आखर चौरासी
दो
जगदीश, राजकिशोर और विक्रम तीनों हॉस्टल मेस के बरामदे में खम्भों के पीछे खड़े स्टीवेंशन ब्लॉक पर नजर रखे थे। व गुरनाम का कमरा था। बीच-बीच में जगदीश अपनी जगह से झाँकते हुए सामने देख कर कमरा नम्बर-91 की हलचल उन दोनों को धीमी आवाज में बताता जा रहा था। मगर राजकिशोर अपनी उत्सुकता को न दबा पाने के कारण स्वयं देख लेने के उद्देश्य से बार-बार खम्भे की आड़ से बाहर निकल आता। पोलियोग्रस्त दायें पैर के कारण इस प्रयास में उसे अपने पूरे शरीर को ही झटके से आगे-पीछे करना पड़ता। उसकी इसी उछल-कूद के कारण जगदीश बुरी तरह झल्ला चुका था।
‘‘तुम बार-बार अपना सर निकाल कर मत झाँको। अगर गुरनाम ने देख लिया तो सारा प्लान चौपट हो जाएगा।’’ जगदीश ने उसे झिड़कते हुए कहा।
उसकी बात सुन कर राजकिशोर ने बुरा-सा मुँह बनाया, परन्तु वह कुछ जवाब देता उसके पूर्व ही जगदीश बोला, ‘‘अब वह अपने कमरे से बाहर निकल कर ताला लगा रहा है। अगर पहले पता होता कि वह कमरे में अकेला है तो वहीं धावा बोल देते। ...खैर, अब तैयार हो जाओ वह आ रहा है। एक बात का खास ख्याल रखना, उससे बात-चीत के क्रम में अपनी आवाज धीमी ही रखना वर्ना बेवजह ही भीड़ जमा जाएगी।’’
गुरनाम तेज-तेज कदमों से मेस कि ओर बढ़ा आ रहा था। पन्द्रह मिनटों में प्रोफेसर गुप्ता की क्लास शुरु होने वाली है। उससे पहले उसे खाना खा कर कॉलेज पहुँच जाना है। अगर कॉलेज के ठीक पीछे स्थित मेन हॉस्टल के ‘किंग्स ब्लॉक’ वाला गेट खुला रहता तो गणित विभाग हो कर मात्र दो मिनटों में जीव-विज्ञान विभाग पहुँचा जा सकता था। मगर अभी वह गेट बंद है। अब उसे ‘स्टीवेंशन ब्लॉक’ वाले मेन गेट से कॉलेज का पूरा चक्कर लगाते हुए ‘आर्ट्स ब्लॉक’ हो कर जाने में पूरे पाँच मिनट लग जाएंगे। गुप्ता सर के बाद लगातार तीन और क्लासें हैं। खाना खाए बिना जाए से सारी क्लासेज फिर भूखे पेट ही करनी पड़ेंगी। गुरनाम के मन में यही सब बातें घूम रही थीं, जब बरामदे में कदम रखते ही खम्भे की ओट से निकल कर जगदीश उसके सामने आ खड़ा हुआ। यूँ उसे अचानक सामने देख, गुरनाम अचकचा कर रुक गया।
‘‘क्यों बे गुरनाम ! बॉस बन गये हो क्या ?’’ जगदीश अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोला।
उसका अभद्र वाक्य और बोलने का अंदाज दोनों गुरनाम को बुरे लगे। वह कुछ जवाब देता उसके पूर्व ही ओट से निकल कर राजकिशोर और विक्रम उसके दाएँ-बाएँ खड़े हो गये। गुरनाम घिर चुका था। वहां पर राजकिशोर की उपस्थिति ने उसे अपने घिर जाने के कारण का अनुमान लगवा दिया था।
उन दिनों कॉलेज में नये दाखिलों के बाद से रैगिंग का मौसम चल रहा था। उन्हीं फ्रैशर्स (नये विद्यार्थियों) में एक राजकिशोर के दूर का रिश्तेदार, मोहन था। राजकिशोर हॉस्टल के बिगड़े लड़कों में से था, इसलिए मोहन की रैगिंग कोई नहीं करता था। जबकि राजकिशोर, जगदीश और विक्रम की तिकड़ी अन्य फ्रैशर्स की खूब रैगिंग कर रही थी। वैसे तो गुरनाम स्वयं रैगिंग के सख्त खिलाफ था, परन्तु मोहन को मिलने वाली उस अनुचित रियायत के बारे में जान कर उसे बहुत बुरा लगा। फिर भी उसने इस बात पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया। वह तो बीती रात मोहन की अनुशासनहीनता या कहें कि उद्दण्डता ने उसे मोहन की रैगिंग करने को बाध्य कर दिया था।
उस वक्त गुरनाम ओमप्रकाश नाम के फ्रैशर्स से मिलने ‘स्टीवेंशन ब्लॉक’ स्थित पहली मंजिल पर उसके कमरे में गया था। अपने अच्छे व्यवहार के कारण बहुत कम समय में ही गुरनाम फ्रैशर्स के बीच लोकप्रिय हो गया था।
गुरनाम के वहाँ पहुँचने पर छः बिस्तर वाले उस कमरे में ओम प्रकाश और चार अन्य लड़कों ने उठ कर उत्साह से उसका अभिवादन किया, जबकि मोहन पाँव फैलाए अपने बिस्तर पर ही पड़ा रहा था। गुरनाम को बड़ा बुरा लगा। साथ ही यह बात भी उसके जेहन में कौंध गई कि मोहन की वह उद्दण्डता राजकिशोर से मिली शाह का ही परिणाम है। उस विचार ने आग में घी का काम किया, ओमप्रकाश से संबंधित अपना काम भूल कर वह मोहन की ओर मुड़ गया।
‘‘गेट अप (खड़े हो जाओ)।’’ मोहन के लिये उसका कठोर स्वर आदेशात्मक था।
परंतु उसकी कठोर आवाज सुनने के बावजूद मोहन पूर्ववत् बिस्तर पर पड़ा रहा। यह देख गुरनाम और भी भड़क गया। वह तो सरासर सीनिअर की बेइज्जती थी।
गुरनाम मोहन पर ज़ोर से चीखा, ‘‘आई से गेट अप !’’ उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया ।
गुरनाम का वह रूप देख कमरे में सन्नाटा फैल गया। सभी मौजूद फ्रैशर्स के लिए गुरनाम का वह एक नया रुप था। दूसरी तरफ मोहन भी हतप्रभ था, उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई उसे इस तरह भी डाँट सकता है। गुरनाम के चेहरे पर उभरे भावों को देख कर वह हड़बड़ाते हुए उठ कर खड़ा हो गया.
‘‘यस सर.... गुड ईवनिंग सर...!’’ वह हकलाते हुए बोला।
‘‘तुम्हें सीनियर्स को विश करना भी नहीं आता है क्या ?’’ गुरनाम की वह सर्द आवाज किसी भी फ्रैशर्स को डराने वाली थी।
‘‘यस सर... यस सर...’’ कहते हुए मोहन ने एक हाथ छाती और दूसरा पीछे मोड़ कर अपनी पीठ पर रखते हुए अपनी कमर को नब्बे डिग्री के कोण पर झुकाया, ‘‘गुड ईवनिंग सर !’’
शेष सभी लड़के दम साधे खड़े थे। मोहन के सीधा होते ही गुरनाम की आवाज उभरी, ‘‘अब लगे हाथ स्विटजरलैंड भी घूम लो।
स्विटजरलैंड घूमने के नाम पर मोहन बुरी तरह चौंका था ।
“फ्रेशर्स का स्विटजरलैंड कहाँ होता है नहीं जानते ? चलो टेबल के नीचे घुसो !’’
मगर टेबल के नीचे घुसने की जगह मोहन अड़ियल की तरह चुपचाप खड़ा रहा।
गुरनाम ने उसे चुपचाप खड़े देखा तो जोर से डाँटा, ‘‘घुसते हो टेबल के नीचे या उठा कर खिड़की से बाहर फेंकूँ ?’’
अब तक मोहन का रहा सहा साहस भी जवाब दे गया था और कोई चारा न देख कर वह चुपचाप टेबल के नीचे घुस गया। गुरनाम उसी टेबल पर बैठ शेष लड़कों से बातें करने लगा। उसने ऐसा जाहिर किया मानों मोहन के बारे में भूल गया हो। काफी देर तक टेबल के नीचे उकड़ूँ बैठा रहने से मोहन की कमर तथा गर्दन में दर्द होने लगा। जब वह और सहन ना कर सका तो रो पड़ा। रुलाई सुन कर गुरनाम टेबल से उतरा।
‘‘चलो अब बाहर आ जाओ। बहुत सैर हो गयी। स्विटजरलैंड की बाकी सैर फिर कभी कर लेना।’’
मोहन के बाहर निकलने पर गुरनाम ने पूछा, ‘‘अब तो सीनियर्स को विश करने में गलती नहीं होगी ?’’
‘‘नो सर...’’ मोहन ने धीरे से जवाब दिया था।
एक पल में ही बीती रात का वह सारा वाकया गुरनाम की स्मृति में कौंध गया। राजकिशोर ने अपनी कमीज उठा कर कमर में खोंसा देसी तमंचा उसे दिखाया, ‘‘कान खोल कर सुन लो गुरनाम, दुबारा मोहन की रैगिंग की तो ठीक नहीं होगा।’’
गुरनाम ने उसे मन ही मन गाली दी, ‘स्साला तैमूरलंग, दो-दो को साथ ले कर आया है। अकेला होता तो मैं भी देख लेता कैसे धमकाता है ?’
लेकिन ऊपर से उसने स्वयं को शांत ही रखा, ‘‘मुझे क्लास के लिए देर हो रही है, जाने दो।’’
‘‘हम भी तुमसे यही कह रहे हैं। देखो तुम पढ़ने-लिखने वाले लड़के हो, इसीलिए समझा रहे हैं। कोई और होता तो, टाँगें तोड़ कर हाथ में थमा देते। हम लोगों से पंगा मत लेना’’ इस बार विक्रम बोला था।
गुरनाम ने एक नजर तीनों पर डाली और चुपचाप मेस में घुस गया। जगदीश, राजकिशोर और विक्रम ‘हो...हो...’ हंसते हुए कॉमन रुम की तरफ चले गये। पढ़ाई से उन्हें कोई मतलब नहीं था। भांग-गाँजा में मस्त रहने, फिल्में देखने और बेवजह इधर-उधर घूमने से ही उन्हें फुर्सत नहीं मिलती थी।
‘‘अब आया मजा। गुरनाम को आज अच्छी खुराक मिल गई, याद रखेगा। मेरा तो मन कर रहा था, एक-दो हाथ रसीद कर देते....’’ राजकिशोर ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा।
‘‘हाँ...हाँ और उसके बाद, सुपरिंटेडेंट हम लोगों को हॉस्टल के बाहर कर देते। क्या तुम नहीं जानते, गुरनाम पढ़ाई-लिखाई में तेज होने के कारण सिन्हा सर का प्रिय पात्र है। इधर तुम उसे मारते, उधर हमें हॉस्टल से बाहर निकाला जाता। जरा दिमाग से काम लो। ’’ जगदीश ने उसे घुड़क दिया।
मेस में टेबल पर बैठते ही मेस के नौकर राजु ने उसका खाना लगा दिया। मगर उस मुठभेड़ के बाद से गुरनाम का मूड उखड़ चुका था। खाने को उसका मन नहीं किया, किसी तरह दो-चार कौर अपने पेट में ठूँस कर वह उठ खड़ा हुआ।
***
कमल
Kamal8tata@gmail.com