Gumshuda ki talaash - 9 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 9

Featured Books
Categories
Share

गुमशुदा की तलाश - 9


गुमशुदा की तलाश
(9)


अब तक रंजन ने इस केस पर बहुत अच्छा काम किया था। उसने कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाई थीं। लेकिन सरवर खान ने महसूस किया कि इस केस में कई पेंच हैं। उन्हें अपने अनुभव का प्रयोग करना पड़ेगा। अतः वह खुद भी वहाँ आ गए। उन्होंने भी उसी लॉज में एक कमरा ले लिया जिसमें रंजन रह रहा था।
इस समय सरवर खान अपने कमरे में रंजन के साथ बैठ कर इस केस में अब तक जो बातें सामने आई थीं उन पर बातचीत कर रहे थे। सरवर खान ने कहा।
"मुझे लगता है कि जिस लंबी लड़की के बारे में उस गार्ड ने बताया था वह रीना हो सकती है।"
"हाँ सर मुझे भी यही लगता है। एक बार इस रीना का पता चल जाए तो समझिए बहुत सी बातें पता चल जाएंगी।"
"नाश्ता कर लेते हैं फिर इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से मिलने चलेंगे।"
रंजन ने नाश्ते का आर्डर दे दिया। दोनों कमरे में ही नाश्ता करने लगे। रंजन कुछ उदास था। कल रात ही उसकी अपनी मम्मी से बात हुई थी। उन्होंने बताया था कि विक्टर अंकल से उनकी बात हुई थी। विक्टर अंकल के अनुसार उसके पापा बहुत कमज़ोर हो गए हैं। वह चाहते हैं कि एक बार रंजन और शर्ली उनसे मिल लें। मम्मी बहुत दुखी थीं। कह रही थीं कि इस हालत में उनसे नाराज़गी रखना ठीक नहीं है।
रंजन भी अपने पिता की हालत के बारे में सोंच कर दुखी था। वह भी एक बार उन्हें देखना चाहता था। पर केस में उलझे होने के कारण जा नहीं पा रहा था। उसने अपनी मम्मी से कह दिया था कि फिलहाल वह दिल्ली जाकर उनसे मिल आएं।
सरवर खान उसकी उदासी को तो समझ रहे थे। पर उसका कारण नहीं जानते थे। उन्होंने रंजन से पूँछा।
"क्या बात है ? उदास लग रहे हो।"
रंजन ने उन्हें अपने पापा की बीमारी के बारे में बताया। सुन कर सरवर खान को अफसोस हुआ। रंजन बोला।
"वैसे तो शायद ही मैं उन्हें कभी माफ कर पाता। लेकिन अब इस हालत में मैं उनसे नाराज़ भी नहीं रह सकता।"
"रंजन माँ बाप से नाराज़गी रखना ठीक भी नहीं। मैं तो कहूँगा कि तुम जाकर उनसे मिल आओ।"
"लेकिन सर अभी तो यह केस चल रहा है। यह निपट जाए तो मैं भी चला जाऊँगा। अभी तो मैंने मम्मी से कह दिया है कि वह चली जाएं।"
सरवर खान कुछ भावुक होकर बोले।
"नहीं रंजन ऐसा ना सोंचो। कभी कभी हम सोंचते रह जाते हैं और देर हो जाती है। शकीना शिकायत करती थी कि आप मुझे वक्त नहीं देते हैं। मैं सोंचता था कि हाथ में जो केस है खत्म कर लूँ फिर उसके साथ कुछ दिन बताऊँगा। पर ऐसा हो नहीं पाया। हर बार कोई ना कोई नया केस पहले ही हाथ में आ जाता था। एक दिन शकीना छोड़ कर चली गई।"
बोलते हुए सरवर खान का गला रुंध गया। रंजन उठ कर उन्हें संभालने लगा।
"इसलिए कह रहा हूँ कि चले जाओ। वरना बाद में सिर्फ पछतावा रह जाएगा। मैं अभी तुम्हारे जाने का इंतजाम करता हूँ।"
"पर सर आप अकेले रह जाएंगे।"
"वो मैं सब संभाल लूँगा।"
रंजन और सरवर खान नाश्ते के बाद इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से मिलने गए। उन्होंने अब तक जो कुछ भी केस के बारे में पता चला उस पर चर्चा की। सरवर खान ने इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से कहा कि वह बिपिन के गायब होने वाली रात की सीसीटीवी फुटेज उस साइबर कैफे से निकलवाने में मदद करें। इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह जल्दी ही यह काम कर देंगे।
रंजन के मन में एक बात चल रही थी। उसने पूँछा।
"सर आप लोगों ने जब बिपिन के सामान की जाँच की होगी तब कुछ ज़रूरी सामान ही कस्टडी में लिया होगा। बाकी का सामान क्या हुआ ?"
इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह ने याद करते हुए कहा।
"हमने सिर्फ एक नोटबुक ही कस्टडी में ली थी। जो आपको दिखाई थी। बाकी कुछ कपड़े, किताबें और पेपर थे। वह हमने सीनियर वार्डन मुकेश सदाना को दे दिया था।"
"धन्यवाद सर..."
जब दोनों पुलिस स्टेशन के बाहर आए तो सरवर खान ने कहा।
"तुमने बाकी के सामान के बारे में क्यों पूँछा ?"
"सर मुझे लगा कि उस बाकी के सामान में कुछ ऐसा मिल जाए जो पुलिस को नहीं दिखा। अभी इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह ने कहा कि सामान में कुछ पेपर भी थे। हो सकता है उनसे कोई सुराग मिल जाए।"
सरवर खान ने प्रशंसा भरी दृष्टि से रंजन को देखा।
"गुड....तुम अब बहुत कुछ सीख गए हो।"
"थैंक्यू सर....यह सब आपके साथ काम करने का असर है।"
सरवर खान और रंजन सीनियर वार्डन मुकेश सदाना से मिलने गए। उन्होंने बताया कि बिपिन के कमरे का सामान अभी उनके पास ही है। सरवर खान ने उनसे दरख्वास्त की कि वह बिपिन का सामना देखना चाहते है। मुकेश ने उन्हें सामान देखने की इजाज़त दे दी।
सामान की जाँच करने पर सरवर खान को कुछ पेपरों के अलावा कुछ ऐसा नहीं मिला जो काम का हो सकता हो। सबको वहाँ बैठ कर पढ़ पाना संभव नहीं था। लेकिन कुछ पेपर ऐसे थे जिन पर बिपिन ने कुछ वाक्यों को मार्क किया हुआ था। सरवर खान ने अपने फोन से उन्हें स्कैन कर लिया।
वहाँ से दोनों लॉज वापस आ गए। रंजन ने कहा।
"सर मैंने यह बाइक किराए पर ली थी। मैं उसे वापस कर उनसे कार के लिए कह देता हूँ। आपको सहूलियत होगी।"
रंजन ने जाकर बाइक वापस कर दी।
सरवर खान ने रंजन को कैब से घर भेज दिया। उसके और उसकी मम्मी के लिए दिल्ली जाने के फ्लाइट टिकट बुक करा दिए। रंजन अपने पापा से मिलने के लिए चला गया।
सरवर खान अपने कमरे में बैठे उन स्कैन किए हुए पेपरों को पढ़ने लगे। वह ए-फोर साइज़ के पन्ने थे जिन पर बिपिन ने अपने हाथ से कुछ नोट्स बनाए थे।
उन नोट्स को पढ़ कर सरवर खान को जो समझ आया वह यह था कि बिपिन ने सेरोटोनिन नाम के एक हॉर्मोन का ज़िक्र किया था। यह हॉर्मोन हमें खुश व उत्साहित रहने में सहायक होता है। किंतु यदि इस हॉर्मोन के बनने में कोई अवरोध पैदा हो जाता है तो हम उदास, निराश व हतोत्साहित महसूस करने लगते हैं। इस अवस्था के बने रहने से हम अवसादग्रस्त होने लगते हैं।
सेरोटोनिन के बनने में अवरोध का मुख्य कारण हमारी बदलती जीवनशैली है। तनावग्रस्त रहना, सही खान पान ना होना, शारीरिक श्रम की कमी आदी। अतः एक स्वस्थ जीवनशैली का अपनाया जाना आवश्यक है।
एक बिंदु जिसने सरवर खान का ध्यान अपनी तरफ खींचा था वह किसी चिंता हरण नामक फूल का ज़िक्र था। बिपिन ने लिखा था कि सेरोटोनिन के उत्पादन में यह फूल सहायक है। फूल के नाम के साथ ब्रेकेट में नंदपुर लिखा था। सरवर खान को याद आया कि नोटबुक में भी बिपिन ने 'उस गांव' ऐसा लिखा था। उन्हें लगा कि बिपिन ने नंदपुर का ही ज़िक्र किया होगा।
सरवर खान केस के बारे में सोंचने लगे। अब तक जो महत्वपूर्ण बातें सामने आई थीं उनके हिसाब से बिपिन ऐसे लोगों पर स्टडी कर रहा था जो नशे के आदी हों। वह हॉस्टल से रात भर बाहर रहता था।
गायब होने से पहले गार्ड मेवाराम ने उसे एक लंबी लड़की के साथ जाते देखा था। जो शायद रिनी हो सकती है। रिनी ही उसे नंदपुर ले गई थी।
सफेद स्कोडा कार की जानकारी जुटाना भी महत्वपूर्ण था। वह कौन था जिसके साथ बिपिन सफेद स्कोडा में बैठ कर जाता था।
सरवर खान ने अपने दिमाग में ये सारे बिंदु दर्ज़ कर लिए थे। शुरुआत साइबर कैफे के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरा की फुटेज से करनी थी।
एक और बात सरवर खान के दिमाग में आई थी। पुलिस से बिपिन की कॉल और चैट डिटेल्स की रिपोर्ट लेनी थी।
सरवर खान ने घड़ी देखी। पौने दो बजे थे। उन्होंने रूम सर्विस को फोन कर खाना मंगा लिया। खाना खाते हुए उन्होंने रंजन को फोन मिला कर उससे हालचाल लिए। रंजन ने बताया कि अपने पिता को देख कर उसकी आँखों में आंसू आ गए। वह बहुत अधिक कमज़ोर हो गए हैं। उसे और उसकी मम्मी को देख कर वह बहुत भावुक हो गए। कह रहे थे कि तुम लोगों ने मुझे माफ कर दिया। अब चैन से मर सकूँगा। रंजन ने सरवर खान को धन्यवाद दिया कि उन्होंने उसे सही समय पर अपने पापा से मिलने भेज दिया। नहीं तो अगर कुछ हो गया तो वह सचमुच पछताता ही रह जाता। रंजन ने कहा कि वह दो दिन बाद लौट रहा है।