Aahvan aatmao ka in Hindi Horror Stories by Devendra Prasad books and stories PDF | आह्वाहन आत्माओं का

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आह्वाहन आत्माओं का

मेरा नाम पंकज कुमार है। मुझे लोग सोनू कहना ज्यादा पसंद करते हैं। मै दिल्ली का रहने वाला हूँ। मैं हिमांचल में सोलन से 18 की.मी. दूर माधोपुर में स्थित हिमांचल कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग से कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई कर रहा हूँ। मेरी पढ़ाई ठीक से हो सके इसलिए मैं हॉस्टल में रह रहा हूँ।

आज मै उस किस्से को शेयर करना चाहता हूँ, जिसकी वजह से मैं और मेरे तीन दोस्तों की रातों की नींदे हराम हो गयी हैं। हर वक्त हमारे हॉस्टल के रूम में अजीबोगरीब घटनाएँ होती रहती हैं। दिल करता है की हॉस्टल ही छोड़ दें, पर यहां आस-पास का इलाका इतना समृद्ध और विकसित नहीं है। कॉलेज के आस-पास दूसरी कोई इतनी अच्छी हॉस्टल की सुविधा है ही नहीं, इसलिए पढ़ाई पूरी होने तक हम यहीं इसी हॉस्टल में रहने के लिए मजबूर हैं।

वास्तव में कहूँ तो इन सब का जिम्मेदार हम खुद चारों दोस्त ही हैं। आज भी मुझे याद है वह दिन… जब विवेक ने रविवार को दोपहर में मैगी बनाई थी, और उसने कहा की आज कुछ तूफानी करते हैं। राजेन्द्र और जितेन्द्र पूछने लगे की क्या करे कहो? तो विवेक बोला की उसने इंटरनेट से एक ऐसी वैबसाइट का पता किया है, जिसमे खुदखुशी कर के मरे हुए और अकाल मृत्यु से मारे गए लोगों की आत्मा को बुलाने का तरीका बताया गया है। मैंने, जितेन्द्र ने और राजेन्द्र ने उसे पूछा की आत्माओं को बुला कर करेंगे क्या?

विवेक ने कहा की हम विडियो रेकॉर्ड करेंगे और वास्तव में आत्मा का विडियो बन गया रातो रात यु-ट्यूब पर अपलोड कर के स्टार बन जाएंगे और विडियो monetize कर लेंगे, तो उस से अच्छी ख़ासी कमाई भी हो जाएगी। पूरे साल का पढ़ाई का खर्चा भी निकाल आएगा। विवेक की बातें सुन कर हम तीनों भी तैयार हो गये।

हम चारों ने फौरन उस वैबसाइट से डिटेल्स लेली। हेंडीकैम/कैमेरा निकाला और आत्माओं को बुलाने का सारा तामझाम सजा लिया। आब हमलोग यह चर्चा करने लगे थे की किसकी आत्मा को पहले बुलाया जाए। हम चारों दोस्त बॉलीवूड और टीवी के जबरा फैन हैं, तो हमने अमरीश पुरी और श्रीदेवी की आत्माओं को बुलाने का फैसला किया। हमलोगों ने ये सोचा कि उनकी मौत का रहस्य दुनियाँ के सामने उजागर होने पर हमारा विडियो इंटरनेट पर वायरल हो जाए। लेकिन किसे पता था कि आगे चल कर ये हमारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती साबित हो जायेगी।



रात के ठीक दो बजे पूरी सामाग्री सजा कर, मै, विवेक, जितेन्द्र और राजेन्द्र तैयार हो गये। हम चारो ने एक छोटी सी मेज को ज़मीन पर रखा और उसको चारो तरफ घेरकर बैठ गए। मेज पर नींबू ,नारियल और काले रंग के रंगे हुए चावल की मदद से कुछ विचित्र सा कलाकृतियां बना कर अलंकृत कर के मेज के ऊपर सजावट किया फिर उसके चारो कोनो पर रंगीन मोमबत्ती जलाई और मेज के ठीक बीचों बीच मे 1 बड़ा सा सफेद कैंडल के साथ एक रुपये के सिक्के को श्रीदेवी और अमरीश पुरी की पासपोर्ट साइज की फ़ोटो को साथ रखा। ऐसा करने के बाद हमने पहले श्रीदेवी की आत्मा को बुलाने के लिए मंत्रोचार शुरू किए

…अचनाक जलती हुई कैण्डल बुझ गई। कैंडल के बुझ जाने से हम सभी के बदन में सुरसुरी सी दौड़ जाती हैं। जितेन्द्र फटाफट कैंडल को दुबारा प्रज्वल्लित करता है। फिर हमलोग एकसाथ ध्यान केंद्रित कर के श्रीदेवी की आत्मा को आहवाहन कड़ते हैं कि तभी अचानक किसी लड़की के ज़ोर ज़ोर से रोने और कराहने की आवाज़े आने लगीं… हमारी धड़कनें तेज़ होने लगीं… माहौल में गर्माहट आ गयी…वहाँ घोर अंधेरा छा गया…अचनाक बिजली भी कट गयी और पायल खनकने की आवाज़ आने लगी…

अचनाक कमरे के अंदर का तापमान एकदम से ठंडा हो गया और हमे ठण्ड महसूस होने लगी। हमने मूड कर देखा तो एक काली परछाई हमारे पास खड़ी थी। कुछ भी बोलने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे, इसलिए हमसभी एक दूसरे को आंखों से बातें हो रहीं थी।

हमलोगों ने उस तरफ से ध्यान हटा कर दूसरी आत्मा को बुलाने पर केंद्रित किया। अब हमारा जोश ठंडा हो चुका था। क्योकिं वह आत्मा अमरीश पूरी की तो नहीं लग रही थी। हमने उस परछाई से बात करने की कोशीश की परन्तु वह कुछ नहीं बोली। बस डरावनी आवाज़े निकालती वहीं खड़ी रही। हमे लगा की वह अपने आप वापिस चली जाएगी। हम लोगों ने कैंडल के पास रखे सिक्के को मेज पर रखे श्रीदेवी की फ़ोटो पर धीरे धीरे खिसकाते हुए एक साथ मंत्र उच्चरण करने लगे। पुनः श्रीदेवी की आत्मा का आहवाहन करने लगे। थोड़ी देर की कोशिश के बाद ही एक और परछाईं सामने प्रकट हो गयी। कुछ क्षण पश्चात ही दोनो परछाइयों ने अपने वास्तिविक आकृति ले ली, परन्तु दोनो में से एक भी ना तो श्रीदेवी जैसी थी और न ही अमरीश पुरी जैसी नहीं थी। हमारे कैमेरे में रिकॉर्डिंग अब भी चल रहा था।

हमलोगों ने सोचा था कि अमरीश पुरी की आत्मा से एक बार "मोगैम्बो खुश हुआ" और श्रीदेवी से "हवा हवाई" वाला डायलॉग सुनेंगे और कैमेरे में रिकॉर्ड कर के यू-ट्यूब पर वायरल कर देंगे।लेकिन हमारे किसी भी सवाल का जवाब उन में से किसी भी आत्मा नें नहीं दिया। हमने बहुत पूछने की कोशिश की लेकिन वो दोनों आत्माएँ ज़िद्दी थी। हम अब इस खेल से ऊबने लगे थे। मैंने सोचा कि अब इन आत्माओं को वापिस भेज देते हैं और जैसे ही कोशिश करने के लिए हाथ बढ़ाया की उनमें से एक आत्मा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और जो हुआ उसे देख कर हमारी रूह काँप गयी।

वह दोनो आत्माएँ विकराल प्रेत जैसी दिखने लगीं और अट्टहास मार के जोर-जोर से हँसने लगी। दोनो आत्माएँ बहुत ही ख़ौफ़नाक दिख रहीं थी। एक आत्मा किसी नर की और दूसरी किसी मादा की थी। दोनो आत्माओं की दांतो से खून रिस रहा था और बड़े बड़े नाखूनों के साथ वो बहुत ही डरावने लग रहे थे।

"बोलो हमे क्यो परेशान किया? बिना मतलब क्यो हमे यहां आने पर मजबूर किया?"
इस कर्कश आवाज के साथ कमरे में ये आवाज गूंजने लगी।

"वो...वो...तो मैंने अमरीश पुरी और श्रीदेवी की आत्माओ का आह्वाहन किया था। लेकिन...."
मैं डरे और सहमे भाव मे बोला।

"हम आत्माएँ तुम्हारे गुलाम नहीं जो तुम्हारी मर्जी से आयें।"
नर आत्मा ने तेज स्वर में कहा था।

"जी हमसे भूल हो गई, कृप्या आप वापिस चले जायें।"
इस बार राजेन्द्र ने हिम्मत बटोर कर कहा था।

"हम आते जरूर दूसरे की मर्जी से हैं लेकिन हम जाते अपनी मर्जी से ही है। अब इसका परिणाम भुगतने को तैयार रहो।"
इस बार यह आवाज उस मादा आत्मा की थी और यह कहते ही
वे दोनो आत्माएँ एक साथ भयंकर तरह से हँसने लगी।

उन दोनों की यह हँसी सुनकर हमारे पासीनें छूट गए।
तभी विवेक मेरे कान में एक योजना बताई और उसने कहा कि ऐसा करने से आत्माएँ अपनी दुनियां में वापिस चली जाएंगी।

मैंने फटाफट माचिस ढूंढी और बची हुई आखिरी तिल्ली से मोमबत्ती फिर से प्रज्वलित कर देता हूँ। वहीं मेज ओर पड़ी ब्लेड से अपनी तर्जनी उंगली पर हल्का सा वार कर देता हूँ। कुछ क्षण में ही मेरी तर्जनी उंगली खून से सनी पड़ी थी। मैंने अपनी अपनी आंखें बंद कर के ध्यान केंद्रित करते हुए कुछ खून की बूंदे अमरीश पुरी वाली फ़ोटो पर टपकाने लगा और साथ ही साथ विवेक कुछ मन्त्र बुदबुदाने लगा। मैंने जैसे ही अपनी आंखें खोली तो मैंने देखा कि नर आत्मा अपनी दुनियां में वापिस चली गई थी लेकिन मादा आत्मा वहीं खड़ी हमलोगों की तरफ देख कर हंस रही थी। अपने आपको संभालते हुए जैसी ही मेरी नजर कैंडल पर पड़ती है तो देख कर अवाक रह जाता हूँ कि कैंडल बुझी हुई है। मैं दुबारा कोशिश करने के लिए जैसे ही माचिस की डब्बी खोलता हूँ यह देखकर चौंक जाता हूँ कि माचिस की डब्बी में कोई भी तिल्ली शेष नहीं थी।

हमलोगों के सारे प्रयास विफल हो गए थे। हमारे पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। हम चारो ने एक साथ हिम्मत की और चीख मारते हुए होस्टल के उस कमरे से बाहर भाग निकले और पास वाले कमरे में जा कर बाकी सभी मित्रों को उस अनहोनी के बारे में बताते हैं। अगले दिन ही होस्टल के वार्डन ने हमे उसी कमरे के बिल्कुल बगल वाले कमरे में शिफ्ट कर दिया था। अगले दिन हम सभी आश्चर्यचकित रह जाते हैं जब सुबह सुबह होस्टल का वार्डन उस कमरे से वो हैंडीकैम कैमरा भी ले कर आता है लेकिन उस कैमेरे में कुछ भी रिकॉर्ड नहीं हुआ था।

लेकिन खून और मांस में सनी हुई वह प्रेत आत्मा आज भी हमारे हॉस्टल रूम में लगभग रात के 2 बजे से 4 बजे तक घूमती रहती है। पता नहीं की आगे क्या होगा? परन्तु होस्टल में रहते हुए हमें और बाकी के छात्रों को आज भी यह एहसास होता है कि हर रात वह हमारे उस पुराने कमरे में जो बगल में ही है, उसी कमरे के कोने में खड़ी हो कर रोती रहती है और कभी कभी चीख पुकार भी करती है। हमे समझ नहीं आ रहा है की इस आत्मा को वापिस कैसे भेजें। शायद हमसे बहुत बड़ी गलती हो गयी है। हमे परलोक में भटकने वाली आत्माओं का संपर्क करना ही नहीं चाहिये था।

हम चारों दोस्तों को हमारे इस अनुभव ने हमें एक बात सीखा दी है की… ऐसा ज़रूरी नहीं हैं कि…..जिस आत्मा का आहवाहन किया जाए… वही आएगी… और अगर किस्मत से वह आ भी गयी तो जरूरी नहीं कि हमारी मर्जी से ही वापिस जाएगी?




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