Gharonda and other stories in Hindi Fiction Stories by Prashant Vyawhare books and stories PDF | घरोंदा और अन्य कहानिया

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घरोंदा और अन्य कहानिया

! घरोंदा !

सुनीता आज बहुत खुश थी ! २ दिन पहले ही उसकी शादी हुइ थी और आज वो उसके पति के साथ मुंबई जाने वाली थी, उसका पती मुंबई में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता था ! सो वो कुछ सामान की पोटली साथ बांध कर उसके पति के साथ मुंबई जाने वाले ट्रक में सवार हो गयी !

सुनीता का पिता रंगा एक गरीब किसान था जिसके पास बेटी के ब्याह के लिए भी पूंजी नहीं थी ! उसने पहले से ही उसकी बची खुची जमीन साहूकार के पास गिरवी रखी थी ! गरीबी के कारन रिश्तेदारों ने भी उनसे मुँह मोड़ लिया था तो उसके बेटी के ब्याह में मदद तो दूर की बात थी !

मगर उसके दोस्त इस वक़्त उसके काम आये ! उसके एक पूराणे दोस्त रामधन ने उसके बेटे के लिए उसके बेटी का हाथ माँगा उसका बेटा ज्यादा पढ़ा लिखा तो नहीं था मगर सौभाग्य से वो मुंबई में एक बिल्डर के यहाँ रोजेदारी का काम करता था !

और रंगा ने हँसी खुशी उसकी बेटी सुनीता का ब्याह उसके साथ करवा दिया ! उसने साहूकार से रंगदारी के ऐवज में पांच हजार की रकम मांगी थी और इस महंगायी के ज़माने में कम पैसे में नौकर के मिल जाने से साहूकार ने उसे मान भी लिया !

और आज सुनीता उसके बाप का घर छोड़ कर उसके पति के साथ मुंबई के लिए रवाना हुइ थी !

उसका पति नामदेव जो की एक बिल्डर के यहाँ काम करता था ! गरीबी और सुनीता के पिता की परिस्थिति को जानता था इसी लिए वो भी अपने पिता की दोस्ती के खातिर इस शादी के लिए मान गया और मानता भी क्यों ना उसका भी वही हाल था जो सुनीता का था एक गरीब के घर भी क्या कोई अच्छा अपनी लड़की ब्याहता !

आज सुनीता खुशी खुशी नामदेव के साथ मुंबई जाने के किये उस ट्रक में सवार हुइ उसके हाथो की मेहंदी भी नही उतरी थी ! मगर एक अनजान खुशी में वो थी, के नौकरी वाला पति उसे वो सब खुशी दे पायगे जो उसका पिता एक गरीब किसान हो कर आज तक उसकी माँ को न दे सका! इस आस में वह उस अनजान सफर पर निकली थी जहा हर मोड़ पर जिंदगी इंसानोकी परीक्षा लेने पर तुली होती है !

ट्रक ख़राब रास्तो से होते हुए अब एक पक्के रोड पर चलने लगा था ! ट्रक के पिछले हौदे में बाकी लोग भी बैठा थे मगर ! आज सुनीता और नामदेव एक अलग ही धुन में थे ! पक्के रोड पर लगते ही लारी का हिलना डुलना बंद हो गया और हौदे के लकड़ी फटो के बीच ठंडी हवा आने लगी थी ! गर्मी के कम हो जाने से सुनीता को नामदेव के कंधे पर कब नींद लगी उसे पता भी नहीं चला ! उसकी नींद तब टूंटी जब नामदेव ने उसे पुकारा

नामदेव : अरे औ सुनीता चलो हमारा ठिकाना आ गया ! अब चलो उठ भी जाओ ! तुम्हे अपने रहने के जगह ले चालू

नामदेव की आवाज से उसकी नींद अचानक टूटी और वो एकदम से हड़बड़ा कर उठ गयी !

सुनीता : जी उतरती हूँ ! पता नहीं मुझे कब नींद लग गयी !

बाकी लोग ट्रक से उतर गए थे मगर अब वो और नामदेव ही उसमे रह गए थे !

तभी वहा उनके ट्रक का ड्राइवर आ कर उन दोनों पर चिल्लाने लगा !

ड्राइवर : अरे उतरो अभागो ! मुझे ट्रक वापस काम पर लगाना है वराना सुपरवाइजर चिल्लायेंगे ! निकलो जल्दी बाहर !

नामदेव : चिल्लाओ मत ड्राइवर साब हमारी जोरू साथ में है !

ड्राइवर : तो क्या नामदेव आरती उतारू तुम दोनों की ! तुमको तो पता है ना , काम में देरी की तो मुझे यहाँ से भगा देंगे ! चलो उतरो और भागो यहाँ से !

सुनीता को ड्राइवर के बाते सुन कर बहुत बुरा लगा ! उसे तो लगा के अब उसके पती ने ड्राइव के साथ झगड़ा मोल लिया तो उसके पती को भी काम से भगा देंगे !

सो वो दोनों को समझाने की फिराक में बोली !

सुनीता : चलिए जी जल्दी से हम उतर लेते है ! ड्राइवर भैया माफ़ कर देना जरा नींद लग गयी मेरे इस वजह से हम लोगो को थोड़ी देर हुए ! इसमें मेरे पती की कोई गलती नहीं थी !

ड्राइवर : ठीक है बहन कोई बात नहीं ! तुम नइ हो इसे लिए तुम्हे पता नहीं मगर नामदेव को तो है ! चलो अब जल्दी मुझे आगे भी जाना ही !

अब नामदेव और सुनीता जल्द उस ट्रक से उतर गए ! सुनीता ने देखा के वह कोई बड़ा काम चल रहा था ! वह एक बड़े अपार्टमेंट का कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट चल रहा था और नामदेव वहा काम करता था !

नामदेव सुनीता को कहता है !

नामदेव : क्यों बीवी जी कभी आसमानी घनचक्कर में बैठी हो !

सुनीता : हाँ हाँ क्यों नहीं ! गाव् में जो मेला आता है अपने उसमे हम बैठे है एक दो बार !

नामदेव : तो चलो आज तुमको उससे भी बड़े घनचक्कर की सैर करते है !

सुनीता : नहीं जी मुझे तो दर लगता है

नामदेव : अरे बावरी आज में तेरे साथ हू ! डर मत बस आँख बंद कर मेरे हाथ पकड़ लिया दर तो यु ही भाग जायेगा !

नामदेव और सुनीता उस बन रही ईमारत के सामान ढोने वाले पिंजरे चले जाते है ! जैसे जैसे वो पिंजरा ऊपर जाता है वैसे ही सुनीता घबरा कर नामदेव का हाथ पकड़ लेती है और उसके आँख बंद कर लेते है !

सुनीता : ये तो बड़ा डरावना है जी !

नामदेव : सुनीता अब इसकी आदत डाल लो तुम अब यही हमारा घर है इस ईमारत के सबसे ऊपर वाले मंजिल में हम लोगो के रहने के व्यवस्था की है मालिक साहब ने !

सुनीता : मुझसे तो न हो पायेगा जी ये रोज रोज उप्पर नीचे ! मुझे तो दर लगता है !

महादेव : अरे तो क्या नीचे जमीन पर रहे ! यहाँ जंगली जानवर आते है रात में ! कही शेर तुम्हे या मुझे खा गया तो !

सुनीता : घबराकर ए जी कम से कम अपने लिए ऐसा मत बोलो ! अब आप ही मेरा सहारा है !

और तभी लिफ्ट एकदम से रुक गइ !

लिफ्ट मन : चलो जी उतरो जल्दी आ गया लेबर फ्लोर !

सुनीता और महादेव उस लिफ्ट से उतरते है ! सुनीता देखते है वह खाली खम्बो के बीच बाकी लोगो ने कपडे लगा कर अपना अपना बसेरा बना लिया है !

सुनीता उसे देख कर थोड़ा नाराज हो जाती है !

सुनीता : ए जी क्या हम यही खुले में रहेंगे !

महादेव : हो तो क्या हुआ कुछ दिनों में कुछ न कुछ तो जुगाड़ हो जायेगा !

सुनीता : चलो न कहे कोई खोली किराये पर ले लेते है !

महादेव : अरे तो बावरे हो गए है ! यहाँ मुंबई में खोली के किराये के भाव आसमान पर है ! महंगे इतने के खुद ही को बेचे पर भी न खरीद सको ! और पगड़ी अलग से !

सुनीता : तो फिर !

महादेव : तुमको पंछी पता है ! वो कैसे पेड़ो पर ऊनके घरोंदे बना लेते है ! हम भी हमारे लिए एक बना लेंगे तुम चिंता क्यों करते हो !

और एक जगह देख कर महावीर सुनीता को कहता है !

देखो ये हमारी जगह है आज से ! चलो ये लो और वो एक पोटली सुनीता को थमता है जिसमे कुछ पुरानी सादिया और सुतली है

और थोड़े हे देर में सुनीता और महादेव उन कपड़ो को बांध कर उनके लिए एक चार दीवारी बना लेती है !

सुनीता : लो जी अब हारा घरोंदा तो तैयार है ! अब कुछ राशन और तेल ले आओ तो तुम्हारे लिए कुछ बना दू ! तुम्हे कल काम भी तो शुरू करा होगा !

महादेव : हां हां क्यों नहीं अभी !

थोड़ी ही देर में महादेव केरोसिन और कुछ राशन ले कर आता है ! सुनीता कढ़ी और बाजरे की रोटी बनाती है

उस खाने की खुशबू से उनका आशियाना ऐसा महक जाता है जैसे के राजा रानी का महल हो और दावत पक रही हो !

खाने के बाद कुछ हे देर में चांदनी रात घिर जाती है ! चाँद और चाँदनीयो की रोशनी में वो खुली मंजिल रोशन हो जाती है

और इसके साथ सुनीता और महादेव उनका बिछोना उनके उस कपडे वाले घरोंदे में लगा लेते है !

बिछोने पर लेट जाते है और आसमान में चमकते तारो को देखने लगते है !

महादेव : माफ़ करना सुनीता में तुम्हे अभी इसके अलावा और कोई सुख नहीं दे पाउँगा, मगर तुम हिम्मत मत हारना ! में मेरी जी जान लगा दूंगा हमारा घर बनाने के लिए !

सुनीता : हां, आप अकेले नही में भी आपके साथ हूँ ! दोनों मिलकर हमारे बच्चो के लिए कुछ अच्छा तो कर हे देंगे !

महादेव : ओ हो, तो तुम बच्चों के बारे में भी सोच रहे हूँ ! बड़ी जल्दी है !

सुनीता : ए जे हम कुछ और कह रहे थे ! आप भी ना ! और वो शर्माकर उसका मुँह एक और कर लेती है !

महादेव : अरे भाग्यवान में तो तुम्हारा मजाक कर रहा था !

अब दोनों के हसने की आवाजे वह उस घरोंदे में गूंज उठती है !

मानो उस रात के अँधेरे में उजालो के सपने देख दो पंछी चहचहा रहे हो !