Tukda-Tukda Jindagi - 2 in Hindi Moral Stories by प्रियंका गुप्ता books and stories PDF | टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी - 2

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टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी - 2

टुकड़ा-टुकड़ा ज़िन्दगी

प्रियंका गुप्ता

भाग - २

फ़ैज़ान मियाँ एकदम खामोश हो गए। आलिया आखिर कैसा वादा चाह रही थी...बिन जाने कैसे खुदा को हाज़िर-नाज़िर जान कर वादा कर लें...? आलिया उनकी ख़ामोशी की आवाज़ भी सुन सकती थी, ये शायद वो अब भी नहीं समझे थे। इस लिए उसने ही बात स्पष्ट की...परेशान न होइए...ऐसा कुछ नहीं माँग रही, जिसे आप दे न पाएँ...। आपको आपकी सारा से छीनने का कोई इरादा नहीं हमारा...छीन कर करेंगे भी क्या...? हम तो सिर्फ़ इतना चाहते हैं कि आपकी और सारा की शादी में आपका सारा काम हम करें...। मसलन, आपकी शादी की सारी शॉपिंग आप हमारे साथ करें...आप का कमरा हमारे सिवा कोई और न सजाए...और सारा को आप तक पहुँचाने में हमें किसी और की साझेदारी नहीं चाहिए...। बोलिए, है मंज़ूर...? हम भी इसके बदले आप से वादा करते हैं कि सारा से आपकी शादी के लिए घर में सबको राज़ी करने में हम आपके साथ हैं...हर तरह से...।

अन्धा क्या चाहे...दो आँखें...। फ़ैज़ान मियाँ ने तुरन्त हामी भर दी...। सारा से उनकी शादी की बात आलिया इतनी आसानी से पचा ले जाएगी...उन्हें ज़रा भी नहीं अन्दाज़ा था। वे तो आज यहाँ किसी बड़े ड्रामे के लिए खुद को तैयार कर के आए थे...पर ऐसा कुछ न होने पर उन्हें दिली खुशी हो रही थी। जी चाहा, आलिया को बाँहों में उठा कर नाच लें...। इतना बड़ा दिल होगा उसका, ये भी नहीं जान सके थे वो कभी...। हल्का अफ़सोस भी हो रहा था उसके लिए...बेचारी...। उन्हें और खुद को लेकर कितने सपने सजा रखे थे उसने, ये तो मालूम ही था...। इस बाबत कभी कुछ नहीं छुपाया उसने...कोई जज़्बात उनके साथ बाँटे बिना नहीं रह पाई थी वो...। मन-ही-मन उन्होंने खुद से एक और वादा कर लिया...। इसकी इच्छा का शौहर वो उसे दिला कर रहेंगे...। हर हालत में उसकी खोई खुशियाँ लौटा ही लाएँगे...।

घर में ये नया राज़-फ़ाश होते ही जैसे धमाका हुआ। आलिया के अम्मी-अब्बू ही क्या, उधर तो नासिर मियाँ और नसीबन ने भी फ़ैज़ान के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल लिया था। दोनो परिवार पूरी तौर से आलिया के साथ थे...। फ़ैज़ान की बीवी बनेगी तो सिर्फ़ और सिर्फ़ आलिया...और कोई नहीं...। फ़ैज़ान भी कम ज़िद्दी नहीं थे...उनका भी एक ही फ़ैसला...शादी करेंगे तो सिर्फ़ सारा से...। आलिया के साथ उनकी पूरी सहानुभूति थी...पर ज़िन्दगी भर साथ निभाने के लिए वे सारा के सिवा और किसी के बारे में नहीं सोच सकते...।

ऐसे में अपने वादे के अनुसार उनकी तरफ़ का मोर्चा आलिया ने ही सम्हाला था। सबसे पहले वो अपने अब्बू-अम्मी के सामने आई थी...जो इंसान उसके बारे में अब कुछ सोचना ही नहीं चाहता, वो भी उसके साथ कोई जबर्दस्ती का रिश्ता नहीं रखना चाहती...। ये बेइज्ज़ती-सी लगती रहेगी उसे ता-उम्र...। फिर नसीबन खाला के घर जाकर फ़ैज़ान के साथ खड़ी हो गई...। उसे अपनी मर्ज़ी की ज़िन्दगी जीने का हक़ मिलना ही चाहिए...। आखिर उस घर का एकलौता चश्मो-चिराग़ है वो...उसकी खुशी का कुछ ख़्याल रखा जाना चाहिए या नहीं...। फिर जब आलिया को उसके इस फ़ैसले से कुछ एतराज़ नहीं था, तो बाकी सब क्यों इतनी हाय-तौबा मचा रहे थे...। सबसे ज़्यादा फ़र्क तो उसके ऊपर पड़ना चाहिए था न...।

थोड़ी हील-हुज्ज़त, ना-नुकुर के बाद आखिर फ़ैज़ान के अम्मी-अब्बू मान ही गए...। हाँ, अपने अब्बू-अम्मी को राजी करने में आलिया को खासी मशक्कत करनी पड़ी। वे दोनो गुस्से से उबल रहे थे...। उनकी बेटी में ऐसी कौन सी कमी थी जो इस मोड़ पर लाकर फ़ैज़ान ने यूँ धोखा दिया। उस बेचारी की ज़िन्दगी का तो हर फ़ैसला फ़ैज़ान के हिसाब से ही लिया जाता रहा। फिर क्यों...? उस सारा में ऐसे कौन-से सुर्ख़ाब के पर लगे थे कि आलिया बिल्कुल ही नज़र से उतर गई...?

फ़ातिमा तो नफ़रत की आग में सुलग रही थी। उन्होंने साफ़ ऐलान कर दिया, आइन्दा उनका अपनी बहन या उसके परिवार से कोई लेना-देना नहीं...। पर आलिया फिर अपनी ज़िद पर आ गई...। खाला और उनके परिवार से से उन सबका वैसे ही नाता रहेगा, जैसा इस काण्ड के पहले था...बिल्कुल नॉर्मल...। वरना वो खाना-पीना छोड़ कर जान दे देगी...। धमकी असर कर गई और बुझे मन से ही सही, पर उन दोनो ने आलिया को उस घर की खुशी में हिस्सा लेने की इजाज़त दे ही दी...। पर खुद किसी कामकाज़ में शिरकत करने से साफ़ इंकार कर दिया...। ये इंकार तब भी नहीं बदला जब बड़े संकोच के साथ नासिर मियाँ और नसीबन आए थे उनके यहाँ...फ़ैज़ान की शादी में शामिल होने की इल्तज़ा करने...। आलिया के अब्बू ने साफ़-साफ़ कह दिया...माना हम हैसियत में आपसे हमेशा कम रहे, पर इसका मतलब ये नहीं कि हमारी कोई इज्ज़त या अरमान नहीं थे...। अगर ऐसा ही करना था तो अब तक इस भुलावे में क्यों रखा कि सब कुछ वैसा ही होगा जैसे हम दोनो परिवारों में बरसों से कहा या सोचा जा रहा था...?

अपना पक्ष रखने नसीबन ही आगे आई...आपा, सोचो जरा, आलिया की धमकी से आप लोगों ने दिल पर पत्थर रख कर उसे हमारे यहाँ सब कामकाज़ में आने की इजाज़त दे दी न...? उसी तरह फ़ैज़ान मियाँ भी हमारे एकलौती औलाद हैं...। जब बात औलाद के जीने-मरने पर आ जाती है तो बाकी सब कुछ बेमानी हो जाता है...इतना तो आप लोग भी मानेंगे न...?

शादी का दिन जैसे-जैसे क़रीब आता जा रहा था, आलिया का उतना ही समय फ़ैज़ान के यहाँ बीत रहा था...। फ़ैज़ान के सामान से लेकर सारा के लिए भी सारी खरीददारी आलिया की ही मर्ज़ी से हुई...। नसीबन खाला पल-पल आह भर रही थी...खुदाया, अगर यही बच्ची आ जाती इस घर में दुल्हन बन कर, तो क्या बिगड़ जाता...? ऐसी नेक, शरीफ़ और बड़े दिल वाली लड़की को तो हर कदम पर सिर्फ़ खुशियाँ ही मिलनी थी, ये काँटों से उसका दामन क्यों भर दिया...? वे अच्छी तरह महसूस कर रही थी कि इस समय आलिया की हर हँसी, हर मुस्कराहट, हर खिलखिलाहट के पीछे हज़ार-हज़ार आँसू छिपे हुए हैं...। पर वो फ़ैज़ान से अब भी इतनी मुहब्बत करती है कि उसकी खुशी के लिए हर ग़म सह रही...।

शादी का दिन भी आ गया। आलिया सुबह से बहुत खुश नज़र आ रही थी। फ़ैज़ान मियाँ पर मज़ाक के सारे तीर चलाने में वो सबसे आगे थी...। उसके पैरों में मानो पंख लगे हों...। किसी काम के लिए आवाज़ किसी को लगती, हाज़िर सबसे पहले वो हो रही थी...। हाँ, जैसा कि अन्देशा था, उसके अम्मी-अब्बू आज भी नहीं आए थे...।

शादी राजी-खुशी निपट गई थी। फ़ैज़ान के दिए वादे के अनुसार दूल्हा-दुल्हन का कमरा आलिया ने ही सजाया था...और जब बारी सारा को उस कमरे तक पहुँचाने की आई, नसीबन खाला ने दुल्हन को घेर कर बैठी हर लड़की को डाँट-डाँट कर भगाया, सिर्फ़ आलिया को छोड़ कर...। आलिया ने बड़े नाज़ुकपने से सारा को यूँ सहारा देकर उठाया मानो वो कोई फूल हो और ज़रा-सा झटका लगते ही बिखर जाएगी...।

अपना कमरा देख कर सारा को थोड़ी हैरानी हुई...। ये सच में आलिया ने ही सजाया है क्या...? कमरा ऐसा होगा, उसने तो सपने में भी नहीं सोचा था...। आलिया ने आहिस्ता से उसे ले जाकर पलंग पर बिठा दिया...दुल्हन, अब यहीं आहें भर-भर कर दूल्हे मियाँ का इंतज़ार करो ज़रा...। हम देख कर आते हैं, कोई और न ले उड़े उन्हें...और हाँ, तुम दोनो के लिए सब सामान है यहाँ...तो बाहर न आ जाना अपने दूल्हे राजा को ढूँढते हुए...। आज उन्हें थोड़ी नवाबी दिखा लेने दो...थोड़ा-सा वक़्त और गुज़ार लेने दो दोस्तों के संग...बाद में तो बेचारे परकटे-परिन्दे की तरह तुम्हारे पल्लू में बँधे फड़फड़ाया ही करेंगे...।

हँसती हुई आलिया कमरे का दरवाज़ा उड़का कर चली गई तो सारा सोच में पड़ गई...। फ़ैज़ान ने उसे आलिया के बारे में सब बता दिया था...। बेइन्तहा मोहब्बत से उपजी जिस बेचैनी की तस्वीर उसने आलिया के लिए बना ली थी, ये लड़की तो उससे दूर-दूर तक मेल नहीं खा रही थी। इतनी बेपरवाह...खुशमिजाज़ी से पेश आ रही थी जैसे फ़ैज़ान मियाँ से कभी उसका कोई ताल्लुक़ ही न रहा हो...मोहब्बत तो दूर की बात है...।

फ़ैज़ान मियाँ जब अपने कमरे में आए तो वहाँ लगभग अन्धेरा था...। कमरे के एक कोने में पुरानी स्टाइल का शमादान रखा था, जिसमे सिर्फ़ एक मोटी-सी मोमबत्ती जल रही थी। सामने पलंग पर पाटी का सहारा लिए लाज का पर्दा डाले उनकी नई-नवेली दुल्हन बैठी हुई थी। कमरे में भीनी-भीनी खुशबू बिखरी हुई थी...। पलंग के चारो ओर फूलों की लड़ियाँ...पलंग पर बिखरी ताज़ा गुलाब की पँखुड़ियाँ...कुल मिला कर खासा रोमान्टिक माहौल था...। फ़ैज़ान मियाँ मन-ही-मन आलिया को दाद दिए बिना नहीं रह सके...। एक हल्की सी खलिश भी हुई उसके लिए...उनकी ओर से उसके साथ जो भी हुआ, बहुत बुरा हुआ...। पर उस लड़की ने जिस तरह खुद के साथ-साथ सारा माहौल भी संभाला, वो क़ाबिले-तारीफ़ था...।

कमरे का झिलमिलाता अन्धेरा बिजली के एक स्विच की हल्की-सी जुम्बिश से ही रौशनी से नहा उठा। फ़ैज़ान को थोड़ा सा अचरज हुआ जब रोशनी के उस मखमली झरने से भी सारा अछूती ही रही। पास जाकर हौले से उसे छुआ, तो पाया वो यूँ पलंग के सिरहाने टेक लगाए-लगाए ही सो चुकी थी। फ़ैज़ान मियाँ को पहले थोड़ा शक़ हुआ...ऐसा तो नहीं सारा उन्हें चिढ़ा रही हो...पर दस मिनट के लगातार अथक...पुरज़ोर कोशिश के बावजूद वो सारा की भयानकता की हद तक गहरी नींद को तोड़ने में नाकामयाब रहे। उन्हें बुरी तरह खिजलाहट होने लगी...। हद है...। ऐसी भी क्या नींद...? शादी की रात है...ज़िन्दगी भर के लिए यादगार बन जाने वाली रात...जिसका एक बेसब्र-सा इन्तज़ार हर जवाँ दिल के किसी कोने में पलता रहता है...और ये मेमसाहब हैं कि सारे मवेशी बेच-बूच कर सो रही...। रात जाए भाड़ में...साथ में शौहर भी...क्या फ़र्क पड़ता है...।

रात अपने पूरे शबाब के साथ जवान हो चुकी थी, साथ ही फ़ैज़ान की हसरतें भी...। एक बार तो फ़ैज़ान मियाँ का दिल हुआ, कमरे से निकल जाएँ...। सोती पड़ी रहे वो...। पर सुबह सबकी सवाल पूछती निगाहों का सामना करते हुए वे जवाब क्या देंगे, इस बात का सोच के वो चुप रह गए...। पर मन-ही-मन कसम खाई...सारा को इस बात का करारा जवाब दिए बिना तो वे रहेंगे नहीं...। उन्होंने आज की रात इंतज़ार किया...अब वो देखेगी कि असल इंतज़ार किसे कहते हैं...।

जब तक रात निढाल होकर सोई, फ़ैज़ान मियाँ भी सारा को बाँहों में लेने का सपना देखते नींद की आगोश में समा चुके थे। बाहर हॉल में बाकी की लड़कियों के साथ फ़ैज़ान और सारा को छेड़ने की प्लानिंग करती आलिया मन-ही-मन हिसाब लगा रही थी कि कोल्ड-ड्रिंक में पिलाई गई नींद की गोली का असर अगर अब भी नहीं टूटा तो...?

(प्रियंका गुप्ता)