Sailaab - 17 in Hindi Moral Stories by Lata Tejeswar renuka books and stories PDF | सैलाब - 17

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सैलाब - 17

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 17

कॉलिंग बेल की आवाज से किचन में व्यस्त पावनी ने किचन से बाहर आ कर दरवाजा खोला। सामने बिंदु और उसकी ३ सहेलियाँ खड़ी थी। पावनी आश्चर्य चकित हो गई। अचानक बिंदु और उसके सहेलियों को द्वार पर देख कर 'व्हाट ए सरप्राइज' कहते हुए अंदर बुलाया। वे सब अंदर सोफे पर बैठ गईं। बिंदु ने एक एक कर सबका परिचय कराया।

"आँटी, ये सुजाता, परिणीती और ये स्नेहल, मेरी बेस्ट फ्रेंड्स हैं।"

"बहुत अच्छा, बोलो कैसे आना हुआ? जरूर कोई बात होगी? कहो क्या बात है?" पावनी ने प्रश्न किया ।

"हाँ आँटी... आप से कुछ बात करनी थी ।"

"एक मिनट, आप सब बैठ कर बात करो, मैं बस अभी आई।" कह कर पावनी अंदर चली गई |

कुछ ही समय में पाँच कप चाय और बिस्कुट ले आई।

"लो चाय पीते हुए बात करेंगे तो ज्यादा मजा आएगा |"

सब ने चाय ली, "आँटी मेरी सहेलियाँ आप से मिलने आई हैं ।"

"मुझ से मिलने?? हाव स्वीट। कहो क्या बात है ?"

"आँटी हम सब मिल कर एक नारी कल्याण संस्था खोलना चाहते हैं और इसमें आपकी मदद चाहिए ।"

"मेरी मदद? बताओ मैं कैसे मदद कर सकती हूँ?"

"आँटी इस संस्था की सलाह कार आप होंगी ।"

"मैं, मुझे खुशी होगी अगर इस काम में मैं कुछ कर पाऊँ तो। पर मुझे नहीं लगता मैं कुछ कर पाऊँगी, क्यों कि तुम जानती हो न बिंदु मैं ज्यादा तर बाहर जाना पसंद नहीं करती ।"

"चिंता मत करो ऑटी, आपको घूमने फिरने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऐसा कोई काम आयेगा तो हम संभाल लेंगे ।"

पावनी को ना कहने की कोई गुंजाइश नहीं रही, फिर भी राम से बात करने के बाद ही कोई फैसला ले सकती हूँ कह कर चुप हो गई ।

लेकिन बिंदु आसानी से छोड़ने वाली नहीं थी, जैसे कि उसने पहले ही तय कर लिया था कि पावनी को उसकी नारी कल्याण संस्था की एडवाइज़र बनाना ही है।

बिंदु ने उसकी सारी योजनाओं के बारे में पावनी को बताया। बिंदु के इस प्रयत्न पर पावनी 'वाह वाह' किये बिना रह नहीं सकी, तालियाँ बजा कर बिंदु को शाबाशी दी ।

"बोलिए, अब क्या कहेंगे आंटी? आप हमारा साथ देंगी न?" बिंदु ने पूछा।

"जरूर, बिंदु नेक काम में देरी कैसी? मैं तुम्हारे साथ हमेशा हूँ, कभी भी किसी भी मदद की जरूरत हो तो मुझे निःसंकोच बताओ। मुझसे जो हो सकेगा मैं करूँगी ।"

कुछ समय बाद बिंदु और उसकी सहेलियाँ खुशी खुशी वहाँ से चली गई ।

दूसरे दिन सुबह सुबह सोहम ने फोन किया। पावनी से बात करते हुए सोहम तुरंत ही समझ गया की पावनी किसी बात को लेकर चिंतित है, "माँ कुछ प्रोब्लम है क्या? आप की बातों से कुछ उदासी नजर आ रही है.. कुछ प्रॉब्लम तो नहीं?

"नहीं, कुछ प्रोब्लम तो नहीं है बस सेजल की चिंता रहती है बाकी सब ठीक है।" बहुत देर बात हो नहीं पाई फोन बीच में ही कट गया ।

फिर सेजल का फोन आया। अचानक ही कहने लगी "माँ यहाँ मन नहीं लग रहा है, आप कहो तो कुछ दिन के लिए घर आ जाऊँ ।"

"क्यों बेटा सब ठीक तो है ना? कुछ परेशानी तो नहीं है?".

"हाँ, सब ठीक तो है, बस मन कर रहा था कुछ दिन के लिए आप के पास आ जाऊँ, आप सब की बहुत याद आ रही थी। आप डैड भाई सब याद आ रहे हैं।"

"ठीक है बेटा डैड से बात करती हूँ, जैसे की वक्त मिलेगा, तुझे लेने जल्द ही आ जाएँगे। ठीक है.."

" ठीक है माँ।" फोन कट गया।

सेजल की आवाज़ सुनने के बाद उससे मिलने को मन विचलित हो उठा। उसे हॉस्टल जा कर बहुत दिन हो गये, सिर्फ फोन पर बात होती रहती है। सेजल की आवाज़ में झलकते दर्द को पावनी ने पहचान लिया था। मन में तरह तरह के प्रश्न उठते 'न जाने कैसे संभाल रही होगी मेरी बच्ची? होस्टल जाने से पहले की ही बात है वह माँ के बगैर एक पल भी रह नहीं सकती थी। १७ साल की होने की बावजूद भी रात को गोद में आकर सो जाती थी। कपड़े से लेकर किताबें तक सारे काम पावनी को देखने पड़ते थे। माँ किताब मिल नहीं रही, माँ पेन कहाँ है? माँ नाश्ता तैयार हुआ की नहीं, माँ मेरे मोजे कहाँ रखे हैं? रोज सबेरे स्कूल जाने से पहले बस घर में तूफान मचा रहता था। पता नहीं अब कैसे कर रही होगी।' सेजल के हॉस्टल जाने के बाद उसके बिना पावनी का मन किसी चीज में नहीं लगता था मगर धीरे धीरे आदत सी पड़ गई।

पावनी को नारी कल्याण संस्था से जुड़ कर अच्छा लगने लगा। संस्था में जुड़ने के बाद से उसे खुद के लिए वक्त निकालना मुश्किल होने लगा। बिंदु की सहायता से लोगों से मेलजुल बढ़ा। स्त्रियों की मुश्किलें समझना उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा देना जैसे सारे काम कुशलता से निभाने लगी। जब बिंदु को मुहल्ले के लड़के छेड़ते थे तब बिन्दु की मदद से पावनी उन लड़कों को गिरफ्तार करवाने में कामयाब रही। स्त्रियों के प्रति हो रहे अन्याय, अत्याचार की आलोचना करने के साथ-साथ स्त्रियों की सहज सुलभ मुश्किलें और उनकी भावनाओं को समझते हुए उनकी सहायता करती रही। इस दौरान महिलाओं की परेशानी को लेकर एक किताब लिखने को सोचा।

घर पहुँचते ही सेजल, माँ के गले लग गई। पावनी की आँखें भर आई। बहुत दिन बाद सेजल के घर आने से राम भी बहुत खुश था बल्कि वह खुद छुट्टी ले कर सेजल को कॉलेज से घर ले आया था। पावनी ने पहले से उसके स्वागत में उसकी मन पसंद चीजें तैयार कर के रखी थी। सेजल को संक्रांति की वजह से कुछ दिन की छुट्टी मिली थी और इन कुछ दिन में ढेर सारा प्यार ढेर सारी खुशियाँ बटोरनी थी।

बचपन की यादें, वह मीठे पल जो भाई सोहम के साथ बिताये थे माँ कि गोद और पापा का प्यार यह सब कुछ समेटना था। माँ को देखते ही गले लग कर रोँ पड़ी। घर पहुँच कर वह बहुत खुश थी कि कॉलेज की सारे बातें एक ही सांस में कह गई। नए दोस्तों, क्लास टीचर, होस्टल के बच्चे सब कुछ, कहते कहते कभी आँख में पानी से भर आता फिर माँ का हाथ पकड़ कर पूछती "आप बताओ न माँ आप कैसी हो? मुझे आप की बहुत याद आती थी। आप भी मेरे बगैर दुखी होंगी न मुझे बहुत याद करती रही होगी। मैं आप को बहुत सताया करती थी। आपको तो अपने लिए समय ही नहीं मिलता था। अब तो आप के पास वक्त ही वक्त है, फुरसत में मेरी याद आती होगी ना।" सेजल पुराने दिनों को याद करते हुए कहती ही जा रही थी। पावनी को एहसास हुआ कि इन्हीं कुछ दिनों में सेजल बहुत बड़ी और जिम्मेदार हो गयी।

" हाँ, तेरे बगैर तो घर खाली पड़ गया था। अब आ गयी है ना देख तेरे लिए तेरी पसंद का मालपुआ बनाया है और चाइनीज नूडल्स भी चल फ्रेश हो कर आजा मैं प्लेट लगाती हूँ।" सेजल आँख पोंछते हुए फिर से पावनी की गले लग गई। जब तक सेजल तैयार हो कर आई तब तक डाइनिंग टेबल पर सेजल के लिए प्लेट में उसकी पसंद के सारे चीज़ सजा कर रख दी।

"माँ बताओ न बाकी सब कैसे हैं विनिता ऑटी और आपके बाकी दोस्त सब? और बिंदु कैसी है? बहुत दिन से बात नहीं हो पाई है और मामा! शतायु मामा कैसे हैं, उनसे बात होती भी है की नहीं।"

"अरे खाली सवाल करती रहेगी या मुझे कुछ बोलने भी देगी ।"

"बताओ न माँ |"

"हाँ सब लोग बिल्कुल ठीक है। विनिता ऑटी, बिंदु , सोहम और शतायु मामा भी और हाँ इस संक्रांति को सब आने वाले हैं। सोहम भी और मामा भी।"

"अच्छा मामा भी आने वाले हैं देखो माँ पहले ही कह देती हूँ हम बहुत मस्ती करेंगे फिर हमें टोकना नहीं। वाह इस बार बहुत मज़ा आयेगा। मामा भी आ रहे हैं। थैंक यू माँ। उम्मा।" कहकर पावनी के गाल पर पप्पी दी।

माँ बेटी दोनों कि बात खत्म ही नहीं हो रही थी। कभी कुछ पुराने बातें याद कर रही थी तो कभी नाना- नानी और मौसा- मौसी के बारे में सवाल करती रही। पावनी और सेजल माँ बेटी से ज्यादा बहुत दिनों से बिछड़ी हुई दो सहेली लग रही थी। राम कुछ समय सेजल के साथ बिताने के बाद घर के लिए जरूरत के सारे सामान रख कर ऑफिस चला गया ।

" तू पहले ये बता खाली बातें करती रहेगी या कुछ खाएगी भी ।"

"हाँ माँ बहुत भूख लगी है और नींद भी आ रही है।" कह कर खाना खा कर सो गई।

***