Ek din in Hindi Poems by Sarvesh Saxena books and stories PDF | एक दिन...

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एक दिन...


एक दिन मैं उदास कहीं जा रहा था,
उदासी में ही कोई उदास गीत गा रहा था,
थक कर एक पेड़ की छांव में बैठ गया,
सोचने लगा कि ये क्या हो गया...

अचानक किसी की हंसी सुनाई पड़ी,
मुड़कर देखा तो हंसती जिंदगी थी खड़ी,
मैंने उससे पूछा तुम कहां गई थी चली,
क्या तुम्हें मेरी जरूरत नहीं थी पड़ी...

जिंदगी हंसती रही और हंसती रही,
तब फिर मैंने उससे यह बात कही,
तुमने क्यों मुझे इस कदर रस्ते में छोड़ा,
तुम्हारे बाद सब ने मुझसे मुंह है मोड़ा...

जिंदगी बोली मैं हर पल रंग बदलती हूं,
देखती हूं हंसता जिसे उसी पे मचलती हूं,
बचपन से मैंने तुम्हें कितना था हँसाया,
हर चीज से तेरा दिल खूब था बहलाया...

बचपन के बाद जवानी में जब तुम आए,
कलियां बनी फूल और फूल मुस्कुराए,
पर वक्त की लग गई तुमको नजर,
ढाया उसी ने है तुम पर ये कहर...

रो रो कर अब तक तुम जीते हो आए,
एक पल के लिए फिर नहीं हो मुस्काये,
मैंने कम ही सही हंसने के दिए तुम्हें मौके,
पर तुम गम को ही रहे सीने से लगाए...

इसीलिए मुझे, तुम्हें छोड़ कर आना पड़ा,
क्या करूं ये जो वक्त है मुझसे भी बड़ा,
मिलना जो तुम इससे कभी किसी रास्ते,
तो पूछना कि क्या सारे गम थे तेरे वास्ते...

ये कहकर जिंदगी ना जाने कहां चली गई,
हवाओं में दिखी धूल जो दूर तक उड़ती गई
???

सोच में डूबा हुआ आगे मैं जा रहा था,
ऐसा लगा जैसे मेरे पीछे कोई आ रहा था,
पीछे देख कर मैंने पूछा तुम कौन हो भाई, तो हंसती हुई आवाज मुझको पड़ी सुनाई...

जो पल में ही जिंदगी बदल दे सबकी,
सबसे बलवान वो वक्त हूं मैं भाई,
मैंने कहा उससे तुमने ये क्या कर दिया,
एक नन्हे पौधे को उखाड़ कर रख दिया...

तुम बलवान हो यह तुम्हें अहंकार है,
क्या नहीं दुनिया में तुम्हें किसी से प्यार है?
वक्त यह सुनकर हंसते हुए बोला,
मैंने ही तुम्हारी जिंदगी में जहर है घोला...

ये सुनकर मैं क्रोध से हुआ पागल,
वक्त को दबोचने दौड़ा बस उसी पल,
पर वक्त मेरे हाथों आया ही नहीं,
ढूंढता उसको रहा खड़ा वहीं का वहीं...

फिर वक्त की मुझको आवाज सुनाई पड़ी,
बोला तेरे साथ हुआ जो वो दोष मेरा नहीं,
मैंने तो वही किया जो किस्मत ने करवाया,
इस निष्ठुर किस्मत से कौन भला बचा पाया

उसी ने तेरा बेवजह यह हाल बनाया है, तुमने हर पल खुश रखा सबको,
पर उसने तुम्हीं को रुलाया है,
उसी के कहने पर मुझे बेरहम होना पड़ा...

इस बेरहमी पर तुम्हें यूं ही रोना पड़ा,
मिलना जो तुम इससे कभी किसी रास्ते,
तो पूछना कि क्या सारे गम थे तेरे वास्ते...

यह कहकर वक्त हाथों से निकल गया,
मैं देर तक आसमां देखता ही रह गया,

???

कुछ दिल को समझाते मन को कसमसाते,
चलता जा रहा था बस आगे बढ़ बढ़ाते, लगी तभी ठोकर मैं जाकर गिर पड़ा,
उठना चाहा लेकिन दर्द के कारण रो पड़ा...

तभी किसी ने हाथ पकड़कर मुझे उठाया,
प्यार से मुझे अपने पास बिठाया,
मैं बोला आज किसी ने प्यार से बिठाया है, लगता है जैसे यह जख्म भर आया है...

तभी अजनबी वो बोली, तू खुश मत हो,
क्योंकि मैंने ही तुम्हें गिराया है,
मैं हूं वो किस्मत जिसने सबको,
उंगली पे अपनी नचाया है...

किस्मत का रूप देखकर मैं,
उसकी शक्ति जान गया,
सब मेरे दुश्मन है यहाँ,
अब मैं ये था मान गया...

फिर भी बोला किस्मत से तुम,
कब तक मुझे रुलाओगी,
कहती हो सबके साथ यही या,
मुझको ही ऐसे सताओगी...

किस्मत बोली तू क्या है???
मैंने अच्छे अच्छों को तरसाया है,
तू तो है इंसान जरा सा,
मैंने सियाराम तक को रुलाया है...

अच्छा करे बुरा चाहे ये मैं नहीं जानती हूँ,
बस करती वो हूं, जो मैं सही मानती हूँ,
मेरे ही कारण तुझको है इतना रोना पड़ा,
मेरे ही चलते तुझे है सब खोना पड़ा...

मैं जो मेहरबान किसी पर हो जाती हूं,
ज़मी से उठा उसे आसमान ले आती हूं,
तुम क्या बड़े-बड़े भी मुझे जान नहीं पाए,
जिंदगी, वक्त, इंसान सब मुझसे घबराए...

यह सब सुनकर मैं किस्मत से डर गया,
हाथ जोड़कर शीश झुकाकर ही रह गया,
बोला ये बतलादो कब तक रोना है मुझको,
आएगा क्या दिन ऐसा जब चैन से सोना है मुझको...

कहने लगी वो मुझे बहुत रुलाया है तुझको,
अब और न रूला ऊंगी,
अगले मोड़ पर तुझे सुकून से मिलाऊंगी...

यह कहके वो किस्मत चमका कर चली गई
मेरे मायूस चेहरे पे खुशी जगाकर चली गई.

???

मैं खूब हंसते खिलखिलाते आगे चल पड़ा,
हर दिशा से लगे मुझे कोई गीत बज पड़ा,
दूर बड़ा सुंदर एक नजारा दिखने लगा, सुंदर फूल,ठंडी हवा और झरना बहने लगा.

झरने में नहा के ठंडक का एहसास हुआ,
तभी ठंडे हाथों से पीठ को किसी ने छुआ,
मुड़कर देखा तो होश भूल गया,
इतनी सुंदर स्त्री ने मुझे छुआ...

मैं तो उसका नाम क्या खुद को भूल गया,
बस उसी के साथ झरने में प्रेम से डूब गया,
घंटों बाद झरने से हम निकल कर आए,
लगा सारे दुख आज झरने में बहाए...

सुंदर चेहरे को मैं उसके चूमने लगा,
बाहों में उसने मुझे बंद कर लिया,
बड़ी देर में पूछा मैंने तुम पहले क्यों ना आई
वह बोली पहले इसलिए न आई क्योंकि इतने दुख सहने के बाद,
तुमने मेरी सही कीमत समझ पाई...

यह सुनकर मैं उसके होंठ चूमने लगा,
यूं ही उससे कुछ बात करने लगा,
देर बाद वो बोली क्या खुश हो तुम अब??
कह दी अब तुम्हें कोई दुख नहीं,
या अभी भी तुम्हें किसी चीज की है कमी...

मैंने कहा अब मैं बहुत खुश हो चुका हूं,
और इस खुशी में निर्णय ले चुका हूं,
मैं तुम्हारी बाहों में खो जाना चाहता हूं,
तुम्हारे साथ यूं ही सो जाना चाहता हूं...

वो हंसकर बोली मैं यही बात कहने आई हूं,
लिपट जाओ मुझसे तुम्हें सुकून देने आई हूं,
आ जाओ देर ना करो क्योंकि मैं हूं मौत,
मैं आगोश मे तुम्हें चैन से सुलाने आई हूं...

सुनकर मैं उस रास्ते से पीछे भागने लगा,
पर जिंदगी वक्त किस्मत याद आने लगा,
फिर बोला कब तक मैं यूं ही भाग लूंगा, जिसने दिया इतना सुख उसी के पास चलो,
मौत की नींद चैन से सो लूंगा...

यह कहकर मैं मौत के पास चला आया,
मौत ने हंसकर मुझे गले से लगाया,
और मेरा दुख दर्द जिंदगी किस्मत वक्त, सब मैं हमेशा को पीछे ही छोड़ आया...

???

? समाप्त ?

कविता पढ़ने के लिए आप सभी मित्रों का आभार l
कृपया अपनी राय जरूर दें, आप चाहें तो मुझे मेसेज बॉक्स मे मैसेज कर सकते हैं l

?धन्यवाद् ?

? सर्वेश कुमार सक्सेना