Gumshuda ki talaash - 7 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 7

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गुमशुदा की तलाश - 7



गुमशुदा की तलाश
(7)



सरवर खान ने रंजन से बात कर उन सारे सवालों के बारे में बता दिया जो नोटबुक पढ़ने के बाद उनके मन में उठे थे। उन्होंने यह भी कहा कि वह जल्द ही खुद वहाँ आने का प्रयास करेंगे। तब तक वह आंचल से पूँछताछ करे। कार्तिक पर भी नज़र बनाए रखे।
उस दिन आंचल बहुत परेशान थी। इसलिए रंजन ने सोंचा कि एक दो दिन ठहर कर उससे मिलेगा। इस बीच उसने कार्तिक के बारे में कुछ पता लगाने का प्रयास किया।
कार्तिक मेहता पुणे का रहने वाला था। उसके पिता एक व्यापारी थे। वह भी पीएचडी कर रहा था। बिपिन के विपरीत कार्तिक बहुत ही खुला हुआ इंसान था। उसके कई दोस्त थे। बहुत से अफेयर हो चुके थे। दोस्तों के साथ घूमना फिरना, पार्टी करना उसे बहुत पसंद था। पैसों की उसे कोई कमी नहीं थी। लेकिन इन सबके बावजूद वह अपनी रीसर्च को लेकर भी उतना ही संजीदा था।
वह बिपिन से दो सेमेस्टर पीछे था। अब तक रंजन को उसके बारे में जो भी पता चला था उससे उस पर किसी तरह का शक नहीं किया जा सकता था।
उस रात की घटना के तीन दिन बाद रंजन आंचल से मिलने कॉलेज पहुँचा। वह उसकी फैकेल्टी के सामने खड़ा था। कुछ ही देर में क्लास खत्म होने वाली थी। करीब दस मिनट बाद आंचल निकलती हुई दिखाई पड़ी। रंजन ने उसके पास जाकर आवाज़ दी।
"आंचल...."
आंचल ने मुड़ कर देखा। यह वही बाइक वाला था जिसने उसकी उस रात मदद की थी।
"लुक...उस रात तुमने मेरी जो मदद की उसका शुक्रिया। पर मेरा पीछा क्यों कर रहे हो ?"
"मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा हूँ। मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी।"
"वही मैं भी कह रही हूँ। मदद की उसका शुक्रिया। पर बातचीत का सिलसिला शुरू करने का प्रयास मत करो।"
रंजन ने इस बार बात को साफ करते हुए गंभीरता से कहा।
"मुझे बिपिन दास के बारे में कुछ पूँछताछ करनी है।"
आंचल कुछ चौंक गई। आखिर यह लड़का मुझसे बिपिन के बारे में क्या बात करना चाहता है। वह बोली।
"कौन हो तुम और बिपिन के बारे में क्या बात करनी है ?"
रंजन ने उसे सारी बात बता दी।
"मैं उन्हीं डिटेक्टिव सरवर खान का सहायक रंजन मैसी हूँ। तुमसे कुछ सवाल करने हैं।"
"पर मैं तो पुलिस को बता चुकी हूँ कि कैरियर को लेकर उससे कुछ पूँछना था। इसलिए उससे मिली थी। वह पैसे कमाने के लिए ऑनलाइन कैरियर काउंसिलिंग करता था।"
"यही बात है ? यह तो तुम ऑनलाइन भी पूँछ सकती थी।"
"हाँ पर मैं सामने बैठ कर सही से बात करना चाहती थी।"
"मुझे क्यों लग रहा है कि बात कुछ और थी ?"
"क्यों लग रहा है यह तुम जानो। मुझे जो बताना था वह बता दिया।"
कह कर आंचल जाने लगी। रंजन ने आगे बढ़ कर उसका रास्ता रोका। आंचल ने उसे गुस्से से देखा। रंजन ने समझाते हुए कहा।
"देखो जो सही है वह बता दो। तुम सहयोग करोगी तो ठीक है। नहीं तो हम पुलिस की मदद से पूँछताछ करेंगे।"
आंचल कुछ नरम पड़ी। उसके बदलते मूड को देख कर रंजन ने कहा।
"कैंटीन में चल कर बैठें।"
"नहीं पास ही चाय की टपरी है। क्लास खत्म होने पर मैं वहीं चाय पीती हूँ। वहीं चलते हैं।"
रंजन आंचल के साथ चाय की टपरी पर चला गया। दो कप चाय लेने के बाद दोनों पास बने चबूतरे पर जाकर बैठ गए। रंजन ने अपना कप बगल में रखते हुए कहा।
"अब सही सही बताओ कि तुम बिपिन से क्यों मिली थीं ?"
"मैं उससे नहीं मिली थी। वह मिलने आया था।"
"ठीक है...पर क्यों ?"
आंचल ने चाय की चुस्की ली। उसके बाद रंजन की तरफ देख कर बोली।
"वह मुझसे शहर की नाइट लाइफ के बारे में पता करने आया था।"
"नाइट लाइफ के बारे में...फिर तुमने पुलिस से झूठ क्यों बोला ?"
"सच बोलने पर यह बात सामने आ जाती कि मैं और मेरी सहेलियां चोरी छिपे हॉस्टल से बाहर जाते हैं।"
"पर नाइट लाइफ के बारे में तो वह खुद भी पता कर सकता था। वह भी हॉस्टल से गायब रहता था। फिर तुमसे क्या पूँछना चाहता था।"
आंचल कुछ उलझन में पड़ गई। कुछ समय लेने के लिए उसने चाय के दो तीन घूंट भरे। उसके बाद बोली।
"वह उन जगहों के बारे में जानना चाहता था जहाँ नशा किया जाता हो।"
उसका जवाब सुन कर रंजन को आश्चर्य हुआ। उसने प्रश्न भरी दृष्टि से आंचल की तरफ देखा।
"तुम ऐसी जगहों के बारे में जानती हो ?"
आंचल उसका आशय समझ कर बोली।
"नहीं मैं नशा नहीं करती हूँ। दरअसल मेरा एक दोस्त नशे की लत का शिकार हो गया था। मैंने उससे दोस्ती तोड़ दी थी। बिपिन उसी दोस्त के बारे में जानने आया था।"
"वह यह सब क्यों जानना चाहता था ?"
"ये तो वही जानता होगा। मैंने पूँछा नहीं। बस उसे उस दोस्त का नंबर दे दिया था।"
"मुझे भी उस दोस्त का नाम और नंबर बताओ।"
आंचल ने उसका नाम और नंबर बता दिया। रंजन ने अपने फोन में सेव कर लिया।
"पर बिपिन उसके बाद भी तुमसे मिलता रहा था।"
"उसके बाद सिर्फ एक बार मिला था।"
"क्यों ?"
"मुझसे कहने आया था कि मैं अपने दोस्त को संभालूँ।"
"तो तुमने अपने दोस्त की मदद की..."
"मैं उसकी क्या मदद कर सकती थी। वह बुरी तरह से नशे की लत की गिरफ्त में था। मैंने जबसे उससे दोस्ती तोड़ी थी दोबारा नहीं मिली। ना ही कोई हालचाल लिया। बिपिन ने ही बताया था कि उसके घरवालों ने उसे किसी रिहैब सेंटर में भर्ती कराया था।"
"इसके अलावा कोई बात नहीं थी ?"
"नहीं..."
"वैसे उस रात मैटर क्या था ?"
"वो पर्सनल है...."
"ओके...."
आंचल ने उठ कर कप डस्टबिन में फेंक दिया। वह चाय के पैसे देने लगी तो रंजन ने टोंका।
"वो मैं दे दूँगा।"
"कोई ज़रूरत नहीं है।"
"पर मैं बातचीत के लिए लेकर आया था।"
"फिर भी....वैसे मैं रोज़ क्लास के बाद यहाँ चाय पीने आती हूँ।"
आंचल ने पैसे दिए और चली गई। अपनी चाय के पैसे देकर रंजन किसी और से मिलने चला गया।
रंजन के दिमाग में बिपिन ही घूम रहा था। उसे बिपिन कुछ विचित्र सी शख्शियत लगा। जब वह किसी से अधिक बात नहीं करता था। सदा अपने में ही रहता था। तो फिर वह यहाँ की नाइट लाइफ के बारे में क्यों जानना चाहता था। वह भी उन जगहों के बारे में जहाँ नशा किया जाता हो। यह तो तय था कि वह खुद नशा नहीं करता था। जिसने भी बिपिन के बारे में बताया था किसी ने भी उसके नशा करने की बात नहीं की थी।
एक दूसरा खयाल उसके दिमाग में आया। कहीं ऐसा तो नहीं कि पैसे कमाने के लिए वह ड्रग्स पैडलर बन गया हो। लेकिन रंजन ने इस विचार को तुरंत ही खारिज कर दिया। इसके लिए उसके पास तर्क भी थे। पहला यह कि ऐसे लोग अक्सर खुद भी नशे के आदी होते हैं। दूसरी बात बिपिन बहुत शौकीन इंसान भी नहीं था। उसके खर्चे बहुत सीमित थे। यह बात भी उसे लोगों से पता चली थी।
एक तीसरा खयाल उसके दिमाग में आया जो उसे सही लगा। वह अवसादग्रस्त लोगों के लिए दवा बनना चाहता था। अक्सर ऐसे लोग नशा करते हैं। हो सकता है कि वह उन लोगों के व्यवहार पर स्टडी करना चाहता हो। इसी सिलसिले में आंचल के दोस्त से मिला हो।
अपने विचारों में डूबा वह गर्ल्स हॉस्टल के गेट पर आ गया। उस रात जिस गेट से आंचल घुसी थी उस पर छेदीलाल नाम के गार्ड की ड्यूटी रहती थी। रंजन उसी से मिलने गया था।
रंजन ने उसके बारे में बहुत कुछ पता कर लिया था। छेदीलाल उत्तर प्रदेश के किसी गांव का रहने वाला था। पिछले पाँच साल से गर्ल्स हॉस्टल के गेट पर गार्ड का काम करता था। वह यहाँ अकेला रहता था। गांव में उसके माता पिता, पत्नी, तीन बच्चे रहते थे। परिवार उसकी कमाई पर ही निर्भर था। उसके पिता पिछले कई महीनों से बीमार थे। उस पर घर से दबाव पड़ रहा था कि उन्हें शहर ले जाए और उनका इलाज कराए। पर छेदीलाल इस स्थिति में नहीं था।
यही नहीं पत्नी भी अक्सर शिकायत करती थी कि बीवी बच्चों को भूल कर शहर में मजे से रह रहे हो। अगर इस बार शहर नहीं ले चले तो मैं सब छोड़ कर मायके चली जाऊँगी।