Vaishya vrutant - 18 in Hindi Love Stories by Yashvant Kothari books and stories PDF | वैश्या वृतांत - 18

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वैश्या वृतांत - 18

शरद ऋतु आ गयी प्रिये !

यशवन्त कोठारी

हां प्रिये, शरद ऋतु आ गयी है। मेरा तुमसे प्रणय निवेदन है कि तुम भी अब मायके से लौट आओ ! कहीं ऐसा न हो कि यह शरद भी पिछली शरद की तरह कुंवारी गुजर जाए। बार बार ऋतु का कुंवारी रह जाना, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है- ऐसा सयानों का कहना है। जब कभी ऋतुवर्णन के लिए साहित्य खोलता हूं तो मुझे बड़ा आनन्द आता है। इस प्रिय ऋतु के बारे में कवियों ने काफी लिखा है, और बर्फ की तरह जमकर लिखा है। जमकर लिखने वालों में कालिदास व पद्माकर का नाम प्रमुख है।आखिर वे हमारे साहित्य के मूर्धन्य कवि थे ! अगर वे इस विपय को अछूता छोड़ देते, तो यह काम मुझे करना पड़ता, और तुम जानती हो, मेरे सामने कविता लिखने से भी ज्यादा जरुरी काम है !

हां तो ऋतु-वर्णन पर कवियों की कलम की बात हो रही थी। प्राचीन अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेंद ‘में चरक, सुश्रुत व वाग्भट-जैसे राजवैद्यों का कहना है कि यह ऋतु सेहत के लिए विशेप रुप से उपयोगी है। च्यवनप्राश, ब्रहम्रसायन, अवलेह, विभिन्न प्रकार के पाकों का सेवन कर उत्तम कोमलांगी का सेवन करने वाला ही इस ऋतु में प्रसन्न रह सकता है। शास्त्रों में कहा है- पहला सुख निरोगी काया ! आरोग्य से बढ़कर सुख नहीं। और पतली युवतियों के आरोग्य का ध्यान रखना मेरा पुनीत कर्तव्य है। अतः हे प्रिये, अब तुम भी लौट आओ, नही ंतो वर्पा के समान ही यह आरोग्यकारी ऋतु लौट जाएगी।

काश, सरकार महंगाई कुछ कम कर दे ! कुछ बादाम, कुछ घी खरीद लूं और रोज सुबह उठकर पौप्टिक हलवे का सेवन करुं। लेकिन सुमुखि, इस राज्य में अब समाजवाद भी ठिठुरने लगा है। शरद आ जाने से अब ठंड महंगाई की तरह बढ़ रही है।

बाजारों ‘में फुटपाथ पर अमेरिकी कोट-पतलून निकल आये हैं, लोगों की भीड़ राशन की दुकानों से हटकर इन इम्पोर्टेड कोटों पर लग गई है, नेपाली जर्सी व स्वेटर वाले अपने कपड़े स्वयं ही पहन रहे हैं।

अगर आज परमपूज्य पितामह होते तो वे दालचीनी, काली मिर्च, इलायची, सोंठ, लौंग, अदरक, जायफल, जावित्री आदि डालकर चाय बनवाते, और मैं उनके साथ रजाई में घुसे-घुसे ही उसे पीता।

हे मृगनयनी, अब न वे रहे और न वे बातें, लेकिन इस कटि का क्या करुं, जो रह-रहकर टीसती है और मुझे मेथी, अश्वगन्धा पाक तथा सौभाग्य सौंठ की याद दिला रही है। हे सुकुमारी, अब तो तू मैके से लौट आ-शरद ऋतु आ गयी है !

हे मृगलोचनी, क्या तुम भूल गयी कि कुमार सम्भव में कालिदास ने इस ऋतु का बड़ा महत्व बताया है। इसी ऋतु में हमारी शादी भी हुई थी, इससे मुझे दोहरा फायदा हुआ-एक तो तुम मिली और दूसरे कई जोड़े कपड़े, जो अभी तक मेरी रक्षा कर रहे हैं और मुझे अमेरिकी कोट नहीं पहनने पड़ रहे हैं। प्रिये, यह निश्चय ही सुख का विपय है !

आज रजाई में से यह सब क्यों कर याद आ रहा है ? निश्चय ही ष्शरद ऋतु आ गयी है ! कमरे के बाहर एक और जनतन्त्र ठिठुर रहा है और लॉन में कुत्ता फड़फड़ा रहा है, लेकिन मुझे तो केवल शरद से प्रेम है और दूसरा तुमसे ......नहीं-नहीं, पहला तुमसे और दूसरा शरद से !

ष्शरद को तुम किसी लड़की का नाम मत समझना। इस नाम की कोई लड़की अब अपने पड़ौस में नहीं रहती। पहले एक लड़की थी, लेकिन पिछले बसन्त में उसने अपनी शादी रचा ली, तब से मैं आत्महत्या करने के बारे में सोच रहा हूं, लेकिन भारत सरकार की तरह मेरी भी यह योजना बिना विदेशी सहायता के सम्भव नहीं लगती। अतः हे सुमुखि, यह भी अधूरी है। हां, तुम नहीं आयी तो कुछ सोचना पड़ेगा !

हमारे देश में शरद ऋतु का बड़ा महत्व है। चिकित्सक इस ऋतु में बड़ा पैसा कमाते हैं। वे बल, पौरुप तथा शरीर-वर्धक दवाएं बनाते हैं। बूढे-खूसट, जिनकी बुद्धि सठिया जाती है, इन अलौकिक दवाओं का सेवन कर आराम से स्वर्ग की राह चले जाते हैं।

जवान कामिनियां मदनातुर हो इस सुहानी ऋतु में अपने प्रियों की ओर ऐसे दौड़ती हैं-जैसे बरसाती नदियां ! शरद ऋतु में ही तो प्रिये, प्रवासी पक्षी भी लौट आते हैं। हे प्रिये, अब तो तुम भी लौट आओ ! शरद आ गयी है, बसन्त आए, इसके पहले ही तुम आ जाओ, मुझे तुम्हारे कुंवारे हाथों द्वारा बुने स्वेटर की अत्यन्त आवश्यकता है।

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यशवन्त कोठारी

86, लक्ष्मीनगर ब्रह्मपुरी बाहर

जयपुर 302002

फोन .9414461207