चिंटू रिया के रंग में रंग गया था। सुमति अपने क्लास में आती जाती रहती है। चिंटू को भूलने के लिए वह ज्यादा टाइम वहा रुकती है। तभी एंट्री होती है क्लास में नए ट्यूटर राजदीप की।
राजदीप एक अच्छी फैमिली से बिलॉन्ग करता है। वह जब पहली बार क्लास में इंटरव्यू देने आया तब पहली बार में ही रिसेप्शन पर बैठी सुमति को अपना दिल दे बैठा था। कम सेलरी के बावजूद वह नौकरी के लिए तैयार हो गया था। वह रोज सुमति को गुड मॉर्निंग विश करता और उससे बात करने की कोशिश भी करता। उसे सुमति के पास्ट के बारे में पता चला था, वह बिन मां बाप की बेटी है और अपने संबधी के घर रहती है। उसकी जात पात को नजरंदाज करते हुए वह उससे एक तरफा प्यार करने लगा था। जब के सुमति को इस बात का खयाल ही नहीं था। सुमति हमेशा चुपचाप अपना काम किया करती थी और राजदीप उसे हमेशा बातचीत में उलझाए रखने की कोशिश करता। पर वह सुमति को कभी हसते हुए नहीं देखता। राजदीप को लगा शायद अपने मां बाप को खोने का दुख होगा। पर उस बेचारे को क्या पता सुमति का दुख क्या है?
धीरे धीरे राजदीप सुमति को अपने साथ दोस्ती करने के लिए मना ही लेता है। अब सुमति कुछ खुलकर बात करती थी। पर वह राजदीप को सिर्फ एक अच्छा फ्रेंड ही समझती।
चिंटू का अब रिया के घर आनजाना बढ़ गया था। अपने पापा को चिंटू के बारे में सब रिया ने बता दिया था। वैसे आज अपनी फ्रेंड से लगाई शर्त के दो महीने खत्म होने को आए थे। रिया कॉलेज में अपनी फ्रेंड से बात करते हुए कह रही थी- देखा राजल, चिंटू को आखिरकार मैंने अपना बना ही लिया।
राजल- हां हां देखा, तुम जीती मै हारी।
उतने में चिंटू वह आ जाता है। वह रिया को कहता है- आज में तुम्हे एक जगह लें जाना चाहता हुं।
रिया- कौन सी जगह?
चिंटू- है एक मेरी फेवरेट जगह। तुम आना चाहोगी?
रिया- हां, तुम्हारे साथ कहीं भी चलूंगी।
चिंटू रिया को वहीं ले जाता है जहां वह सुमति के साथ चाय पीने जाता था। चाय की दुकान मिडल क्लास एरिया में थी। चिंटू रिया के साथ कार में वहा आती है। रिया का मुंह इस एरिया में आते ही बिगड़ गया था। पर चिंटू को वो कुछ बोली नहीं। जब चिंटू ने कार उस चाय की दुकान के सामने रोकने को कहां तब रिया मुंह बिगड़ते हुए बोली- यहां?
चिंटू- हां, जो एकबार यहां की चाय पी ले वह कहीं और नहीं जाता।
रिया- अच्छा? ऐसा क्या खास है यहां। एक मामूली सी चाय की दुकान में क्या अच्छा मिलेगा?
चिंटू- एकबार चलो तो सही।
कार पार्क करके दोनों जब उस दुकान पर आए तो चिंटू ने सुमति को किसी अजनबी के साथ वहा बैठा पाया। वह धीरे से बडबडाता है- ये यहां किसके साथ आई है?
रिया- क्या...? कुछ कहा तुमने?
चिंटू- हं... नहीं, कुछ नहीं।
दोनों बाहर रखी बेंच पर बैठे। सुमति की नजर सामने बैठे चिंटू पर पड़ी। दोनों की नजरें टकराती है, पर सुमति चिंटू से अपनी नजरें हटा देती है। रिया मुंह बिगड़ते हुए बैठ तो गई पर उसे यह जगह बिल्कुल भी अच्छी नहीं लग रही थी। चिंटू ने दो चाय का ऑर्डर दिया। फिर वो सुमति और उसके साथ बैठे लड़के को देख रहा था। सुमति ने कभी इस लड़के का जिक्र नहीं किया घर पर, कौन होगा?
उसे सोच में देख रिया उसे पूछती है- क्या हुआ? किस सोच में पड़े हो?
चिंटू- कुछ नहीं, बस चाय का वेइट कर रहा हूं।
दरअसल वह देखना चाहता था कि क्या सुमति उस लड़के के साथ भी उसी तरह चाय पिती है जैसे मेरे साथ पिती थी। रिया ने देखा था कैसे एक लड़का चाय के ग्लास को एक बाल्टी में डुबोकर धोकर उसमे चाय भरता है। उसने चिंटू को कहां- यह जगह बिल्कुल भी हाईजीन नहीं है। तुमने देखा वह कितने गंदे ग्लास में हमें चाय पिलाएंगे।
चिंटू- वह क्लीन ही है। घबराओ मत मै यहां बहुत बार आ चुका हूं पर मुझे अभी तक कुछ नहीं हुआ है।
रिया- तुम इन सब के आदी हो चिंटू, मै नहीं। कैसी गंदी जगह पर तुम मुझे लाए हो।
चिंटू सोचने लगता है, मै इसी जगह कई बार सुमति के साथ आया हूं। पर उसने कभी कोई शिकायत नहीं की।
इतने में चाय आ जाती है। अनमने भाव से रिया ने चाय का ग्लास अपने हाथ में पकड़ा। पर वह चाय पी नहीं रही थी। चिंटू का ध्यान अब भी सुमति और उसके साथ बैठे लड़के पर था। रिया ने चिंटू को दो तीन बार सामने बैठी लड़की को घूरते देखा। आखिर उसने पूछ ही लिया- चिंटू मै देख रही हूं हम जबसे आए है तब से तुम सामने वाली लड़की को घुर रहे हो। क्या तुम उसे जानते हो??
चिंटू जेंप जाता है यह सुनकर। वह रिया से जूठ कहता है- मै लड़की को नहीं उस लड़के को देख रहा था। मुझे कब से लग रहा है मैंने उसे कहीं देखा है पर याद नहीं आ रहा। अच्छा छोड़ो उसे, तुम यह बताओ चाय कैसी लगी?
रिया- मैंने अभी टेस्ट नहीं कि।
चिंटू- लाओ तुम्हारी चाय यहां रख दो। हम एक ग्लास से ही चाय पीते है।
रिया- नहीं नहीं, मै किसी का जूठा नहीं खाती या पिती।
चिंटू याद करने लगा, आज तक सच में रिया ने कभी मेरा जूठा कभी खाया पिया नहीं है। हां पर वह अपनी सहेली का जूठा तो खाती है। उस वक्त भी चिंटू को सुमति और उसका एक ग्लास में चाय पीना याद आता है। उसने सुमति की ओर फिर देखा। उसने अपनी चाय उस लड़के से शेयर नहीं की थी। यह देख वह अंदर ही अंदर खुश हो जाता है। पर उस यह दुख भी हुआ कि रिया ने उसकी बात नहीं मानी। वह दोनों बिल चुकता कर वैसे ही चाय छोड़कर चले जाते है। जाते जाते भी चिंटू सुमति की ओर देख लेता है। सुमति उसे इग्नोर कर रही है यह देख उसे बुरा भी लगा।
सुमति ने एकबार भी चिंटू या रिया के सामने नहीं देखा। वह जानबूझकर राजदीप से बाते कर रही थी। ताकि उसका ध्यान चिंटू पर ना पड़े और वह दुखी ना हो। चिंटू के जाते ही राजदीप सुमति से पूछता है- क्या तुम सामने बैठे लड़के लड़की को जानती थी।
सुमति ने जूठ न बोलकर सच ही बताया- हा, जानती हूं। मै उसी के घर में रहती हूं। उसका नाम चिंटू है।
राजदीप- तो तुम दोनों ने कोई बात क्यू नहीं कि एकदुसरे से?
सुमति- हम बात नहीं कर रहे है एकदूसरे से।
राजदीप- क्यों?
सुमति- यह हमारा पर्सनल मामला है। plz आप इसके बारे में ना ही पूछे तो अच्छा है।
राजदीप- ठीक है, कुछ नहीं पूछूंगा। अपना मूड मत खराब करना। यहां से हमें फिर गार्डन भी जाना है।
सुमति- नहीं, मै किसी गार्डन वार्डन में नहीं जाऊंगी। आप मुझे घर छोड़ दीजिए।
राजदीप- मैंने कहा ना अपना मूड मत खराब करो। एक व्यक्ति के ना बोलने से दुनिया खत्म नहीं हो जाती।
सुमति कुछ नहीं बोलती और राजदीप के साथ जाने को तैयार हो जाती है।
वे दोनों चाय खत्म करके गार्डन कि ओर चल पड़ते है। वैसे राजदीप के पास अपनी बाइक थी। दोनों उसी पर निकल गए। राजदीप महसूस कर रहा था, चिंटू को देखकर सुमति का मूड ऑफ हो गया है। वह कैसे भी सुमति का मूड ठीक करना चाहता था। उसने सुमति से कहां- आज तुम फोन करके घर पर खाने के लिए मना कर दो। हम आज डिनर साथ ही करेंगे।
सुमति- नहीं नहीं राज, मै घर पर ही डिनर करूंगी।
राजदीप- ओह! राज... । वैसे मेरे अपने मुझे राज ही कहकर बुलाते है। अब से तुम भी राज ही कहना मुझे। अच्छा लगा तुम्हारे मुंह से।? वैसे मै कुछ सुनने वाला नहीं हूं आज। तुम्हे मेरे साथ डिनर करने आना ही होगा। मैंने पहले से घर पर मना किया है के मेरा खाना न बनाए।
सुमति- तो आप ही भुगते। मैंने तो अपने घर मना नहीं किया है।
राजदीप- ऐसा जुल्म मत करो। मै बेचारा मासूम भूखा रह जाऊंगा।
सुमति- मासूम... किस एंगल से लगते हो मासूम!?
राजदीप- बस यही हंसी सुननी थी मुझे। उखड़ा हुआ मुंह अच्छा नहीं लगता इस खूबसूरत चहेरे पर।
सुमति यह सुन फिर से हस पड़ती है।
राजदीप की बाइक उसी ओर जा रही थी जिस ओर रिया अपनी कार चला रही थी। एक सिग्नल पर रिया की कार और राजदीप की बाइक साथ ही आकर रुकती है। बाइक उसी ओर थी जिस ओर चिंटू बैठा हुआ था। उसने सुमति को उस लड़के के साथ उसके कंधे पर हाथ रखकर बैठा पाया। वह थोड़ा तिलमिला जाता है। यह सुमति किसके साथ घूम रही है। घर जाकर पूछता हुं उसे। फिर सुमति को मोबाइल पर किसिसे बात करते हुए देखता है। सिग्नल खुलने पर राजदीप की बाइक लेफ्ट साइड चली जाती है और रिया की कार सीधे। चिंटू उन दोनों को जाते देखता रह जाता है।
शाम को जब शारदा खाना पका रही थी तब चिंटू वापस आता है। शारदा उसे कहती है- मै देख रही हुं आज कल तेरा ध्यान पढ़ाई में कम और दूसरी चीजों पर ज्यादा है। अब तुम्हारी आखरी परीक्षा नजदीक आने वाली है और तुम हो के कुछ भी पढ़ते नहीं हो। तुम्हे क्या बनना है भूल गए क्या?
चिंटू- अरे मां, मुझे याद है मुझे क्या बनना है। और मै पढ़ाई के लिए ही अपने दोस्त के घर गया था।
शारदा- तेरी किताबे कहां है फिर?
चिंटू- उसके घर पर ही रहती है।
तभी पिया आकर बोलती है- भैया आपको जूठ बोलना नहीं आता पता है न आपको। बोल क्यों नहीं देते रिया के साथ थे।
चिंटू- ए तू ज्यादा मत बोल पिया की बच्ची।
पिया- तो क्या मै जूठ बोल रही हुं? सुमति ने बताया मुझे जब वह राजदीप के साथ चाय के लिए गई थी अपने अड्डे पर तब तुम आए थे वहां रिया के साथ।
चिंटू- राजदीप? ये कौन है?
शारदा- वो सुमति का फ्रेंड है। पता नहीं तुम दोनों किस बात पर जगड़े हो? एक दूसरे के बारे में पता भी नहीं तुम लोगो को।
चिंटू- ये राजदीप को कैसे पहचानती है?
पिया- उसके कंप्यूटर क्लास में टीचर है। बहुत ही अच्छा इंसान है वह। आज पिया उसी के साथ डिनर पर गई है।
चिंटू- आप सब इतना सब कुछ जानते है और मुझे पता भी नहीं। वो अकेले कैसे किसी अजनबी के साथ गई?
पिया गुस्से में- जैसे तुम रिया के साथ जाते हो ऐसे। और तुम घर पर कब रहते हो जो तुम्हे बताए। सुबह से निकलते हो और शाम को खाने के टाइम पर आते हो। और खाना खाकर रूम में चले जाते हो। भाई तुम बहुत बदल गया है। ?
चिंटू सुमति का इंतज़ार कर रहा था।
क्रमशः