Mayamrug - 6 in Hindi Love Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | मायामृग - 6

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मायामृग - 6

मायामृग

(6)

इस बीच उदय के छोटे भाई के ह्रदय-रोग से पीड़ित हो जाने के कारण उदय व शुभ्रा को इलाज़ के लिए उसे लेकर मद्रास जाना पड़ा | उदय का छोटा भाई भी सरकारी नौकरी में था और उसे स्वास्थ्य-संबंधी सभी सुविधाएँ प्राप्त थीं | उन दिनों गुजरात में ह्रदय के ऑपरेशन की बहुत अधिक सुविधा नहीं थी | ह्रदय-रोग का इलाज़ गुजरात की अपेक्षा मद्रास में अधिक सुचारू रूप से किया जाता था | सरकारी सुविधा होने के कारण मद्रास ले जाने का निर्णय ही सबको उचित लगा | उदय बहुत जल्दी घबराने वालों में से थे अत: उन्होंने उत्तर प्रदेश से अपनी छोटी बहन को व बड़ी बहन के बेटे को भी अपने साथ मद्रास चलने के लिए बुला लिया था | उदय बहुत ढीली प्रकृति के थे, उन्हें अपने साथ अधिक लोग देखकर सांत्वना प्राप्त होती थी | अपने साथ अधिक लोगों को खड़े देखकर उन्हें तसल्ली होती थी | सामान्य दिनों में भी अधिक लोगों से घिरा रहना उनका मूल स्वभाव था | शुभ्रा को तो साथ जाना ही था, वैसे उदय कहीं भटकने के अधिक आदी नहीं थे | कभी कभार मित्रों के साथ वे चले जाते किन्तु किसी कठिन व विशेष परिस्थिति में वे शुभ्रा के बिना नहीं जा पाते थे | शुभ्रा उनकी ‘मॉरल सपोर्ट’ थी | शुभ्रा अपने माता-पिता की एकमात्र सन्तान थी अत: पिता की मृत्यु के पश्चात वह अपनी माँ को अपने पास ले आई थी | जब मद्रास जाने की बात सामने आई तब माँ को छोड़कर जाने की समस्या भी सामने आई | उस समय नवविवाहिता बेटी दीति की सास ने आगे बढ़कर उसकी माँ को अपने पास बुला लिया जबकि उसकी माँ अपनी बेटी के पास रहने में ही बहुत संकोच में रहती थीं और इस बात से और अधिक पीड़ित हो उठी थीं कि पहले बेटी के घर और अब धेवती की ससुराल में भी उन्हें शरण लेनी पड़ रही थी | आसानी से कहाँ हमारे संस्कार बदलते हैं ? लेकिन समय के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता | सब धरा का धरा रह जाता है | बस सामने जो घटित होता है, उसका तमाशा ही हमें देखना होता है और समाज के सामने अपने मुख पर एक लंबी सी मुस्कान पसराए रखनी पड़ती है, मॉडर्न हैं न हम लोग, अत्याधुनिक !

उदित व गर्वी का विवाह निश्चित हो गया था किन्तु पुरातन संस्कारों द्वारा सिंचित मन अभी भी बहुत सी बातों अथवा क्रिया-कलापों को स्वीकार नहीं करता था, विशेषकर उदय का | जब गर्वी दोनों घरों में विवाह के बारे में चर्चा आरंभ होने के बाद शुरू में ही अपनी किसी मित्र के साथ घर में बेहिचक आ गई थी तब उदय बाहर से तो चुप बने रहे किन्तु ऊपर से कुछ न कहने के उपरान्त भी भीतर की खीज उनके चेहरे पर पसर आई थी, इस बात को केवल शुभ्र ही समझ सकती थी, उदित को न तो कभी समझाया गया और न ही उसने किसी बात को समझने की तत्परता दिखाई | कच्चे रिश्ते में किसीकी बेटी का ससुराल में आना उदय को बहुत नागवार गुज़रता था | अगर हमारा बेटा है तो किसी की तो बेटी है न गर्वी भी | उसकी ओर किसीकी कुदृष्टि पड़े यह भी तो ठीक नहीं था | आखिर वह इस परिवार की भावी पुत्र-वधू थी जिसके ऊपर भविष्य का दारोमदार पड़ने वाला था, जिसके कंधों पर स्नेह व ममता के पवित्र बंधन का भार भी पड़ने वाला था | शुभ्रा को पूरी आशा थी कि जैसे उसने एकमात्र सन्तान होने के उपरांत भी इस घर को जोड़े रखा था वैसे ही गर्वी भी इस परिवार को अपने आदर व स्नेह के कोमल बंधन में बांधकर रखेगी | कोई प्रेम का निरादर कैसे कर सकता है? एक बार, दोबार, दस बार आखिर कितनी बार के स्नेह को कोई ठुकरा सकता है ? कभी न कभी तो स्नेह व प्रेम का प्रतिदान देना ही होता है | कोई कितना भी रूखा अथवा कठोर क्यों न हो स्नेह के आगे कभी न कभी उसका शीष झुक ही जाता है | बस वह जब उदय को परेशान और चिंतामग्न देखती तब पीड़ा में भर जाती थी |

“”इतने क्यों छटपटा रहे हैं ? नया ज़माना है, नई सोच के लोग हैं और इनके यहाँ यह कोई अजीब बात तो है नहीं, यहाँ सब ही आते-जाते हैं, मिलते-मिलाते हैं| यहाँ तो भावी वधू विवाह से पूर्व ससुराल में जाकर कई-कई दिनों तक रह भी लेती हैं | इस बात को इतना गंभीर मत बनाओ—“” गर्वी का परिवार यूँ तो मराठी था किन्तु लगभग चार पीढ़ियों से नासिक से आकर गुजरात में बस जाने पर यहीं के संस्कारों व परंपराओं में रच-बस गया था | बहुधा ऐसा होता ही है मनुष्य जहाँ कहीं अधिक समय तक रहता है वहीँ के संस्कारों में घुल-मिल जाता है |

“ “अभी नहीं पता चलेगा, तब पता चलेगा जब कुछ ऐसा हो जाएगा जो होना नहीं चाहिए | ”फिर सिर फोड़ते फिरना, किसीकी भी बेटी हो, बेटी तो है न ? ”उदय की पीड़ा शुभ्रा से छिपी नहीं थी |

बात ठीक तो थी किन्तु खीज गई शुभ्रा ! कितनी पुरानी सोच लिए घूम रहे हैं उदय अभी भी ! बदलाव तो हर पल आता है, अब जैसी परिस्थिति है वैसा ही तो स्वीकार करना होगा | उदय का मानना था यदि विवाह की पहली रसम हो जाएगी तो लड़की के ऊपर व्यर्थ के प्रश्नचिन्ह नहीं लगेंगे| अत: ‘गोद-भराई’ या कहें ‘चुन्नी चढ़ाने’ की तारीख सुनिश्चित कर दी गई | उदय के छोटे भाई की बीमारी के कारण उदय, शुभ्रा और शुभ्रा की माँ अपने एकमात्र पुत्र के विवाह के प्रथम शुभ-संस्कार में नहीं गए | उदय ने स्पष्ट शब्दों में कहा था;

“”जब तक आलोक ठीक नहीं होता, मैं तो नहीं जाऊंगा | तुम लोग जाकर यह रसम कर लो जिससे कभी लड़की यहाँ आए भी तो कम से कम समाज के लोगों की दृष्टि उस पर न पड़े, बेकार की बातें न उड़ें | बेटी तो बेटी होती है, बेशक वह हमारे यहाँ की होने वाली बहू है | विवाह के बाद दोनों परिवार एक होते हैं, उनकी इज्ज़त एक होती है, किसी पर भी आँच नहीं आनी चाहिए | ”वैसे भी शुभ्रा यह भली-भांति जानती व समझती थी कि उदय गर्वी के घर जाने के हर पल में कतराते ही तो रहे हैं | ”शुभ्रा की इच्छा होती थी कि जब परिवार से जुड़ाव हो ही रहा है तो उदय प्रकाश भी मन से उस परिवार से जुड़ें यद्यपि वह समझती थी कि यह बहुत कठिन था |

“”पर ये लोग इस बात को बुरा नहीं मानते ---एक ही तो बेटा है अगर---“”शुभ्रा ने फिर अपना मत प्रस्तुत कर दिया था |

“” वो लोग न मानें, हम तो मानते हैं | जिस समाज में हम रहते हैं वह तो मानता है| तुम कितनी भी मॉडर्न क्यों न हो जाओ, कुछ चीज़ें स्वीकारनी ही पड़ेंगी | कितना भी बदलाव क्यों न हो जाए, सारे संस्कार बदलने न तो हित में हैं और न ही संभव---“कुछ रूककर बोले थे ----

“तभी तो चौथे दिन तलाक की बातें पता चलती हैं, शादी नहीं जैसे एक तमाशा हो ---“उदय को वह तब कहाँ समझ पाई थी और उदय को अपनी पत्नी का व्यवहार बहुत ही बचकाना, ‘सो कॉल्ड मार्डन’ लगता | शुभ्रा चुप्पी लगा गई थी, कोई लाभ नहीं था कुछ कहने का | अत: दीति के श्वसुर पक्ष के लोग, उसकी अपनी ननद की बेटी-दामाद व परिवार से जुड़े कुछ अन्तरंग लोग जाकर उदित की भावी पत्नी की पहली शुभ रसम कर आए थे | बेटे के विवाह की प्रथम रसम में उदय के न जाने पर शुभ्रा का मन भी सुस्ता गया था, जब उदय ही नहीं गए तब शुभ्रा ही कैसे जाती? यह हमारी भारतीय परंपरा है जो परिवार को सुख-दुःख में जोड़े रखती है, यही लगाव व एक दूसरे के प्रति आदर का भाव, स्नेह, परवाह व विश्वास पति-पत्नी के मध्य एक आंतरिक आत्मीय संबंध जोड़कर रखता है, परिवार की थाती होता है| बेशक इसमें महिलाओं को ही अधिक समर्पण करना पड़ता है किन्तु यदि किसी समर्पण से संबंधों में मधुरता आती हो तो क्या ज़िंदगी में मधुरता नहीं आएगी? जिंदगी अधिक सहज-सरल नहीं हो जाएगी ? शुभ्रा बहुत स्वतंत्र विचारों की थी किन्तु परिवार के प्रति अत्यधिक समर्पित !

अब गर्वी का घर में खुले आम आना-जाना शुरू हो गया था | घर के किसी भी सदस्य के न होने पर भी गर्वी का घर में आना शुभ्रा को अच्छा न लगता | मनुष्य जिस वातावरण में रहकर पलता, बड़ा होता है वैसे ही विचार उसके मस्तिष्क में परिपक्व हो जाते हैं | वह भी तो उसी वातावरण में पली थी जिसमें से उदय निकले थे | हाँ ! उसे उदय से कुछ अधिक स्वतन्त्रता प्राप्त हुई थी, वह उदय से कुछ अधिक स्वतंत्र विचारों की थी किन्तु जब आस-पास के घरों की जाली लगी हुई खिड़कियों से पड़ौसियों ने ताक-झाँक शुरू कर दी तब उसे पति की बात सही लगने लगी| प्रत्येक परिवार, जाति, प्रदेश के अपने संस्कार होते हैं जो आसानी से नहीं बदलते| उदय के संस्कारों ने भी अपना चोगा बदलने से इंकार कर दिया था | शुभ्रा के स्वभाव में बदलाव की काफ़ी गुंजायश थी किन्तु पति को अपने विचारों पर चलाना पत्नी के लिए इतना आसान थोड़े ही होता है | वह भी क्या करती जब उनका बेटा उदित ही वहाँ के वातावरण में रम चुका था, वह औरों की देखा-देखी गर्वी को घर में ले आता, उसे लेकर घूमता रहता | शुभ्रा का वह बेटा जो सदा माँ की पसंद से विवाह करने की बात करता था, गर्वी को पाकर इतना बदल गया था कि उसे अब सब ओर उसे गर्वी ही दिखाई देने लगी थी | गर्वी के माता-पिता को इसमें कोई आपत्ति अथवा संकोच नहीं था क्योंकि यहाँ यह आम बात थी, यहाँ की परंपराओं में यह बात सम्मिलित थी, यहाँ रहने वाले इस सबके के आदी थे | बच्चों को रोकना-टोकना चाहती थी शुभ्रा किन्तु कभी किसी के समक्ष बोली ही कहाँ थी आज तक जो आज बोल पाती !

“”आजकल के बच्चों में ‘पेशेंस’ तो हैं ही नहीं -----“”उदय सुस्त होकर कहते और शुभ्रा चुप्पी साध लेती| सब कुछ समझते हुए भी वह सोचती कि वातावरण के अनुसार तो चलना ही पड़ता है | वैसे भी उसे पति की बातें कुछ अधिक ही ‘ओल्ड फैशंड’ लगती थीं | हाँ, पीड़ा तो उसे भी होती थी परन्तु युवा बच्चों को रोकना-टोकना उसे अधिक असहज कर जाता | रोकना-टोकना होता तो उदय करते न, जो भीतर से तो कुढ़ते रहे, ऊपर से कभी कुछ बोल ही नहीं पाए | वे तो पिता थे, उनका कर्तव्य भी था और अधिकार भी, गुम बने सब कुछ देखते ही तो रहे | यहीं पति-पत्नी ने अपने जीवन की सबसे बड़ी गलती की थी | उदय ने उदित को कभी टोका ही नहीं था, वो जैसे अपने समय में ही सांसें लेते, उनके मन में ‘हमारे जमाने में यह होता था ---हमारे यहाँ आज तक किसीका तलाक नहीं हुआ ‘ का रिकार्ड फिट था |

हाँ, उदय ने उदित से बात करते हुए बहुत स्पष्ट शब्दों में बेटे को चुनौती सी दी थी;

“”शादी तो तुम कर रहे हो पर अगर ठीक से न रह पाए तो तुम्हें अलग कर दूंगा, अलग रहना----“”

““क्या डैडी आप भी -----हम क्या आप लोगों को छोड़कर अलग रहेंगे ? ”” पता नहीं किस भावना के वशीभूत होकर उदित ने यह कहा था | हाँ, वह यह तो जानता ही था कि अभी उसकी स्थिति अपना परिवार पालने की नहीं थी, इस बात से एक पन्थ दो काज हो रहे थे | उसने अपनी भावी पत्नी को अपने परिवार के बारे में पहले ही सारा खुलासा कर दिया था | बीच में कभी जन्मपत्री मिलवाने, दिखाने की बात आई थी जिसे शुभ्रा ने हलका लेकर टाल दिया था | उसकी और उदय की जन्मपत्री उस ज़माने में भी कौनसी मिली थी पर सब ठीक-ठाक ही निकल रहा था समय ! जब एक बार गर्वी की मम्मी ने उससे जन्मपत्री दिखवाने की बात की थी, उसने उनसे पूछा था;

“”आप मानती हैं क्या ? ””

“”नहीं, हम लोग तो नहीं मानते पर आप लोग अगर मानते हों तो ---? ”” उनकी बोली गुजराती, मराठी, हिन्दी मिश्रित होती थी|

“”अगर नहीं मिली और फिर भी ये लोग शादी के लिए अड़े रहे तब आप या हम क्या कर लेंगे? ””शुभ्रा के प्रश्न से चिंता व उत्तर दोनों झाँक रहे थे |

“”मन में और चिंता पैदा हो जाएगी ----जिन्हें निबाहना होता है वे कैसी भी परिस्थिति में रिश्ते निबाह लेते हैं और जिन्हें नहीं निबाहना होता वे -----“”शुभ्रा ने अपने मन की बात कही और चुप्पी लगा ली, बात आई-गई हो गई थी |

***