सैलाब
लता तेजेश्वर 'रेणुका'
अध्याय - 19
उस दिन शाम को सेजल बिंदु से मिलने गई। जब वह बिंदु के घर पहुँची तब विनिता सूखे कपड़े धूप से निकाल रही थी।
"हाय आंटी। कैसी हैं आप?" आवाज़ सुनकर विनीता ने पीछे मुड़ कर देखा। उसके सामने सेजल खड़ी थी।
"अरे सेजल तुम कब आई? कैसी हो?" आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ कर अंदर बुलाया।
"हाँ आंटी ठीक हूँ। आप कैसी है?"
"बिलकुल बढ़िया हूँ। आओ अंदर। तुम्हारी मम्मी तो हमेशा तुम्हारी बहुत फिक्र करती रहती है।"
"हाँ आंटी मम्मी है न इसलिए। कुछ ज्यादा ही फ़िक्र करती है।"
".. और बोलो कैसी चल रही है पढ़ाई?" कहते हुए रस्सी से एक एक कपड़े उतार कर अपने कंधे पर रखे।
" सब ठीक है, पढ़ाई भी अच्छी चल रही है। बिंदु कैसी है? "
"बढ़िया है, चलो अंदर चलो बैठते हैं।" कहते हुए अंदर की ओर बढ़ गई विनिता। सेजल भी पीछे पीछे आ कर सोफे पर बैठी। विनीता कपड़े अंदर रख कर सेजल के पास आ बैठी।
और बताओ तुम्हारे हॉस्टल में सब ठीक है? खाना पीना वगैरा टाइम पर मिलता है?
"हाँ आंटी, सब बढ़िया है।"
सेजल टेबल पर से एक मैगजीन उठा कर देखने लगी। फिर कुछ देर इंतजार के बाद इधर उधर देखते हुए पूछा,"आंटी बिंदु नज़र नहीं आ रही है, बाहर गई?"
"हाँ, अपनी सहेली के घर गई है, जल्द ही आ जाएगी। तुम बैठो मैं गरमा गरम पकौड़े बना कर ले आती हूँ|"
"नहीं आंटी रहने दीजिए, मैं थोड़ी ही देर पहले खाना खा कर आयी हूँ।"
"कोई बात नहीं सेजल, बिंदु अभी थोड़ी ही देर में आ जाएगी। जब बिंदु आएगी तो खाने के लिए हंगामा मचा देगी। अच्छा ये बता छुट्टी कितने दिन की है कब तक रहोगी यहाँ?"
" चार पाँच दिन की ही छुट्टी है, फिर जाना होगा।" कुछ देर बाद पूछा, ''आंटी सुना है बिंदु कोई नारी सुधार योजना.."
"नहीं, 'नारी कल्याण संस्था'।" सेजल के शब्दों का संशोधन करते हुए विनीता ने कहा।
"अच्छा! इसके लिए बिंदु ने क्या करने का सोचा है? क्या मैं भी कुछ मदद कर सकती हूँ?"
"क्यों नहीं सेजल ये तो बहुत अच्छी बात है। आप के जैसे युवा अगर शामिल होते हैं तो कुछ भी कर सकते हैं।" पकौड़े को एक एक कर गरम तेल से निकालते हुए कहा।
"माँ कौन आया है?" बिंदु ने घर में प्रवेश करते हुए वहाँ रखे जूते को देख कर द्वार से ही आवाज़ दी।
"अंदर आ कर देख कौन है ?" विनिता ने अंदर से ही जवाब दिया।
बिंदु ने घर के अंदर झाँक कर देखा उसे कोई भी नहीं दिखा। जूते खोल कर सीधा भीतर आ पहुंची वहाँ सेजल को देख कर खुशी से चिल्लाने की ही देर थी, "अरे सेजल! क्या बात है, तुम कब आई? तुम बहुत दुबली हो गयी हो, डाइटिंग कर रही हो क्या?" सेजल को ऊपर से नीचे तक देखते हुए बोली।
"जस्ट अभी आई। और तुम कैसी हो?"
"देखती नहीं थोड़ी मोटी हो गयी?"
"हाँ, मोटी हो गयी हो पर अच्छी लग रही हो।" सेजल ने चुटकी ली।
"सेजल तुमने बहुत अच्छा किया कि यहाँ आ गई। माँ बहुत भूख लगी है हम दोनों के लिए खाना परोस दो। चल सेजल तुम बैठो मैं हाथ मुंह धो कर आ रही हूँ, साथ-साथ खाना खाते हैं।"
"नहीं बिन्दु, मैं खाना खा कर ही आई हूँ तुम खाओ! हम ढेर सारी बात करेंगे।"
"नहीं साथ में खाना खाते हैं, नहीं तो मैं भी नहीं खाऊँगी।"
"अरे जिद्द मत कर बिंदु खाना खा लो।" सेजल ने कहा।
"ठीक है मैं पकौड़े ले आती हूँ दोनों साथ में खा लो, ओ के ?" विनिता ने कहा।
"ठीक है माँ।" विनिता थोड़े ही देर में पकौड़े ले आई। फिर कहा, "मुझे कुछ काम है मैं मार्केट जा रही हूँ आप लोग बैठ कर बातें करो।" कह कर विनिता वहाँ से चली गई।
"चल मेरे कमरे में चलते हैं।" कह कर बिंदु सेजल को अपने रूम में ले गई |
दोनों ने ढेर सारी बातें करी। बचपन से दोनों ने एक साथ बहुत सारा समय बिताया था। सेजल उम्र में बिंदु से एक साल बड़ी है लेकिन दोनों की सोच में ज्यादा फरक नहीं है। दोनों आधुनिक वातावरण में पली-बढ़ी हैं। बिंदु किसी से ज्यादा मिलती जुलती नहीं है पर सेजल किसी से भी जल्दी दोस्ती कर लेती है, वह हमेशा हँसमुख और खिली-खिली रहती है। इसलिए कोई भी उससे जल्दी घुल मिल जाता है। सेजल के इस स्वभाव की उसके दोस्त व पहचान वाले खूब तारीफ करते हैं। वह दोस्ती में और लोगों की मदद करने में हमेशा आगे ही रहती है।
बिंदु समाज के रीति रिवाजों से बंधी हुई सी सोचती है कि उसका नम्र स्वभाव उसे ज्यादा बात करने की इजाज़त तो नहीं देता लेकिन उसके स्वभाव से सब उसे बहुत प्यार करने लगते। स्त्रियों कि समस्याओं के साथ साथ उनके ससुराल में होते अत्याचार, अन्याय, स्त्री और पुरुष में भेदभाव देख कर उसके दिल में समाज के प्रति हमेशा से एक विरूद्ध भाव महसूस होता रहा। लेकिन उस ज्वाला को उसका स्वभाव हमेशा दबाए रखता था। जब भी किसी स्त्री के प्रति अत्याचार होते देखती तब उसके दिल का दर्द उभर कर सामने आता। समाज में स्त्री के प्रति बे-रहमी, बलात्कार तथा बच्चों और बड़ों से हो रही अश्लील हरकतें असामाजिकता उसे चुप बैठने नहीं देती थी। उसके ह्रदय से उन अमानवीय कृतियों से बदला लेने की आवाज़ें आने लगती।
बातों ही बातों में सेजल ने बिन्दु को नारी कल्याण योजना के बारे में पूछा, "तुम्हें ये ख्याल कैसे आया कि ऐसी कोई संस्था की स्थापना करनी है। लेकिन जो भी कुछ तुम कर रही हो काबिल-ए-तारीफ़ है।"
" इस बात का सारा श्रेय तो आंटी को जाता है। जिन्होंने मुझे इस तरह सोचने पर मजबूर कर दिया। जिनकी सलाह से प्रेरित हो कर मैंने ये साहस किया।"
"अच्छा वह कैसे ?" सेजल ने प्रश्न किया।
बिंदु ने आप बीती सुनाई। फिर कहा, "वह पावनी आंटी ही थी जिन्होंने मुझे उस दिन लड़ने की हिम्मत दी। उस दिन वह अगर साथ न होती तो शायद मैं कॉलेज जाना छोड़कर घर पर बैठजाती, और न आज कुछ कर पाती। मैं आज कॉलेज जा रही हूँ साथ ही ऐसे ही कुछ पीड़ितों की मदद ले भी रही हूँ और मदद कर भी रही हूँ। इसका श्रेय पूरी तरह पावनी आंटी को जाता है। हम यहाँ बस औरों का साथ देते हैं और हिम्मत बढ़ाते हैं ताकि आनेवाले दिनों में वह भी उतने ही साहस से औरों की मदद करें।"
"बहुत अच्छा काम कर रही है बिंदु मुझे फख्र महसूस होता है तुम्हे देख कर। फिर आगे क्या हुआ?"
"उस दिन मम्मी और आंटी मुझे कॉलेज में छोड़ कर वापस आ गए। शाम को आते वक्त मेरी मम्मी मुझे लेने आई। मम्मी के रहते उन लोगों ने कुछ नहीं कहा। फिर मैने आंटी को फोन किया, उनसे बात करने के बाद न जाने मुझ में कैसी हिम्मत आई कि दूसरे ही दिन जब मम्मी आने को तैयार हो रही थी तब मैंने उन्हे साथ चलने को मना कर दिया।"
"फिर तुझे डर नहीं लगा उन गुंडों से?"
"नहीं, उस दिन जब मैं उसी रास्ते से जा रही थी उन लोगों ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया और छेड़ने लगे। उन्हें गली के मोड़ पर देखकर मैंने पहले ही मोबाइल में १०० डायल कर दिया। कुछ ही देर में जब पुलिस ने मेरा फोन उठाया तब इन लोगों कि सारे बातें सुन ली जब वे छेड़ रहे थे तब मैंने उन्हें खूब डाँटा और उसी बहाने मेरा पता भी बता दिया और क्या था थोड़ी ही देर में पुलिस वहाँ हाजिर हो गई और उन्हें अरेस्ट कर लिया। फिर तब से आज तक कोई मुझे छेड़ने की हिम्मत भी नहीं कर सके, अब जब भी मैं अकेली भी चल कर जाती हूँ तो वे मेरे पीछे १० कदम की दूरी रख कर ही चलते हैं। यही समाज का रवैया है, जब तक हम डरते रहेंगे वह हमें डराते रहेंगे इसलिए हिम्मत करना बहुत जरूरी है ।"
"बिलकुल सही.." सोचते हुए सेजल ने कहा," सच कहा बिंदु हम जितना चुप रहते हैं, लोग हमें उतना ही सताने लगते हैं।"
"बिंदु आज मैं तुमसे अपनी सहेली की बारे में बताना चाहती हूँ। उसे भी तेरी तरह हिम्मत की साथ की जरुरत है। मेरी एक सहेली है प्रिया जो मेरे होस्टल में रहती थी। हाल ही में उसके साथ भी ऐसा ही कुछ हादसा हुआ। एक दिन वह अपने दोस्तों के साथ शॉपिंग करने गई लौटते वक्त बहुत देर हो गया। करीब रात के आठ बज गए थे। होस्टल का रास्ता काफी सूना-सूना रहता है। उस रास्ते वापस लौटते समय कुछ बदमाश उसके पीछे पड गए। उसे घेर कर शरीर के जगह जगह कई हिस्सों को छुआ, उसे रास्ते से उठाने ही वाले थे कि उसी वक्त उस रास्ते बाइक में किसी को आते हुए देख उसको छोड़ दिया और धमकी दी, "अगर ये बात किसी को भी बताई तो तुम्हें छोड़ेंगे नहीं बहुत बुरा करेंगे।" धमकी दे कर चले गए।
"प्रिया वापस तो आ गई लेकिन वह मानसिक तौर पर बुरी तरह से डरी हुई थी। उसके बाद वह सदमे में चली गई, रात को ठीक से सोना भी उसका दुर्भर हो गया। डर से उठ कर बैठ जाती थी। अक्सर आधी रात को बाथरूम में जा कर घंटो नहाती रहती। उन लोगों के गंदे हाथों से उसके शरीर को छूना उसे बरदाश्त नहीं हो रहा था। घिस घिस कर उन जगहों को साबुन से रगड़ती रहती। जब वह बाहर निकलती थी पूरा शरीर लाल हो जाता था।"
"हॉस्टल वार्डन को ये बातें नहीं बताई?" बिंदु ने पूछा।
"नहीं, उसने मुझे कहने से रोक लिया था। उसकी दिमागी हालात बहुत बिगड़ चुकी थी। न किसी से दिल खोल कर कुछ कह सकती थी न ही खुद को समझा सकती थी। एक तरफ़ उन लोगों की धमकी दूसरे तरफ समाज में बदनामी का डर वह कुछ दिनों तक बहुत ही बुरे हालातों से गुज़री।"
" बहुत बुरा हुआ और फिर क्या हुआ?" बिंदु साँस रोक कर सुन रही थी।
सेजल कुछ देर चुप रही। फिर कहा, "पहले तो हमें उसकी हरकतें समझ में नहीं आती थी। लेकिन एक दिन वह खुद को रोक नहीं पाई। मेरे गोद में सिर रख कर रो पड़ी और उसने वह सारी बातें बताई। कितनी दर्दनाक होती है इस तरह की घटनाएँ, एक लड़की के दिलो दिमाग पर ऐसी कालिमा छोड़ देती है जो कभी मिट ही नहीं सकती। एक भयंकर अपराधी की तरह खुद को महसूस करने लगती है। मुझे डर लगा कि कहीं वह कभी खुदकुशी न कर बैठे।"
"फिर क्या हुआ?" बिंदु ने खुद को रोक नहीं सकी उत्सुकता से पूछ लिया।
"मुझे जब इस बात का पता चला तो मैं हैरान रह गई। उसे हौसला दिया की मैं कुछ न कुछ करूंगी, चुप नहीं रहूँगी। पहले तो डर के मारे वह मना कर रही थी फिर जब मैंने उसकी सारी बातें टीचर को बताई तो उन्होंने तुरंत ही उसके घर पर फोन कर उसके मम्मी पापा को बुलाया। प्रिया ने जब उन्हें देखा वह अपने माँ के गले लग कर बहुत रोई। फिर हिम्मत करके पुलिस की मदद ली। उसके बाद प्रिया पढ़ाई छोड़ कर अपने गांव चली गई। बहुत बुरा हुआ उसके साथ, वह कितने अरमान लेकर शहर आई थी। हमेशा पढाई में अव्वल आती थी। बहुत बड़े बड़े सपने देखा करती थी। उसे चाटर्ड अकाउंटंट बनना था पर उसके सारे सपने, सपने ही रह गए।"
"ये तो बहुत बुरा हुआ उसके साथ।" बिंदु ने दुखी हो कर कहा।
पावनी को शतायु की फ़िक्र हमेशा से थी, 'न जाने वह क्या कर रहा होगा। बीती बातों को यादकर खुद को कोस रहा होगा। उसकी शादी हो गई होती तो औरों की तरह उसकी जिंदगी में भी खुशियाँ छा जाती और वह सब कुछ भूल कर एक नयी जिंदगी की शुरूवात कर सकता था। बड़ी मुश्किल से पावनी ने शतायु को मुम्बई आने के लिए राज़ी करा लिया। फिर भी पावनी को इस बात का शक था कि वह पूर्णतः अपने निर्णय पर कायम रहेगा? या फिर हमेशा की तरह टाल जाएगा। एक बार मुंबई आने से उसकी जिंदगी में कुछ नयापन जुड़ जाए या कुछ करिश्मा हो जाए |
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