Gumshuda ki talash - 11 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 11

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गुमशुदा की तलाश - 11


गुमशुदा की तलाश
(11)


आंचल के दोस्त का नाम अरुण निश्चल था। सरवर खान ने जब उसे फोन किया तो उसके पिता ने फोन उठाया। सरवर खान ने उन्हें बताया कि वह अरुण से मिलना चाहते हैं। पहले तो अरुण के पिता ने मना कर दिया। लेकिन जब सरवर खान ने उन्हें बताया कि वह बिपिन की गुमशुदगी के केस की पड़ताल के संबंध में उनके बेटे से मिलना चाहते हैं तो वह मान गए। उन्होंने बताया कि अरुण इस समय एक रिहैबिलिटेशन सेंटर में नशे की आदत से मुक्त होने के लिए इलाज करा रहा था। अब वह नशे की अपनी लत से आज़ाद हो चुका है। लेकिन वह अभी भी रिहैब सेंटर में रहता है। वह वहाँ रह रहे अन्य लोगों की इस लत से निजात पाने में मदद करता है। उन्होंने रिहैब उस सेंटर का पता दे दिया।
जब सरवर खान रिहैब सेंटर पहुँचे तो उन्होंने देखा कि अरुण सेंटर के हॉल में कुछ लोगों को नशे की लत के बुरे असर के बारे में समझा रहा था। सरवर खान एक खाली कुर्सी पर बैठ कर उसकी बात सुनने लगे।
"दोस्तों नशा करने की आदत एक बहुत बुरी आदत है। यह आपको देती कुछ नहीं है। पर आपसे छीन बहुत कुछ लेती है। हमारी सोंच समझ सब हर लेती है। हमें खोखला कर देती है। ये सब मैं कह रहा हूँ। जो खुद इस नशे का गुलाम रहा है।"
अपनी बात कहते हुए अरुण ने वहाँ बैठे लोगों पर एक निगाह डाली।
"पर मेरी ज़िंदगी में समय रहते एक फरिश्ता आ गया। जिसने मुझे उस गर्त में डूबने से बचाया जहाँ मैं सब जानते हुए भी गिरा जा रहा था। यह उसके प्रयास ही हैं कि मैं अब लगभग उस नशे की गुलामी से बाहर निकल पाया हूँ। जिनके कारण आज मैं कृतसंकल्प हूँ कि आपको भी इस बुरी लत के चंगुल से बाहर निकालूँगा।"
अरुण कुछ देर के लिए शांत हुआ। वह गंभीरता से कुछ सोंच रहा था।
"आज के इस दौर में हम बहुत अधिक तनाव से गुजरते हैं। अपने से बहुत अधिक उम्मीदें लगाना। उनके पूरा ना होने पर टूट जाना। जीवन में सफलता पाने के लिए अपनों से दूर हो जाना। बड़ी खुशियों की चाह में छोटी छोटी खुशियों को नज़रअंदाज़ करना। ये सारी बातें हमें अवसादग्रस्त बनाती हैं। अवसाद की अवस्था में नशे की लत हमें आसानी से अपनी चपेट में ले लेती है। फिर यह स्थिति तो वैसी ही हो जाती है जैसे कोई तेज़ ज़हर खाने के बाद ऊँची इमारत से छलांग लगा दे।"
हॉल में बैठा एक शख्स जो ध्यान से अरुण की बात सुन रहा था अपनी कुर्सी से उठ कर बोला।
"आप जो कुछ कह रहे हैं मैं उसे झेल चुका हूँ। मेरे बिज़नेस पार्टनर ने धोखा दे दिया। मैं कहीं का नहीं रहा। पत्नी मुझे छोड़ कर किसी और के साथ चली गई। घरवालों ने भी मुंह मोड़ लिया। मैं गहरे अवसाद में चला गया। कोई मेरी मदद करने वाला नहीं था। तब नशा ही मुझे मेरा सच्चा साथी लगता था। मैं दिन पर दिन इसकी चपेट में आता गया। ऐसे में इंसान कर भी क्या सकता है।"
अरुण ने उसकी बात सुन कर उसे समझाया।
"भाई मैं भी जो कह रहा हूँ वह अपने अनुभव से ही कह रहा हूँ। मैं भी नशे को अपना सच्चा हमदर्द समझता था। लेकिन जब सचमुच एक हमदर्द मेरे जीवन में आया तब मुझे पता चला कि नशा तो मेरा अहित कर रहा है। वह मुझे यहाँ ले आए। यहाँ नशे के साथ साथ अवसाद का भी इलाज होता है। अवसाद एक रोग है। इस रोग की दवा नशा नहीं है।"
एक दूसरा आदमी अपनी जगह पर खड़ा होकर बोला।
"आप एक फरिश्ते, एक हमदर्द का ज़िक्र कर रहे हैं। हमें भी बताइए कि वह कौन है ?"
अरुण के मन में अचानक ही भावना का एक समंदर उमड़ने लगा। वह भावुक हो गया। कुछ क्षण लगे उसे खुद की भावनाओं पर काबू करने में।
"मेरे जीवन को सही राह दिखाने वाले उस फरिश्ते का नाम बिपिन दास है। मैं आदर से उन्हें बिपिन भाई कहता हूँ। पर बहुत समय हो गया वह मुझसे मिलने नहीं आए। शायद मेरे जैसे किसी और की मदद कर रहे होंगे।"
बातचीत का समय समाप्त हो गया था। सब उठ कर जाने लगे। अरुण भी पोडियम से उतर कर जा रहा था कि पीछे से आई आवाज़ सुन कर रुक गया। उसने पीछे मुड़ कर देखा तो कोई पचास साल का एक आदमी उसकी तरफ बढ़ रहा था। उसके पास आकर बोला।
"मैं डिटेक्टिव सरवर खान हूँ। आपसे कुछ बात करनी थी।"
अरुण समझ नहीं पाया कि एक डिटेक्टिव को उससे क्या काम हो सकता है।
"आर यू श्योर....मुझसे ही मिलना है आपको।"
"मैं तुमसे मिलने ही यहाँ आया हूँ। कहीं चल कर बैठ सकते हैं।"
"तो यहीं बैठ लेते हैं। अब हॉल में कोई नहीं रहेगा।"
दोनों वहीं कुर्सियों पर बैठ गए।
"जी अब बताइए सर आपको मुझसे क्या काम है ?"
"मुझे तुमसे तुम्हारे बिपिन भाई के बारे में बात करनी है।"
डिटेक्टिव सरवर खान के मुंह से बिपिन का नाम सुन कर अरुण को आश्चर्य हुआ।
"आपको उनके बारे में क्या बात करनी है ? आप तो डिटेक्टिव हैं।"
"पिछली बार कब मिले थे तुम बिपिन से ?"
"कोई साल भर पहले...."
"तुमने फोन पर भी बात नहीं की।"
अरुण सरवर खान के इन सवालों का मतलब नहीं समझ पा रहा था। लेकिन उसे यह ज़रूर महसूस हो रहा था कि मामला गंभीर है।
"सर मैंने एक दो बार उन्हें फोन किया तो फोन स्विचऑफ था। मुझे लगा कि अपनी रीसर्च में व्यस्त होंगे। लेकिन आपकी बातों से मुझे लगता है कि कुछ सीरियस मैटर है।"
"हाँ.... बिपिन पिछले दस महीनों से लापता है। उसी सिलसिले में मैं तुमसे बात करने आया हूँ।"
सरवर खान की बात सुन कर अरुण परेशान हो गया। वह रुंधे हुए गले से बोला।
"तभी वह इतने दिनों से मुझसे मिलने नहीं आए। और मैं यह सोंच कर चुप बैठा था कि वह बिज़ी होंगे। सर उन्होंने मेरी डूबती हुई ज़िंदगी को उबारा है....."
कहते हुए अरुण की आँखें नम हो गईं।
"तुम मेरी मदद कर बिपिन को ढूंढ़ने में सहायक हो सकते हो।"
"बताइए सर कैसे मदद करूँ आपकी ?"
"तुम मुझे बिपिन के बारे में सारी बात बताओ। वह तुमसे कब मिला था ? वह नशे के आदी लोगों के बारे में क्या जानना चाहता था। जो भी तुम जानते हो तफ्सील से बताओ"
अरुण बिपिन की तलाश में सरवर खान की पूरी मदद करना चाहता था। वह सब बताने को तैयार हो गया। वह अपनी बात बताने ही जा रहा था कि एक मेल नर्स ने आकर कहा।
"अरुण भाई.....डॉ मित्रा आपको बुला रहे हैं। वो मीता को फिर से दौरा पड़ा है। किसी के संभाले नहीं संभल रही है।"
अरुण ने सरवर खान की तरफ देखा। सरवर खान समझ रहे थे कि उसका जाना ज़रूरी है।
"तुम मुझे कब समय दे सकते हो ?"
"सर शाम पाँच बजे के बाद मैं फ्री हो जाता हूँ।"
"ठीक है तो शाम को जगत लॉज में आकर मुझसे मिलो। मैं वहीं ठहरा हूँ।"
"सर मैं शाम को जगत लॉज आता हूँ।"
कह कर अरुण उस नर्स के साथ चला गया।
सरवर खान रिहैब सेंटर से निकल कर इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से मिलने के लिए गए। उन्होंने पूँछा कि केस में कोई नया सुराग हाथ लगा। इंस्पेक्टर सुखबीर ने बताया कि सब इंस्पेक्टर नीता पूरी यह पता करने की पूरी कोशिश कर रही है कि बिपिन के केस में जो सिम कार्ड था वह किसे बेचा गया है। सरवर खान उनसे कुछ और बातें करने के बाद अपनी लॉज में वापस लौट गए।
सरवर खान और रंजन दोनों ही ऑफिस में नहीं थे। ऑफिस की पूरी ज़िम्मेदारी सुनीता पर थी। सरवर खान उसे आवश्यक निर्देश दे आए थे। उन्होंने सुनीता को फोन कर वहाँ के हालचाल लिए। उसने बताया कि इस बीच दो लोग अपना केस लेकर आए थे। उसने उन्हें बता दिया कि अभी बॉस किसी केस के सिलसिले में कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं। यदि आप इंतज़ार कर सकें तो अपना नंबर लिखा दें। बॉस लौटने पर संपर्क कर लेंगे। उनमें से एक अपना नंबर लिखा कर गए हैं।
खाना खाने के बाद सरवर खान कुछ देर आराम करने के लिए लेटे तो बिपिन के बारे में सोंचने लगे। अब तक वह केवल यही जानते थे कि बिपिन एक अंतर्मुखी व्यक्ति है। जिसकी अपनी माँ से नहीं बनती है। वह पीएचडी कर रहा है। किंतु अरुण से मिल कर पता चला कि उसकी शख्सियत का एक और पहलू भी था। उसने अरुण को दोबारा ज़िंदगी की राह पर लाने में मदद की थी। हो सकता है कि अरुण के अलावा और लोगों की ज़िंदगी में भी उसने रौशनी फैलाई हो।
सरवर खान शाम को अरुण के आने की प्रतीक्षा करने लगे।