Teen Bori Jivan in Gujarati Motivational Stories by Chavda Girimalsinh Giri books and stories PDF | तीन बोरी जीवन

Featured Books
Categories
Share

तीन बोरी जीवन

"तीन बोरी जीवन"


चलो आज एक कहानी सुनाता हूँ।


थोड़ी सुनी थोड़ी अनसुनि थोड़ी देखी थोड़ी अनदेखी।

आपकी भी है मेरी भी है यह कहानी हम सबकी भी हे


कुछ दिनो पहेले की बात है। थोड़ा घर पे काम होने के कारण बड़ोंदा से जूनागढ़ गया था।जीवन का दूसरा नाम है समय जो हम सब को दिखता तो है पर अपने निजी जीवन में किस तरह इस्तेमाल करना है उसका ज्ञान सिर्फ़ हमें अपने जीवन में घटित होने वाली घटना से ही पता चलता है।


बड़ोंदा से सीधे जूनागढ़ की बस पकड़ी ओर आराम से अपनी सीट पर बेठे बेठे सोचने लगा की चलो सफ़र का मज़ा लेने का समय गया है। जीवन ओर उसके साथ साथ जीवन में आने वाले ओर साथ छोड़ने वाले मुसाफ़िर से हमें काफ़ी सिखने को मिलता है।हमारे सबके जीवनकाल में एक मुसाफ़िर ऐसा आता है जो हमें मुसीबत से भरे रास्ते ओर रास्ते में बिछे काँटे को कैसे हटाना है वह बताता है। चाहें वो मुसाफ़िर अपना हो या पराया हो।


10 घंटे का सफ़र करने के बाद मैं जूनागढ़ बस-स्टैंड पहुँचा जूनागढ़ से मेरे गाँव जाने के लिए दूसरी बस पकड़नी पड़ती है। सोचने लगा कि : "जल्द से जल्द में बस पक़डू ओर घर की ओर निकल पडू "

मेरा सोचना था सोच थोड़ी बड़ी थी पर काम नहि लगी , क्यूँकि पता चला की मेरे गाँव की बस थोड़ी देर बाद आने वाली है मेरी सारी आश पर निराशा का पानी फिर गया थोड़ी आश बंधी थी कि जल्द ही घर पहोचक़े अपनी माँ की गोद में सो जाऊँगा ओर पल को महसूस करता ही रहूँगा।


लम्बी मुसाफ़री ओर साथ में चलने वाला सामान दोनो से थकाहारा में बेचेनसा हो कर कही परभी बेठनी की जहग ढूँढने लगा। पूरा बस-स्टैंड भरा हुआ था थोड़ी सी बेठनी की जगह मिल जाए तो वही पर ही में मेरा डेरा डाल दूँ थोड़ा आगे बड़ा ओर बस-स्टैंड के अंदर जगह ढूँढने जाने लगा ओर मेरा नसीब की मुझे बेठनी की जगह मिल गई। आराम से बेठे-बेठे में बस की राह तकने लगा।


तभी मेरी नज़र बस-स्टैंड के अंदर बेठी एक बूढ़ी ओरत पर पड़ी दोनो आँखे नहीं थी लकड़ी के सहारे सामने की चीज़ें महसूस कर के आगे बढ़ रही थी। दोनो पैर की शक्ति समाप्त होने के कारण चार पेरों ओर पीठ का सहारा ले कर एक जगह से दूसरी जगह खिसकत-खिसकते चल रही थी।


मेंने थोड़ा अचार्यचकित होके उस बुढ़िया के सामने देखा उम्र में तक़रीबन 65 साल के आसपास की दिख रही थी। हालत देख के पता चल रह था कि किसे ने बेघर कर दिया है।सफ़ेद बालों में धूल की माँग सज गई थी।पूरे बालों पर धूल मिट्टी लगी हुइ थी उसकी वजह से पूरे बलों में काले कीड़े पड़े हुए थे पूरा शरिर गंदा होने कारण आसपास बहोत सारी मख़िया मँडरा रही थी काले रंग का ड्रेस पहना हुआ था पर बाद में पता चला कि वो काला क्यू दिख रहा है पूरे बस्टेड की धूल बुढ़िया ने अपने कपड़ों तले साफ़ कर ली थी। उसकी पास तीन बोरी थी जिसमें उसका सारा सामान था एक एक बोरी में उसके जीवन की सभी चीज़ें भरी हुवी थी।


लग रहा था की एक एक बोरी कुछ ना कुछ कहना चाहती है।एक बोरी में जेसे सारा दुःख समाया है।अपना दुःख अपनो का दुःख ,सारे जग का दुःख।केसा होता जो सारे दुःख एक बोरी बंध हो जातें पर एसा हम नहीं कर शकते , क्यूँकि हम सिर पर रख के चलते है यातो फिर किसी के ऊपर थोप देते है। तभी पता चला कि दुःख एक बोरी की तरह तो है। जो हम संजो लेते है पर समयांतर पर उसको निकाल नहीं पाते दुःख की कोई परिभाषा ओर व्याख्या नहीं होती। जो दुःख को ब्या कर सकती है।


समय बीतता गया ओर समय के साथ साथ मेरे मन में भी सवालों का ढेर बनता गया। लगा था की आज में ख़ुद ख़ाली हो गया हूँ आकार से निराकार हो गया हूँ जेसे-जेसे में उस बूढ़ी ओरत की ओर देखता रहा रहा वेसे-वेसे मुझे जीवन की सारी मुसीबतों का हल मिल रहा था।


उसे सब देख रहे थे पर उसको कोई नहि दिख रहा था। उसको पता था उसका कोई नहि है पूरा बस-स्टैंड लोगों से भरा हुआ था पर उस बुढ़िया पर कोई नज़र भी नहीं डाल रहा था। आँखों से देख शकने वाले लोग आज आँखे होने पर कुछ नहीं देख पा रहे थे।


लग रहा था की उसका पूरा जीवन इस बस-स्टैंड में ही व्यतीत हुवाँ है। जाने किसने छोड़ा होगा,किस हालात में छोड़ा होगा याद करके भी कितना दर्द होता है तो उसके ऊपर तो क्या बीत रही है तो वही बात सकती है।जीवन में हारे हुवे लोग तो बहुत देखने को मिल ते है पर जो हार कर भी जीते है वेसे लोग कम दिखने को मिलते है। जिसको में आज देख रहा हूँ, तब एसा प्रतीत हो रहा था की तीन बोरी में अपना सारा जीवन समेटें हुवे बैठी हुवी यह ओरत जाने क्या भर के बेठी होगी।जो इसको सब दुःख सहेने की ताक़त देता है।


जीवन की यह दशा देख के मेरी रूह काँप रही थी। पर उसके चहेरे पर सुख की मुस्कान फूलों की तरह खिली हुई थी।जीवन एक नग़मे की तरह केसे गुनगुना ना है आपके ऊपर निर्भर करता है।अपने जीवन का गीत वह ओरत हर दिन सुभा सूरज उगने से लेकर चाँद की ठंडी शाम तक गुनगुनातीं होगी। ज़िंदगी की जंग में उसने महारत हासिल कर ली थी। चाहे कितनी भी मुसक़िलो का सामना कर ना पड़े हम कर सकते है। केवल मन का जागरत होना काफ़ी है अपने आपको ज़िंदा रखने के लिए।




अपने ने जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ आए खुल के सामान करना चाहिये। एसा संदेश वो सेंकडो लोगो को दे रही थी।उकसी तीन बोरी मेरे लिए जीवन में तीन पहेलू साबित हुवे पहला पहेलू अपने जीवन में किसी के ऊपर आधारित मत रहो। दूसरा पहेलू अपना जीवन अपने तरह से जियो। तीसरा पहेलू किसी भी परिस्थिति में अपना होसला गवाँ ना नहि चाहिए।


लेखक : गिरीमालसिंह चावड़ा "गीरी"