Gumshuda ki talaash - 3 in Hindi Detective stories by Ashish Kumar Trivedi books and stories PDF | गुमशुदा की तलाश - 3

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गुमशुदा की तलाश - 3



गुमशुदा की तलाश

(3)




रंजन सबसे पहले जाँच अधिकारी इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से मिला। उनसे मिल कर उसने बिपिन की गुमशुदगी के केस की सारी जानकारी तफ्सील से ली।
अब तक की जाँच के अनुसार दस महीने पहले उसके रूममेट कार्तिक मेहता ने अपने प्रोफेसर दीपक बोहरा को सूचना दी कि तीन दिन हो गए बिपिन हॉस्टल नहीं लौटा है। प्रोफेसर दीपक ने यह बात डीन धर्मपाल शास्त्री को बताई। मामले की गंभीरता को समझते हुए डीन शास्त्री ने पुलिस में बिपिन के हॉस्टल से गायब होने की रिपोर्ट लिखाई। उन्होंने बिपिन की माँ नीलिमा को फोन कर सारी बात बताई। वह फौरन वहाँ पहुँचीं। पुलिस ने उनसे पूँछताछ की तो उन्होंने कहा कि वह बिपिन के अचानक गायब हो जाने के बारे में कुछ नहीं बता सकती हैं।
इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह ने बिपिन के रूममेट कार्तिक मेहता से गायब होने से पहले बिपिन की मनोदशा कैसी थी इस बारे में सवाल किया। कार्तिक का कहना था कि वो दोनों रूममेट ज़रूर थे लेकिन उनके बीच अधिक बातचीत नहीं होती थी। बिपिन हमेशा अपने आप में खोया रहता था। वह किसी से भी अधिक बात नहीं करता था। इसलिए उसके मन में क्या चल रहा था बता पाना कठिन है। हाँ अक्सर वह रात में हॉस्टल लौट कर नहीं आता था। वह कहाँ जाता था कहा नहीं जा सकता है। लेकिन हमेशा अगले दिन लौट आता था। कभी एक रात से ज्यादा गायब नहीं रहा। किंतु इस बार जब तीसरे दिन शाम तक भी वह नहीं लौटा तो कार्तिक ने प्रोफेसर दीपक बोहरा को सूचना दी।
बिपिन दास डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्यूटिक्स के प्रोफेसर दीपक बोहरा के पसंदीदा छात्रों में था। इसका कारण था कि बिपिन बहुत ही मेहनती व होशियार था। प्रोफेसर दीपक का कहना था कि वह अपने लक्ष्य पर पूरी तरह केंद्रित था। बिपिन की इच्छा थी कि वह अवसाद से ग्रसित लोगों के लिए एक ऐसी दवा ईजाद करे जिसके सेवन के साइड इफेक्ट कम हों और अवसादग्रस्त व्यक्ति में जीवन के लिए एक नया उत्साह जाग उठे।
अक्सर बिपिन प्रोफेसर दीपक के साथ इसी विषय पर बात करता था। प्रोफेसर दीपक ही एक ऐसे शख्स थे जिनसे वह अपने मन की बात कर लेता था। इसलिए बिपिन के लापता होने का प्रोफेसर दीपक को बहुत दुख था। लेकिन उनका कहना था कि वह भी यह नहीं बता सकते कि बिपिन रात भर हॉस्टल से क्यों गायब रहता था।
जाँच में एक और नाम सामने आया था। आंचल तंवर का। कुछ छात्रों का कहना था कि उन्होंने बिपिन और आंचल को कैंटीन में दो एक बार बातचीत करते देखा था। आंचल बीफार्मा का कोर्स कर रही थी। वह राजस्थान की रहने वाली थी। उसका कहना था कि बिपिन से वह कैंटीन में मिली थी। क्योंकी वह बिपिन से आगे क्या करना चाहिए इस पर सलाह लेना चाहती थी।
पुलिस को बिपिन के लापता होने के केस में अब तक कोई सफलता नहीं मिली थी। अब तक पुलिस यह भी पता नहीं कर सकी थी कि बिपिन अक्सर रात में हॉस्टल से निकल कर कहाँ जाता था। रंजन को आश्चर्य हो रहा था कि आखिर इस केस में पुलिस की गति इतनी धीमी क्यों है। पुलिस की अब तक की जाँच के बारे में जान लेने के बाद रंजन ने सबसे पहले सरवर खान को फोन किया। उसने उन्हें सारी जानकारी दे दी।
"सर देखा जाए तो इस केस में बीते दस महीनों में कोई खास तरक्की नहीं हुई है।"
"बात तो तुम्हारी ठीक है। पर पुलिस की अपनी कई मुश्किलें होती हैं। अब यह केस हमें मिला है। हमें अपने हिसाब से आगे बढ़ना होगा। जो तुमने बताया उसके मुताबिक मुझे आंचल का बयान संतोषजनक नहीं लगा। दूसरा कार्तिक मेहता जो बिपिन का रूममेट था। तुम इन दोनों से शुरू करो। यह पता लगाने की कोशिश करो कि बिपिन जाता कहाँ था।"
"सर मैं भी यही सोंच रहा था। खासकर आंचल का बयान मुझे भी खटक रहा है। वह ज़रूर कुछ छिपा रही है।"
"तुम अकेले संभाल लोगे या मैं आऊँ।"
"सर आपका शागिर्द हूँ। बहुत कुछ सीखा है आपसे। मैं सब कर लूँगा।"
"शाबाश मेरे शागिर्द। वैसे तुम्हारे बाहर जाने से मुझे परेशानी हो जाती है। सोंच रहा हूँ कि एक और असिसटेंट रख लूँ।"
"अच्छा है सर मेरा काम भी कम हो जाएगा। तो ठीक है सर मैं अपना काम शुरू करता हूँ। जो होगा बताऊँगा।"
"ठीक है....अपना खयाल रखना।"
सरवर खान से बात करने के बाद रंजन ने अपनी माँ को फोन कर बता दिया कि वह ठीक से पहुँच गया है।
धनवंत्री इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्यूटिकल साइंसेज़ लगभग 1100 एकड़ में फैला हुआ था। यह भारत में फार्मास्यूटिकल स्टडीज़ का माना हुआ केंद्र था। इसकी स्थापना सन 1952 में की गई थी। कई ऐसी महान हस्तियां थीं जिन्होंने इस इंस्टीट्यूट से निकल कर देश विदेश में अपना नाम कमाया था।
रंजन चरक हॉस्टल की बिल्डिंग के सामने लगे नीम के पेड़ के नीचे खड़ा था। पुलिस से उसे कार्तिक मेहता का नंबर मिल गया था। उसने कार्तिक को फोन किया। फोन उठने पर उसने कार्तिक को अपना परिचय देकर बताया कि वह उससे मिलना चाहता है। कार्तिक ने उसे बताया कि वह अभी हॉस्टल में नहीं है। किसी आवश्यक काम से बाहर गया हुआ है। आने में एक घंटा लगेगा। कोई और चारा ना देख कर रंजन आसपास चहल कदमी करने लगा।
हॉस्टल के चारों तरफ बहुत हरियाली थी। वहाँ दो बैंकों के एटीएम (ATM), ज़रूरी सामान की कुछ दुकानें तथा एक ढाबा दिखाई पड़ा। वहीं उसे एक दुकान दिखी जहाँ किराए पर साइकिलें मिल रही थीं। रंजन ने एक साइकिल किराए पर ली और इंस्टीट्यूट कैंपस का चक्कर लगाने लगा।
कैंपस बहुत सुंदर और साफ सुथरा था। पूरे कैंपस में कई तरह के पेड़ लगे थे। बीच बीच में ग्रीनलैंड दिखाई पड़ रहे थे। इन ग्रीनलैंड्स में कुछ लोग जमीन पर बैठ कर किताब पढ़ने में मगन थे तो कुछ ग्रुप में बातें कर रहे थे।
कैंपस में कई चाय की टपरियां थीं। इन चाय की टपरियों पर सबसे अधिक गहमा गहमी थी। कहीं चाय की चुस्कियों के साथ ज़ोरदार ठहाके लग रहे थे। तो कहीं कुल्हड़ से उठती गर्म भाप के साथ समकालीन मुद्दों पर बहस हो रही थी। रंजन को कॉलेज में बिताए अपने दिन याद आ गए। कैंपस में घूमते हुए समय कैसे गुजरा रंजन को पता ही नहीं चला।
साइकिल वापस कर रंजन किराया चुका रहा था तभी कार्तिक का फोन आया कि वह हॉस्टल लौट आया है। रंजन को भूख लग रही थी। उसने कार्तिक को हॉस्टल के पास वाले ढाबे में बुलाया। खाना खाते हुए दोनों बातें करने लगे।
"रंजन जो मैं जानता था वह पुलिस को बता दिया था। अब और क्या जानना रह गया है ?"
"कार्तिक तुमने बताया कि बिपिन अधिक नहीं बोलता था। यह सही है लेकिन पिछले दो साल से तुम लोग रूममेट थे। इतने दिनों में कुछ तो ऐसा होगा जो तुम बता सको। जो तुमने गौर किया हो। जैसे कि उसकी कोई आदत या फिर वह किसी से अक्सर मिलता हो।"
कार्तिक कुछ देर सोंचता रहा। जैसे कुछ याद कर रहा हो।
"वैसे तो बिपिन अपने आप में खोया रहता था। लेकिन मैंने अक्सर उसे एक नोटबुक में कुछ लिखते देखा था। बिपिन के गायब होने के बाद पुलिस ने उसके सामान की तलाशी ली थी। वह नोटबुक पुलिस को मिली होगी। पक्का नहीं कह सकता पर हो सकता है उससे कुछ पता चले।"
रंजन सोंचने लगा कि उसने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया था कि पुलिस ने बिपिन के कमरे से कुछ बरामद किया होगा। अब वह इंस्पेक्टर सुखबीर सिंह से इस बारे में बात करेगा।
"और कुछ जो तुम बताना चाहो।"
"एक बात और है। मेरे एक दोस्त ने बताया कि उसने बिपिन को गायब होने से हफ्ते भर पहले कैंपस के बाहर खड़ी सफेद स्कोडा कार में किसी के साथ जाते देखा था।"
कार्तिक ने जो दूसरी बात बताई वह भी महत्वपूर्ण थी। रंजन सोंचने लगा कि ऐसा कौन हो सकता है जो बिपिन को अपने साथ स्कोडा कार में बिठा कर ले गया होगा।
"तुम्हारे दोस्त ने कार का नंबर देखा था।"
"नहीं उसने तो बिपिन को सफेद स्कोडा कार में बैठे देखा था।"
अपनी बात कह कर कार्तिक कुछ सोंचने लगा।
"एक बात पता नहीं काम की है या नहीं। बिपिन के साथ पिछली सीट पर बैठे आदमी की हल्की सी झलक मेरे दोस्त को मिली थी। उस आदमी ने आगे के बालों के एक गुच्छे को गोल्डन करा रखा था। उसके कान में बाली भी थी।"
कार्तिक की यह सूचना उस आदमी के बारे में सुराग लगाने में बहुत मददगार हो सकती थी।
"पर तुमने पुलिस को तो स्कोडा कार वाली बात नहीं बताई थी।"
"अभी कुछ दिन पहले ही मेरे दोस्त ने मुझे यह बात बताई।"
कार्तिक से अच्छी सूचनाएं प्राप्त हुई थीं। रंजन ने कार्तिक से कहा कि आगे भी अगर उसकी ज़रूरत पड़ेगी तो वह उससे मिलेगा। खाने का बिल चुका कर रंजन वापस आ गया।