मुन्नू अनशन पर
एक दिन मेरे मित्र राधेश्याम मेरे पास हांफते हुये आये । मैंने पूछा - ‘राधेश्याम इतना भाग क्यों रहे हो & ओलेम्पिक्स तो कब की खतम हो गई है A तुम अभी तक अभ्यास कर रहे हो ! वे अत्यंत घबराये हुये थे । बदहवास से बोले - भैया शुक्ला फ़ौरन मेरे साथ घर चलो । मुन्नू को न जाने क्या हो गया है । इन्कलाब ज़िन्दाबाद । भारत माता की जय । और न जाने क्या - क्या बक रहा है । मैंने कहा - ‘कहीं उस पर पढ़ाई तो नहीं सवार हो गई है नंबरों के चक्क्र में अक्सर ऐसा हो जाता है । वे बोले - अजी लानत भेजो पढ़ाई को पढ़ना - लिखना तो वह हराम समझता है । उसके साथ उसके मुस्टंडे दोस्त भी हैं जो मन्नू तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं ] के नारे लगा रहे हैं । मैंने उन्हें हौंसला दिया - ‘तम घबराओ नहीं चल का देख लेते हैं । आज़कल मीडिया वाले वेवज़ह हड़तालों का लाइव कवरेज़ दिखाकर पब्लिक की बुद्धि सुन्न कर रहे हैं । सभी अपने आपको नेता समझने लगे हैं । वे कुछ न बोले चुपचाप आकर कार की अगली सीट पर बैठ गये । जैसे ही हम घर के पास पहॅंचे हवा का तेज़ झोंका आया - मुन्नू तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं । मैंने देखा राधेश्याम के घर के बिल्कुल सामने वाले पार्क में जहां अक्सर अवारा कुत्ते सरकारी फैमली प्लैनिंग को धत्ता बताते हुये आपस में लिपटे रहते थे और जहां कभी - कभी ज़ालिम दुनिया वालों की नज़रों से बचकर प्रेमी एक - दूसरे की बांहों में लिपटे हुये एक - दूसरे को सहारा देते थे वहीं आज साफ - सुथरी दरियां बिछी हुई हैं । सामने मंच सजाया हुआ है । लाउड स्पीकरों की भी व्यवस्था की गई है। अनशनधारी चाहते हैं कि उनकी आवाज़ सभी घरों के ड्राइंगरूम तक पहुंच जाये ताकि घर में बैठे मेहमान भी उन भोले - भाले मासूमों पर हो रहे अत्याचारों को महसूस कर सकें । मंच के बीचों - बीच गांधी टोपी लगाये मुन्नू उसी प्रकार बैठा है जिस प्रकार घोटाला पब्लिक के सामने आने या निज़ी संपति एकाएक सार्वजनिक होने पर आजकल के नेता एकबारगी यह सोचने के लिये चुप हो जाते हैं कि इसका ठीकरा किस पार्टी पर फोड़े या फिर इसे किस चैनल की साज़िश करार दें । चारों ओर धूप - दीप जल रहे थे । मुन्नू के ठीक पीछे बैठे उसके दोस्त शांत मुद्रा में चुपचाप बैठे हुये थे । उन्हें अब इस बात की चिंता नहीं थी कि परीक्षा में नंबर कम आने पर उन्हें घर वालों की ताड़ना सहनी पड़ेगी । वे अब परम संतोषी हो चले थे । यहां सबसे चैंकाने वाल बात यह थी कि इस अनशन में लड़कियों की तादात भी कम नहीं थी । उन्हें मुक्ति का मार्ग सूझ गया था । वे शांत बैठे लड़कों में होंसला भर रही थीं - ‘अब हमें कोई रोक नहीं सकता । कोई टोक नहीं सकता । जो हमसे टकरायेगा चूर - चूर हो जायेगा । मुन्नू के दोस्तों के ठीक पीछे तीसरी व चैथी कक्षा के बच्चे भजन गा रहे थे - । रघुपति राघव राजा राम । सबको सन्मति दे भगवान । सामने दरियों पर लोग पंक्तिबद्ध बैठे हुये थे । पहली पंक्ति छठी व सातवीं कक्षा के बच्चों की थी । उनके पीछे नौवीं से लेकर बारवीं तक के व्यस्क बच्चे आधुनिक माताओं से फलर्ट करने की योजना बनाने में व्यस्त थे । इन व्यस्कों के ठीक पीछे मैं अनशनधारी हूं] की टोपी लगाये हुये रिक्शे व टैंपू चलाने वाले तथा अंतिम पंक्ति में घरेलू नौकर दूध बेचने वाले ] स्थानीय डिस्पेंसरी के वार्ड ब्वाय सरकारी दफतरो कें बाबूनुमा चपड़ासी तथा चपड़ासी नुमा बाबू भी बैठे हुये थे । मंच के दायीं ओर इलैक्ट्रानिक मीडिया के रिर्पोटर तथा बायीं ओर स्थानीय अखबारों के रिर्पोटर यहां की प्रत्येक खबर को सीधे जनता के पास पहुंचाने के लिये आतुर खड़े थे । कुछ नेता नुमा पेरेंटस कंधे पर झोला लटकाये मैदान की परिक्रमा कर रहे थे । उनकी झोली में दो - दो किलो मुसम्मियां थीं । न जाने कब जरूरत पड़ जाये । पूरा नज़ारा राजनीतिक था । मैंने राधश्याम के कंधे पर हाथ रखा - ‘ भैया राधेश्याम , आखिर मामला क्या है । इससे पहले कि शोक में डूबे राधेश्याम मुंह खोलते ] सामने से आते हुये लक्की ने कहा -& अंकिल अब हम पेरेंटस की मनमानी और बर्दाश्त नहीं करेंगे । जो हमसे टकरायेगा , चूर - चूर हो जायेगा । मन्नू तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं । ’ लक्की ,राधेश्याम के पड़ोसी मिस्टर खन्ना का बेटा है और पिछले तीन सालों से दसवीं कर रहा है । लक्की आज पूरे तैश में था । आंखें लाल थीं । eqag से झाग निकल रहा था । मैंने डरते हुये पूछा -& पर लक्की बात क्या है । वह बोला -& अंकिल ] हमारे पेरेंटस ने हमारे नाक में दम कर रखा है । परसों राकी के युनिट टैस्ट में फेल हो जाने पर उसके डैड ने उसका मोबाइल छीन लिया । पिंकी की माम उसे उसके ब्वाय फ्रेंड शैमी से नहीं मिलने देती । हमारे एस एम एस तक पढ़े जाते हैं । आज़कल मामस किटटी पार्टिज़ में बिज़ी रहती हैं । हमें अपना होमवर्क खुद करना पड़ता है । स्कूल में टीचर्स पेपर बताने और पास न होने पर नंबर बढ़ाने तक के पैसे मांगते हैं । हम फेसबुक पर नहीं बैठ सकते । देर रात तक पार्टिज़् नहीं कर सकते । यू नो ड्रिंकस तक अलाउड नहीं है । पेरेंटस पांच सो रूपये पाकिट मनी देते हैं । हफ़ते में दो - तीन सो ट्रैफिक पुलिस वाला झटक लेता है । वीकली कोई न कोई गिफट न दो तो गर्लफेंड भाग जाती है । उपर से यह महंगाई ] पैट्रोल तक का हिसाब देना पढ़ता है । साली नरक बन गई है ज़िदगी । वह थूक कर उस ओर चल देता है जहां कुछ कालेज़ के विद्यार्थी ]मन्नू जिंदाबाद ] पेरेंटस मुर्दाबाद के नारे लगाते हुये स्टेज की ओर बढ़ रहे थे । मंच के दायीं ओर पेरेंटस का हुज़ूम है । खींचू खबर ] चैनल का एक रिपोर्टर एक पेरेंट से पूछता है - & जी आप हां हां आप ही से पूछ रहे हैं हां हां आप नीली शर्ट वाले साहब , हां हां आप किसके पेरेंट हैं । डब्बू के । ‘अच्छा ये बताइये कि आप इन भाले - भाले मासूम बच्चों पर इतना अत्याचार क्यों कर रहे हैं । भाई साहब ]कुछ नियम - कानून होते हैं जिन्हें समझना और उनका पालन करना बच्चों की डयूटी है । नीली शर्ट वाले पेरेंट ने कहा । रिपोर्टर &- जैसे । जैसे] बड़ो का सम्मान करना । पढ़ाई करना । मेहनत करना । आपको तो पता ही है कि आज़कल कंपीटीशन कितना बढ़ गया है । नीली शर्ट वाले पेरेंट ने कहा । ऐसे कैसे किडस का आजादी दे दें । कोई कायदा होता है । कोई कानून है । सामने से आती हुयी अधेड़ महिला ने अपनी जु़ल्फों की लट को कान के पीछे चढ़ाते हुये गुस्से से कहा । उसके होंठ सचमुच अंगारे लग रहे थे । अब तक कुछ और पेरेंटस उधर खिसक आये थे । उन्हें अनशन से ज़्यादा इस बात की चिंता थी कि कहीं पड़ोसी का चेहरा उनसे अधिक कैमरे में न आ जाये । एक सांवले रंग के बुजुर्ग ने होठ चबाते हुये कहा - ये बच्चे एक से बढ़कर एक ख़ुराफाती हैं । दिल तो करता है कि सामने नीम के पेड़ से एक पतली सी छपकी तोड़ लूं और सबको लाइन में खड़ा कर के पीटूं । ’रिपोर्टर - क्या आप हिंसक तरीकों से अनशन उखाड़ना चाहते हैं । गांधी जी के रास्ते पर चलते हुये इन मासूमों पर आप कोड़े बरसायेंगे Dkaf”VP;w”ku की परवाह नहीं है आपको । एक महिला ] जो टी.वी. पर आने के लिये अपने होंठ संवार रही थी । बोली -& तो क्या इनकी आरती उतारें । हमारी बिल्ली हमी से म्यांउ । जितनी कांस्ट्रेशन से यहां बैठे हैं उतनी कांस्ट्रेशन से अगर पढ़ाई कर लें तो कल सभी आई. ए. एस. हो जायें और कल से रोज नोट छापकर देश की डूबती नैया को सहारा देने का काम करें । नीली शर्ट वाले पेरेंट ने कहा &- देखिये भाई साहब , अपनी बात कहने का भी एक तरीका होता है । कायदे - कानून सड़क पर तो नहीं न बनाये जा सकते । आपस में बैठकर , शांति से भी मामला सुलझाया जा सकता है । राधेश्याम के फादर ने अचानक चुप्पी तोड़ी । यहां आपस में विचार - विमर्श का दौर चल ही रहा था कि मुन्नू तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं । अब हमें कोई रोक नहीं सकता । कोई टोक नहीं सकता । जो हमसे टकरायेगा चूर - चूर हो जायेगा ] का एक और झोंका आया । मैंने देखा - स्थानीय गवर्मेंट कालेज़ की कुछ छा़त्रायें हाथों में ‘ इंकलाब जिदाबाद की तख्तियां लिये मंच की ओर बढ़ रही थीं । उनके ठीेक पीछे रिक्शे व टैंपू वाले चले आ रहे थे । मैंने चेचक के दाग वपले रिक्शे वाले से पूछा & - भैया तुम इनके साथ क्या कर रहे हो । हमउ अनशन पर हैं । इ कार वाले हमका सड़क के बीचों- बीच रिक्शा नहीं चलाने देते । हमउ वोट दिया है । हमउ का चलै का अधिकार है । ‘ हम भी अनशन करेंगे । प्रोफेसर गुप्ता मेरी गर्ल फ्रेंड को छेड़ते हैं और अटेंडस पूरी करने के पैसे भी मांगते हैं । बी ए कर रहे एक छात्र ने कहा । ‘ हम भी अनशन पर हैं । सड़क पर जब हम दायीं ओर हाथ देकर बायीं ओर मुड़़ जाते हैं तो ये कार वाले हमें आंखें दिखातें हैं । सड़क पर हम किसी की दादागिरी बदाशर्त नहीं करेंगे । मैं अनशनधारी हूं ] की टोपी लगाये एक टैंपू वाले ने जोश में कहा । ‘बड़े बाबू घूस के पैसे अकेले डकार जाते हैं । हमें हमारा हिस्सा नहीं देते । एक कर्लक आरोप लगाता है । जय श्री राम ] हम भी अनशन पर हैं । रोज शेयर बाज़ार गिर जाता है । सारा धंधा चैपट होता जा रहा है । इस विज्ञान ने नाक में दम कर रखा है । साला कोई हाथ दिखाने नहीं आता । बस स्टैंड के पास बैठने वाले बाबा ने लगभग रोते हुये कहा । हम भी अनशन पर हैं । ये मीडिया वाले हमें त्योहारों के सीज़न में भी मिलावटी मिठाइयां नहीं बेचने देते । मैं अनशनधारी हूं] की टोपी लगाये नुक्कड़वपले हलवाई ने अपना दु;ख प्रकट किया ।‘ मैं देखता हूं कि सामने मंच की ओर, के. जी. व नर्सरी के बच्चे ‘मैं अनशनधारी हूॅं ‘ की छोटी - छोटी टोपी लगाये चले आ रहे हैं । उनके हाथों में तिरंगा है । मैंने अपने पड़ोसी मिस्टर नेगी के झबरे बालों वाले राॅकी से पूछा - बेटा टाफी खाओगे । उसने सिर झटक कर जेब की ओर इशारा किया । मैंने उसकी जेब में टाफी रखते हुये पूछा -& अच्छा ]यह बताओ बेटा कि तुम यहां करने आये हो । अनथन करने । वह तपाक से बोला । तुम्हें अनशन पर किसने बैठाया । हम आपके - आप बैठे । क्या चाहते हो । मुन्नू तूम अनथन कलो हम तुमाले साथ है। राकी आगे बढ़ जाता है । सामने देखता हूं ] लक्की भागता चला आ रहा है । उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं हैं । मैंने उसे रोक कर पूछा & - लक्की बेटा ] तुम्हें क्या हुआ । वह बोला & - अंकिल मुन्नू की तबियत खराब हो गई है । उसके पैशाब में एसिटोन आने लगा है । ‘ मैंने खुश होते हुये कहा -& बेटा तो अनशन तोड़़ दो । तुम कहो तो मैं उन पेरेंटस से बात करुं जो मुसम्मियां लिये इधर - उधर फिर रहें हैं और जिनकी मुसम्मिया सूख रहीं हैं । वह बोला - ‘नहीं अंकिल , सब देख लिया जायेगा । हमारी कोशिश है कि यह आंदोलन सफल हो और अगर यह सफल रहता है तो आगे नेता बनने के पूरे चांस हैं । वैसे भी सरकार महंगाई काबू नहीं कर पा रही । हम इसी तरह से आगे लोगों का मार्गदर्शन करेंगे । मेंने कहा & - पर ]तुम्हारे इस प्रयास में बेचारा मुन्नू बेमौत मारा जायेगा । ‘ वह आत्मविश्वास से बोला - & अंकिल उसे कुछ नहीं होगा । हमारी एक आंख मैडिकल रिर्पोट पर तो दूसरी आंख मध्यस्थ नीना पर है । मैंने पूछा - ये नीना कौन । वह बोला -& वही नुक्कड़ वाले प्रोफसर गुप्ता की बेटी । अरे वही जो पिछले महीने सैंडी के साभ भागी थी । अब वह अपने मुन्नू की xyZQzSaM है । उसने मेरे आगे नीना की तस्वीर खोल दी । अगर तुम सबकी यही जिदद है तो हमारी भी एक बात गांठ बांध लो ] जब तक यह अनशन खतम नहीं होगा ] तुम्हारी कोई बात नहीं सुनी जायेगी । राधेश्याम को अब तक होश आ चुका था । मैंने राधेश्याम को समझाते हुये कहा -& भैया राधेश्याम ] जोश से नहीं होश से काम लो । हमें हमारे सपूतों की सेहत के बारे में सोचना चाहिये । मेरा विचार है कि वक्त की नज़ाकत को समझते हुये हमें उनकी मांगों को सै़द्धांतिक रूप में स्वीकार कर लेना चाहिये । ‘ वे बोले - ‘ ऐसे तो वे हमें कमजोर समझ लेंगे और मनमानी करेंगे । ‘ मैंने उन्हें समझाते हुये कहा -& तुम मेरा मतलब ugha समझे । दरअसल ] मेरा मतलब है कि उनकी मांगों को सै़द्धांतिक रूप में स्वीकार करके उस पर एक कामीशन बैठा दिया जाये जो यह तय करे कि बच्चों को किस सीमा तक आज़ादी दी जाये । ‘ मेरी बात से पेरेंटस सहमत हो गये तो मैने लक्की को एक ओर ले जाकर समझाया - ‘ बेटा, अब आप लोग भी जिदद छोड़ दो । इस तरह से बेचारा मुन्नू मर जायेगा और कुछ हासिल नहीं होगा । ‘ वह गुस्से में आ गया । हाथ झटक कर बोला -& अंकिल ] हम मर जायेंगे पर झुकेंगे नहीं । समूचा बालीवुड - टालीवुड हमारे साथ है । सभी क्रिकेटर्स हमारे साथ हैं । सामने देखो मुन्नू को देखने आने वालों की भीड. लगी है । सभी कॅालेज़ों और नगर - निगम के नेता हमारे साथ है। अब हमें कोई रोक नहीं सकता । कोई टोक नहीं सकता । जो हमसे टकरायेगा , चूर - चूर हो जायेगा । मुन्नू तुम आगे बढ़ो हम तुम्हारे साथ हैं । इन्कलाब ज़िदबाद । भारत माता की जय । आज वह पूरा नेता हो गया है । मामला गंभीर होता देखकर मैंने पर जाकर पेरेंटस की ओर से घोषणा की - & बच्चों ] हम तुम्हें इस तरह से मरते हुये नहीं देख सकते । सै़द्धांतिक रूप से हम आपकी सभी मांगें स्वीकार करते हैं लेकिन आपको किस सीमा तक आजादी दी जाये । कौन - कौन से अधिकार दिये जायें ताकि भविष्य में हमारे बीच तनातनी न हो , इसके लिये चैकी नंबर 12 के सस्पेंड इंसपैक्टर ] थानेदार सिंह की अध्यक्षता में एक कामीशन बैठाया जायेगा जो एक महीने में अपनी रिर्पोट देगा और उसके आधार पर घरेलू संविधान में संशोधन करके ] आप लोगों की आज़ादी संबंधी एक कानून बनाया जायेगा । थानेदार सिंह स्थानीय चैकी नंबर 12 के इंचार्ज़ थे और घूसखोरी के आरोप में पिछले एक साल से सस्पेंशन पर होने के कारण बेकार हो गये थे तथा जिन्हांने पिछले महीने हताशावश दसवीं में फेल हो जाने पर अपने पु़त्र योगराज को इतना पीटा कि उसकी बायीं टांग में फेक्चर हो गया । बच्चे भय से सहमत हो गये । अनशन समाप्त हो गया । राधेश्याम खुशी - खुशी मुन्नू को जूस पिलाने के लिये चल पड़े और मैं सोचने लगा कि आज सचमुच एक आदमी दूसरे आदमी की पीड़ा को समझने लगा है । सर्वत्र मानवतावादी प्रकाश फैल रहा है । लोकतंत्र का भविष्य उज्ज्वल है । भारत - उदय हो रहा है ।
- डा नरेंद्र शुक्ल
1573 , सेक्टर 21 पंचकूला
हरियाणा
मोबाइल & 09316103436 09988323436