Diya ki kalam se ishqiya in Hindi Poems by Divya Modh books and stories PDF | दिया की कलम से इश्किया

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दिया की कलम से इश्किया


तुझे भूलाकर अब...


तेरी यादों से निकलकर अब, में खुदमे खोना चाहती हूं तुझे भूलाकर अब ,में खुद को पाना चाहती हूं।
चल जब गिनवा ही दी है तूने मुझ को कमिया मेरी तो बिछड़कर तुझसे अब, में उन्ही कमियों को भरना चाहती हूं,
तेरे लिए नहीं , अब, में खुद के लिए बदलना चाहती हूं।

जागी ये आंखे कितनी बार तेरे लेट रिप्लाई और तेरे कॉल के इंत्तजार में,
इन आंखो को अब मीठे सपनों की एक जपकी देना चाहती हूं,

तुझे भूलाकर अब में खुद को पाना चाहती हूं।

की थी जरा सी उम्मीद - ए वफा तुझसे मैने , बदले में अपने प्यार के,
लेकिन तेरी दी हुई नाउमिदगी से निकलकर अब, में उम्मीदों से भरी नई दुनिया में रहेना चाहती हूं,
तुझे भूलाकर अब , में खुद को पाना चाहती हूं।
तेरी ख़ुशी तेरे गम , तेरी जरूरतों को छोड़कर, अपनी खुशियों , अपने गम और अपनी जरूरतों को जीना चाहती हूं,
तुझे भूलाकर अब , में खुद को पाना चाहती हूं।

हा.. पसंद था मुझे उन दोस्तो का साथ जो तूने अपनी कसम दे कर छुड़वाए थे, अब उन्हीं दोस्तो के लिए में तुझसे दूर जाना चाहती हूं,

तुझे भूलाकर अब में खुद को पाना चाहती हूं।
******


२. तुम मिले भी..


तुम मिले भी तो बारिश की उन बूंदों की तरह जो बरस कर भी , जमी को प्यासा छोड़ जाती है,

तुम मिले भी तो उस तन्हाई की तरह जो भीड़ में भी साथ निभाती है।

तुम मिले भी तो उन सपनों की तरह जो टूट कर भी आंखो से नहीं जाते,
तुम मिले भी तो उन अपनों की तरह जो अपने होकर भी गैरो से पैश आते है।
* * * * *




तेरी खुश्बू ..


३. तेरी खुश्बू में अपने जहेन में लिए घूमती हूं,

तेरी आहट को मै हर कदम कदम पे सुनती हूं।

गलत है वो लोग जो कहते है की तू इस दुनिया में नहीं रहा अब,
में तो हवा की बहेती लहरों में भी तेरी ही आवाज सुनती हूं।

तेरी खुश्बू में अपने जहेन में लिए घूमती हूं,

तेरी आहट को मै हर कदम कदम पे सुनती हूं।

* * * *



४. हा, मै आज भी तुझे चाहती हू...


पिघलती थी जैसे पहले तेरे ऐहसास से, आज भी पिघल जाती हू ,

हा, मै आज भी तुझे चाहती हू।

याद तो होगा , कैसे इतराती थी मै , अपनी तारीफे सुनकर तुझसे , आज भी उन तारीफों पे कभी कभी इतरा जाती हू,

हा , मै तुझे आज भी चाहती हू।


जानती हूं नहीं है अब कोई रिश्ता हमारे बीच,

मगर आज भी तुझे देखकर , शर्म से नजरे जरा सी जुकाती हू,

हा, मै तुझे आज भी चाहती हू।

हा.. मिलती थी ख़ुशी पहले भी तेरे साथ लम्हे गुजार के ,और आज भी उन्हीं गुजरे लम्हों से ख़ुशी चुराती हू,

हा , मै तुझे आज भी चाहती हू।

वहेम होगा मेरा अगर कोई उम्मीद रखी तुझसे, फिर भी, " गुस्से मे चला भी गया तो वापस जरूर आऊंगा " तेरे दिये इस वादे से मै बार बार अपना मन बहेलाती हू ,

हा , मै तुझे आज भी चाहती हूं।


पिघलती थी जैसे पहले तेरे ऐहसास से, आज भी पिघल जाती हू ,

हा , मै तुझे आज भी चाहती हूं।