Gumshuda ki talash - 12 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 12

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गुमशुदा की तलाश - 12


गुमशुदा की तलाश
(12)


सरवर खान के कमरे में बैठा अरुण, बिपिन के उसके जीवन में आने की कहानी बता रहा था।
अरुण अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा था। उसकी गर्लफ्रेंड ने उसे धोखा दिया था। वह उसे छोड़ कर किसी और को डेट करने लगी थी। यह बात अरुण से बर्दाश्त नहीं हुई। उसने अपनी जान लेने की कोशिश भी की। लेकिन उसमें भी असफल होने के कारण वह और भी हताश हो गया।
उसका मन किसी भी चीज़ में नहीं लगता था। उसने काम पर जाना भी छोड़ दिया था। दिन भर बस अपने कमरे में पड़ा रहता था। उसके पिता उसकी यह हालत देख कर बहुत परेशान रहते थे। जब कभी वह उसे समझाने की कोशिश करते थे तो वह चिढ़ जाता था।
अरुण दिन पर दिन अवसाद का शिकार होता जा रहा था। कोई उसकी इस समस्या को समझ नहीं पा रहा था। उसके पिता को भी लगता था कि कुछ समय के बाद जब वह उस लड़की के धोखे के दर्द से बाहर आ जाएगा तो सब ठीक हो जाएगा। लेकिन वह गहरे अवसाद में डूबता जा रहा था।
अपने दुख में भीतर ही भीतर घुला जा रहा अरुण दिन पर दिन चिड़चिड़ा होता जा रहा था। छोटी छोटी बातों पर गुस्सा हो जाता था। चीखने चिल्लाने लगता था। उसके पिता के अलावा उसे संभालने वाला कोई नहीं था। इन सबके चलते उनके अपने स्वास्थ पर बुरा असर पड़ने लगा था।
ऐसे माहौल में एक दिन अरुण का एक दोस्त उसे यह कह कर बाहर ले गया कि जहाँ वह जा रहा है वहाँ हर गम मिटाने की दवा है। उसका दोस्त उसे एक ऐसे क्लब में ले गया जहाँ लोगों को ड्रग्स का नशा कराया जाता था। उस दिन पहली बार अरुण ने ड्रग्स का नशा किया तो उसे लगा कि यही वो चीज़ है जो उसे सुकून दे सकती है।
उसके बाद वह हर शाम घर से निकल जाता और देर रात नशे की हालत में घर लौटता था। अपनी लत को पूरा करने के लिए वह अपने पिता से लड़ झगड़ कर पैसे लेता था। मौका मिलने पर चोरी करता था। दोस्तों से उधार मांगता था।
आंचल से उसकी दोस्ती एक पार्टी में शुरू हुई थी। तब उसने एक प्राइवेट बैंक में मार्केटिंग मैनेजर का जॉब शुरू ही किया था। आंचल ने भी नया नया ही उस आज़ादी को महसूस किया था जिसके लिए वह घर से दूर रहने आई थी।
अरुण दिन भर के काम के बाद रात को घूमना फिरना पसंद करता था। आंचल हॉस्टल से भाग कर अपनी सहेलियों के साथ देर रात तक बाहर रहती थी। ऐसे में दोनों ही किसी पार्टी या डिस्को में मिलते रहते थे। अरुण और आंचल की अच्छी पटने लगी।
इसी बीच डिस्को में अरुण की मुलाकात शिखा रंगनाथन नाम की एक लड़की से हुई। शिखा एक ऑनलाइन पब्लिशिंग हाउस में एडिटर थी। अरुण और शिखा के बीच बढ़ती नज़दीकी प्यार में बदल गई।
शिखा के आने से आंचल और अरुण के बीच थोड़ी दूरी आ गई। लेकिन दोनों की दोस्ती बरकरार रही।
करीब एक साल तक अरुण को डेट करने के बाद शिखा अब उसकी तरफ कम ध्यान देने लगी थी। इसका कारण था कि शिखा के परिवार ने उसका रिश्ता कनाडा में रहने वाले किसी अमीर घराने में तय कर दिया था। अरुण ने उसे समझाया कि वह रिश्ते से मना कर दे। वह उसे बहुत चाहता है। उसे सदा खुश रखेगा। पर शिखा का अपना तर्क था।
शिखा अपनी बात सीधे शब्दों में कहना पसंद करती थी। उसका मानना था कि साथ घूमने फिरने और ज़िंदगी बिताने में फर्क होता है। हमने एक अच्छा वक्त एक दूसरे के साथ बिताया। पर यह ज़रूरी नहीं है कि हम साथ रह कर खुश रहें। शिखा ने कहा कि वह एक प्रैक्टिकल लड़की है। वह जानती है कि जीवन में जो कुछ वह चाहती है अरुण उसे अपनी छोटी सी सैलरी से नहीं दे सकता है। इसलिए यही अच्छा है कि उनका रिश्ता खत्म हो जाए।
शिखा के मना करने के बावजूद भी अरुण मानने को तैयार नहीं था। वह उस पर दबाव डाल रहा था। अतः शिखा ने अपने परिवार वालों से कह कर शादी जल्दी करवा ली। वह अपने पति के साथ कनाडा चली गई। उसके जाने के बाद भी अरुण उससे फोन पर या सोशल एकाउंट पर संपर्क करने की कोशिश करता रहा। लेकिन शिखा ने वो रास्ते भी बंद कर दिए।
शिखा के यूँ चले जाने से अरुण को गहरा धक्का लगा। वह अवसादग्रस्त हो गया। नशा करने लगा। अपने नशे की लत के कारण वह दोस्तों से उधार मांगता था। लेकिन अब दोस्तों ने भी उसकी मदद करना बंद कर दिया था।
सब तरफ से निराश अरुण को आंचल की याद आई। वह उससे फिर से दोस्ती बढ़ाने की कोशिश करने लगा। लेकिन आंचल को उसके नशा करने की बात पता थी। वह किसी ऐसे आदमी को अपना दोस्त नहीं बनाना चाहती थी जो उधार मांगे। उस पर खुद अपने बढ़ते खर्चों के कारण उधार था। उसने भी अरुण से संपर्क तोड़ लिया।
बिपिन अवसाद और नशे के बीच संबंध पर स्टडी कर रहा था। उसे किसी से पता चला कि आंचल का एक दोस्त अवसादग्रस्त है और नशे का आदी है। बिपिन आंचल से कॉलेज की कैंटीन में मिला और उससे अरुण का नंबर ले लिया।
अरुण के ज़रिए बिपिन उन जगहों पर जाने लगा जहाँ नशा होता था। वहाँ वह कई लोगों से मिला। उसने महसूस किया कि अधिकांश लोग अवसाद के शिकार हैं। अपने व्यक्तिगत जीवन के दुखों को भुलाने के लिए वह नशा करते हैं।
अपनी इस स्टडी के दौरान वह अरुण के केस को भी समझने की कोशिश कर रहा था। वह अरुण के पिता से मिला। वह बहुत दुखी थे। उन्होंने बताया कि कभी अपने बेटे अरुण पर उन्हें नाज़ था। वह एक बिज़नेस मैन के ड्राइवर थे। बहुत छोटी सी तनख्वाह थी उनकी। उस तनख्वाह में वह उसे बहुत अच्छी शिक्षा नहीं दिला सकते थे। लेकिन अरुण ने कभी इस बात को आड़े नहीं आने दिया। वह खूब मन लगा कर पढ़ता था। छोटी उम्र से ही उसमें मेहनत कर आगे बढ़ने की इच्छा थी। वह अपने से छोटी क्लास के बच्चों को ट्यूशन देकर अपने लिए पॉकेट मनी कमाता था।
अरुण एमबीए करना चाहता था। अतः उसने कॉलेज के समय से ही पार्ट टाइम जॉब करना शुरू कर दिया था। ताकि कुछ पैसे इकठ्ठे कर सके।
एमबीए करने के बाद अरुण ने एक प्राइवेट बैंक में मार्केटिंग मैनेजर का जॉब शुरू कर दिया। उसके पिता बहुत खुश थे। पत्नी के जाने के बाद उन्होंने अकेले ही अरुण की परवरिश की थी। उनकी तपस्या रंग लाई थी। अब उनका बेटा उनकी देखभाल के लायक हो गया था। पर शिखा के धोखे ने सब बर्बाद कर दिया।
अरुण के बारे में सब जान कर बिपिन को बहुत बुरा लगा। अरुण उसके लिए महज़ केस स्टडी नहीं था। वह भावनात्मक रूप से उससे जुड़ने लगा था। उसने अरुण की मदद करने की ठान ली।
अपनी स्टडी के दौरान बिपिन एक स्वयंसेवी संस्था 'स्पंदन' के संपर्क में आया था। वह संस्था अन्य कार्यों के साथ साथ अवसाद तथा नशे की लत से पीड़ित लोगों की मदद भी करती थी। बिपिन ने अरुण के पिता को समझाया कि वह उसे उस संस्था के रिहैबिलिटेशन सेंटर में भर्ती करा दे। वह मान गए। बिपिन अरुण को समझा बुझा कर वहाँ ले गया।
रिहैब सेंटर से कई नामी मनोचिकित्सक जुड़े थे। वह पेशेंट को अवसाद से बाहर निकलने व नशे से मुक्त होने में सहायता करते थे। बिपिन भी समय निकाल कर अरुण के पास जाता था। उसके साथ वक्त बिताता था। उसे एहसास दिलाता था कि वह अकेला नहीं है। बिपिन उसका दोस्त है।
बिपिन के इस दोस्ताना व्यवहार से अरुण अब उस पर विश्वास करने लगा था। वह अपने मन की पीड़ा उसे बताता था। बिपिन उसे समझाता था कि पीड़ा में डूब जाना समस्या का हल नहीं है। उससे उबरने का प्रयास करना चाहिए।
धीरे धीरे अरुण अपने अवसाद से बाहर आने लगा।