Sailaab - 26 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | सैलाब - 26

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सैलाब - 26

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 26

"लड़की है न मौसी।" कहकर सिर खुजाते हुए दांत से जीभ काट कर फर्श की ओर देखने लगा।

"इसका मतलब तूने पहले से ही लड़की देख रखी है? शैतान कहीं का फिर बताया क्यों नहीं?" उसके पास सोफ़े पर बैठते हुए कहा पावनी ने ।

"नहीं मौसी ऐसी कोई बात नहीं। मेरी नज़र में कोई है मगर अगर .."

"अगर मगर क्या कर रहा है ठीक से बता।"

".... आप हाँ कहो तो ही, नहीं तो शादी नहीं करूँगा।"

"अच्छा ऐसी बात है, यानि मुझे अब तक अँधेरे में रखा था। बोल कौन है वो लड़की?"

"पर मौसी उसने भी तो मुझे पसंद करना चाहिए न?"

"क्यों नहीं करेगी? क्या बुराई है तुझमें?"

"नहीं मौसी समझो न प्लीज, अभी तक मैने उससे इस बारे में बात भी नहीं की है। उसे भी तो पता होना चाहिए न?"

"ठीक है मुझे बता मैं बात करती हूँ उससे।"

"नहीं मौसी पहले मैं बात कर लूँ फिर आप को बताऊंगा। चिंता मत करो मौसी मैं शादी करूँगा और जरूर करूँगा।"

"बता वो कौन है?"

"आप जानती हैं उसे।"

"मैं जानती हूँ?"

"हाँ।"

"तो सेजल की कोई दोस्त? बिंदु? " ख़ुशी से उछलते हुए पावनी ने कहा।

नहीं मौसी वह तो मेरी अच्छी दोस्त है, और मुझसे बहुत छोटी है।"

"तो फिर कौन हो सकता है?" मन ही मन में सोचते हुए कहा। फिर शतायु के तरफ मुड़ कर बोली, "मुझे नहीं पता तू ही बता।"

मौसी के दोनों हाथ अपने हाथ में लेते हुए शतायु ने कहा, "मौसी आप न नहीं कहोगी न?"

"क्यों मुझे ना' कहना चाहिए।" मुँह फुला कर गंभीर भंगिमा बना कर पावनी बोली।

"मौसी, आप ने आज तक मुझे मौसी की तरह नहीं एक माँ की तरह पाला पोसा, माँ की कमी को हर वक्त मैं महसूस करता रहा लेकिन जब भी आप के पास होता हूँ तो कभी लगता ही नहीं की मैं अकेला हूँ।"

"धत तेरे की बस यही कहना था।" शतायु का कान पकड़ कर पावनी बोली, "अरे पागल तू मेरे बच्चों से अलग थोड़े ही है? तू तो मेरा बड़ा बेटा है, सबसे ज्यादा मुझ पर तेरा ही हक़ बनता है।"

"मौसी माँ, छोड़ोना कान दर्द कर रहा है।" शतायु ने जोर से कहा। पावनी ने और जोर से उसका कान मरोड़ते हुए कहा कि बोल अभी फिर से कहेगा कि मैं अकेला हूँ?

"नहीं मौसी छोड़ोना, गलती हो गयी फिर से नहीं कहूंगा।"

"अब ठीक है।" कहकर पावनी ने शतायु के कान छोड़ दिया।

"अब बता लड़की कौन है?"

"बतादूँ?"

"ज्यादा नाटक मत कर सीधा सीधा नाम बताओ।"

"हूँ, मौसी ये वही लड़की है जो एक बेनाम जिंदगी जी रही है। जिसके ऊपर समाज के दरिंदों ने घिनौना अत्याचार किया था। जिसे समाज एक औरत या इंसान के रूप नहीं में बल्कि एक वस्तु की तरह देखता है। मैंने उस लड़की से प्यार किया है जिसके साहस पर मैं फिदा हूँ जिस लड़की के उपर इतनी सारी नाइंसाफ़ियों के बावजूद उसने हिम्मत नहीं हारी। अपने भाई बहनों के लिए समाज से लड़ते हुए जी रही है।" हिचकिचाते हुए कहा।

पावनी को समझ में नहीं आ रहा था वह किस की बात कर रहा है। शतायु बस एक ही साँस में कहते जा रहा था, "मौसी! सोते जागते न जाने मेरे मन में उसी का ख्याल रहता है। जब से उसे देखा है मतलब नहीं देखा है फिर भी वह एक पल भी मुझसे दूर नहीं है। मैं उसी से शादी करना चाहता हूँ ताकि समाज की नज़र में वह मजबूर स्त्री या किसी की दया का पात्र न बने। मैं उस लड़की को जीने का हक़ देना चाहता हूँ। एक इंसान होने का हक़ और सम्मान से समाज में जीने का उद्देश्य देना चाहता हूँ ।"

पावनी के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर उसने कहा "मौसी बुरा मत मानिए, मैं पूरे होश में कह रहा हूँ वह कोई और नहीं शबनम है। अगर आपकी आज्ञा हो तो आप का आशीर्वाद लेकर शबनम से शादी करुँगा।" कह कर पावनी की ओर देखने लगा। पावनी निर्मिमेष नयन से उसे देख रही थी। उसकी जुबान पर कोई शब्द नहीं था। शतायु ने उसकी बात कह कर वहाँ से चला गया। पावनी उसके जाने के बहुत देर तक उस ओर देर तक देखती रह गई ।

शतायु जो कुछ कह गया था जब उसकी समझ में आया तो मानो उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी। शतायु के दिमाग में ऐसा कुछ चल रहा है यह उसकी सोच से बाहर था। वह स्वतः हिन्दू धर्म को खूब मानती है, खुद ब्राह्मण कुल की वारिस है। ऐसे में एक मुसलमान लड़की से शतायु की शादी को क्या वह मान्यता दे पाएगी? क्या कभी वह शबनम को अपनी बहू स्वीकार कर पाएगी? सबसे बड़ी बात है कि उसके साथ जो हादसा हुआ उसे जानते हुए भी क्या यह समाज उसे स्वीकार करेगा। पावनी के सामने एक गंभीर समस्या खड़ी हो गयी।

पावनी शबनम को बहुत अच्छी तरह न जानते हुए भी उस लड़की से हमदर्दी रखती है क्यों कि शबनम एक आत्मनिर्भरशील और स्वाभिमानी लड़की है। कई दिनों से पावनी शबनम को देखती आई है । चाहे उसके साथ यह हादसा हुआ हो लेकिन वह बेकसूर और मन से पाक है। अगर शतायु उससे शादी करना चाहता है तो शायद वह अपनी जगह बिल्कुल सही है। पर क्या शबनम इस शादी के लिए तैयार होगी? क्या शबनम भी यही चाहती है? क्या वह शतायु को अपनाने को राज़ी होगी? पहले शबनम की इच्छा जाननी होगी। उसके बाद ही कुछ कर सकती हूँ।" सोचते हुए पावनी सब्जी लेने के बहाने घर से निकली ।

कुछ दूर चलने के बाद जैसे ही वह सब्जी की दुकान के पास पहुँची उसने देखा बुर्का पहने हुए एक लड़की खाली बैग लिए दुकानदार के सामने खड़ी है और दुकान दार उसे जलीकटी सुना रहा है। वह लड़की बिल्कुल चुप है और उसके हाथ के खाली बैग को उसने जोर से पकड़ कर रखा है जैसे कि दूकानदार की बातें उससे सुनी नहीं जा रही हों फिर भी दुकान दार से कुछ विनती कर रही हों ।

"भैया पहली तारीख को सारे पैसे चुका दूँगी। कुछ सामान दे दो। घर में बच्चे भूखे हैं। सामान ले कर खाना बनाना है।"

"पहले का बाकी चुकाओ बाद में आ कर सामान ले लेना।" कह कर दुकानदार ने पल्ला झाड़ लिया। बिल्कुल उसी वक्त पावनी वहाँ जा पहुँची ।

"भैया जल्द ही चुका दूंगी अब कुछ आटा तो दे दो।"

"जाओ जाओ लोग कैसे देख रहे है। जाओ यहां से और उन्हें आने दो ।"

पावनी को उस लड़की की आवाज़ कुछ जानी पहचानी सी लगी। उस लड़की ने जैसे ही पावनी को देखा मुँह छुपा कर वहाँ से जाने लगी। पावनी ने शबनम को उसकी आवाज़ से पहचान लिया था। उसने पीछे से "शबनम " कह कर पुकारा ।

बुर्का पहनी हुई शबनम जाते जाते रूक गई। फिर बड़े-बड़े कदमों से वहाँ से चली गई। पावनी ने कुछ सामान खरीदा और कुछ पैसे दूकानदार के हाथों में दे कर कहा, "अगर कभी यह लड़की तुमसे आटा चावल के लिए आए तो उसे ना नहीं कहना। पैसे मैं दे दूंगी। उस लड़की को जो भी चाहिए दे देना।"

वह नुक्कड़ से गुजरते हुए शबनम के घर की ओर चल पड़ी। शबनम के घर का दरवाजा बंद था। दो बार दस्तक देने पर दरवाजा खुला। पावनी को देख वह मन ही मन विचलित हो गई लेकिन चेहरे पर खुशी जाहिर करते हुए अंदर बुला कर बैठने को कहा। पावनी ने बैठते ही कहा, "कितनी गर्मी है, शबनम एक ग्लास पानी ला कर देना बहुत प्यास लगी है।"

शबनम ग्लास में पानी भर कर ले आई। पानी पी कर पावनी ने अपने साथ लाई चीजें को एक जगह रखा और मुस्कुराते हुए कहा "बहुत दिनों से तुम्हें मिलने को जी कर रहा था सोचा आज मार्केट से आते वक्त तुम से मिल कर ही आऊँगी। जैसे ही मार्केट में पहुँची गरम गरम पकौड़े और जलेबी दिखे। मुंह में पानी आ गया तो सोचा तुम्हारे साथ मिल कर खाने में मज़ा आएगा इसलिए कुछ अपने साथ ले आई। अकेले खाने में क्या मज़ा? जाओ बच्चों को भी खिला देना तुम भी प्लेट ले आना।" कह कर पावनी ने पैकेट को शबनम के हाथ में थमा दिया। ये तो सिर्फ बहाना था। वह जानती थी शबनम बड़ी ही स्वभिमानी लड़की है। वह ऐसे ही देगी तो वह कदाचित नहीं लेगी। दूकान पर भी वह पावनी के सामने शर्मिंदा होना नहीं चाहती थी इसलिए मुंह छुपा कर वहाँ से चली आई थी ।

" मैडम.." शबनम की जुबां पर शब्द नहीं आ रहे थे। उसने शरम से सिर झुका लिया। पावनी उसका चेहरा बहुत अच्छी तरह पढ़ सकती थी। शबनम और उसके भाई बहनों ने न जाने कुछ खाया भी है कि नहीं। जब पावनी ने उसे देखा तो उसकी आँखें सारा सच बयान कर रही थी। चाहे जुबान झूठ बोल जाए लेकिन आंखें कभी झूठ नहीं बोलती।

"अरे शबनम, ये क्या! तुम रो रही हो? तुम शायद हमें भूल गई हो पर हम अभी भी तुम्हारे साथ हैं, तुम कभी अकेली नहीं हो।" पावनी ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा ।

***