Ab lout chale - 3 in Hindi Classic Stories by Deepak Bundela AryMoulik books and stories PDF | अब लौट चले - 3

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अब लौट चले - 3

अब लौट चले -3

शायद रवि को मनु की बात का बुरा लगा था... मै उसके पीछे पीछे जानें लगी थी..
रवि... रवि... आप तो बुरा मान गये...?
और मै झट से कार के दरवाजे के सामने अड़ कर खड़ी हों गई... थी रवि ने मेरे चेहरे को देखते हुए अपना मुँह मेरे मुँह के नज़दीक ला कर मीठी सी मिश्री घोलती हुई आवाज़ में कहा था..
गुड नाईट संध्या...
और रवि ने मेरे चेहरे को अपने दोनों हांथो से पकड़ कर मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिये थे मै कुछ ना कर सकी थी उसकी सांसे मेरी सांसो के साथ समा चुकी थी उस वक़्त अब में पूरी तरह से रवि की हों चुकी थी... कुछ पलों के बाद रवि मुझे से झट से दूर हुआ और मुझें एक तरफ करते हुए गाड़ी में बैठ गया था और गाड़ी स्टार्ट करके जाते जाते फिर गुड नाइट कह गया था.. लेकिन मै तो वे सुध सी खड़ी थी... ऐसा लग रहा था मानो रवि मेरी आत्मा
निकाल कर अपने साथ लें गया हों... कुछ देर में वैसे ही खड़ी रहीं थी.... इस मदहोशी भरे एहसास में मै ये भूल चुकी थी की मनु ने खाना खाया भी था या नहीं... जब मै कमरे में लौटी तो मनु अभिषेक से सट कर सो चुका था..
मुझें उस वक्त कुछ समझ नहीं आ रहा था मै क्या करु....
और मै चुप चाप बैठ कर रवि के ही बारे में सोच रहीं थी जबकि मेरा बच्चा और पति सो चुके थे..

बस के ब्रेक लगते ही मेरे बीते हुए कल का सपना टूट चुका था... मेरी आँखों में आंसू बह रहें थे... ऐसा लग रहा था मानो कल की ही बात हों... मैंने अपने आंसू पोछे और पीछे की और टिकते हुए बस की खिड़की से बाहर की तरफ देखा जो मेरी मंज़िल के पहले का स्टॉप था... मेरे दिल की धडकने तेज हों रहीं थी क्योंकि अब सिर्फ लग भग 30 से 40 मिनट का रास्ता तय करना और रह गया था.. पहले कभी ये गांव हुआ करता था लेकिन अब बिलकुल बदल चुका था...
सब तो बदल गया... कुछ भी तो पहले जैसा नहीं रहा... कही मनु भी तो नहीं बदल गया होगा...?
फिर एक मन ने कहा... जब तुम बदल सकती हों संध्या तो क्या वो नहीं बदला होगा...
बदल जाये लेकिन अभिषेक तो आज भी मुझें याद करता होगा उसके दिल में तो मेरे प्रति कुछ तो होगा...
मै खिड़की से बाहर खड़े एक अपाहिज को देख रहीं थी जो बैसाखियो के सहारे खड़ा था... उसे देख मेरे मन में यका यक मनु का आभास हुआ ठीक वैसा ही जब मै रवि के साथ मनु और अभिषेक को छोड़ कर जा रहीं थी मनु अभिषेक को चिपकाये बैसाखियो के सहारे खड़ा मुझसे ना जानें की याचना कर रहा था..
संध्या अपने इस बच्चे की खातिर मत जाओ... तुम जैसा कहोगी मै वैसा ही करूँगा...
लेकिन मैंने उसकी एक भी ना सुनी थी... मेरी हसरतों और ख्वाहिशो के आगे मनु की याचना ने दम तोड़ दिया था... और मै अपने प्यार के साथ नई जिंदगी की उड़ान भरने निकल चुकी थी...