Gumshuda ki talaash - 5 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 5

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गुमशुदा की तलाश - 5



गुमशुदा की तलाश
(5)


सरवर खान अपने ऑफिस में बैठे उस नोटबुक के पन्ने पढ़ रहे थे जो पुलिस को बिपिन के सामान से मिली थी। सरवर खान इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह के सीनियर ऑफिसर को जानते थे। उन्होंने उनसे कहलाया कि इंस्पेक्टर सुखबीर उनकी इस केस में मदद करें।
रंजन ने इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से मिल कर वह नोटबुक ली। नोटबुक नई थी। उसमें केवल दस बारह पन्ने ही लिखे गए थे। सरवर खान ने रंजन को उन्हें स्कैन कर मेल करने को कहा। इंस्पेक्टर सुखबीर की इजाज़त लेकर रंजन ने उन पन्नों को स्कैन कर भेज दिया। सरवर खान उन्हीं स्कैन किए गए पन्नों का प्रिंट आउट निकाल कर पढ़ रहे थे।
बिपिन एक अंतर्मुखी व्यक्ति था। किसी के साथ भी अपने मन की बात नहीं कर पाता था। अतः वह अपने मन की बातें नोटबुक में लिखता था। यह शायद उसकी कई दिनों की आदत थी। क्योंकी नई नोटबुक के पहले पन्ने पर उसने लिखा था कि आज से अपनी बात इस नई नोटबुक में करूँगा। जब भी वह अपनी बात पूरी कर लेता था तो नई बात शुरू करने से पहले तारीख डाल देता था। इस हिसाब से दस बारह पन्ने उसने दो महीनों की अवधि में लिखे थे।
वह एक एक पन्ने को ध्यान से पढ़ रहे थे। आवश्यक वाक्यों को मार्कर से हाईलाइट कर रहे थे। सभी पन्नों को पढ़ने के बाद कुछ मुख्य बिंदु सामने आए।
पिछले कुछ दिनों से बिपिन किसी बात को लेकर परेशान था। उसने लिखा था कि वह उन लोगों से डरेगा नहीं। उसकी खोज लोगों की भलाई के लिए है। वह उसी काम आएगी।
दूसरी बात जो गौरतलब थी वह किसी रिनी का जिक्र था। उसने तीन जगह रिनी का नाम लिखा था। उसने लिखा था कि एक रिनी ही है जो उसे समझती है। जब वह उसके साथ होता है तब बहुत अच्छा महसूस करता है। काश वह पहले ही उसके जीवन में आई होती तो कितना अच्छा होता। रिनी ही तो उसे उस गांव में ले गई थी। वहाँ जाकर ही तो उसकी खोज पूरी हो सकी।
सरवर खान सोंच रहे थे कि बिपिन की पुरानी नोटबुक पुलिस को क्यों नहीं मिली। आखिर वह गई कहाँ ? बिपिन ने उसे कहीं और रख दिया या फिर किसी ने उसे चुरा लिया। बिपिन अपनी पुरानी नोटबुक को कहाँ रख सकता है। यदि किसी ने उसे चुराया है तो अवश्य उसमें कुछ ऐसा होगा जो उसे फंसा सकता था। लेकिन बिपिन के कमरे से उसे कौन चुरा सकता था। कार्तिक के लिए नोटबुक तक पहुँचना अधिक आसान था। उसे ही पता था कि बिपिन नोटबुक में कुछ लिखता है। हलांकि कार्तिक ने उन्हें दो महत्वपूर्ण बातें बताई थीं। एक नोटबुक के बारे में दूसरी कि वह स्कोडा कार में किसी के साथ गया था। लेकिन सरवर खान अभी भी उसे लेकर आश्वस्त नहीं थे।
रिनी भी एक नए रहस्य के तौर पर उभरी थी। आखिर रिनी थी कौन ? जो बिपिन अपनी माँ से इतनी दूर था वह उसके इतने नज़दीक कैसे आ गया ? उसने लिखा था कि काश वह पहले उसके जीवन में आती।
सरवर खान ने सोंचा कि इसके बारे में रंजन से बात की जाए। वह उसे फोन करने ही जा रहा था कि एक नए नंबर से फोन आया। उसने फोन उठाया।
"अब्बा......"
शीबा की आवाज़ थी। वह दुखी लग रही थी। सरवर खान उसकी आवाज़ सुन कर चिंतित हो गए।
"क्या हो गया बेटा ? तुम दुखी लग रही हो। यह नंबर किसका है ?"
"अब्बा मैं ठीक हूँ। यह वार्डन मैम का नंबर है। आज आपकी बहुत याद आ रही थी। इसलिए मैम ने अपना फोन दे दिया। आज अम्मी की....."
कहते हुए शीबा रोने लगी। सरवर खान को याद आया कि आज उनकी बीवी शकीना की बरसी है। वह शीबा को तसल्ली देने लगे।
"बेटा रो मत। तुम तो समझदार बच्ची हो। ऐसा मत करो। तुम्हें पता है ना कि अब्बा तुम्हें बहुत प्यार करते हैं।"
शीबा ने खुद को संभाल लिया था। वह बोली।
"परेशान ना होइए अब्बा। मैं ठीक हूँ।"
"मेरी प्यारी बच्ची....जो अल्लाह की मर्ज़ी थी वह हुआ। अब हमें तुम्हारी अम्मी के बिना ही रहना पड़ेगा। यह याद रखना कि तुम्हारे अब्बा की ज़िंदगी में तुमसे बढ़ कर कोई नहीं है।"
"हाँ अब्बा... मेरे लिए भी आप ही सब कुछ हैं।"
"खूब मन लगा कर पढ़ो। हमेशा खुश रहो।"
"अब्बा अब रखती हूँ। गुडनाइट।"
"अल्लाहाफिज़..।"
शीबा ने फोन काट दिया। सरवर खान ने वक्त देखा तो रात के नौ बज रहे थे। सुनीता पहले ही जा चुकी थी। सरवर खान ने ऑफिस बंद किया और बाहर आ गए। पार्किंग से कार निकाल कर कब्रिस्तान की तरफ चल दिए।
कार चलाते हुए सरवर खान शकीना के बारे में सोंच रहे थे। शकीना के साथ उनकी जिंदगी खुशियों से भरी थी। लेकिन दो साल पहले हुए उस हादसे ने उनसे उनकी खुशियां छीन लीं। वह उस दिन को याद करने लगे।
वह रंजन के साथ ऑफिस में बैठे किसी केस के बारे में बात कर रहे थे। तभी शीबा ने उन्हें फोन किया।
"अब्बा....जल्दी से जेंटिल केयर हॉस्पिटल आ जाइए। अम्मी घर पर सीढ़ियों से गिर गई थीं। मैं और बलजीत अंकल उन्हें हॉस्पिटल ले आए हैं। अम्मी का बहुत खून बहा है।"
सरवर खान के माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं। वह बहुत परेशान दिख रहे थे। उनकी घबराहट देख कर रंजन ने उन्हें संभाला। उन्हें पानी पिलाया।
"क्या हुआ सर...?"
"शकीना सीढ़ियों से गिर गई। उसे जेंटिल केयर हॉस्पिटल ले गए हैं।"
"सर आप परेशान ना हों। मैं भी आपके साथ चलता हूँ।"
रंजन सरवर खान को लेकर हॉस्पिटल पहुँचा। अपने अब्बा को देखते ही शीबा दौड़ कर उनके गले लग कर रोने लगी। सरवर खान उसे सांत्वना देने लगे।
जब वह डॉक्टर से मिले तो उन्होंने कहा कि सर पर गहरी चोट आई है। बहुत खून बह गया है। हम कोशिश कर रहे हैं लेकिन उम्मीद बहुत कम है।
आईसीयू में शकीना ज़िंदगी की जंग लड़ रही थी। बाहर सभी परेशान उसके ठीक होने की दुआ मांग रहे थे। हर एक पल बहुत कठिनाई से बीत रहा था। कुछ घंटों के संघर्ष के बाद शकीना ज़िंदगी की जंग हार गई।
कब्रिस्तान पहुँच कर सरवर खान शकीना की कब्र पर पहुँचे। उन्होंने वहाँ दुआ पढ़ी। कुछ वक्त कब्र पर बिता कर वह बाहर आ गए।
घर लौटते हुए उन्हें शीबा का खयाल आया। वह अभी तेरह साल की ही थी। शकीना के जाने का गम वह भुला नहीं पा रही थी। उसे बार बार सीढ़ियों से गिरती अपनी अम्मी की याद आ जाती थी। सरवर खान भी अपने काम के चलते उसे वक्त नहीं दे पा रहे थे। इसलिए उन्होंने यही उचित समझा कि उसे बोर्डिंग भेज दिया जाए।
पिछले एक साल से शीबा बोर्डिंग में थी। वह अकेले पड़ गए थे। अपनी सहायता के लिए उन्होंने अपने गांव से वसीम नाम के एक लड़के को बुला लिया था। वसीम की उम्र बीस साल की थी। वह सरवर खान का पूरा खयाल रखता था। खाना बनाने के लिए एक कुक लगा रखी थी।
घर पहुँचे तो वसीम ने रोज़ की तरह उन्हें पानी लाकर दिया। उनका प्रॉस्थैटिक पैर निकालने में उनकी सहायता की। घर में चलने के लिए सरवर खान एल्यूमीनियम की एक बैसाखी का प्रयोग करते थे। सरवर खान फ्रेश होने के लिए वॉशरूम चले गए। जब वह लौट कर आए तो वसीम ने उनके कटे हुए पांव पर रोज़ की तरह क्रीम लगाई।
माइक्रोवेव में खाना गर्म हो चुका था। डिनर करने के बाद सरवर खान फिर से बिपिन के केस के बारे में सोंचने लगे।
वह सोंच रहे थे कि बिपिन की खोज का संबंध अवश्य ही ड्रिप्रेशन की दवा बनाने से होगा। उसके प्रोफेसर दीपक बोहरा ने बताया भी था कि वह अवसादग्रस्त लोगों के लिए एक दवा बनना चाहता था जो असर तो करे किंतु उसके अन्य प्रभाव ना हों।
रिनी उसे किसी गांव में ले गई थी। वह कौन सा गांव था। वहाँ उसे ऐसा क्या मिला जो उसकी खोज में सहायक बना। कई सवाल थे जिनके जवाब खोज कर ही बिपिन की गुमशुदगी की पहेली को सुलझाया जा सकता था।
पर सबसे बड़ा सवाल था कि बिपिन की पुरानी नोटबुक गई कहाँ ?
नोटबुक का मिलना इस गुत्थी को सुलझाने में बहुत मददगार हो सकता था।