Gumshuda ki talaash - 8 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 8

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गुमशुदा की तलाश - 8



गुमशुदा की तलाश
(8)


रंजन जब वहाँ पहुँचा तब छेदीलाल गेट पर ड्यूटी कर रहा था। रंजन ने उसके पास जाकर कहा।
"और छेदी भैया....कैसे हो ?"
एक अजनबी के मुंह से अपना नाम सुन कर छेदीलाल आश्चर्य में पड़ गया। रंजन के चेहरे को गौर से देखते हुए पहचानने की कोशिश करने लगा। लेकिन उसकी कुछ समझ में नहीं आया।
"कौन हो भैया....पहचान नहीं पाए।"
"अरे भैया पहचानेंगे कैसे ? पहली बार जो मिले हैं।"
छेदीलाल ने कुछ देर रंजन को घूर कर देखा।
"तो काहे जान पहचान बढ़ा रहे हो। हम ड्यूटी पर हैं।"
"हाँ जानते हैं भैया। कुछ ज़रूरी काम था।"
"हमसे क्या काम पड़ गया ?"
रंजन छेदीलाल के नज़दीक पहुँचा। इधर उधर देख कर धीरे से बोला।
"सुना है आप देर रात लोगों को हॉस्टल के बाहर जाने आने देते हो ?"
"क्या बेकार की बात कर रहे हो। हमारी ड्यूटी सुबह छह बजे से दोपहर दो बजे तक चलती है। उसके बाद दूसरा गार्ड आ जाता है। दस बजे तक उसकी ड्यूटी होती है। उसके बाद गेट बंद। ना कोई अंदर आ सकता है और ना ही बाहर जा सकता है।"
"सच्ची...अरे नहीं....लोग उसके बाद बाहर भी जाते हैं और अंदर भी आते हैं।"
छेदीलाल गुस्सा गया।
"देखो फालतू की बात मत करो। जाओ यहाँ से।"
इस बार रंजन भी कड़क आवाज़ में बोला।
"फालतू की बात नहीं है। अभी तीन चार दिन पहले ही मैं अपनी एक दोस्त को रात के एक बजे छोड़ने आया था। उसने फोन किया तो आपने आकर गेट खोल दिया।"
छेदीलाल सकते में आ गया। पर अपनी मनोदशा को छिपाने की कोशिश करते हुए बोला।
"वो हम ही थे यह कैसे कह सकते हो ?"
"भैया मेरी उसी दोस्त ने बताया था कि तुम फोन करने पर गेट खोल देते हो।"
छेदीलाल इस तरह खड़ा था जैसे अभी अभी पुलिस ने उसे गुनाह करते पकड़ लिया हो। रंजन समझ गया कि वह हथियार डाल चुका है।
"देखो भैया... हमें तुमसे कोई दुश्मनी तो है नहीं। हम तो बस थोड़ी मदद चाहते हैं।"
छेदीलाल अभी भी वैसे ही खड़ा था। रंजन ने बात बढ़ाई।
"भैया जो गोलमाल गर्ल्स हॉस्टल में होता है वह लड़कों के हॉस्टल में भी होता होगा। मेरा एक दोस्त चरक हॉस्टल में रहता है। सीधासादा पढ़ने वाला लड़का है। उसे किसी बहुत ज़रूरी काम से दो तीन दिन रात को बाहर जाना है। कैसे हो सकता है ?"
अब तक छेदीलाल थोड़ा संभल चुका था। वह बोला।
"पहले यह बताओ कि तुम कौन हो ? यहाँ पढ़ने वाले तो हो नहीं।"
"सही कहा भैया मैं यहाँ नहीं पढ़ता हूँ। पर जानता कई लोगों को हूँ। डीन धर्मपाल शास्त्री मेरे रिश्ते के अंकल हैं।"
डीन का नाम सुन कर छेदीलाल ने रंजन को अविश्वास से देखा। रंजन भी तैयार था। जिस दिन वह डीन से मिला था उस दिन उसने यह कह कर उनके साथ सेल्फी ली थी कि इतने बड़े इंस्टीट्यूट के डीन से मिल रहा है। उन्होंने अपने ऑफिस के बाहर लगे पेड़ के पास सेल्फी खिंचाई थी। रंजन छेदीलाल को वह सेल्फी दिखाते हुए बोला।
"ये देख लो। अब मैं चाहूँ तो तुम्हारा गोलमाल उन्हें बता सकता हूँ। इसलिए मदद करो।"
छेदीलाल को रंजन पर यकीन हो गया। वह कुछ डर कर बोला।
"भैया क्या करें थोड़ी ज़्यादा कमाई के लालच में इन लड़कियों को समय के बाद हॉस्टल से निकलने में मदद करते थे। लौटने पर वह हमें फोन कर देती थीं। हम गेट खोल कर अंदर बुला लेते थे। लेकिन हमने कह रखा था कि दो बजे के बाद किसी कीमत पर गेट नहीं खोलेंगे।"
"अच्छा यह बताओ कि चरक हॉस्टल में यह व्यवस्था कौन देखता है।"
"मेवाराम, हमारे गांव का ही है। वह लड़कों के चरक हॉस्टल में यही काम करता है।"
"चलो फिर मुझे उसका नंबर बताओ। वह इस समय कहाँ मिलेगा।"
छेदीलाल ने रंजन को नंबर दे दिया।
"उसकी ड्यूटी दो बजे से होती है। अभी अपने क्वार्टर में होगा। हॉस्टल के पिछले हिस्से में स्टाफ के लिए घर बने हैं। वहीं उसका कमरा भी है।"

रंजन ढूंढूंते हुए मेवाराम के घर पहुँच गया। बाहर ही उसे एक औरत दिखाई पड़ी। उसने पूँछा।
"बहन जी ये मेवाराम का घर है।"
उस औरत ने रंजन को ऐसे देखा जैसे उसके असमय आ जाने से उसे अच्छा नहीं लगा हो।
"हाँ....हम उनकी पत्नी हैं। वो कुछ ही समय पहले उठे हैं। अभी नाश्ता कर रहे हैं।"
"जी....हमें उनसे मिलना था। उनसे कहिए कि छेदीलाल ने भेजा है।"
"ठीक है....पर इंतज़ार करना होगा। नाश्ता करके आएंगे। आप यहीं बैठिए।"
बाहर रखी प्लास्टिक की कुर्सी की तरफ इशारा कर वह औरत अंदर चली गई। रंजन कुर्सी पर बैठ गया। उसने घड़ी देखी। बारह बज रहे थे। दस मिनट बाद मेवाराम कमीज के बटन बंद करता हुआ बाहर आया।
"कहिए....क्या काम है। आप कौन हैं ?"
रंजन उठ कर खड़ा हो गया। वह बोला।
"कुछ ज़रूरी बात करनी थी। आसपास कोई जगह है जहाँ बैठ कर बातें कर सकें।"
मेवाराम ने घर के भीतर बैठने को कहा। इस पर रंजन ने कहा कि घर पर नहीं कहीं और चलते हैं। मेवाराम ने कहा।
"हाँ कुछ ही दूर पर एक पार्क है।"
"ठीक है वहीं चलते हैं।"
"हम जरा अंदर बता देते हैं।"
मेवाराम अंदर चला गया। कुछ ही क्षणों में वापस लौटा तो पीछे से पत्नी की आवाज़ आई।
"जल्दी लौटना। हमें जिज्जी के घर छोड़ने जाना है। फिर कहोगे कि ड्यूटी का बखत हो गया।"
मेवाराम बिना कुछ बोले रंजन को लेकर पार्क की तरफ चल दिया। कुछ ही देर में दोनों पार्क पहुँच गए। पार्क में कोई नहीं था। एक पेड़ की छांव में पड़ी बेंच देख कर रंजन ने कहा।
"आओ उस बेंच पर बैठते हैं।"
दोनों बेंच पर बैठ गए। मेवाराम ने कहा।
"अब बताइए कि आप कौन हैं ? मुझसे क्या बात करनी है ?"
रंजन ने मेवाराम को बिपिन के केस के बारे में सब बताने के बाद कहा।
"मुझे उसी सिलसिले में बात करनी है। छेदीलाल ने बताया कि जैसे वह गर्ल्स हॉस्टल में समय सीमा के बाद लड़कियों को बाहर जाने और आने देता है। वैसे ही तुम भी चरक हॉस्टल में करते हो।"
मेवाराम रंजन की बात सुन कर परेशान हो गया। रंजन ने उसे दिलासा दिया।
"देखो मुझे बस मेरे सवालों के जवाब दे दो। परेशान होने की ज़रूरत नहीं है।"
"पूँछिए क्या पूँछना है ?"
"क्या बिपिन भी देर रात बाहर जाता था।"
"हाँ.... पहले वह शाम को निकल जाता था। पर लौटता बारह बजे तक था। लेकिन इधर गायब होने के कुछ दिनों पहले से देर रात के बाद हॉस्टल से बाहर निकलता था।"
"वह कहाँ जाता था यह पता है ?"
"ये सब हम नहीं पूँछते। बस बाहर आने जाने में मदद करते हैं।"
रंजन कुछ देर सोंचता रहा। उसके बाद उसने पूँछा।
"ठीक है....पर कभी किसी को उसके साथ देखा हो।"
रंजन के इस सवाल पर मेवाराम भी याद करने लगा। कुछ क्षणों तक सोंचने के बाद बोला।
"हमें याद पड़ रहा है कि जिस रात के बाद वह हॉस्टल नहीं लौटा, उस रात हमने गेट के बाहर एक लंबी लड़की को उसकी राह देखते हुए देखा था।"
"पहले कभी देखा था उस लड़की को।"
"नहीं....पहले कभी देखा हो ऐसा तो याद नहीं।"
"लंबी थी यह देखा....पर शक्ल भी देखी थी।"
"नहीं....बस इतना देखा कि गेट खुलते ही बिपिन उस लंबी लड़की के पास गया। फिर दोनों आगे चले गए। शायद आगे कोई गाड़ी खड़ी हो।"
"गेट पर कोई सीसीटीवी कैमरा नहीं है।"
"होता तो हम यह सब कैसे कर पाते। पकड़ लिए जाते।"
रंजन को महसूस हुआ कि उसने सचमुच बेवकूफी भरा सवाल किया है। अब रंजन को लग रहा था कि और कुछ पूँछने लायक नहीं है। उसने मेवाराम को धन्यवाद दिया। वह चलने को ही था कि उसे कुछ याद आया।
"एक बात और बताओ। तुमने किसी सफेद स्कोडा कार में बिपिन को जाते हुए देखा है।"
"हाँ उस कार में बिपिन को तीन चार बार जाते देखा है। वह शाम पाँच से छह बजे के बीच आती थी।"
"गाड़ी के अंदर बैठे किसी को देखा था।"
"नहीं....बिपिन गेट के बाहर इंतज़ार करता था। गाड़ी आने पर उसमें बैठ कर निकल जाता था।"
"ठीक है....आगे अगर ज़रूरत पड़ी तो फोन करूँगा। छेदीलाल ने नंबर दिया है।"
मेवाराम अपने घर चला गया। रंजन चरक हॉस्टल के गेट के बाहर आकर मुआयना करने लगा। गेट से कुछ दूर पर एक मोड़ था। रंजन उस मोड़ तक गया। वह सोंच रहा था कि उस रात बिपिन जब उस लंबी लड़की के साथ गया होगा तो ज़रूर गाड़ी यहीं खड़ी होगी। रंजन ने इधर उधर देखा। सामने के साइबर कैफे था। उसके बाहर सीसीटीवी कैमरा लगा था।