भाग 7 से आगे-
चौहान साहब चीख रहे थे और ऐसा चीख रहे थे जैसे आसमान को ही हिला के रख देंगे। पूरा गांव इकठ्ठा हो चुका था। सभी छोटे बड़े, ऊंचे नीचे और गांव के अन्य सम्माननीय और बिना सम्मान वाले लोग भी इकट्ठे हो चुके थे और ये सब सिर्फ देख रहे थे पर किसी की भी हिम्मत न थी चौहान साहब को चुप कराने की। सब यही सोंच रहे थे कि आखिर हुआ क्या है। नन्नू का परिवार भी घर के अंदर था पर आज वो डरा हुआ नही था। वो परिवार आज इसका सामना करना चाहता था। चाहे उनकी जान ही क्यों न चली जाए। आखिर ऐसी देश की आज़ादी भी किस काम की कि एक ने आज़ाद किया तो किसी और ने अपना ग़ुलाम बना लिया। हम सभी को ग़ुलामी की आदत सी हो चुकी है शायद इसी लिए न कोई कुछ बोलता है और न ही कभी सुधार करना ही चाहता हैं। बस सहे जा रहे है। पर अब और नहीं। यह सब सोंचते हुए नन्नू ने चौहान साहब से बोला- ठाकुर साहब, आप बड़े है । आपका सम्मान है, परंतु कम से कम सबके सामने कुछ तो इज़्ज़त रखे हमारी। हमको पता है कि आप पर संकट आया है इस संकट में हम सभी आपके साथ है पर काम से कम थोड़ी सी तो इज़्ज़त दीजिए।
सारा गांव सन्नाटे में आ गया और सोंचने लगा कि चौहान साहब पर संकट कैसा? कल तक तो नन्नू पर खुद ही संकट था बेटा चला गया और बेटी के साथ हादसा और आज सीना तान के चौहान साहब के सामने खड़ा है और उनको खुद संकट में बता रहा है। गाँव वालों के लिए ये हादसा अब मनोरंजक से हो चुका था। हर दिन नए खुलासे और हंगामे जो देखने मिलते थे पर उन खुलासो और हंगामों के पीछे की कहानी से सभी अनभिज्ञ ही थे।
चौहान साहब फिर बोले- सच सच बतादे कि आखिर तेरी मंशा क्या है? आखिर तू चाहता क्या है?
नन्नू बोले- मैं क्या चाहूंगा मालिक? हमे आज तक मिला ही क्या है जो हम किसी से कुछ उम्मीद करें। आपको तो ये भी नही पता होगा कि आपके बड़े लड़के श्रीकांत ने पिछली रात क्या कारनामा किया है। आपको पता चलेगा भी तो आप मानेंगे नही। बड़े जो ठहरे।
नन्नू अपने आँसू पोंछते हुए-हमारा परिवार बर्बाद कर दिया उसने पर किसी को क्या फर्क पड़ता है।
चौहान साहब हैरानी से पूंछते है- ऐसा क्या कर दिया मेरे लड़के ने? कहां है वो?
बस चौहान साहब यहां फंस गए। पूरे गांव को पता था कि श्रीकांत चौहान साहब के साथ दिल्ली गया है पर आज चौहान साहब खुद ही पूंछ रहे है कि वो कहां है मतलब कि श्रीकांत दिल्ली नही गया था चौहान साहब के साथ बल्कि वो यही था गांव में और उसी ने मनोरमा के साथ ये हरकत की है। गांव वाले अब समझ चुके थे कि मनोरमा की कहानी सच थी और श्रीकांत और उसका दोस्त गांव में ही कही छिपे हुए है पर किसी ने वहां कुछ कह नहीं। अब गांव वाले नन्नू के पक्ष में थे।
नन्नू की पत्नी अपनी शर्म और लज्जा छोड़कर बाहर आकर बोली- सुनना चाहते हो न कि तुम्हारे लड़के ने किया क्या है। अरे, बेटी होती कोई तेरी और बहन होती कोई तेरे लड़के की तो पता चलता कि जो उसने किया है उसका दर्द क्या होता है। मनोरमा अपने लड़खड़ाते हुए क़दमो से बाहर आई। सभी ने उस बेचारी को देखा। उलझे हुए बाल, सिर पर बंधी हुई पट्टियां, शर्म से ओढ़ी हुई फटी हुई चादर, दस दिन की थकान और दर्द पर इसी के बीच किसी ने उसकी आँखों के आंसुओं को नही देखा और न समझा। सभी उसको एक "पीड़ित विषय" की तरह देख रहे थे कोई उसके लिए कुछ करना नही चाहता था।
मनोरमा दर्द भरी आवाज़ में बोली- मैं बताती हूं चाचा की क्या किया आपके लाडले ने।
पर तभी उसकी माँ ने उसे रोक और बोला- रहने दे बेटी कब तक तू ये सब सहेगी कब तक तू अपने दर्द को दोहराएगी कब तक तू लड़ेगी सबके सामने। तमाशा बन जायेगा बेटी। कौन ब्याहेगे तुझे?
नहीं माँ तू अब घबरा मत, तू ही तो कह रही थी कि अब बचा क्या है मेरे पास, जब कुछ बचा ही नही है तो फिर फर्क क्या पड़ता है कि तमाशा बनने में। बिना डरे बिल्कुल निडर होकर मनोरमा बोली- ठाकुर साहब आपके बेटे ने कल रात घर आकर बताया कि आपको और उसको शर्मिंदगी है कि जो भी हुआ वो अच्छा नही हुआ। अब सब कुछ ठीक है और आप श्रीकांत और मैं हम तीनों दिल्ली जाके किसी बड़े अधिकारी से बात करेंगे। पर ये आपका नीच बेटा और इसके दोएत ने मेरी इज़्ज़त को तार तार कर दिया और वही खेतों में मरने के लिए छोड़ दिया। अच्छा किया ना चाचा? यही होना चाहिए एक लड़की के साथ क्योंकि ये लड़की नीची जाति की है ऑयर गरीब भी। समाज मे वैसे भी लड़कियों की जरूरत सिर्फ जरूरत पूरी करने के लिए होती है जो कि आपके बेटे ने कर ली।
लाठियां तन गयी चौहान साहब की तरफ से। चौहान साहब बोले- ऐसा हो ही नहीं सकता कि मेरा लड़का ऐसा काम करे। वो भला अपनी भूंख मिटाने के लिए इतना भी नीचे नही जा सकता। आखिर हमारा लड़का है हम तो जमीन में पड़े सोने के जवाहरात नही उठाते, फिर तुम तो.....
इतने में अंदर चुप चाप और शांत खड़े शैलेंद्र का खून उबाल मार गया और वो मेरा हाथ झिटक कर घर से बाहर आ गया। उसको देख पूरा गांव हैरान रह गया और लोगो के पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गयी। कुछ लोग तो भूत भूत करके इधर उधर भागने लगे पर जल्दी ही सब लोग समझ गए और अफरा तफरी शांत हो गयी।
शैलेंद्र बोला- चौहान साहब! आपका बेटा शेखर फौज में मेरा दोस्त बन गया था। फ्रंट पर भी वो मेरे साथ ही था हम दोनों जिगरी यार बन गए थे पर इसका मतलब यह नहीं है कि मैंने चूड़ियां पहन रखी है और आप मेरी बहन और मेरे परिवार को कुछ भी कहा और मैं सुनता रहूं। अब अगर आपने परिवार की तरफ आंख उठाके देखा तो फिर सब खत्म ही समझ लेना आप। रही बात श्रीकांत की आज और अभी से उल्टी गिनती करना शुरू। क्योंकि वो जिस दिन दिख गया मुझे उस दिन के बाद आपकी चिता को आग देने वाला कोई नही बचेगा।
पता नही क्यूँ पर चौहान साहब यह देखकर थोड़े से शांत पड़ गए। पता नही उनके दिमाग मे क्या आया। कुछ बड़बड़ाने लगे और आँखों मे आंसू भी आ गया। शायद अब उनको अपने शेखर की याद आ गयी। उनको याद आ गया कि को यहाँ शेखर के बारे में बात करने आये थे जो अब इस दुनिया मे नहीं रहा। उसके साथ क्या हुआ कैसे हुआ सब सिर्फ एक ही आदमी जनता था और वो यह शैलेन्द्र। और अब शैलेंद्र ही उनके बड़े लड़के और उनके परिवार के खून का प्यासा ही गया है।
चौहान साहब की आंखें नाम थी और शैलेंद्र से पूंछना चाहती थी कि आखिर हुआ क्या था शेखर को पर अपने घमंड के कारण को सब कुछ तो बोल गए पर यही पूंछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। चौहान साहब के तेवर ठंडे होता देख मेरी हिम्मत बढ़ी और मैने सोंचा यही सही समय है बाहर जाकर सभी को पूरी कहानी बताने का और यदि जरूरत पड़ी तो माफी मांगने का। चौहान इतना परेशान है और बाहर भीड़ भी है ऐसे में को न ज्यादा कुछ कह पायेगा न ही कुछ कर पायेगा।
मैं बाहर गया तो चौहान ने मुझे घूरा और बोला- अच्छा पोस्टमैन तू यहाँ छिपा बैठा है, ये पूरी जो राम कहानी है तुझे तो पता ही होगी क्यूंकि आजकल तुम्हारा उठना बैठना यहाँ जो हो गया है पर इससे पहले की तुम्हारी खाल उधेड़ी जाए पहले इस उबलते खून से पूंछना है कि शेखर को कैसे और क्या हुआ था- चौहान साहब ने शैलेंद्र की तरफ इशारा करते हुए कहा।
शेष अगले भाग में....जरूर पढ़े
असली आज़ादी वाली आज़ादी(भाग --९)