Gumshuda ki talaash - 4 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 4

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गुमशुदा की तलाश - 4




गुमशुदा की तलाश

(4)


सरवर खान ने रंजन के रहने की व्यवस्था इंस्टीट्यूट के पास ही एक लॉज में करा दी थी। लॉज में पहुँच कर उसने सरवर खान को फोन पर कार्तिक से मिली सारी जानकारी दे दी।
"सर आप इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से बात कीजिए कि वह बिपिन की नोटबुक दिला दें। हो सकता है उसमें बिपिन ने कुछ ऐसा लिखा हो जिससे कोई सुराग मिल सके।"
"हाँ बिल्कुल मैं इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से बात करता हूँ। तुम अब उस लड़की आंचल के बारे में पता करो।"
"जी सर.....कल सुबह से ही आंचल की जासूसी शुरू करता हूँ।"
बात करने के बाद रंजन सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन उसके दिमाग में अपनी माँ की कही बात घूम रही थी। दोपहर में इंस्टीट्यूट से निकल कर उसने अपनी मम्मी को फोन किया था। उन्होंने बताया कि डेनियल इलाज के लिए एम्स में भर्ती हुए हैं। उनके कज़िन विक्टर ने फोन पर उनसे बात कराई थी। वह बहुत दुखी थे। उनकी इच्छा है कि एक बार वह रंजन और शर्ली से मिल पाएं। उसकी मम्मी ने समझाया था कि भले ही वह अपने पापा से नाराज़ हो पर इस हालत में एक बार उनसे मिल लेने में कोई हर्ज़ नहीं है।
रंजन अपने पापा से नाराज़ था। उसकी नाराज़गी का कारण था। उसका बचपन पापा के लिए तरसते बीता था। उसने देखा था कि पापा के छोड़ कर चले जाने के बाद उसकी मम्मी ने कितनी तकलीफें सही थीं। वह उन्हें कभी नहीं भुला सकता है। यूके जाने के बाद उन्होंने कभी भी इस बात की परवाह नहीं की कि हिंदुस्तान में पत्नी और बच्चे को छोड़ कर आए हैं। बल्कि उन्होंने तो वहाँ दूसरी शादी कर ली। वह छोटा था। मम्मी ने इस अन्याय के विरुद्ध कोई आवाज़ नहीं उठाई। बस भीतर ही भीतर घुटती रहीं।
पापा की इन ज्यादतियों के कारण उसके मन में बहुत गुस्सा था। इसलिए जब उन्होंने इतने सालों बाद पहली बार खत लिखा तो यह बात उसे बिल्कुल भी पसंद नहीं आई। पर जब मम्मी ने उसे बताया कि वह कैंसर से जूझ रहे हैं तो गुस्से के बावजूद उसका दिल पसीज गया। आखिर वह उसके पिता थे। ऐसा भी समय था जब वह छोटे से रंजन को कंधे पर बैठा कर घुमाते थे। प्यार से उसे गले लगाते थे। जब कभी उसे डर लगता था तो पापा की गोद में आकर छिप जाता था। तब वह बड़े प्यार से उसे समझाते थे कि डरना अच्छी बात नहीं है। उसे हिम्मत से काम लेना चाहिए। उसके बाद ना जाने कितनी बार जीवन में ऐसी परिस्थितियां आईं जब उसे लगा कि काश उसके पापा साथ होते। उसे हिम्मत देते। लेकिन उसकी इच्छा कभी पूरी नहीं हुई।
वह अपने पापा की छवि को याद करने लगा। लंबा कद, हष्ट पुष्ट शरीर। सर पर घने काले बाल थे। यूके जाने से कुछ दिन पहले उन्होंने फ्रेंच कट दाढ़ी रख ली थी। लोग उन्हें हैंडसम कहते थे। मम्मी का कहना था कि रंजन का रूप रंग अपने पापा पर गया है।
अपने पापा की एक ही चीज़ है जो आज भी उसके पास मौजूद थी। उनका हारमोनिका। उसके पापा बहुत अच्छा हारमोनिका बजाते थे। रंजन चुपचाप उन्हें हारमोनिका बजाते देखता रहता था। वह हारमोनिका उसे बड़ी तिलस्मी लगती थी। वह सोंचता था कि आखिर क्या जादू है कि पापा के होंठों से लगते ही हारमोनिका से मीठी आवाज़ निकलने लगती है।
वह छह साल का था। उसके पापा हारमोनिका को अपने स्टडी टेबल पर छोड़ कर कहीं गए थे। मौका देख कर रंजन ने हारमोनिका को उठा लिया। उसे उलट पलट कर देखा। फिर अपने पापा की तरह होंठों पर रख कर फूंका। एक आवाज़ आई। उतनी मीठी तो नहीं थी पर उसे अच्छा लगा। वह बार बार हारमोनिका को होंठों पर रख कर फूंक मारने लगा। उसे बड़ा मज़ा आ रहा था। तभी पीछे से उसके पापा ने उसके कंधे पर हाथ रखा। रंजन डर गया कि अब उसे डांट पड़ेगी। लेकिन उसके पापा ने प्यार से उसे गोद में उठा कर कहा।
"तुमको हारमोनिका बजाना अच्छा लगता है।"
रंजन ने धीरे से हाँ में सर हिला दिया।
"तो ठीक है। तुम इसे रख लो।"
रंजन को इतनी खुशी हुई मानो कोई खजाना हाथ लगा हो। वह जब फुरसत मिलती हारमोनिका बजाने लगता। जल्द ही वह कई गानों की धुनें निकालना सीख गया। अपने पापा के यूके चले जाने के बाद जब भी उसे उनकी याद आती वह हारमोनिका बजाने लगता।
रंजन बिस्तर से उठा। बैग से हारमोनिका निकाला। खिड़की के पास खड़े होकर बजाने लगा। हारमोनिका बजाते हुए उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे।

रंजन ने आंचल से मिलने से पहले उसके बारे में बहुत सी जानकारियां एकत्र की थीं। आंचल राजस्थान के एक धनी परिवार से थी। उसके परिवार का संबंध चंद्रवंशीय राजपूत राजघराने से था। लेकिन समय के साथ परिवार अब व्यापार में लिप्त था।
परिवार में अभी भी रजवाड़ों वाली परंपराएं लागू थीं। स्त्रियां पर्दे में रहती थीं। बिना किसी आवश्यक काम के बाहर नहीं निकलती थीं। लड़कियों को पढ़ाने का एकमात्र कारण था कि उनका रिश्ता अच्छे घर में हो सके। घर में कई नौकर थे अतः औरतों का काम या तो गप्पें मारना होता था या फिर नए कपड़ों और गहनों की खरीददारी। उसके लिए भी बाहर जाने की आवश्यक्ता नहीं पड़ती थी। ज़रूरत पर दुकान घर में आ जाती थी।
तंवर परिवार की औरतों के जीवन का एक ही उद्देश्य था। सज संवर कर अपने पतियों को खुश रखना। जो कुवांरी लड़कियां थीं वह अच्छा घर और वर मिलने के इंतज़ार में थीं।
ऐसे माहौल में आंचल का दम घुटता था। वह चाहती थी कि वह पढ़ लिख कर मनचाहा कैरियर चुने। उसके लिए पढ़ाई का उद्देश्य केवल अच्छे पति की चाह रखना ही नहीं था। वह अपनी माँ और चाचियों की तरह पूरा जीवन निरर्थक बनाव श्रृंगार में नहीं बिताना चाहती थी। वह अपने हिसाब से जीवन जीना चाहती थी। यह तभी संभव था जब वह उस माहौल से दूर चली जाती। आंचल ने बाहरवीं के बाद बीफार्मा करने के लिए गुपचुप धनवंत्री इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज़ का फॉर्म भर प्रवेश परीक्षा दे दी। प्रवेश परीक्षा के परिणाम आने पर उसका नाम मेरिट में पाँचवें स्थान पर था।
जब यह बात उसने अपने पिता शमशेर सिंह तंवर को बताई तो वह बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने उसके बाहर जाकर पढ़ने का पुरज़ोर विरोध किया। किंतु आंचल भी हार मानने वालों में नहीं थी। वह भी ज़िद पर अड़ गई। उसने खाना पीना छोड़ दिया।
उसकी ज़िद के सामने आखिरकार उसके पिता को झुकना पड़ा। वह बीफार्मा करने धनवंत्री इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज़ में आ गई।
यहाँ आकर उसे ऐसा लगा जैसे वह किसी लंबी कैद से छूट कर आई हो। यहाँ सब कुछ उसके हाथ में था। उसे सदियों पुराने नियम कानून नहीं मानने पड़ते थे। बात बात पर उसे यह एहसास नहीं कराया जाता था कि वह लड़की है और उसे मर्यादाओं के बंधन में बंध कर ही रहना होगा। वह अपनी इस आज़ादी का पूरा मज़ा ले रही थी।
आंचल की रूममेट का नाम रवीना था। रवीना गुरुग्राम की रहने वाली थी। वह और कुछ लड़कियां अक्सर रात में चोरी छिपे हॉस्टल से निकल कर नाइट लाइफ का आनंद लेने जाती थीं। वह बहुत आधुनिक कपड़े पहनती थीं। आंचल भी उनके जैसे ही ज़िंदगी जीना चाहती थी।
रवीना की संगत में उसने भी अपना ड्रेसिंग का तरीका बदल लिया। वह रवीना और उसकी सहेलियों के साथ रात में चुपचाप निकल कर सड़कों पर घूमती थी। डिस्को में झूम कर नाचती थी। महंगे रेस्टोरेंट में खाती थी।
अब तक उसने जितने बंधन झेले थे अब वह उन सबको तोड़ रही थी। यहाँ आकर उसका जीवन पूरी तरह बदल गया था। अब उसकी ज़िंदगी उसके हाथ में थी। वह जो चाहती थी वह करती थी।
रवीना और उसके ग्रुप के साथ रहते हुए आंचल के खर्चे भी बेलगाम हो गए थे। वह खर्चों के लिए पैसे अपने घर से मंगाती थी। उसके बढ़ते हुए खर्चों को देख कर उसके पिता ने उसे धमकाया था कि वह उसे पैसे भेजना बंद कर देंगे। अपने पिता की इस धमकी के बाद उसने अपने खर्चे कम करने का प्रयास किया। किंतु वह अपने आप पर काबू नहीं कर पा रही थी। अतः उसने उधार लेना शुरू कर दिया था।