत्ता चुनते हुए उसने धीरे से कहा था, “पर एक बात बताऊँ मैं अपने जीवन से बहुत खुश व संतुष्ट हूँ। ``

`` तुम बोर नहीं होती ?”

“हाँ, होती हूँ, कभी -कभी लड़ती भी हूँ, पर यह इतने भले हैं कि मेरा क्रोध भी सह लेते हैं। ”

“ सच सह लेते हैं? ” ताश खेलना भूल गयी थीं, इला।

“हाँ, और तो और यदि मैं क्रोध में सुबह ना उठू तो भी प्रतिकार नहीं करेंगे। बल्कि मेरी चाय और अपने बीमार पिता की चाय दवा भी स्वयं दे देंगें। यदि मैं क्रोध में कलह करूँ, इन्हें भला बुरा कहूँ, तो कहेंगे, ``मैं अपने लिए तो कुछ करता नहीं, यदि तुम्हें खुश न रख पाऊं तो दुःख होता है। ’`

इला के सिर पर तो जैसे गाज गिरी। “तुम्हारे पति बूढ़े माँ बाप की सेवा भी करते हैं ?”

“हाँ, वह रोज़ उन के अपाहिज पैर की एक घंटा मालिश करते हैं, उन का मलमूत्र साफ़ करते हैं, मुझे कभी नहीं कहते करने को और ज़रुरत पड़े तो पिताजी के कपड़े भी धो डालते हैं। आजकल के युवा पति नन्हे बच्चों के डायपर बदल डालते हैं, ये तो हैं पुराने ज़माने के लेकिन तब हमारी इकलौती बिटिया अनुभा के डायपर बदल डालते थे। आज तो बेटी सिंगापुर में डॉक्टर है। ”

अब तक इला पस्त हो चुकी थी। बोली, “माफ़ करना, यामिनी ! तुम कुछ बढ़ा चढ़ा कर कह रही हो, अरे मेरे घर में तो सास ससुर चार दिन भी आ जाएँ तो हमारी दीपक की लड़ाई हो जाती है। ‘तुम ने डैडी की पसंद का चिकन क्यों नहीं बनाया’, ‘तुम ने मम्मी के बिस्तर की चादर ठीक नहीं लगवाई’, ‘तुमने कहीं उन्हें घुमा लाने का प्रोग्राम क्यों नहीं बनाया’ और उनके जाने के बाद ही चैन की सांस लेती हूँ। ससुर को मधुमेह है और सासु को ह्रदय रोग। इतने बजे दवा तो उतने बजे खाना, बेचारे नौकर चाकर भी तंग आ जाते हैं। ”

“मेरे ससुर तो बिस्तर से उठ भी नहीं सकते हैं, परन्तु नौकर चाकर भी उन्हें बोझ नहीं मानते। ”

इला का चेहरा बता रहा था कि उसे इन बातों पर विश्वास नहीं हो रहा था। अतः उसे सहज और आश्वस्त करते हुए दुलार से कहा, “देखो इला, !घर-ग्रहस्थी का सुख का कमल त्याग, प्यार, आपसी आदर, ममता व बलिदान रुपी जलवायु में ही खिलता है किन्तु आज वातावरण में इतनी अशुद्धि आ गयी है कि ‘मैं ही क्यों करूँ, ’ प्रतिशोध, प्रतिरोध, हठ, अधिकार की तेज आंधी में यह कमल फूल खिल ही नहीं पाता है और रहे मेरे पति, अरे भाई, ये तो अग्निपारवी की तरह दुर्लभ प्राणी हैं। कितने ही खूबसूरत पशु पक्षी आज धरा से लुप्त हो रहे हैं तो इनके जैसे पति भी अब धीरे धीरे समाप्त हो जायेंगे। तुम अपना मन भारी मत करो। ”

इला बोली, “ लो महिलाओं की मुक्ति के लिए सारा ज़माना रो रहा है। हर रोज धरने और जलूस निकले जा रहे हैं और तुम परिवार की सेवा में लगी हो। मैंने तो दीपक से कह दिया कि अब नया ज़माना आ गया। बच्चे अपने रास्ते चलें, तुम अपने। मैं भी तो स्वतन्त्र हूँ। ”

यामिनी को समझ नहीं आ रहा था कि उनके पति को दुर्लभ कहूँ जो पति नहीं मात्र टेलीविजन बन कर रह गए हैं या अपने पति को, उन जैसे प्राणी अब लुप्त होते जा रहे हैं।

यामिनी को वो ट्रेन की सहयात्री कभी नहीं भूली और तबसे उसने हैरी का नया नामकरण कर डाला था, ”दुर्लभ पति’ सूफ़ी होने के बाद भी वे खूब पार्टी आदि करते और बड़े यत्न से पति देव, बढ़िया व्हिस्की, स्कोच, बियर और सूफ़ी जनों के लिए कोल्डड्रिंक का प्रबन्ध रहता था । जब इनकी पोस्टिंग होती और इनके साथ लिकर की क्रेट नए घर में बाक़ी सामान के साथ उतरती तब यामिनी नये बटलर व वॉचमेन की फुसफुसाहट सुनकर हंस देती थी, , ``साहब अच्छा ख़ासा पियक्क्ड़ होगा । `

यामिनी भी उस सस्पेंस को खोलकर मुस्करा देती, ``तुम्हारे साहब पियक्क्ड़ नहीं हैं। पार्टीज़ के लिए ये रखनी पड़ती हैं. यदि ये पियक्क्ड़ होते तो बोतलें भरी मिलतीं ?``

हैरी को तो लिक्वर दे कर काम निकलवाना बिलकुल पसंद न था अब चाहे हमारा रेल रिज़र्वशन हो या स्कूल में एडमिशन । तभी एक शाम मैस में डिनर पर हमारे साथी अफ़सर ने गर्व से बताया, “ मैंने अपने बेटे का एडमिशन, मिड टर्म में करवा दिया। ”

घर आकर यामिनी ने हैरी से झगड़ा किया, `` बरवा ने कैसे एडमिशन करवा लिया वो भी लखनऊ के सबसे अच्छे स्कूल में ?``-

सब सोचते रह गये । उसमें एडमिशन जैसे मिलना मानो चाँद छू लेना, कहते थे वहाँ कोई सिफ़ारिश नहीं चलती । बरवा आसाम का रहने वाला था उसकी पोस्टिंग सप्लाई डिपार्टमेंट में थी. हैरी धीमे से मुस्करा उठे थे , ``आजकल केरोसीन तेल की बड़ी मारा -मारी है. उसने मिल्ट्री केंटीन से अपने परमिट पर खऱीदकर फ़टाफ़ट प्रिंसिपल के घर दो तीन कैन केरोसिन के भेज दिए थे । ``

इला ट्रेन में पूछती है, ``मैंने सुना है फ़ौज में अपना काम निकलवाने के लिए ये जुमला मशहूर है - `रम इंटरनेशनल करैंसी है `।

यामिनी खिलखिला पड़ी, ``आपको भी ये पता है ?ये बात सच है। ` स्कूल में एडमिशन से ले कर घर में कैसा भी रिपेयर का काम करवाना हो, पैन्ट- पोलिश करवानी हो बस दो बोतल रम । दो बोतल रम जो काम कर सकती है वो हज़ार सौ रुपए नहीं कर सकते. हम फ़ौज़ियों की तनख़्वाह बहुत कम है लेकिन रम बड़ी सस्ती है परन्तु लेकिन उसूलों के पक्के हैरी ने कभी अपना काम निकलवाने के लिए रम का इस्तमाल नहीं किया। इसलिए हर दो ढाई साल में ट्रांसफ़र होते रहे। हर ढाई तीन साल में शहर बदलना, और एक ही शहर में तीन चार मर्तबा घर बदलना, चिड़िया रैन बसेरा, फिर भी हम ‘ज़िंदगी का साथ निबाहते चले गए, ---- जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया । लगता है ये गीत हमारे जीवन पर लिखा गया था |``

इला का गोल मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया।

आज दामिनी के बंगले के बैड रूम में लेटी दामिनी सोच रही है कि ज़िंदगी में सब कुछ दुर्लभ जैसा सुन्दर क्यों नहीं होता ? परिवार में सब समझते हैं कि अनुभा से अच्छा संतुष्ट परिवार कोई हो ही नहीं सकता। अनुभा जैसी ज़हीन इकलौती बिटिया का भाग्य क्यों दुर्लभ रूप से सुन्दर नहीं हुआ ?

कामिनी भी तो कल आने वाली है। कैसे सब उस का सामना करेंगे जिसकी युवा बेटी ने आत्महत्या कर ली ?

सुबह नाश्ते के बाद दामिनी ने उससे अनुरोध किया, ``प्लीज़ ! प्रिय से मेरी बात करवा दे। सुनें तो सही उसके क्या हाल चाल हैं ?उससे अनुरंजिता की ख़बर भी मिल जायेगी । ``

``श्योर। ``

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मधु सोसी गुप्ता

ई -मेल -----sosimadhu@gmail.com

परिचय- जन्म-स्थान- मेरठ (उ.प्र.)

शिक्षा- अंग्रेजीं साहित्य में एम्.ए. तथा बी.एड.

व्यवसाय- कुछ समय डिग्री कालेज़ में पढ़ाया, ;सिटी प्लस टेलीविज़न एन्ड फिल्म इंस्टीट्यूट’में ;विज़िटिंग फ़ैकल्टी के रूप में कुछ वर्ष काम किया|

प्रकाशन-

लगभग 1990 से कहानियाँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती रही हैं, जैसे- दिल्ली प्रेस कीगृहशोभा, सरिता, ताप्ती लोक, वनिता, वर्तमान साहित्य, विराट वैभव, अभिनव – ईमरोज़ ‘कमलेश्वर कहानी पुरस्कार’ में कभी तीसरा तो कभी छठा स्थान प्राप्त हुआ, हिंदी साहित्य परिषद् गुजरात द्वारा आयोजित कहानी स्पर्धा में प्रथम स्थान प्राप्त, सन 2016 में साहित्य समर्था, जयपुर द्वारा कहानी “यू –टर्न” को श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार

काव्य-संग्रह ‘कुछ वज़नी-कुछ हल्की’ प्रकाशनाधीन.

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