व्यथा झोलाछाप डॉक्टर की
कसम ले लो मुझसे...'खुदा' की...या फिर किसी भी मनचाहे भगवान की.....तसल्ली ना हो तो बेशक।...'बाबा नामदेव' के यहाँ मत्था टिकवाकर पूरे के पूरे सातों वचन ले लो जो मैंने या मेरे पूरे खानदान में....कभी किसी ने 'वी.आई.पी' या 'अरिस्टोक्रैट' के फैशनेबल लगेज के अलावा कोई देसी लगेज जैसे...थैला....बोरी...कट्टा...ट्रंक ...अटैची...या फिर कोई और बारदाना इस्तेमाल किया हो।
कुछ एक सरफिरे अमीरज़ादे तो 'सैम्सोनाईट'का मँहगा लगेज भी इस्तेमाल करने लग गए हैं आजकल। आखिर।.. स्टैडर्ड नाम की भी कोई चीज़ होती है लेकिन इस सब में भला आपको क्या इंटरैस्ट?...आपने तो ना कुछ पूछना है ...ना पाछना है और...सीधे ही बिना सोचे समझे झट से सौ के सौ इल्ज़ाम लगा देने हैं हम मासूमों पर मानो हम जीते-जागते इनसान ना होकर कसाई खाने में बँधी भेड़-बकरियाँ हो गयी कि....जब चाहा...जहाँ चाहा....झट से मारी सैंटी और....फट से हाँक दिया।
अच्छा लगता है क्या कि किसी अच्छे भले सूटेड-बूटेड आदमी को 'छोलाछाप' कहकर उसकी पूरी पर्सनैलिटी ...पूरी इज़्ज़त की वाट लगाना? मज़ा आता होगा ना आपको हमें सड़कछाप कह...हमारे काम...हमारे धन्धे की तौहीन करते हुए? सीधे-सीधे कह क्यों नहीं देते कि अपार खुशी का मीठा-मीठा एहसास होता है आपको...हमें नीचा दिखाने में?....वैसे।..ये कहाँ की भलमनसाहत है कि हमारे मुँह पर ही...हमें...हमारे छोटेपन का एहसास कराया जाए?
ये सब महज़ इसलिए ना कि हम आपकी तरह ज़्यादा पढे-लिखे नहीं...ज़्यादा सभ्य नहीं....ज़्यादा समझदार नहीं? हमारे साथ ये दोहरा मापदंड...ये सौतेला व्यवहार बस इसलिए ना कि...हमारे पास कोई डिग्री नहीं...कोई सर्टिफिकेट नहीं? मैं आपसे पूछता हूँ....जनाब आपसे कि हकीम 'लुकमान' के पास कौन से कॉलेज या विश्वविद्यालय की डिग्री थीया 'धनवंतरी' ने ही कौन से मेडिकल कॉलेज से 'एम.बी.बी.एस' या...'एम.डी' पास आऊट किया था?
सच तो यही है दोस्त कि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी...कोई सर्टिफिकेट नहीं था।...फिर भी वो देश के जाने-माने हकीम थे....वैद्य थे...लाखों-करोड़ों लोगों का सफलतापूर्वक इलाज किया था उन्होंने।
क्यों है कि नहीं?"
उनके इस बेमिसाल हुनर....इस बेमिसाल इल्म के पीछे उनका सालों का तजुर्बा था...ना कि कोई डिग्री...या फिर कोई सर्टिफिकेट। हमारी कन्डीशन भी कुछ-कुछ उनके जैसी ही है यानि ...ऑलमोस्ट सेम टू सेम बिकाझ...जैसे उनके पास कोई डिग्री नहीं...वैसे ही हमारे पास भी कोई डिग्री नहीं...सिम्पल।
वैसे आपकी जानकारी के लिए मैं एक बात और बता दूँ कि ये लहराते ...बलखाते बाल मैंने ऐसे ही धूप में हाँडते-फिरते सफेद नहीं किए हैं बल्कि..इस डॉक्टरी की लाईन का पूरे पौने नौ साल का प्रैक्टिकल तजुर्बा है मुझे और खास बात ये कि ये तजुर्बा...ये एक्सपीरिएंस मैंने इन तथाकथित 'एम.बी.बी.एस'या 'एम.डी' डाक्टरों की तरह....लैबोरेट्री में किसी बेज़ुबान 'चूहे' या 'मेंढक' का पेट काटकर हासिल नहीं किया है बल्कि...इसके लिए खुद इन्हीं...हाँ...इन्हीं नायाब हाथों से कई जीते-जागते ज़िन्दा इंसानों के बदन चीरे हैं मैंने।
"है क्या आपके किसी डिग्रीधारी डॉक्टर या फिर...मेडिकल ऑफिसर में ऐसा करने की हिम्मत?.....ऐसा करने का माद्दा? और ये आपसे किस गधे ने कह दिया कि डिग्रीधारी डॉक्टरों के हाथों मरीज़ मरते नहीं हैं?"
रोज़ ही तो अखबारों में इसी तरह का कोई ना कोई केस छाया रहता है कि फलाने-फलाने सरकारी अस्पताल में फलाने फलाने डॉक्टर ने लापरवाही से...आप्रेशन करते वक्त सरकारी कैंची को गुम कर दिया।...अब कर दिया तो कर दिया लेकिन नहीं...अपनी सरकार भी ना...पता नहीं क्या सोचकर एक छोटी सी...अदना सी...सस्ती सी...कैंची का रोना लेकर बैठ जाती है। ये भी नहीं देखती कि कई बार बेचारे डाक्टरों के आईफोन 8 जैसे महंगे-महंगे फोन भी....मरीज़ों के पेट में बिना कोई शोर-शराबा किए गर्क हो जाते हैं...धवस्त हो जाते हैं लेकिन...शराफत देखो उनकी...वो बेचारे उफ़ तक नहीं करते...चूँ तक नहीं करते। अब कोई छोटा-मोटा सस्ता वाला माइक्रोमैक्स या कार्बन सरीखा मोबाईल हो तो बंदा भूल-भाल भी जाए लेकिन....फोन...वो भी आईफोन ...ऊपर से 8....कोई भूल के भी भूले तो कैसे भूले?
अब इसे कुछ डॉक्टरों की किस्मत कह लें या फिर...उनका खून-पसीने की मेहनत से कमाया गया बेहिसाब बेनामी पैसा कि उन्होंने अपने फोन को बॉय डिफाल्ट.....'वाईब्रेशन' मोड पर सैट किया हुआ होता है। जिससे...ना चाहते हुए भी कई बार मरीज़ पूरी ईमानदारी बरतकर पेट में बार-बार मरोड़ उठने की शिकायत ले कर...उसी अस्पताल का रुख करते हैं जहाँ उनका सस्ता या फिर फ्री में इलाज हुआ था।
वैसे...'बाबा नामदेव' झूठ ना बुलवाए...तो यही कोई दस से बारह केस तो अपने भी बिगड़ ही चुके होंगे इन पौने नौ सालों में लेकिन....इसमें इतनी हाय तौबा मचाने की कोई ज़रूरत नहीं। आखिर।..मैं भी इंसान हूँ...ग़लती हो भी जाती है। लेकिन अफ़सोस..सबको मेरी गलती नज़र आती है..मकसद नहीं। क्या किसी घायल...किसी बीमार की सेवा कर...उसका इलाज करते हुए..उसे ठीक करना....भला-चंगा करना गलत है? नहीं ना?...फिर ऐसे में अगर कभी ग़लती से लापरवाही के चलते कोई छोटी-बड़ी चूक हो भी गई तो इसके लिए इतना शोर-शराबा क्यों?...इतनी हाय तौबा क्यों? मुझमें भी आप ही की तरह देश-सेवा का जज़्बा है। मैं भी आप ही की तरह सच्चा देशभक्त हूँ और सही मायने में देश की भलाई के लिए काम कर रहा हूँ।
और आप भले ही मेरी बात से सहमत हों या ना हों लेकिन मुझे अपनी सरकार का ये दोगलापन बिलकुल पसन्द नहीं कि....अन्दर से कुछ और और बाहर से कुछ और। कहने को अपनी सरकार हमेशा बढ़ती जनसंख्या का रोना रोती रहती है लेकिन अगर हम मदद के लिए आगे बढ़ते हुए अपनी सेवाएँ दें....तो उसे मौत पड़ती है। वो करे तो...पुण्य...हम करें तो पाप।...वाह री मेरी सरकार...वाह...कहने को कुछ और करने को कुछ।
एक तरफ रोना ये कि देश बढ़ती जनसंख्या के बोझ तले दब रहा है...इसलिए परिवार नियोजन को बढ़ावा दो। जहाँ एक तरफ इंदिरा गाँधी के ज़माने में काँग्रेस सरकार ने टारगेट पूरा करने के लिए जबरन नसबन्दी का सहारा लिया था...और अब वर्तमान सरकार अपनी बेशर्मी के चलते जगह-जगह "कण्डोम के साथ चलें" के बैनर लगवा रही है...पोस्टर लगवा रही है। दूसरी तरफ कोई अपनी मर्ज़ी से एबार्शन करवाना चाहे तो जुर्माना लगा फटाक से अन्दर कर देती है। अरे।...किसी को अगर एबार्शन करवाना है तो बेशक करवाए...बेधड़क करवाए...जी भर करवाए...एक क्या..सौ करवाए...इसमें हमारे या तुम्हारे बाप का क्या जाता है? लेकिन नहीं....अपनी कलयुगी सरकार की नज़र-ए-इनायत में ये जुर्म है..पाप है...गुनाह है।
ये भला कहाँ का इन्साफ है कि एबार्शन करने वालों को और करवाने वालों को पकड़कर जेल में डाल दिया जाए?....तहखाने में डाल दिया जाए? ऐसी अन्धेरगर्दी ना तो 'नादिरशाह' के ज़माने में कभी देखी थी और ना ही कभी 'अहमदशाह अब्दाली' के ज़माने में सुनी थी। ठीक है..माना कि 'एबार्शन'..या क्या कहते हैं उसे हिन्दी में?...हाँ।..याद आया 'गर्भपात' आमतौर लड़कियों के ही होते हैं...लड़कों के नहीं। तो आखिर।..इसमें गलत ही क्या है? कोई कुछ कहे ना कहे लेकिन मेरे जैसे लोग तो डंके की चोट पर यही कहेंगे कि अगर लड़का पैदा होगा तो....वो बड़ा हो के कमाएगा...धमाएगा...खानदान का नाम रोशन करेगा।
ठीक है।..मान ली आपकी बात कि आजकल लडकियाँ भी कमा रही हैं और लड़कों से दुगना-तिगुना तक कमा रही हैं लेकिन...ऐसी कमाई किस काम की जो वो शादी के बाद फुर्र हो अपने साथ ले चलती बनें? ये भला क्या बात हुई कि चारा खिला-खिला बाप बेचारा बुढा जाए और जब दुहने की बारी आए तो....पति महाशय क्लीन शेव होते हुए भी अपनी तेल सनी वर्चुअल मूछों को ताव देते पहुँच जाएँ बाल्टी और लोटे के साथ? मज़ा तो भय्यी..तब है जब...जो पौधे को सींचे...वही फल भी खाए। ”क्यों...है कि नहीं? खैर छोड़ो।...हमें क्या?....अपने तो सारे बेटे ही बेटे हैं।...जिसने बेटी जनी है...वही सोचेगा।
आप कहते हैं कि हम इलाज के दौरान हायजनिक तरीके इस्तेमाल नहीं करते हैं जैसे सिरिंजो को उबालना...दस्तानों का इस्तेमाल करना वगैरह वगैरह ...तो क्या आप के हिसाब से पैसा मुफ्त में मिलता है?...या फिर किसी पेड़ पर उगता है? आँखे हमारी भी हैं...हम भी भलीभांति देख सकते हैं....अगर सिरिंजें दोबारा इस्तेमाल करने लायक होती है तभी हम उन्हें काम में लाते हैं..वर्ना नहीं। ठीक है।...माना कि कई बार जंग लगे औज़ारो के इस्तेमाल से सैप्टिक वगैरह का चाँस बन जाता है और यदा-कदा केस बिगड़ भी जाते हैं। तो ऐसे नाज़ुक मौकों पर हम अपना पल्ला झाड़ते हुए मरीज़ों को किसी बड़े अस्पताल या फिर किसी बड़े डॉक्टर के पास रेफ़र भी तो कर देते हैं।
अब अगर कोई काम हम से ठीक से नहीं हो पा रहा है तो ये कहाँ का धर्म है कि हम उस से खुद चिपके रह कर मरीज़ की जान खतरे में डालें? आखिर।...वो भी हमारी तरह जीता जागता इनसान है...कोई खिलौना नहीं।
-ट्रिंग...ट्रिंग...
“हैलो...कौन?”
“नमस्ते...बस..यहीं आस-पास ही हूँ।“
“ठीक है।...आधे घंटे में पहुँच जाऊँगा।“
“ओ.के।...सारी तैयारियाँ कर के रखो...फायनली मैं आने के बाद चैक कर लूँगा।“
“और हाँ..मेरे आने तक पार्टी को बहलाकर रखो कि डॉक्टर साहब ओ.टी. में एमरजैंसी आप्रेशन कर रहे हैं।“
“एक बात और।...कुछ भी कह-सुनकर पूरे पैसे एडवांस में जमा करवा लेना।...बाद में पेशेंट मर-मरा गया तो रिश्तेदारों ने ड्रामा खड़ा कर नाक में दम कर देना है। पहले पैसे ले लो तो ठीक...वर्ना...बाद में बड़ा दुखी करते हैं...स्साले।”
अच्छा दोस्तो।....कहने-सुनने को बहुत कुछ है।...फिलहाल...जैसा कि आपने अभी सुना...शैड्यूल थोड़ा व्यस्त है...तो फिर..मिलते हैं ना ब्रेक के बाद...फिर से नए शिकवों...नई शिकायतों के साथ...कुछ आप अपने मन की कहना...कुछ मैं अपने दिल की कहूँगा।
"जय हिन्द"
"भारत माता की जय"